Friday, August 7, 2015

लोकतंत्र का मंदिर झुलस रहा --- 8-8-15

लोकतंत्र का मंदिर झुलस रहा ---
देश में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर जिसका सीधा प्रसारण होता है वो नही दिखना चाहिये जिसको देखकर देश का विद्यार्थी ऐसे लोकतांत्रिक क्रियाकलापों की दीक्षा लें |
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कोई किसान की आत्महत्या को आशिकी बताता है तो कोई बीमारी , मादक प्रदार्थ की लत , बेरोजगारी सम्पत्ति विवाद , दिवालियापन यहाँ तक की बांझपन , नपुंसकता दहेज प्रताड़ना कह चूका है |
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कही हम अनजाने ही एकाधिकारवादी सरकार की ओर तो नही बढ़ रहे है | तभी लगता है कि नही ऐसा होता तो हंगामा नही होता | यकीकन सवाल हर आम भारतीय के मन में उठता तो होगा , इस पर बहस न हो ये अलग बात है | कांग्रेस ने संसद सत्र के पहल जो कहा था कर दिखाया , लगभग आधा सत्र हंगामे की भेट चढ़ गया स्थिति यही रही तो पूरा चढ़ जाए तो भी हैरानी नही होगी | नया कुछ नही है , पहले भी होता था , कब तक होगा यही सोचना है | तटस्थ होकर चिंतन करे तो कोई ख़ास अलग नही दिखती यूपीए और एनडीए सरकारों की संसदीय तस्वीरे | चिंता बस इतनी कि क्या लोकतंत्र की सेहत या फिर उन करोड़ो मतदाताओ में सकूंन होगा , जिन्होंने बहुत ही उम्मीदों के साथ बदलाव का आगाज किया था और नया नेतृत्व सौपा | जहा लोकतंत्र अपने ही मंदिर में झुलस रहा है , वही इसके पुजारी और भक्त अपने स्वार्थो का प्रसाद बना रहे है |
बहुत ही दुखद है , खेद पूर्ण है और चिंताजनक है , संसद की मौजूदा दशा और दिशा | इस का निदान भी कुछ नही दिखता |
सभी जगह अड़ियल रवैया , बातचीत को कोई तैयार नही | संसद में गतिरोध से जनता के खून और पसीने की गाढ़ी कमाई भी चुक रही है |
हर मिनट संसद की कार्यवाही पर ढाई लाख 2.5 लाख रूपये खर्च होते है | बोझ तो आखिर वही आवाम भुगतेगी जिसके अन्नदाता को भी इन्ही को भी इन माननीय लोगो ने नही बख्शा और बेतुकी फबतिया कसने से गुरेज तक नही की | कोई किसान की आत्महत्या को आशिकी बताता है तो कोई बीमारी , मादक प्रदार्थ की लत , बेरोजगारी सम्पत्ति विवाद , दिवालियापन यहाँ तक की बांझपन , नपुंसकता दहेज प्रताड़ना कह चूका है | साल2005 में
यूपीए सरकार के तत्कालीन मंत्री नटवर सिंह का इराकी तेल बिक्री से फायदा लेने वालो की सूचि में नाम क्या आया , सुषमा स्वराज ने कहा था कि बिना उनके पद छोड़े जांच कैसे हो पाएगी | आईपीएल फ्रेंचाइजी विवाद में शशी थरूर को पद से हाथ धोना पडा था | ए . राजा और कनिमोझी का मामला भी सबके सामने है | इस विवाद पर मचे बवाल में भी संसद 23 दिन बाधित रही और जनता के 146 करोड़ रुपयों का खून बिना कार्यवाही हुए हो गया था | कोल ब्लाक आवटन प्रकरण में भी कमोवेश वही स्थिति तब बनती दिखी थी | विपक्ष की तबकी नेता सुषमा स्वराज ने तब भी सरकार पर जोरदार हमला किया था और गतिरोध इस कदर बना रहाकि साल 2012 में बीस दिन के मानसून सत्र में तेरह दिन कार्यवाही बाधित रही | लोकसभा में 1950 के दशक में सालभर में जहा औसतन 127 दिन काम होता था वही घटकर अब 70 दिन तक चला गया | संन 2001 में पीठासीन पदाधिकारियों , मुख्यमन्त्रियो संसदीय कार्य मंत्रियों और राजनितिक दलों के नेताओ व सचेतको के अखिल भारतीय सम्मेलन में हर वर्ष संसद की कम से कम 110 बैठके सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया था उसका कोई भी असर न पहले हुआ न अब दिखा | आरोपों - प्रत्यारोपो के बीच यह जूमला भी ठीक नही कि अब भा ज पा ऐसा ही करती | इसका यह मतलब यह नही कि सबका मकसद यही हो | हाँ मुद्दों पर बहस होनी चाहिये - निर्णय होने चाहिए - कानून बनना चाहिए , लेकिन देश में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर जिसका सीधा प्रसारण होता है वो नही दिखना चाहिये जिसको देखकर देश का विद्यार्थी ऐसे लोकतांत्रिक क्रियाकलापों की दीक्षा लें |
अगर 11 राज्यों के 111 सांसद यह कहते है काम नही तो वेतन नही का फार्मूला यहाँ भी लागू हो तो क्या बुरा | लेकिन इसे संदेश जरुर उलट जाता है क्या सांसद पगार की खातिर संसद जाते है | तो क्या देश सेवा , लोकसेवा , जनसेवा महज दिखावा है , छलावा है | कुछ भी हो हंगामो की भेट चढ़ते संसद सत्र न पहले कभी अच्छे लगते तजे न अब लगते है | ऐसे में आखरी सवाल बस इतना क्या नैतिकता के नाम पर हम भले या वो भले की बात या फिर जग भले की वो बात हो जो सच में भली है | सुषमा स्वराज , वसुंधरा राजे शिवराज सिंह व्यक्ति है संस्था नही | चूक अनजाने हुई या जानबूझकर ये बाद का विषय है अव्वल तो राजधर्म है | 21 वी सदी के इस युग में जब तकनीकि क्रांति कही - कही नही बल्कि हर हाथ में मयस्सर है और यही अच्छे बुरे का पल - पल भान भी कराती है , ज्ञान भी देती है | हमारे माननीयो को भी सोचना होगा की वे वह करे जो करना है वरना यह पब्लिक है सब जानती है !
प्रस्तुती -- सुनील दत्ता - आभार -- दैनिक काशीवार्ता

