Monday, February 15, 2016

बाल्या डाकू बन गया वाल्मीकि -- 16-2-16

बाल्या डाकू बन गया वाल्मीकि --



कथा है कि बाल्मीकि , इसके पहले कि उसने रामायण लिखी , लुटेरा था , हत्यारा था , डकैत था | नारद को एक सुभ उसने अपनी वीणा पर संगीत छेड़े जंगल से गुजरते देखा | रोका , और कहा कि जो भी हो तुम्हारे पास रख दो !

बहुत लोगो को रोका होगा जिन्दगी में वही उसका धंधा था , लेकिन नारद जैसा व्यक्ति उसे पहली बार मिला था | उसने दो तरह के लोग जाने थे | एक , जो रोकने से डर जाते थे , भयभीत हो जाते थे , थर - थर कापने लगते थे | उसका नाम इतना भयंकर था -- बाल्या भील तब उसका नाम था | उसके नाम से ही लोगो की छाती दहक जाती थी | माताए अपने बच्चो को डराती थी कि भीतर हो जाओ , बाल्य आ रहा है ; अगर गडबड की तो बाल्य को दे देगे | लोग घबडा जाते , गिडगिडाने लगते , जो पास होता दे देते ; या तलवारे खिंच जाती मरने - मारने को तैयार हो जाते | बस तो तरह के लोग देखे थे -- या तो भयभीत या फिर मरने - मारने को राजी ; कायर या हिंसक | लेकिन नारद एक तीसरे तरह के व्यक्ति थे , इसका बाल्या को पहली दफा अनुभव हुआ | और उसी ने उसके जेवण में क्रांति ला दी |

नारद का गीत चलता रहा | जिसे सच्चा गीत मिल गया है , वह रुकता ही नही | नारद की वीणा बजती ही रही | जिसके भीतर की वीणा बज उठी हो , उसकी बहार की वीणा को बजने से कौन रोक सकता है और बाहर की वीणा टूट भी जाए तो भी कुछ अंतर नही पड़ता , भीतर की वीणा अहर्निश बजती रहेगी | नारद भागे न ही गिडगिडाएन लड़ने को को तैयार हुए | बाल्य ठिठका | यह आदमी नए ढंग का था | कहा कि समझे नही क्या ? मैं कहता हूँ जो भी पास हो मुझे दे दो |

नारद ने कहा , पास तो मेरे बहुत कुछ है , मगर तुम ले सकोगे ? पास तो मेरे राम है , मगर लेने की तुम तैयारी है ? मैं तो खोजता ही फिर रहा हूँ उन दीवानों को जो राम को लेने के लिए तत्पर हो | क्या तुमने मुझे पागल समझा है ? किस लिए वीणा बजा रहा हूँ ? और किसके लिए यह गीत है ? और किस लिए यह दूर जंगलो में भटक रहा हूँ ? अरे उन्ही की तलाश है जो लेने को राजी है | तू लेने को राजी है ?
यह और मुश्किल बात थी | इस धन का नाम तो बाल्या ने सुना नही था | यह कौन सा धन है राम ? न कोई पहचान थी , न कोई परिचय था इस धन से |
पूछा कि यह क्या है ? सूना नही | यह जेवर कभी देखे नही | ये आभूषण परिचित नही | तुम किस राम की बात कर रहे हो ?
नारद ने कहा , मेरे भीतर अनंत संगीत उठा है अनहद नाद उठा है | एक ही अभिप्सा है कि कितना बाटू!
बाल्य ने पूछा क्या करना होगा लेने के लिए ?
तो नारद ने कहा , यह जो राम है , यह जो शब्द है राम इसकी गुहार मचानी होगी | यह तेरे हृदय में , तेरी श्वासों में यु ओत - प्रोत हो जाये कि जागे , सोये , मगर अहर्निश राम की धारा तेरे भीतर चलती रहे | यह कचरा इकठ्ठा करके क्या करेगा ? और जिस ढंग से तू इकठ्ठा कर रहा है महगा सौदा है |
नारद ने कहा , तू यह सारा धंधा कर रहा है लुट - पाट का , किस लिए बच्चो के लिए , पत्नी के लिए , पिता के लिए ?
उसने कहा निश्चित ! परिवार है , उसकी चिंता मुझे करनी है |
तो नारद ने कहा , एक कम कर , तू पूछ आ कि इस सबके करने में वे भागिदार है या नही ? और इसके परिणाम में जो भी तुझे भोगना पड़ेगा उसमे उनकी हिस्सेदारी रहेगी कि नही ?

