Saturday, February 18, 2017

शहीद नगरी बेवर से --- हम लड़ेंगे जिन्दगी के वास्ते अंधेरो से 19 - 2-2017

शहीद नगरी बेवर से --- हम लड़ेंगे जिन्दगी के वास्ते अंधेरो से



कभी मुठ्ठियों की हरकत से
घर – घर नया उजाला होगा
फिर बारी आई है
बुझी मशाल जलाने की
हम लड़ेंगे
जिन्दगी के वास्ते
अंधेरो से
रौशनी के वास्ते
इसी रौशनी के वास्ते शहीद नगरी बेवर में विगत पैतालीस वर्षो से शहीद मेला का आयोजन उन महान क्रांतिवीर शहीदों को हमेशा दिल में संजोये रखने के लिए प्रति वर्ष नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन 23 जनवरी से शुरू होता है हम आपको बताते चले कि यह क्रान्ति मेला की शुरुआत 1972 में कामरेड जगदीश नरायण त्रिपाठी ने एक दिवसीय मेले के रूप में इसका सूत्रपात किया था | आज यह मेला उनके भतीजे राज त्रिपाठी के नेतृत्त्व में 20 दिन का मेला हो गया है |
23 जनवरी 2017 को इस शहीद मेला का उद्घाटन करने क्रांतिवीर सुखदेव के भतीजे अशोक थापर – संदीप थापर इसके साथ ही शहीदे ए वतन अशफाक उल्ला खा के पौत्र अशफाक उल्ला ने इस मेले का मशाल जलाकर विधिवत उदघाटन किया |
क्रांतिवीर चचा अशफाक उल्ला खा के पौत्र ने जनमानस को सम्बोधित करते हुए कहा कि शहीदों की मूर्ति लगाने से कुछ नही होगा , बल्कि उनको हमे रिश्तो से जोड़ने की जरूरत है , जब हम उन्हें रिश्तो से जोड़ेगे तब वो हमारे दिल के बहुत करीब होंगे ऐसे में हमेशा उनकी याद बनी रहेगी और वो प्रेरणा देते रहेगे ,|
चचा क्रांतिवीर सुखदेव के भतीजे अशोक थापर ने अपने सम्बोधन में कहा कि देश को आजादी के उजाले में लाने वाले शहीदों की सहादत की तुलना करना ठीक नही | ग्रामीण स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक आजादी के संघर्ष में अपनी आहुति देने वाले वीर एक समान है उनका सम्मान एक जैसा होना चाहिए | सुखदेव के दुसरे भतीजे संदीप थापर ने कहा कियह दुनिया शहीदों को जातीय खांचे में ना बाटे क्रांतिवीरो की कोई जाती नही होती है बस उनका एक धर्म था देश को अंग्रेजो से मुक्ति दिलाकर आम हिनुस्तान के आम आदमी को आजादी दिलाना इसी आजादी के लिए वो सारे हमारे पुरखे हँसते – हँसते फांसी के फंदों को चूम लिया उन्होंने अपना वर्तमान हमारे भविष्य के लिए कुर्बान कर दिया इस शहीद मेले से सरकार को एक अपील की गयी कि क्रांतिवीर सुखदेव की प्रतिमा संसद भवन में लगे | शिवचरण लाल शर्मा के पुत्र सरल कुमार शर्मा के पुत्र ने कहा कि देश की जंग ए आज़ादी के नायकों को सरकार ने कभी सम्मान नहीं दिया जिसके वो हकदार थे। उन्होंने आगे कहा कि पुरे भारत में शहीदों के कुर्बानियों पे कही भी इस तरह के मेले का आयोजन नही होता है | मेला को सुचारू रूप से गति प्रदान करने वाले शहीद जमुना प्रसाद त्रिपाठी के पौत्र और मेला प्रबन्धक राज त्रिपाठी ने कहा कि हमारे पूर्वज कामरेड जगदीश नरायन त्रिपाठी ने इस मेले की परम्परा की नीव डाली है अब यह पौधा बनकर खिल रहा है इसे वट वृक्ष का स्वरूप हम नौजवान देंगे उन्होंने आगे बताया कि मेले का उद्देश्य सिर्फ मेला लगाना नही है हमारा उद्देश्य है कि 1857 से निकली चिंगारी जो 19 शातब्दी में आग बन चुकी थी उसमे हमारे पुरखो ने देश की आजादी के अपनी आहुति दी है उन पुरखो को आगे के समय में आने वाली पीढ़ी से अवगत करना है कि किस जज्बे और हौसले से हमे आजादी मिली है जिसके कारण हम इस आजाद मुल्क में अपनी बात को कह सकते है और आजादी में सांस लेते है |
