गिलोटिन प्रणाली से बजट पास --
देश के प्रधान को आम आदमी की कोई चिन्ता नही -
मार्च के दूसरे सप्ताह में लोक सभा ने केन्द्रीय बजट को बिना किसी चर्चा - बहस के 30 मिनट में पास कर दिया | इसके अंतर्गत 89 .23 लाख करोड़ रूपये की व्यय योजना के साथ वित्त विधेयक एवं विनियोग विधेयक को पास कर दिया गया | बजट में 99 केन्द्रीय मंत्रालयों और विभागों की बजट माँगो के साथ लगभग 200 सशोधनो को भी पास कर दिया | सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा को सदन में बजट के विभिन्न पहलुओ पर किसी चर्चा - माँग तथा सवाल - जबाब का सामना नही करना पडा | क्योकी विपक्ष द्वारा पंजाब नेशनल बैंक घोटाला को लेकर तथा आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने जैसे मुद्दे को लेकर की जाती रही माँगो , हंगामो तथा सत्ता पक्ष द्वारा उसे अनसुना करते रहना के फलस्वरूप लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाई लगातार बाधित होती रही | दोनों सदनों के अध्यक्ष सदन की बैठको को बार - बार स्थगित करते रहे |
सरकार ने इस स्थिति का लाभ उठाकर लोकसभा अध्यक्ष की सहमती के साथ बिना किसी बहस चर्चा के ही बजट पास करवा दिया | हालाकि इसके लिए अभी 5 अप्रैल तक का वक्त था | बिना किसी बहस के संसद में बजट पास करने की इस प्रणाली को गिलोटिन प्रणाली का नाम दिया गया है इस प्रणाली के जरिये इस बार के बजट को लेकर तीन बार का बजट पास किया जा चूका है | 2003 - 2004 भाजपा नेतृत्व की राजग सरकार के कार्यकाल के दौरान तथा 2013-14 में कांग्रेस के नेतृत्व के कार्यकाल के दौरान भी ऐसा ही किया गया था | बिना किसी चर्चा या बहस के या कम से कम चर्चा - बहस के साथ बजट पास करने की यह प्रणाली अचानक नही खड़ी हुई है | यह प्रणाली पिछले 20 - 25 सालो में लगातार चलने वाली एक परिपाटी का रूप धारण कर चुकी है | जबकि इससे पहले खासकर 1990 से पहले बजट के मुद्दों पर , उसमे किये गये सशोधनो पर कई दिनों तक चलते चर्चाओं समाचारों - सूचनाओं के साथ बजट के मुद्दे साधारण पढ़े - लिखे लोगो में भी चर्चा - बहस का मुद्दा बना करता था | लेकिन 1991 - 95 के बाद से इस चलन में बदलाव आता गया | प्रश्न है कि यह बदलाव क्यो आया ? थोड़ी मांग व चर्चा के साथ आनन - फानन में बजट पास करने का चलन क्यो चलाया गया ? क्या इसके लिए लिए सदन में पक्ष विपक्ष के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर आये दिन खड़ी होती रही हठधर्मिता , विभिन्न मुद्दों को लेकर मचता शोर शराबा आदि ही जिम्मेदार है | निसंदेह: ऐसी स्थितियाँ तथा सता पक्ष और विपक्ष के सासंदों का अराजकतापूर्ण रवैया भी इसके लिए जिम्मेदार है | लेकिन इसका आसली कारण दूसरा है |