Thursday, August 6, 2015

खुला कब्रिस्तान -------------- 6-8-15

खुला कब्रिस्तान ---- जहा आज भी शव सुरक्षित है ---
कल्पना कीजिये कि आप माउंट एवरेस्ट को फतेह करने जा रहे है | आप अपनी चढाई के आखरी दौर में है , शिकार को चूमने के लिए आप बेताब है तभी आप एक ऐसी जगह पहुचते है जहा का दृश्य देख कर आप की रूह कापं जाती है जहा आप को कई कलाईबर्स के शव फ्रोजन अवस्था में दिखाई देते है , तो समझ लीजिये माउंट एवेरेस्ट को फतेह करना हर कलाईबर्स का सपना होता है | लेकिन इसको फतेह करना इतना आसान नही है | पहले जब तकनीक इतनी विकसित नही थी तब हर चार में से एक कलाईबर्स कि मौत इस प्रयास में होती थी और आज जबकि तकनीक काफी विकसित हो गयी फिर भी हर हजार में से बीस कलाईबर्स मौत इस प्रयास में होती है | इनमे से अधिकतर की मौत ऐसी जगह होती है जहा से इनके शवो को निचे लाना असम्भव होता है | यह जगह कहलाती है '' रेनबो वैली ''
रेनबो वैली , माउन्ट एवेरेस्ट पर उसके शिकार से कुछ नीचे स्थित है | | यह नाम सुनने में जितना अच्छा लगता है , यह जगह उतनी ही भयावह है | माउंट एवेरेस्ट का यह हिस्सा कलाईबर्स के लिए मौत की घाटी है | यहाँ पर अब तक सैकड़ो की मौत हो चुकी है | उनमे से अधिकतर के शव भी अभी तक वही पड़े है | क्योकि यहाँ से शवो को नीचे उतरना लगभग नामुमकिन है | हेलीकाप्टर इसकी आधी ऊँचाई तक ही पहुच पाते है | अत्यधिक ठंड व बर्फ के कारण यहाँ पड़े हुए शव काफी हद तक संरक्षित बने हुए है | इसलिए इस जगह को खुला कब्रिस्तान कहा जाता है | यहाँ पर कलाईबर्स का सामान भी इधर - उधर बिखरा पड़ा है अभी तक पहचाना गया सबसे पुराना शव georgemallory का है जो की 1924 में तूफ़ान में फंसकर मारे गये थे | ----------------
साभार -- दो अगस्त -- दैनिक आज

