Sunday, August 18, 2019

बादशाह खान ( खुदाई खिदमतगार ) आखरी कड़ी

बादशाह खान ( खुदाई खिदमतगार ) आखरी कड़ी

1942 के भारत छोडो आन्दोलन में सीमांत प्रांत के खदाई ख्द्मात्गार सक्रिय भूमिका निभाते रहे | बादशाह खान के प्रयासों से इस क्षेत्र में स्वतंत्रता आन्दोलन में तेजी आ गयी थी .पर उसका स्वरूप अंत तक अहिंसात्मक बना रहा | खान अब्दुल गफ्फार खान के व उनके साथियो के वक्तव्यों ,धरने ,प्रदर्शनों से आन्दोलन ने सीमांत क्षेत्र में तेजी पकड़ी | जुलाई 1942 में ही पंडित नेहरु ने कहा था -''बहुत कम लोग जानते है की बादशाह खान पिछले छ: महीने से चुपचाप महान कार्य कर रहे है | वह आडम्बर में विशवास नही करते ,लेकिन वह लोगो से मिलने गाँवों में जाते है उन्हें सगठित करते हैं , हर तरह से प्रोत्साहित करते है , इस तरह वह पुरे प्रांत में घूम रहे हैं |'' 27 अक्तूबर 1942 को एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने बादशाह खान को बेरहमी से पिटा और गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया | 1943 में बादशाह खान को हरिपुर जेल भेज दिया गया - जहाँ वे साथी कैदियों के बीच साक्षरता की क्लास लगाने लगे | इन क्लास में गीता और कुरआन पढ़ाई जाती | 1946-47 के साम्प्रदायिकता के माहौल में जब सीमांत में यह हिंसा पनपी ;तब पेशावर में शान्ति कायम रखने व अल्पस्ख्यक हिन्दू -सिक्ख की रक्षा करने के लिए दस हजार खुदाई खिदमतगार सामने आये | 1947 में बिहार जब साम्प्रदायिकता की हिंसा की आग में जल रहा था ;तो बादशाह खान दंगाग्रस्त इलाको में गये | पटना स्थिति गुरुद्वारा हरमंदिर में हिन्दू -मुस्लिम और सिक्खों की एक संयुकत सभा को सम्बोधित करते हुए वे बोले ''भारत आज पागलपन का नर्क बन गया है और मेरा हृदय हमारे अपने ही हाथो जलाए हुए घरो को देखकर रोता हैं :... एक खुदाई ख्द्मात्गार के नाते मैं तो केवल पीड़ित मानव जाति की सेवा करने को आतुर हूँ ""| जो दंगाग्रस्त मुस्लिम परिवार अपने क्ष्तग्र्स्त घरो को लौटने से डर रहे थे उनमे से कइयो को बादशाह खान ने हिम्मत बाधी अपने नेतृत्व वे उन्हें क्षतिग्रस्त गाँव में छोड़ आये | विभाजन के प्रबल विरोध के वावजूद बादशाह खान व अन्य खुदाई ख्द्मात्गारो को विभाजन का धक्का सहना पडा ,दुखी ,उदास किन्तु फिर भी पख्तूनो के हितो के प्रति सचेत और मानवता की खदमत के लिए तैयार खान अब्दुल गफ्फार खान ने अपने अनेक पुराने साथियो से बिछुड़ने का आघात शा | गांधी जी से मिलने वाले मनोबल का उन्हें पूरा भरोसा था | बिछुड़ते हुए गांधी जी से उन्होंने कहा था - '' अब आपका कर्तव्य पाकिस्तान को वास्तविक अर्थो में पाक - पवित्र बनाना है |'' पाकिस्तान में भी पख्तूनो के वाजिब हको नागरिक अधिकारों के लिए उन्हें लाफि संघर्ष करना पडा |लम्बे समय तक उन्हें पाकिस्तान के जेलों में रखा गया कहा के इस नेक बंदे , मानवता के इस महान खिदमतगार की मृत्यु 98 वर्ष की उम्र में 20 जनवरी 1988 को पेशावर ने हुई | उनका जीवन ही संदेश था | उन्होंने कहा था , ''कोई भी सच्छा प्रयास बेकार नही जाता | इन खेतो को देखो यहाँ जो अनाज बोया गया है उसे कुछ समय तक धरती के भीतर ही रहना है | फिर उसे अंकुर फूटता है और धीरे - धीरे वह अपने जैसे हजारो अन्न के दानो को जन्म देता है | यही बात अच्छे उद्देश्यों के लिए किये गये हर प्रयास पर लागू होती है |

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