वह कारण देश में 1991 में लागू की गयी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीतियों और 1995 में लागू किये गये विश्व व्यापार सगठन के अंतरराष्ट्रीय प्रस्ताव ( डंकल प्रस्ताव के प्राविधानो ) में निहित है | 1995 के बाद से सभी सरकारों द्वारा इन नीतियों एवं प्रस्तावों एवं उसके अगले चरणों अनुसार ही बजटीय प्राविधानो को बनाया व पास किया जाता रहा है | डंकल प्रस्ताव को भी संसद में बिना चर्चा बहस के ही लागू किया गया था | नई आर्थिक नीतियों एवं डंकल प्रस्ताव को देश के आधुनिक विकास हेतु वैश्विक सम्बन्धो को अधिकाधिक बढाये जाने की आवश्यकता को बताते हुए लागू किया गया था | उसके अनुसार ही देशी व विदेशी निदेशको को अधिकाधिक छूट व अधिकार देने तथा जनसाधारण के हितो को निरंतर काटने घटाने के बजटीय एवं गैरबजटीय प्राविधानो को आगे बढ़ाया जाता रहा है | इन नीतियों तथा प्रस्तावों के प्राविधानो और उसे आगे बढाने के बजटीय एवं गैरबजटीय निर्धारण में मोटे तौर पर सभी सत्ताधारी पार्टिया एक जुट रही है | हालाकि वामपंथी पार्टिया इनको साम्राज्यी एवं पूंजीवादी नीतियों और उसी के अनुसार किये गये बजटीय प्राविधानो कहकर उसका जबानी विरोध करती रहती है | लेकिन उनके वाममोर्चे की सरकार उसे अपने शासन के प्रान्तों में लागू करने में पीछे नही रही | उसे वे अपनी मज़बूरी बताकर नही बल्कि अन्य पार्टियों की तरह ही प्रांतीय क्षेत्र विकास के लिए आवश्यक बताकर लागू करती रही | इन स्थितियों में बजट के मुद्दों को लेकर खासकर बड़े मुद्दों को लेकर चर्चा - बहस का कोई मामला अब नही रह जाता | मुख्यत: इसीलिए बजट पर अब संसद से लेकर समाचार पत्रों एवं अन्य प्रचार माध्यमो में बजट पेश होने के बाद एक दो दिन तक ही चर्चा चलती है , फिर उस पर कोई चर्चा नही चलती | लोगो के बजट में जनहित के मुद्दों की निरंतर की जाती रही उपेक्षा से लोगो का ध्यान हटाने के लिए भी बजटीय प्राविधानो पर चर्चा नही किया जाता है | यही कारण है कि संसद में बजट पेश होने से पहले या पेश होने के तुरंत बाद दुसरे मुद्दों को लेकर हंगामा खड़ा कर दिया जाता है | उसी हंगामे के बीच थोड़ी - बहुत चर्चा के साथ या बिना चर्चा किये ही बजट पास करने और उसके लिए प्रयुक्त की गयी गिलोटिन प्रणाली का प्रमुख कारण संसद का हल्ला हंगामा नही ,, बल्कि बजट पास करने उसकी चर्चाओं से जनसाधारण का ध्यान हटाने के लिए चलाई जा रही वर्तमान परिपाटी है |
सरकार ने इस स्थिति का लाभ उठाकर लोकसभा अध्यक्ष की सहमती के साथ बिना किसी बहस चर्चा के ही बजट पास करवा दिया | हालाकि इसके लिए अभी 5 अप्रैल तक का वक्त था | बिना किसी बहस के संसद में बजट पास करने की इस प्रणाली को गिलोटिन प्रणाली का नाम दिया गया है इस प्रणाली के जरिये इस बार के बजट को लेकर तीन बार का बजट पास किया जा चूका है | 2003 - 2004 भाजपा नेतृत्व की राजग सरकार के कार्यकाल के दौरान तथा 2013-14 में कांग्रेस के नेतृत्व के कार्यकाल के दौरान भी ऐसा ही किया गया था | बिना किसी चर्चा या बहस के या कम से कम चर्चा - बहस के साथ बजट पास करने की यह प्रणाली अचानक नही खड़ी हुई है | यह प्रणाली पिछले 20 - 25 सालो में लगातार चलने वाली एक परिपाटी का रूप धारण कर चुकी है | जबकि इससे पहले खासकर 1990 से पहले बजट के मुद्दों पर , उसमे किये गये सशोधनो पर कई दिनों तक चलते चर्चाओं समाचारों - सूचनाओं के साथ बजट के मुद्दे साधारण पढ़े - लिखे लोगो में भी चर्चा - बहस का मुद्दा बना करता था | लेकिन 1991 - 95 के बाद से इस चलन में