शहीद मेला करीब 19 दिन चलता है इस मेले की ख़ास बात यह है कि शहीद मंच से विभिन्न भिन्न कार्यक्रमों की प्रस्तुती दी जाती है 24 - 25- को समाज में जागरूकता लाने के लिए सांस्कृतिक माध्यमो से सनेश दिया गया 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर बेवर नगर के सदर चौराहे से साझी विरासत के तहत झंडा रोहन के बाद हजारो की संख्या में जलूस में परिवर्तित होकर लोग शहीद क्रान्ति मंदिर और समाधि स्थल पर माल्यापर्ण कर यह जलूस शहीद मेला स्थल पर राजा तेज सिंह के किला में लगे क्रांतिवीरो शहीदों की प्रदर्शनी स्थल पर समाप्त हुआ | दिनाक 27 को सिविल पेंशनर जिला सम्मेलन के माध्यम से जानकारी दी गयी 28 जनवरी को नारी शक्ति महिला सम्मेलन व शुशी प्रदर्शनी के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गयी आज की नारी अबला नही है आज नारी सबल हो गयी है | तारिक 29 को धर्मदृष्टि परिवार की ओर से ‘’ कलम उनकी जय बोल ‘’ के माध्यम से समाज में फैले भ्रांतियों के साथ अंध विश्वास पर जबर्दस्त प्रहार किया गया | 30 जनवरी को बेवर नगर के सुभाष चौक से शहीदों की याद में शहीद राज कलश यात्रा के माध्यम से उन सार शहीदों को श्रद्दांजली अर्पित किया गया | 31 जनवरी विधिक साक्षरता सम्मेलन के माध्यम से अवाम को विधिक जानकारी दी गयी |
1 फरवरी को साक्षरता सम्मेलन के माध्यम से शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला गया |
2 फरवरी स्वतंत्रता सेनानी सम्मेलन के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी व्यथा को व्यक्ति किया | अमर शहीद चन्द्र शेखर आज़ाद के भतीजे सुजीत आज़ाद व् पौत्र अमित आज़ाद ने कहा कि आज के इस दौर में शहीदों के व्यक्तित्व और कृतित्व से नई पीढ़ी को परिचित कराता और उनकी स्मृतियों को संजोता ये शहीद मेला पूरे देश के लिए एक मिसाल है। शहीद मेला का मुख्य आकर्षण रहा राष्ट्रीय कवि सम्मेलन को आगे बढाते हुए संदेश चौहान ने पढ़ा , हमने विरोध जुल्म का किया , जाति का नही इतिहासों से पूछो यदि हो संदेह कही आलोक भदौरिया ने पढ़ा , कई घर बार जलते है , कई लाशें भी गिरती है इसी कीमत पे मिलता है नये सरदार का चेहरा | मेले के समापन के अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि काकोरी काण्ड के क्रांतिवीर रामकृष्ण खत्री के पुत्र उदय खत्री ने कहा कि आजादी के जंग में जिन पुरोधाओं के बल पर आज हम लोग आजादी की सांस ले रहे है मैं उन अनाम व नाम क्रांतिवीरो को इस मंच से नमन करता हूँ , उन्होंने शलभ श्रीराम की पंक्तियों से हिन्दोस्तां की शान है अशफाक व बिस्मिल ,दो जिस्म है इकजान है अशफाक व बिस्मिल , इस देश के दो लाडलो के नाम से ज़िंदा ,दो सूरते – ईमान है अशफाक व बिस्मिल समापन समारोह की अध्यक्षता कार्न्तिवीर पंडित गेंदा लाल दीक्षित के प्रपौत्र मधुसुदन दीक्षित ने कहा कि मैं यह बात दावे से कह सकता हूँ ऐसा शहीद मेला पुरे भारत के किसी अंचल में नही लगता है धनी है बेवर की धरती जहा 15 अगस्त 1942 में ही विद्यार्थी कृष्ण कुमार ने थाने पर तिरंगा लहरा दिया जिसका नेतृत्त्व जमुना प्रसाद त्रिपाठी व सीताराम गुप्त ने अपने प्राणों की आहुति दे दी ऐसी है यह बेवर की धरती हम इसको शत – शत नमन करते है | समापन समारोह में मेला श सयोजक इन्द्रपाल सिंह यादव , हाजी इदरीश अली , भगवान दास मिश्रा श्याम स्नेही श्याम त्रिपाठी रमेश गुप्ता गगन भारत , बिपिन चतुर्वेदी , डा रामधन राठौर उमेश राठौर , अजय सिंह भास्कर ने अपने विचार व्यक्त किये जी एस एम् विद्यालय के बच्चो द्वारा समर्पित अनेकता में एकता के माध्यम से शहीद मेला के समापन को यादगार बना दिया |
समापन के अंत में शहीद मेला के प्रबन्धक राज त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि ‘’ नही सदा इतिहास सिर्फ शमशीर लिखा करती है , नही वक्त के साथ सदा तकदीर चला करती है |

