Friday, August 31, 2018

आम आदमी के लिए जी एस टी धोखा है ?

आम आदमी के लिए जी एस टी धोखा है ?

30 जून 2018 को जी एस टी अर्थात वस्तु एवं सेवा कर को लागू हुए एक वर्ष का समय पूरा हो गया पहली जुलाई को जी एस टी की पहली वर्ष गाठं मनाई गयी | इस अवसर पर केंद्र सरकार एवं जी एस टी परिषद द्वारा इसकी सफलता का बखान करते हुए बताया गया कि इस वित्तीय वर्ष 2018-19 के तीन महीने में जी एस टी संग्रह में तीव्र वृद्धि हुई है | अप्रैल 2018 में संग्रह 1 लाख करोड़ से अधिक था , जबकि मई व जून में वह संग्रह क्रमश 940 अर्ब एवं 956 अरब रूपये रहा | वित्त मंत्री ने चालू वित्त वर्ष में कुल जी एस टी का संग्रह 12 लाख करोड़ रूपये का अनुमान बताया है | यह भी बताया गया कि जी एस टी के रूप में अप्रत्यक्ष कर बढ़ोत्तरी के साथ प्रत्यक्ष कर , खासकर आयकर के दायरे और मात्रा में भी विस्तार हुआ है | इस विस्तार का कारण जी एस टी लागू होने से बहुतेरे कारोबारियों के कारोबारी रिकार्ड का आनलाइन होना और उनकी आय का खुलासा होना रहा है | इसलिए इस प्रत्यक्ष कर के दायरे एवं मात्रा में वृद्धि को जी एस टी के दूसरे लाभ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है | जी एस टी के बढ़ते कर संग्रह के आंकड़ो बयानों प्रचारों से देश की केन्द्रीय सरकार के मंत्रियों अधिकारियो का खुश होना लाजिमी है | वे इसे अपनी सफलता के रूप में पेश कर रहे है | स्वभावत: सत्तासीन भाजपा उसका चुनावी लाभ लेने कि कोशिश भी जरुर करेगी | जहाँ तक विपक्षी पार्टियों की बात है तो वे जी एस टी को नही बल्कि भाजपा सरकार द्वारा लागू किये गये जी एस टी के मौजूदा प्राविधानो से साधारण कारोबारियों की बढती असुविधाओ व संकट को अपने विरोध का प्रमुख मुद्दा बनाती रही है , कांग्रेस पार्टी तो जी एस टी को अपना ही टैक्स या कर एजेंडा कहकर उसका समर्थन करता रहा है साथ ही वह और भाजपा द्वारा जी एस टी के कई स्तर के करो का विरोध भी करती रही है | इसलिए आने वाले दिनों में भी विपक्षी पार्टियों जी एस टी का नही बल्कि भाजपा द्वारा उसे लागू करने की पद्धिति का ही विरोध करती नजर आएगी और उसका चुनावी लाभ उठाने का भी प्रयास करेगी | फिर जी एस टी लागू होने और उसके बढ़ते कर संग्रह से सबसे ज्यादा ख़ुशी तो देश - विदेश की उन धनाढ्य कम्पनियों को होना है , जिनके राष्ट्रव्यापी बाजार के लिए जी एस टी को ''एक राष्ट्र एक बाजार , एक कर '' की प्रणाली के रूप में लाया व लागू किया गया है | कम्पनियों के मालो - सामानों सेवाओं के क्षेत्रीय प्रांतीय अवरोध को दूर किया गया है | इनकी ख़ुशी का दूसरा कारण जी एस टी से अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष करो का बढ़ता दायरा एवं बढ़ता कर संग्रह है | कयोकी इस बढ़ते कर दायरे व मात्रा का वास्तविक लाभ दरअसल प्रत्यक्ष कर खासकर निगम कर ( कारपोरेट टैक्स ) एवं उच्च स्तर का आयकर व अन्य कर देते रहे धनाढ्य कम्पनियों को मिलना है | धनाढ्य कम्पनियों अपने उपर लगने वाली इन्ही करो को घटाने की मांग हमेशा करती रही है | सरकारों पर इसके लिए दबाव भी लगातार बनती रही है | उसका लाभ भी उन्हें मिलता रहा है | 1991 के पहले 40% से उपर तक लगने वाला निगम कर अब 25-39% पर अगया है
फिर उसमे छूटो एवं मामलो मुकदमो को भी जोड़ दिया जाए तो उसकी वास्तविक देनदारी 23% से कम ही रहती है | बढ़ते जी एस टी अप्रत्यक्ष कर संग्रह एवं छोटे एवं मझोले स्तर के कारोबारियों के बढ़ते प्रत्यक्ष कर संग्रह से अब धनाढ्य कम्पनियों को अपना निगम कर एवं उच्चस्तरीय आयकर घटाने के लिए सरकारों पर दबाव डालने का एक बड़ा आधार मिल जाएगा | जी एस टी के बढ़ते सग्रह से बढ़ते राजस्व आय के चलते सरकारे इसका लाभ धनाढ्य कम्पनियों को सहर्ष देने के लिए तैयार भी हो जायेगी | आखिर वे यही काम दशको से करती आ रही है | प्रोत्साहन पैकजो के जरिये धनाढ्य कम्पनियों को टैक्सों करो में छूट देती रही है | खासकर पिछले 10 सालो से तो वे यह काम खुलेआम कर रही है | इसके अलावा देश के मझोले कारोबारियों के एक हिस्से को खासकर बड़ी कम्पनियों की सहायक या अधीनस्थ मझोली या छोटी कम्पनियों को भी उनके बढ़ते कारोबारों के रूप में जी एस टी का लाभ जरुर मिलना है |