बाल्य ने कहा , मुझे धोखा देने की कोशिश मत करना | नारद ने कहा , तू मुझे वृक्ष से बाढ़ दे |बाल्य नारद को वृक्ष से बाढ़ गया | बाल्य घर गया , उनसे पूछा | पत्नी ने कहा कि मुझे क्या पता तुम कैसे कमाते हो ! मुझे विवाह करके ले आये थे , उस दिन तुमने जिम्मा लिया था मेरे भरण - पोषण का | तुम जानो तुम्हारा काम जाने | मेरा पेट भरना चाहिए , मेरा तन ढकना चाहिए | मेरी कोई भागीदारी ? मुझे पता नही कि तुम क्या करते हो |
बूढ़े पिता ने कहा , मेरा इससे क्या लेना - देना यह तुम्हारा कर्तव्य है बूढ़े पिता का भरण - पोषण | अब तुम पूण्य से करते हो कि पाप से , यह जिम्मेवारी तुम्हारी है |
सब इंकार कर गये | छोटे बच्चे भी इंकार कर गयर | बाल्य सकते में अ गया | जिनके लिए मैं अपने जीवन को गंवा रहा हूँ , उनमे से कोई भी मेरे पाप का भागिदार नही है !
जब वह लौटा तो दुसरा आदमी था | नारद को छोड़ा उसने , पैरो पर गिर पडा , और कहा कि मुझे दे दो वह धन , दे दो वह धन जिसको तुम राम कहते हो ! | मगर बेपढ़ा - लिखा आदमी , इसीलिए कहानी बड़ी प्रीतिकर है कि वह भूल गया कि राम - राम - राम जपना है , वह मरा - मर जपता रहा | लेकिन कहानी कहती है कि वह मारा - मर जप कर परम सिद्दावस्था को उपलब्द्द हुआ |

Sunday, February 14, 2016

देश की व्यवस्था आम आदमी को छलती रही -- 15-2-16

देश की व्यवस्था आम आदमी को छलती रही --


14 नवम्बर 2015 के दैनिक जागरण में ' दुनिया में सम्पत्ति के बटवारो को लेकर कुछ आंकड़े प्रकाशित किये गये है | इन आकंड़ो में विश्व की 70% से अधिक आबादी ( लगभग 3.4 अरब की आबादी ) को कुछ हजार से लेकर औसतन 10 हजार डालर यानी 6.55. लाख रूपये से कम की सम्पत्ति का मालिक बताया गया है | इसके उपर से 21% आबादी को 10 हजार डालर से लेकर 1 लाख डालर तक की सम्पत्ति का मालिक बताया गया है | वैश्विक आबादी के बाकी बचे हुए उच्च एवं धनाढ्य आबादी के पास 10 हजार डालर यानी 65.5. करोड़ से अधिक की अकूत सम्पत्ति का मालिक दर्शाया गया है | कुल आबादी के 5% से भी कम संख्या वाले इन धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों के पास सामूहिक रूप से 113 ट्रिलियन डालर यानी महाशख डालर की सम्पत्ति है | जबकि कुल आबादी के 71% जनसाधारण के पास कुल मिलाकर महज 7.4ट्रिलियन ( महाशख ) डालर की सम्पत्ति है |

इस देश में भी सम्पत्ति की स्थित इस वैश्विक बटवारे जैसी ही है | बल्कि उससे भी ज्यादा गम्भीर है | इस देश की आबादी की 95% आबादी के पास 10 हजार डालर ( 6.55. लाख रुपया ) से कम की सम्पत्ति है | जबकि बाकी 5% आबादी में से 0.3 % के पास एक लाख डालर से अधिक की पूंजी व सम्पत्ति है | इन सर्वोच्च धनाढ्य हिस्सों के अलावा शेष रह गये 4.7 धनाढ्यो के पास 10 हजार डालर से लेकर एक लाख डालर या उससे कुछ अधिक की पूजी व सम्पत्ति का मालिकाना है |