गदर लहर का रोशन चिराग -- 18-2-2017

गदर लहर का रोशन चिराग --


क्रांतिवीर करतार सिंह सराभा


जो कोई पूछे कि कौन हो तुम , तो कह दो बागी है नाम मेरा |
जुल्म मिटाना हमारा पेशा , गदर करना है काम अपना |
नमाज संध्या यही हमारी , और पाठ पूजा सभी यही है ,
धरम- करम सब यही है हमारा , यही खुदा और राम अपना | सराभा

बेशक सराभा के बचपन के बारे में अधिकतर विवरण उपलब्ध नही है , फिर भी यह जरूरी पता लगता है कि करतार सिंह 24 मई 1896 को लुधियाना जिले के गाँव सराभा में सरदार मंगल सिंह और बीबी साहिब कौर के घर पैदा हुआ और कम उम्र में ही उसे ही माँ - बाप की मृत्यु का आघात सहना पडा | उसकी परवरिश की जिम्मेदारी पूरी तरह उसके दादा सरदार बदन सिंह पर आन पड़ी थी | करतार सिंह अपने माँ - बाप का इकलौता पुत्र था | उसकी एक बहन भी थी , जिसका नाम था धन कौर | दादा करतार से बेहद प्रेम करते थे | वह उसे खेती बाड़ी के काम में नही डालना चाहते थे उनकी इच्छा थी कि करतार पढ़ लिख कर किसी अच्छे रोजगार में लग जाए | करतार का गाँव के प्राथमिक स्कूल में दाखिला करवा दिया गया | प्राथमिक शिक्षा के बाद वह गुजरवाल के वर्नैकुलर मिडल स्कूल का विद्यार्थी बना , फिर लुधियाना के मालवा खालसा हाई स्कूल में जा दाखिला लिया |स्कूल की पढ़ाई के दौरान करतार सिंह साथियो का अगुवा और हरमन प्यारा विद्यार्थी था | चुस्त चालाक भी बहुत था | वह हंसमुख और मसखरे स्वभाव का भी था | उसकी सर्वप्रियता के कारण दूसरे विद्यार्थी उसका साथ पाने के लिए उतावले रहते थे | वास्तव में होनहार चुस्त और होशियार करतार सिंह शुरू से ही नेतृत्व के गुण थे | उसकी इसी योग्यता के कारण उसके साथी उसे 'अफलातु ' कहकर बुलाते थे | 'अफलातु ' कहने का भाव था कि उसमे अजीब और अनहोनी बाते करने की योग्यता और दिलेरी थी | उम्र के अगले पड़ाव में उसने अपने इन्ही गुणों का भरपूर प्रदर्शन किया | कई साथी उसकी फुर्ती और तेजी से प्रभावित होकर मजाक में उसे ' उड़ता साँप' भी कहते थे |

मालवा स्कूल में सातवी कशा में पढ़ते हुए उसने भोलेपन वाली चुस्ती और होशियारी के चलते सोचा कि क्यों झूठा सार्टिफिकेट बनाकर नौवी में दाखिला ले लिया जाए और उच्च शिक्षा का लक्ष्य एक दो साल पहले ही पूरा कर लिया जाए |
उसने मालवा स्कूल से सातवी का सार्टिफिकेट लिया और उसे नौवी का बनाकर आर्य स्कूल में दाखिल हो गया | पहले तो स्कूल वालो को कुछ पता ही नही लगा , बाद में पता लगने पर स्कूल वालो ने एक्शन लेने की सोची तो करतार को भनक लग गयी | आगे की पढ़ाई के लिए वह उड़ीसा में अपने चाचा बख्शीश सिंह के पास चला गया और वहा जाकर दसवी पास करने के बाद कालिज में दाखिला ले लिया | नया से नया ज्ञान हासिल करने की तलब के चलते वे पाठ्य पुस्तके पढने के अलावा और भी बहुत सारा साहित्य पढता रहा था | सार्टिफिकेट में बदलाव करके नौवी में दाखिल होने की कोशिश से उसके स्वभाव के इस पक्ष का पता चलता है कि उसे ऊँची मंजिल छूने की ' कितनी चाहता थी और वह जल्दी से जल्दी बड़ा मुकाम हासिल करने का अभिलाषी था |
चाचा के पास रहकर पढ़ते हुए उसे अंग्रेजी बोलने और लिखने का अच्छा अभ्यास हो गया | वह अंग्रेजी साहित्य पढने में दिलचस्पी लेने लगा | उस समय बंगाल और उड़ीसा आदि इलाको में बहुत हद तक राजनितिक चेतना पैदा हो चुकी थी | सराभा स्कूली पुस्तको के अलावा चूँकि दुसरे साहित्य भी पढता रहता था | इसलिए उस पर इस राजनितिक जागृति का भी प्रभाव पड़ना शुरू हो गया | देश प्रेम और देश सेवा भावना उसके अन्दर कुलबुलाने लगी |