पर उनके अलावा तमाम अन्य मझोले व छोटे स्तर के कारोबारियों पर जी एस टी के बढ़ते भार के चलते भी बड़ी कम्पनियों के एवं उनके सहयाक कम्पनियों के कारोबारी प्रतियोगिता में पिछड़ना टूटना निश्चित है | दूसरे जी एस टी कर प्रणाली और कर चुकता करने की जटिलता भी उनके कारोबार को धक्का पहुचाती रही है |
इसका यह मतलब कदापि नही है कि तमाम छोटे मझोले स्तर के उत्पादक व कारोबारी जी एस टी ( एवं नोट बंदी ) के कुपरिणामो के चलते ही टूटते रहे है | दरअसल वर्तमान दौर में उनमे टूटन की प्रक्रिया पहले से , खासकर 1991 - 95 के बाद से निरंतर बढती चली आ रही है | देश विदेश की बड़ी कम्पनियों को मिलते रहे उदारवादी निजिवादी छुटो अधिकारों के साथ आम उपभोग के विदेशी मालो सामानों के बढ़ते आयात के साथ उनके टूटन की प्रक्रिया बढती रही है | कयोकी उन उदारवादी छूटो अधिकारों के साथ किसानो समेत कुटीर एवं लघु उद्योगों के उत्पादन व बिक्री बाजार में मिलते रहे सरकारी सहायता एवं सरक्षण को लगातार घटाया जाता रहा है | अब वर्तमान सरकार द्वारा लागू की गयी नोट बंदी व जी एस टी ने उनके टूटन की प्रक्रिया को और बढा दिया है | स्वभावत: इन छोटे स्तर के उद्यमियों एवं कारोबारियों में जी एस टी के ज्यादा कर संग्रह से ख़ुशी का माहौल बनने बढने की कोई गुंजाइश नही है | फिर समाज में नीचे के व्यापक जनसाधारण में खासकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरो किसानो तथा अन्य शारीरिक एवं मानसिक श्रमजीवियो में भी जी एस टी के बढ़ते संग्रह से खुश होने की कोई जरूरत नही है |
कयोकी जी एस टी कर बोझ से आम उपभोग की वस्तुओ सेवाओं की महगाई के बोझ का और
ज्यादा बढ़ना निश्चित है | उसी तरह से अधीनस्थ क्षेत्र के उत्पादन व कारोबार की संकटग्रस्त होती स्थितियों के फलस्वरूप बेरोजगारी भी तेजी से बढती रही है | इसीलिए आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर अभी चंद दिन पहले कई वस्तुओ को जी एस टी से बाहर कर दिया गया और सम्भवत: जी एस टी के ऊँची दर ( 28% ) को खत्म करने का भी प्राविधान किया जा रहा है | लेकिन जी एस टी में इन सुधारों बदलावों से बढती महगाई बेरोजगारी पर कोई प्रभाव अंतर नही पड़ना है | कयोकी महगाई में तीव्र वृद्धि का वास्तविक कारण देश विदेश की धनाढ्य कम्पनियों को बिना किसी नियंत्रण के उन्हें अपने मालो - सामानों के मूल्य निर्धारण का छूट का अधिकार का दिया जाना है | मूल्य निर्धारण के उनके इसी छूट व अधिकार को 1991 से लगातार और तेजी के साथ बढ़ाया जाता रहा उनके मुकाबले में सस्ते दर पर उपभोक्ता सामानों का उत्पादन करने वाले सरकारी व सहकारी क्षेत्रो को घाटे का क्षेत्र बताते हुए समाप्त किया जाता रहा है | जी एस टी ने टैक्स वृद्धि के जरिये इन मालो सामानों के मूल्य को और ज्यादा बढा दिया है | इसके अलावा पेट्रोल डीजल एवं बिजली आज भी जी एस टी से बाहर है | बताने की जरूरत नही है कि पेट्रोल डीजल पर 30% से अधिक पड़ने वाला केन्द्रीय व प्रांतीय टैक्स उत्पादन व यातायात की बढती लागत के चलते मालो समानो सेवाओं का मूल्य और ज्यादा बढा दिया है |
बेरोजगारी में तीव्र बढ़ोत्तरी का सिलसिला भी जी एस टी से पहले से तेजी से चल रहा है | इसलिए 22 सालो से तेजी से बढ़ते वैश्वीकरण निजिवादी तथा उदारवादी आर्थिक नीतियों एवं डंकल प्रस्ताव के प्राविधानो को लागू किये जाने के बाद से देश के आर्थिक वृद्धि व विकास को रोज्गार्हीं वास्तविक एवं स्थायी रोजगार के अवसरों के लगातार घटने के रूप में सामने आती रही है |इसलिए महगाई व बेरोजगारी की बढती मार झेलता देश की आबादी का 70% हिस्सा जी एस टी के बढ़ते कर संग्रह से तथा बढ़ते अप्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर के दायरे की सूचनाओं से खुश नही हो सकता | जीवनयापन का बढ़ता संकट एवं दुख उसे खुश रहने की कोई गुंजाइश नही देता|
सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक - आभार चर्चा आजकल की

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-09-2018) को "महापुरुष अवतार" (चर्चा अंक-3082) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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