उपरोक्त आंकडा , वैश्विक एवं भारतीय स्तर पर समाज में सम्पत्ति के बढ़ते बटवारे का मौजूदा आंकडा भर है | वह उसके बढने या घटने की दिशा नही बतलाता | वास्तविकता यह है कि इसकी वर्तमान दिशा देश - दुनिया के थोड़े से लोगो की धनाढ्यता बढाने तथा बहुसख्यक जनसाधारण को धन सम्पत्ति से पूरी तरह से विपन्न कर देने की दिशा में लक्षित है | इसके साथ ही विडम्बना यह है कि यह प्रक्रिया इस देश में और समूचे विश्व में जनतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने और उसे मजबूत बनाने के धुआधार प्रचारों के साथ बढती जा रही है |

सब जानते है कि वर्तमान युग को सामंतशाही , राजशाही के युग से भिन्न कमोवेश बराबरी वाला तथा बराबरी के अधिकार वाला जनतांत्रिक युग कहा जाता है | सामंतशाही के युग में शासको के पास ही धन , सम्पत्ति के मालिकाने के समूचे या व्यापक अधिकार के साथ शासन व समाज व्यवस्था के संचालन का भी अधिकार होता था |
बराबरी , एकता तथा भाईचारगी के नारों के साथ हुई जनतांत्रिक क्रांतियो ने न केवल सामन्ती , राजशाही व्यवस्था को तोड़ दिया , बल्कि उनके शासन - सत्ता के अधिकारों को छिनने के साथ उनकी जमीनों के मालिकाने हक़ को भी छीन लिया | उनकी जमीनों को उनकी रियाया रहे भूमिहीन किसानो में बाट दिया | इस देश में भी यह काम जमीदारी उन्मूलन के रूप में हुआ | बेशक यह काम क्रांतिकारी परिवर्तन के जरिये नही हुआ | इसलिए यह काम आधा - अधूरा हुआ | देश के कई क्षेत्रो में आज भी भूमि के मालिकाने का सकेन्द्र्ण इसी अधूरेपन का सबूत है |


लेकिन विश्व में और इस देश में जनतंत्र की बहुप्रचारित स्थापना व विकास और जमीनों के मालिक राजाओ , नबाबो तथा जमीदारो की जमीनों को उनसे छिनने तथा किसी हद तक जनसाधारण को सौपने की जनतांत्रिक प्रक्रिया के साथ आधुनिक युग की धन सम्पत्ति के पैसे - पूंजी के सन्दर्भ में दूसरी एवं इसकी विरोधी गैर जनतांत्रिक प्रक्रिया भी निरंतर चलती रही है | उस प्रक्रिया के फलस्वरूप समाज में बराबरी बढने की जगह भयंकर अब्राबरी बढती रही है | धन - सम्पत्ति , पैसा - पूंजी , उद्योग - व्यापार आदि के आधुनिक मालिकाने पर चढ़े - बढ़े लोगो का मलिकना निरंतर बढ़ता गया है | उनके बढ़ते निजी लाभ व निजी मालिकाने के फलस्वरूप समाज के 70% से अधिक आबादी वाले जनसाधारण की सम्पत्तिया , खेतिया एवं अन्य कारोबार टूटते रहे है वे सम्पत्तिहीन होते रहे है | वर्तमान समय में यह प्रक्रिया तेजी से बढती जा रही है | प्रस्तुत आकंडे इसी की गवाही दे रहे है |