Wednesday, August 5, 2015

आंतरिक सौन्दर्य ----------------- 5-8-15

आंतरिक सौन्दर्य

सोनपुर की राजकुमारी को अपनी सुन्दरता  पर बेहद घमंड था | दूसरो का मजाक उडाना उन्हें नीचा दिखाना उसका प्रिय व्यसन था | एक दिन वह सहेलियों के साथ नदी पर स्नान के लिए गई |

वहा उसने एक सन्यासी को ध्यान - मग्न देखा | उसकी नाक कुछ बड़ी थी और चेहरे पर दाढ़ी भी थी |
उसे देख राजकुमारी ने अपनी सहेलियों से कहा --- ' देखो तो यह रीछ कैसा बगुला भगत बना बैठा है | इतनी लम्बी नाक और चेहरे पर बालो के साथ यह पूरा रीछ लगता है | '


यह सुनकर सन्यासी कुपित हो गया और बोला
' घमंडी लड़की ' तूने मेरे मुख की तुलना जानवर से की है , तेरा चेहरा भी उसी जैसा हो जाएगा | ' उसी शाम राज उद्यान में टहलते हुए राजकुमारी ने कुछ पुष्प तोड़े और उनकी सुरभि का आनन्द लेने लगी | किन्तु जैसे - जैसे वह फूलो को सुघती , उसकी नाक बड़ी होती जाती  |

देखते - देखते उसकी नाक इतनी बड़ी हो गई की सभालना कठिन हो गया |
उसके चेहरे पर घने बाल भी उग आए उसकी यह हालत देख राजमहल में कोहराम मच गया , फौरन राजवैद्द को बुलाया गया , पर उनका  उपचार भी व्यर्थ रहा - तब राजवैद्द  ने कहा -- राजन , यह कोई दैवकोप  लगता है | " तब राजकुमारी ने अपने पिता को नदी के घाट पर हुआ पूरा वृत्तांत सुनाया | राजा अपनी बेटी को लेकर भागे - भागे सन्यासी के पास पहुचे और उनके चरणों में गिरते हुए बोले -- इसकी भूल को क्षमा करे महात्मन | इसे इस व्याधि से मुक्ति दिलाए |  अगले दिन से ही राजकुमारी सन्यासी की बताई रीति के अनुसार औषधि उपचार में जुट गई | पन्द्रह दिन पुरे होते - होते उसका शरीर पूर्ववत हो गया | अब राक़ज्कुमारी समझ चुकी थी कुरूपता बाहरी नही आंतरिक होती है और सच्चा सौन्दर्य  शारीरिक रूप - रंग नही आंतरिक  सदगुण सम्पत्ति है | ----

Tuesday, August 4, 2015

राबिया बसरी के गीत --------------- 4-8-2015

मुझे कुछ नया पढने के साथ ही कुछ नया करने की जिज्ञासा हमेशा रही इसी आदत के कारण नए - नए लोगो से मिलना नए स्थानों पे जाना और कुछ नया खोज के लाना अब आदत में शुमार है आइये आज मिलवाता हूँ |
राबिया बसरी से ----

