वीतराग -------------
देवताओं की सभा में एक विवाद चल पडा | विषय था कि धरती पर ऐसा कौन सा - ऋषि है , जो बीतराग है , पूर्णत: राग - आसक्ति से परे है | नारद भी सभा में मौजूद थे | उन्होंने कहा कि ऐसे तीन ऋषियों को तो मैं जानता हूँ | ये है -- पर्वत ऋषि , कुतुक ऋषि व कर्दम ऋषि | ये तीनो प्रख्यात तपस्वी है | तय हुआ कि इन तीनो को परखा जाए | उर्वशी भी वही बैठी थी | वह हंसी और बूली कि जीवन भर हमने यही काम किया है और हमे ऋषिगणों की आसक्ति पर विजय को परखने का मौका डिया जाए | नारद ने कहा -- ' यह ठीक है | ' इससे तीनो की परीक्षा भी हो जायेगी और बीतराग ; की व्याख्या भी सभी की समझ में आ जायेगी | ' देवसभा में तीनो ऋषियों को आमंत्रित कर लिया गया | उर्वशी ने तय किया कि कुमौक नृत्य प्रस्तुत करेगी | संस्कृत में केचुल उतरने को कुमौक कहते है | कुमौक नृत्य का अर्थ होता है क्रमश: अपने वस्त्र उतारते जाना | पहले पर्वत ऋषि आये | नृत्य आरम्भ हुआ | इसे देखते ही वे बोले -- हमे यह दृश्य क्यों दिखा रहे हो ? बंद करो इसे | ' उर्वशी हंसी और बोली -- ये तो पहले प्रहार में ही चले गये | ' अर्थात वीतराग ' स्थिति ' में होते तो इन्हें कोई आपत्ति नही होती | नृत्य चलता रहा कर्दम ऋषि ने अपनी आँखे बंद कर ली , ताकि वह दृश्य न देख सके | उन्हें भी असफल माना गया | जो निरपेक्ष भाव से उस नृत्य को देख ले , वही वीतरागी हो सकता था जो आँखे बंद कर ले , वह कैसा बीतरागी ! वही कुतुक ऋषि प्रसन्न मन से नृत्य देख रहे थे | उन्होंने उर्वशी से कहा ' देवी तुमने तो कहा था कि कुमौक नृत्य दिखाओगी , एक - एक कर केचुल उतारोगी | वह तो तुमने अब तक दिखाया नही ? उर्वशी बोलो ' ऋषिवर आपके सामने ही सारे वस्त्र उतर दिए और आप कहते है कि नृत्य नही दिखाया ! क्या अब भी कुछ बाकी है ? ऋषि बोले -- हे उर्वशी , आत्मा पर भी तो पांच आवरण चढ़े है | अन्नमय कोष , मनोमय कोष प्राणमय कोष , विज्ञानमय कोष और आनन्दमय कोष | वह तो तुमने उतारे नही | अगर वह उतरकर दिखाती तो वस्तुत: आनन्द आता | तुमने पूरा नृत्य दिखाया होता तो ही तुम्हारे नृत्य की सार्थकता थी | पांचो आवरण तो हमे यथावत चढ़े दिखाई दे रहे है | '
देवताओं की सभा में एक विवाद चल पडा | विषय था कि धरती पर ऐसा कौन सा - ऋषि है , जो बीतराग है , पूर्णत: राग - आसक्ति से परे है | नारद भी सभा में मौजूद थे | उन्होंने कहा कि ऐसे तीन ऋषियों को तो मैं जानता हूँ | ये है -- पर्वत ऋषि , कुतुक ऋषि व कर्दम ऋषि | ये तीनो प्रख्यात तपस्वी है | तय हुआ कि इन तीनो को परखा जाए | उर्वशी भी वही बैठी थी | वह हंसी और बूली कि जीवन भर हमने यही काम किया है और हमे ऋषिगणों की आसक्ति पर विजय को परखने का मौका डिया जाए | नारद ने कहा -- ' यह ठीक है | ' इससे तीनो की परीक्षा भी हो जायेगी और बीतराग ; की व्याख्या भी सभी की समझ में आ जायेगी | ' देवसभा में तीनो ऋषियों को आमंत्रित कर लिया गया | उर्वशी ने तय किया कि कुमौक नृत्य प्रस्तुत करेगी | संस्कृत में केचुल उतरने को कुमौक कहते है | कुमौक नृत्य का अर्थ होता है क्रमश: अपने वस्त्र उतारते जाना | पहले पर्वत ऋषि आये | नृत्य आरम्भ हुआ | इसे देखते ही वे बोले -- हमे यह दृश्य क्यों दिखा रहे हो ? बंद करो इसे | ' उर्वशी हंसी और बोली -- ये तो पहले प्रहार में ही चले गये | ' अर्थात वीतराग ' स्थिति ' में होते तो इन्हें कोई आपत्ति नही होती | नृत्य चलता रहा कर्दम ऋषि ने अपनी आँखे बंद कर ली , ताकि वह दृश्य न देख सके | उन्हें भी असफल माना गया | जो निरपेक्ष भाव से उस नृत्य को देख ले , वही वीतरागी हो सकता था जो आँखे बंद कर ले , वह कैसा बीतरागी ! वही कुतुक ऋषि प्रसन्न मन से नृत्य देख रहे थे | उन्होंने उर्वशी से कहा ' देवी तुमने तो कहा था कि कुमौक नृत्य दिखाओगी , एक - एक कर केचुल उतारोगी | वह तो तुमने अब तक दिखाया नही ? उर्वशी बोलो ' ऋषिवर आपके सामने ही सारे वस्त्र उतर दिए और आप कहते है कि नृत्य नही दिखाया ! क्या अब भी कुछ बाकी है ? ऋषि बोले -- हे उर्वशी , आत्मा पर भी तो पांच आवरण चढ़े है | अन्नमय कोष , मनोमय कोष प्राणमय कोष , विज्ञानमय कोष और आनन्दमय कोष | वह तो तुमने उतारे नही | अगर वह उतरकर दिखाती तो वस्तुत: आनन्द आता | तुमने पूरा नृत्य दिखाया होता तो ही तुम्हारे नृत्य की सार्थकता थी | पांचो आवरण तो हमे यथावत चढ़े दिखाई दे रहे है | '