समाज में वोट देने के अधिकार के तथा कई अन्य बराबरी वाले अधिकारों के आने के साथ साथ धन - सम्पत्ति वेतन - आमदनी , रहन - सहन में असमानता बढती रही है | इसीलिए पिछले 60 सालो से आती रही सरकारों द्वारा अमीरी - गरीबी की बढती खाई पाटने की बात की जाती रही है | उनके नाम पर नेतीयो कार्यक्रमों का निर्धारण भी किया जाता रहा , लेकिन उसका कोई सकारत्मक परिणाम नही आया और न ही आना था |
क्योकि अमीरी - गरीबी की खाई पाटने के नाम पर गरीबो को उपर उठाने की बहुप्रचारित घोषणाओं के साथ दर हकीकत गरीबी को बढावा देने वाले अमीरों पर अंकुश लगाने की जगह उन्हें अपने धनाढ्यता बढाने की छुट व अधिकार दीये जाते रहे है |
वर्तमान दौर में खासकर पिछले 25 सालो से लागू अंतरराष्ट्रीय नीतियों , प्रस्तावों , सलाहों दबावों के जरिये यह काम खुले रूप में किया जाता रहा है

Friday, February 12, 2016

इहलोक से शिवलोक -- 13-1-16

इहलोक से शिवलोक --
हिन्दुओं के लिए कैलास शिवलोक भी और साक्षात शिव का स्वरूप भी |
कैलास की ही छत्रछाया में लहराती हुए पवित्र झील है मानसरोवर , जिसे ब्रम्हा के माँस की उत्त्पत्ति माना जाता है | नीरव - जनशून्य मरुभूमि पर स्थित कैलास - मानसरोवर सर्वोच्च तीर्थ मात्र नही , यहाँ सर्वत्र छिटका है परिवर्तनधर्मा प्रकृति का अनोखा इन्द्रधनुषी रंग ; बेहद मोहक , अतीव सुंदर | क्षिति , जल पावक , गगन और समीर यहाँ अलग ही रूप धरते है | सुभद्रा जी ने चंद अल्फाजो में जो कागज के कैनवास पे खीचा है कोई यायावर ही यह कर सकता है सच है कि सुभद्रा जी राहुल बाबा नही बन सकती दायित्व लिया है , लेकिन यह जरुर कह सकता हूँ कि जिस तरह से फकीराना अंदाज में इन्होने मानसरोवर को महसूस किया पढने से लगता है कि हृदय के अन्दर बैठा वो स्पन्द अपने आस - पास महसूस हो रहा है | साधुवाद सुभ्रदा जी आपको

व्यवस्था को आम किसान के हितो को सुरक्षित करनी पड़ेगी न की उनको राम - रहीम के भरोसे छोड़ दे -- डा राजीव श्रीवास्तव 13-1-16

तीसरा दिन कैथी

व्यवस्था को आम किसान के हितो को सुरक्षित करनी पड़ेगी न की उनको राम - रहीम के भरोसे छोड़ दे -- डा राजीव श्रीवास्तव
नॅशनल लोकरंग एकेडमी उत्तर प्रदेश 'प्रतिरोध की संस्कृति ' अवाम का सिनेमा '
कैथी फिल्म फेस्टिवल ' के संयुक्त तत्त्वाधान में मुहीम का तीसरा दिन प्रथम सत्र में विलुप्त होती लोक संगीत व परम्परा हुडुक - गोड़उ नाच जो हमारी पूर्वांचल की लोक संस्कृति है उनके कलाकारों द्वारा शानदार प्रदर्शन रहा समापन के अवसर पर परिसम्वाद '' आत्महत्या करते किसान सरकारे मौन '' विषय पर समाजवादी साथी डा सोमनाथ त्रिपाठी ने कहा भारत का किसान अनादि कल से छला जा रहा है , पहले के युगों में राजाओ , जमीदारो द्वारा लुटा गया फिर ब्रितानी राज में उसका शोषण जारी रहा आजाद भारत में भी किसानो के हित चिन्तक दूर - दूर तक कही नजर नही आते आज किसानो को फिर लाम बंद होना पडेगा | दिल्ली से आये फिल्म मेकर , वरिष्ठ पत्रकार बड़े भाई डा राजीव श्रीवास्तव ने चर्चा को आगे बढाते हुए कहा कि सोमनाथ जी के बातो को शामिल करते हुए कहना चाहूँगा कि 1990 से पहले किसानो की यह हालत नही थी इस देश में डब्लू .टी . ओ के साथ ( नई आर्थिक नीति व डंकल प्रस्ताव ) ने किसानो को आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया साथ ही भूमि अधिग्रहण का खेल जो आज किसानो के साथ खेला जा रहा है वो तो देश के लिए खतरनाक साबित होगा सराकर की आंकड़ो के अनुसार छ: लाख से उपर किसानो ने आत्महत्या किया है आखिर क्या बात है 1990 से पहले देश का किसान खुशहाल था कौन सी वजह ऐसी बन रही है की किसानो की आत्महत्या की संख्या बढती जा रही है | उन्होंने आगे कहा कि देश में कंक्रीटो के जगल बसाने से देश का विकास नही होगा न ही स्मार्ट सिटी बनाने से अगर देश के विकास को और आगे ले जाना है तो व्यवस्था को आम किसान के हितो को सुरक्षित करनी पड़ेगी न उसके राम - रहीम के भरोसे छोड़ दे बुन्देलखंड में लगातार किसान आत्महत्या कर रहे है देखने में आ रहा है व्यवस्था मौन है , आज फिर एक बार किसानो को उठना होगा अपने उस अधिकार के लिए जो देश की समविधान ने उन्हें दिया है | अभी तो लड़ना है साथियो | तीसरे स्तर में दशरथ माझी पे बनाई गयी लघु वित्तचित्र के साथ दो बीघा जमीन का प्रदर्शन किया गया |