राबिया बसरी के गीत ---- राबिया 713 ईस्वी में ईराक के बसरा शहर में जन्मी थी | हजरत मुम्मद और राबिया के बीच लगभग कोई सौ साल का ही फासला है | इसीलिए सबसे पहले हुए सूफियो में राबिया का नाम गिना जाता है , और यह भी कहा जाता है कि प्रेम के मार्ग का प्रारम्भ राबिया से होता है |
कहते है कि राबिया जब पैदा हुई तो उसके गरीब घर में न तो चिराग जलाने के लिए तेल था और न उसे लपेटने के लिए कोई कपड़ा | राबिया की माँ ने उसके पिता से कहा कि वह पडोस से थोड़ा तेल और कपड़ा मांग लाए|
लेकिन राबिया के पिता ने यह कसम उठा रखी थी कि वह अपना हाथ अल्लाह को छोड़ कभी किसी के आगे नही फैलायेगे | पत्नी का दिल रखने के लिए वह पडोस में गये और बिना किसी से कुछ मांगे वापस आ गये |
कहते है उस रात हजरत मुहम्मद उनके सपने में आये और बोले ,
' तेरी बेटी मुझे अजीज है | तू बसरा के आमीर के पास जा और उसे एक ख़त दे , जिसमे यह लिखना : तू हर रात नबी को सौ दुरुद करता है और हर जुम्मेरात को चार सौ दुरुद करता है | लेकिन पिछली जुम्मेरात को तू दुरुद करना भूल गया , सजा के तौर पर इस ख़त लेन वाले को चार सौ दीनार दे दे |
आँखों में आँसू लिए राबिया के पिता आमिर के पास पहुचे | आमिर नाच उठा कि वह नबी की नजरो में है | उसने 1000 दीनार गरीबो में बाटे व ख़ुशी - ख़ुशी चार सौ दीनार राबिया के पिता को दिए और यह भी कहा कि उन्हें जब जरूरत हो उसके पास चले आये |
राबिया के पिता की मृत्यु के बाद बसरा में अकाल पडा | राबिया अपनी माँ और बहनों से अलग एक दूसरे कारवा के पीछे चल पड़ी , जो लुटेरो के हाथ लग गया | उन लुटेरो ने राबिया को गुलामो के बाजार में बेच दिया |
राबिया का मालिक उससे कड़ी मेहनत करवाता | वह बिना किसी शिकायत सब काम करती , और रात जब वह अकेली होती तो अपने प्रीतम ' अल्लाह ' के साथ मानो खेलती | रात वह अपने गीत रचती और अल्लाह को सुनाती |
एक रात राबिया के मालिक की नीद खुली तो उसने देखा राबिया गीत गा रही थी ;
आँख आराम में है , तारे डूब रहे है
परिंदों के घोसलों में कोई आवाज नही
समुंदर के शैतान भी चुप है
खलीफो और शहशाओ के दरवाजे बंद है .
लेकिन बस एक तेरा दरवाजा खुला है
तू ही तू है जो बदलता नही
तू ही तू है जो कभी मिटता नही
मेरे अल्लाह ,
हर आशिक अपने - अपने महबूब के साथ है
मैं बस तेरे साथ हूँ |
राबिया के मालिक ने देखा की जब वह गा रही थी तो उसके चेहरे से ऐसा नूर टपक रहा था कि जैसे रात भी रोशन हो गयी हो |
वह राबिया के पैरो में गिर पड़ा और बोला की कल से तू मेरी मालकिन होगी और मैं तेरा गुलाम |
उसने राबिया से यह भी कहा कि अगर वह जाना चाहे तो वह उसे गुलामी के बंधन से आजाद करता है |
राबिया ने कहा कि वह रेगिस्तान में जाकर कुछ समय अकेली रहना चाहती है | रेगिस्तान में उसने कई दिन गुजारे और वही मुर्शिद के रूप में उसे हसन अल बसरी मिले , जिनके चरणों में वह रहने लगी |
कहते है कि जिस दिन राबिया प्रवचन में न आती हसन चुप ही रहते | जब उनसे पूछा गया तो वह बोले , जिस बर्तन में चाशनी भरकर हाथी को पिलाई जाती है , वह बर्तन चीटियों को चाशनी पिलाने के काम नही आ सकता |
एक दिन अचानक रात गीत गाते हुए राबिया चुप हो गयी | जब वह हसन से मिली तो हसन ने उसकी आँखे देखकर कहा : अरे तुझे तो मिल गया | कैसे मिला तुझे ?
राबिया ने कहा , आप ' कैसे ' की बात करते है , और मैंने जाना कि ' कैसे ' और ' ऐसे ' कही नही पहुचाते है | जो है , सो है | ' कैसे ' तो वहा ' पहुचाएगा, और होना ' यहाँ ' है |
हसन ने राबिया को गले लगाया और कहा कि तू जा अपने गीतों को फैला |
वह अकेली एक कुटिया में रहने लगी और हजारो शिष्य उसके पास पहुचने लगे | वह जो गति , शिष्य उसे लिख लेते | उसके जो गीत आज उपलब्ध है वह उसके शिष्यों ने ही कागज पर उतारे है |
प्रस्तुती -- कबीर ---------------- आभार ----------------- यैस ओशो