बदलाव आता गया | प्रश्न है कि यह बदलाव क्यो आया ? थोड़ी मांग व चर्चा के साथ आनन - फानन में बजट पास करने का चलन क्यो चलाया गया ? क्या इसके लिए लिए सदन में पक्ष विपक्ष के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर आये दिन खड़ी होती रही हठधर्मिता , विभिन्न मुद्दों को लेकर मचता शोर शराबा आदि ही जिम्मेदार है | निसंदेह: ऐसी स्थितियाँ तथा सता पक्ष और विपक्ष के सासंदों का अराजकतापूर्ण रवैया भी इसके लिए जिम्मेदार है | लेकिन इसका आसली कारण दूसरा है |
वह कारण देश में 1991 में लागू की गयी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीतियों और 1995 में लागू किये गये विश्व व्यापार सगठन के अंतरराष्ट्रीय प्रस्ताव ( डंकल प्रस्ताव के प्राविधानो ) में निहित है | 1995 के बाद से सभी सरकारों द्वारा इन नीतियों एवं प्रस्तावों एवं उसके अगले चरणों अनुसार ही बजटीय प्राविधानो को बनाया व पास किया जाता रहा है | डंकल प्रस्ताव को भी संसद में बिना चर्चा बहस के ही लागू किया गया था | नई आर्थिक नीतियों एवं डंकल प्रस्ताव को देश के आधुनिक विकास हेतु वैश्विक सम्बन्धो को अधिकाधिक बढाये जाने की आवश्यकता को बताते हुए लागू किया गया था | उसके अनुसार ही देशी व विदेशी निदेशको को अधिकाधिक छूट व अधिकार देने तथा जनसाधारण के हितो को निरंतर काटने घटाने के बजटीय एवं गैरबजटीय प्राविधानो को आगे बढ़ाया जाता रहा है | इन नीतियों तथा प्रस्तावों के प्राविधानो और उसे आगे बढाने के बजटीय एवं गैरबजटीय निर्धारण में मोटे तौर पर सभी सत्ताधारी पार्टिया एक जुट रही है | हालाकि वामपंथी पार्टिया इनको साम्राज्यी एवं पूंजीवादी नीतियों और उसी के अनुसार किये गये बजटीय प्राविधानो कहकर उसका जबानी विरोध करती रहती है | लेकिन उनके वाममोर्चे की सरकार उसे अपने शासन के प्रान्तों में लागू करने में पीछे नही रही | उसे वे अपनी मज़बूरी बताकर नही बल्कि अन्य पार्टियों की तरह ही प्रांतीय क्षेत्र विकास के लिए आवश्यक बताकर लागू करती रही | इन स्थितियों में बजट के मुद्दों को लेकर खासकर बड़े मुद्दों को लेकर चर्चा - बहस का कोई मामला अब नही रह जाता | मुख्यत: इसीलिए बजट पर अब संसद से लेकर समाचार पत्रों एवं अन्य प्रचार माध्यमो में बजट पेश होने के बाद एक दो दिन तक ही चर्चा चलती है , फिर उस पर कोई चर्चा नही चलती | लोगो के बजट में जनहित के मुद्दों की निरंतर की जाती रही उपेक्षा से लोगो का ध्यान हटाने के लिए भी बजटीय प्राविधानो पर चर्चा नही किया जाता है | यही कारण है कि संसद में बजट पेश होने से पहले या पेश होने के तुरंत बाद दुसरे मुद्दों को लेकर हंगामा खड़ा कर दिया जाता है | उसी हंगामे के बीच थोड़ी - बहुत चर्चा के साथ या बिना चर्चा किये ही बजट पास करने और उसके लिए प्रयुक्त की गयी गिलोटिन प्रणाली का प्रमुख कारण संसद का हल्ला हंगामा नही ,, बल्कि बजट पास करने उसकी चर्चाओं से जनसाधारण का ध्यान हटाने के लिए चलाई जा रही वर्तमान परिपाटी है |
सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार
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