अपनी समानता, सुरक्षा के लिए संघर्ष करने वाली स्त्री के भी अपने सवाल हैं ------ -श्रीमती सुभद्रा राठौर 13-1-16

अपनी समानता, सुरक्षा के लिए संघर्ष करने वाली स्त्री के भी अपने सवाल हैं ------ -श्रीमती सुभद्रा राठौर ---


नॅशनल लोकरंग एकेडमी उत्तर प्रदेश 'प्रतिरोध की संस्कृति ' अवाम का सिनेमा '
कैथी फिल्म फेस्टिवल ' के संयुक्त तत्त्वाधान में मुहीम पहला दिन महादेव के डमरू वादन से शुरू हुआ उसके बाद लोकरंग की उस शैली की प्रस्तुती हुई '' जांघिया नाच '' जांघिया नाच के बारे में कुछ बाते करना चाहूँगा | यह नाच भारतीय कला का कराटे है इस नाच के माध्यम से हमारे पुरखे दलदली जमीन से धुल के गुबार उड़ाते थे यह कला आज विलुप्त हो रही है , इस कला को हम व हमारे साथी सहेज कर रखना चाहते है , इसके साथ ही अन्य कलाओं का प्रदर्शन किया गया इसके बाद जो पहले दिन की परिचर्चा रही |
सत्तर साल - सात सवाल हमारी आजादी के बाद देश की व्यवस्था ने आम नागरिक के हितो की कभी चिंता नही की है | हमारा संबिधान हमे यह हक़ देता है कि देश की व्यवस्था हमारे रोटी - कपड़ा - मकान के साथ ही हमारी स्वास्थ्य के प्रति सजग रहे पर ह व्यवस्था आम आदमी को जानवर से ज्यादा नही समझती है उसे फुर्सत ही नही आम आदमी के बारे में सोचे या समझे इसी कड़ी में सेमिनार की मुख्य वक्ता प्रखर व संवेदनशील आम आदमी के दुःख - दर्द को समझने वाली श्रीमती सुभद्रा राठौ र ने कहा कि आजादी के सात दशक और सात सवाल के अंतर्गत मेरा पहला सवाल तो यह है कि क्या यह आजादी पूरी है ? कडकडाती ठंड, भरी बरसात और जेठ की तीखी गरमी में जब झोपड़ियों को टूटते देखती हूं तो लगता है कि सिर्फ पूंजी न होने से इन्हें अपनी धरती पर अधिकार नहीं है, क्यों ? एक ओर अंतालिया तो दूसरी ओर धारावी , यही हमारा सच क्यों हो गया है ? हमने स्वराज प्राप्ति के बाद लोकतंत्र को चुना, मेरा मानना है कि इससे बेहतर तंत्र कोई हो ही नही सकता । किन्तु स्वार्थ परक राजनीति ने बहुत जल्द मोहभंग की दशा ला दी । तभी तो जनकवि नागार्जुन ने पूछा था .....किसकी है जनवरी किसका अगस्त है? कौन यहाँ खुश ,और कौन यहाँ मस्त है ? ऐसी परिस्थितियां ही तो असंतोष को जन्म देती हैं जो देश के लिए कतई ठीक नही हैं ।ऐसे समय में जबकि ISIS से विश्व हलाकान है , सहिष्णुता असहिष्णुता के मध्य हमें बहुत ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है । सवाल तो कई हैं , सिर्फ स्मार्ट सिटी नही , हमारे गाँव के भी , रोज मरते किसान के भी । सरोकारों से दूर होते मीडिया सवाल हैं तो आज भी अपनी समानता, सुरक्षा के लिए संघर्ष करने वाली स्त्री के भी अपने सवाल हैं । इसके बाद हमारे तीसरे सेसन में 1857 से शुरू हुए इन्कलाब की बाते फिल्मो के माध्यम से बया किया गया -------