Sunday, August 2, 2015

शब्दावली सकलन का प्रारम्भ व विकास -- 02-08-15

शब्दावली सकलन का प्रारम्भ व विकास --
मध्यकाल की नाम मालाओ की परम्परा के बकाद पहला शब्दावली संकलन का कार्य आदन ने 1829 में ' हिन्दवी भाषा का कोष ' शीर्षक से तैयार कजिया जिसमे 20 , 000 शब्द थे |
तद्व्व तथा देशज शब्दों को प्रधानता दी गयी | आदम साहब पहले व्यक्ति थे जिन्होंने लोक से बोलचाल के शब्द संगृहित किये |
आदम से पूर्व गिलक्राइस्ट , कर्कपैट्रिक , विलियमहंटर , शेक्सपियर , राब्क के कोष और बाद में फैलेन , येट , डकर फोब्र्स , थामसन तथा जान प्लाट्स के कार्य उल्लेखनीय है |
इनमे फैलेन थामसन तथा जान प्लाट्स के कार्य महत्वपूर्ण है | थामसन के संकलन में शब्द संख्या 30,000 है , फैलेन के कोष में1216 पृष्ठ ( रायल कटेव ) है | प्लाट्स के कोष का पूरा नाम है --- '' ए डिक्शनरी आफ उर्दू , क्लासिक हिंदी एंड इंग्लिश (1874 ) जिसकी प्रमुख विशेषताए है |

(1 ) शब्दों की व्युत्पत्ति पर प्रकाश तथा
( 2 ) समान वर्तनी के अलग - अलग स्रोतों से आये शब्दों की अलग - अलग प्रविष्टिया
(3 ) अकर्मक तथा सकर्मक क्रियाओं का उल्लेख
( 4 ) साहित्येर सह्ब्दो का संकलन |
भारतीयों द्वारा बनाये गये कोशो में जिन दो कोशो का सर्वाधिक प्रचार - प्रसार हुआ , वे है -- ' श्रीधर भाषा कोष ' ( सन 1894 ) श्रीधर त्रिपाठी ,लखनऊ , पृष्ठ स . 744 तथा ' हिंदी शब्दार्थ पारिजात ' ( सन 1914 ) , द्वारका प्रसाद चतुर्वेदी , इलाहाबाद | पहले कोश में लगभग 25 , 000 शब्द संख्या है जबकि दुसरे में ब्रजभाषा -- अवधि आदि विभाषाओ के शब्दों की संख्या रहने के कारण शब्द संख्या अधिक है |
अनुमान किया जा सकता है कि 20 वी शताब्दी के प्रारम्भ तक शब्द संकलन 50 ,000 तक पहुँच गया |
आधुनिक काल में बाबू श्याम सुन्दर दास रामचन्द्र शुक्ल , राम चन्द्र वर्मा के सत्प्रयासो से नागरी प्रचारणी सभा , वाराणसी से ' हिंदी शब्दसागर ' ( 1922 -29 ) प्रकाशित हुआ जिसकी योजना 23 - 8- 1907 की सभा के परम हितैषी और उत्साही सदस्य श्रीयुत रेवरेंड ई ग्रीब्ज के उस प्रस्ताव के अनुसार बनी जिसमे प्रार्थना की गयी थी कि ' हिन्दी के एक बृहत और सर्वांगपूर्ण कोष का भार सभा अपने ऊपर ले | '
सन 1910 के आरम्भ में शब्द संग्रह का कार्य समाप्त हुआ | 10 लाख सिलप बनाई गयी जिनमे लगभग एक लाख शब्दों का आंकलन किया गया |
यह कोष वस्तुत: सागर था जो शब्दों , अर्थो , मुहावरों , लोकोत्तियो , उदाहरणों तथा उद्द्र्ण से भरपूर अर्थच्छटाए देने में सर्वोत्तम माना जाएगा |
इसके बाद कोष कला में दीर्घकालीन अनुभव प्राप्त आचार्य रामचन्द्र वर्मा के प्रयासों से वाराणसी से ' प्रमाणिक हिन्दी कोष ' ( पृष्ठ संख्या 3966;1962-1966 ) प्रकाशित हुआ | ' वृहद हिन्दी कोष ' के तीसरे संस्करण में एक लाख अडतालीस हजार शब्द है | इस बीच ' हिन्दी शब्दसागर ' का नवीं संशोधित और परिवर्धित संस्करण ( 1965 -75 ) में प्रकाशित हुआ जिसमे कुल पृष्ठ संख्या 5570 है , संयोजक श्री कृनापति त्रिपाठी के दिनाक 18-2-65 के वक्तव्य के अनुसार ' मूल शब्द सागर से इसकी शब्द संख्या में दुगनी वृद्दि हुई है | इस प्रकार कोशो के आधार पर शब्दावली की संख्या दो लाख है |