महान देश की नारियो ने शुरू किया था मुक्ति आन्दोलन --- अंजना सक्सेना 13-2-16


महान देश की नारियो ने शुरू किया था मुक्ति आन्दोलन --- अंजना सक्सेना
नॅशनल लोकरंग एकेडमी उत्तर प्रदेश 'प्रतिरोध की संस्कृति ' अवाम का सिनेमा '
कैथी फिल्म फेस्टिवल ' के संयुक्त तत्त्वाधान में मुहीम का दूसरा दिन शंखनाद से शुरू हुआ अलग - अलग लोक कलाओं से सजा मंच अपना संदेश देने में पूर्ण रूप से सफल रहा सबसे ख़ास बात रही मैं सेंटर से पैदल ही मुहीम स्थल की ओर आ रहा था कुछ दूर आगे बढा था गोबर पाठ रही एक भर्द्र महिला ने मुझसे पूछा बाबू वल्लभ ( पाण्डेय जी ) जउन मेला लगइले हवे अब इ मेला कहा उठ के जाई , कुछ और आगे बढा बगल से एक नौजवान गुजर रहा था पूछ बैठा इ शूटिंग कब ले चली तब तक मंच अ चूका था संचालन का समय हो गया था सो मैं सीधे मंच पर आया | दुसरे दिन की परिचर्चा व कवि सम्मेलन '' के लिए मैंने मंच पर लखनऊ से आई मेरी छोटी बहन निवेदिता श्रीवास्तव , इलाहाबाद से आई दीदी सरस दरबारी , व माधवी मिश्रा को आमंत्रित किया साथ ही '' भारतीय क्रान्ति में नारियो का योगदान परिचर्चा के लिए इंदौर से आई साहित्यकार व कबीर सुर साधिका श्रीमती अंजना सक्सेना के साथ शिकागो से आई गुड्डो दादी को बुलाया --
परिचर्चा से पहले कविता पाठ शुरू किया श्रीमती माधवी मिश्रा जी ने उसके बाद सरस दरबारी जी द्वारा स्त्री विमर्श पर खुबसूरत रचना सुनने को मिला और छोटी बहन के काव्य पाठ ने पुरे माहौल को स्त्री विमर्श पर सोचने को मजबूर कर दिया उनके इस कविता द्वारा
आधुनिका!
हाँ इसी नाम से पुकारती है दुनिया मुझे
या यूँ कहो,
दुत्कारती है मुझे।
उत्कंठा मानव जीवन के रस रंग से परिचित होने की
हूँ प्रपंच से बेपरवाह, जीवन से भरपूर हृदय की।
मेरे मानस में अंकित हैं जो सीमा रेखाएं
सीमा रेखाएं हैं
अति क्षुद्र, उनसे समाज की।
नहीं बनना मुझको सीता,
शक्की पति की परिणीता।
नहीं बनना मुझको गांधारी
अंधे पुरूष की अंधी नारी।
मैं अपनी कहानी आप लिखुंगी
एक नया इतिहास लिखुंगी।
प्रेम का पंथ चलाउंगी
इंसान बन कर दिखाउंगी।
हाँ, फिर आधुनिका पुकारेगी दुनिया मुझे
या यूँ कहो स्वीकारेगी मुझे।।
‪#‎निवेदिता‬
काव्यपाठ के तुरंत बाद ' भारतीय क्रान्ति में नारियो का योगदान ' पर
मुख्य वक्ता श्रीमती अंजना सक्सेना ने अपने विचार रखते हुए कैफ़ी के इन नज्मो से शुरू किया |
'' कोई तो सूद चुकाए कोई तो जिम्मा ले
उस इन्कलाब का जो आज तक अधूरा सा है ||
देश के क्रांतिकारी वीरो और वीरागनाओ का इतिहास महज उनके गौरवशाली शहादत का ही नही अपितु 1947 में राष्ट्र को प्राप्त ' समझौतावादी स्वतंत्रता ' के विपरीत ' क्रांतिकारी - स्वतंत्रता ' के लक्ष्यों , उद्देश्यों का भी इतिहास है | उनके ये लक्ष्य इस राष्ट्र को ब्रिटिश राज से मुक्ति के साथ - साथ उसकी आर्थिक , शैक्षणिक , सांस्कृतिक पर निर्भरता व परतंत्रता के सम्बन्धो से भी मुक्ति के लिए निर्धारित किये गए थे | इन्ही लक्ष्यों के अनुरूप वे अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को चलाते भी रहे थे | यह हिंसा और अहिंसा का प्रश्न नही है , बल्कि क्रांतिकारी स्वतंत्रता के उद्देश्यों और लक्ष्यों का सवाल है | लेकिन इतिहास की बिडम्बनापूर्ण कटु सच्चाई यह है कि उन महान क्रांतिकारी वीरागनाओ के प्रमुख लक्ष्य व उद्देश्य देशवासियों के लिए आज भी अज्ञात है | वर्तमान दौर में राष्ट्र की और राष्ट्र की बहुसख्यक जनसाधारण की निरंतर बढती और घराती समस्याओं में इन क्रान्तिकारियो और उनके उद्देश्यों लक्ष्यों को जानना नितांत प्रासंगिक है
1857 के स्वतंत्रता आन्दोलन के पहले से ही भारतीय नारियो में ब्रिटिश हुक्मरानों के विरुद्द गुस्सा उबल रहा था , ऐसे में महारानी लक्ष्मीबाई का ब्रिटिश हुक्मरानों के विरुद्द जंग का ऐलान करके ब्रिटिश साम्राज्य को यह चेता दिया था अब आने वाले कल में तुम्हारा पताका गिरेगा और क्रांतिवीरो के साथ कंधे - से कंधा मिलकर भारतीय नारियो ने इस मुहीम की अलख जगाई इस शुरुआत के बाद सन्यासी विद्रोह की प्रेरणा दिया था लक्ष्मीबाई की बुआ जिन्हें लोग देवी तेस्वनी के नाम से जानते है इसके साथ ही बंगाल की देवी चौधरानी जैसी वीरागनाओ से ब्रिटिश साम्राज्यवाद कापती रही ब्रिटिश शासन उन्हें जीवन पर्यन्त पकड़ नही सकी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए दुर्गा भाभी , आजाद हिन्द फ़ौज में कैप्टन लक्ष्मी सहगल के साथ ही तबके पूर्वी हिदुस्तान और अब बांग्ला देश में स्थित चटगाँव के एक गरीब परिवार से निकली वीरागना प्रीतिलता वादेदार को अब कौन जनता है | वीरागना प्रीतिलता वादेदार सूर्यसेन की शिष्या थी अग्रेजो से अपने साथियों के मौत का हिसाब इस वीरागना अग्रेजो के एक क्लब में खिड़की में बम बांधकर और पिस्टल से अनेको अंग्रेज अफसरों को मार गिराया खुद भी खयाल हो गयी जब वो भाग न सकी तो उन्होंने पोटेशियम सायनाइड खा कर इस देश के लिए अपना बलिदान कर दिया |
हमारे तीसरे सत्र क्रांतिकारी फिल्म इन्कलाब और फीचर फिल्म मदर इण्डिया का प्रदर्शन किया गया |