Sunday, April 7, 2019

सूक्ष्म अंहकार -

सूक्ष्म अंहकार -

बोध कथा
एक सम्राट विश्वविजेता हो गया | तब उसे खबर मिलने लगी कि उसके बचपन का एक साथी बड़ा फकीर हो गया है | दिगम्बर फकीर नग्न रहने लगा है | उस फकीर की ख्याति सम्राट तक आने लगी | सम्राट ने निमंत्रण भेजा कि आप कभी आये राजधानी आये ; पुराने मित्र है , बचपन में हम साथ थे , एक साथ स्कूल में पढ़े थे ,एक पट्टी पर बैठे थे ; बड़ी कृपा होगी आप आये |
फकीर आया | फकीर तो पैदल चलता था , नग्न था , महीनों लगे | जब फकीर ठीक राजधानी के बाहर आया तो कुछ यात्री जो राजधानी से बाहर जा रहे थे , उन्होंने फकीर से कहा कि तुम्हे पता है ; वह सम्राट अपनी अकड तुम्हे दिखाना चाहता है | इसलिए तुम्हे बुलाया है | फकीर ने कहा , कैसे अकड ! क्या अकड दिखाएगा ? तो उन्होंने कहा , वह दिखला रहा है अकड , पूरी राजधानी सजाई गयी है , रास्तो पर मखमली कालीन बिछाए गये है , सरे नगर में दीप जलाए गये है , सुगंध छिडकी गयी है , फूलो से पाट दिए है रास्ते , सारा नगर संगीत से गुन्जायेमान हो रहा हैं | वह तुम्हे दिखाना चाहता है कि देख , तू क्या है , एक नगा फकीर ! और देख , मैं क्या हूँ ! फकीर ने कहा , तो हम भी दिखा देंगे |
वे यात्री तो चले गये | फिर सांझ जब फकीर पहुचा और राजा , सम्राट द्वार तक लेने आया उसे नगर के - अपने पूरे दरबार के साथ आया था | उसने जरुर राजधानी खूब सजाई थी , उसने तो सोचा भी नही था कि यह बात इस अर्थ में ली जायेगी | उसने तो यही सोचा था कि फकीर आता है , बचपन का साथी , उसका जितना अच्छा स्वागत हो सके ! शायद छिपी कहीं बहुत गहरे में यह वासना भी रही होगी -- दिखाऊं उसे - मगर यह बहुत चेतन नही थी | इसका साफ़ - साफ़ होश नही था | गहरे में हरुर रही होगी | हमारी गहराइयो का हमीं को पता नही होता | जब फकीर आया तो फकीर नग्न था ही , उसके घटने तक पैर भी कीचड़ से भरे थे | सम्राट थोड़ा हैरान हुआ , क्योकि वर्षा तो हुई नही | वर्षा के लिए तो लोग तड़प रहें है | रस्ते सूखे पड़े है , वृक्ष सूखे जा रहे है , किसान आसमान की तरफ देख रहा हैं | वर्ष होनी चाहिए और हो ही नही रही है , समय निकला जा रहा है | इतनी कीचड़ कहाँ से मिल गयी की घटने तक कीचड़ से पैर भरे है ! लेकिन सम्राट ने वहां द्वार पर तो कुछ न कहना उचित समझा | महल तक ले आया | और फकीर उन बहुमूल्य कालीनो पर कीचड़ उछलता हुआ चलता गया | जब राजमहल में प्रविष्ट हो गये और दोनों अकेले रह गये तब सम्राट ने पूछा की मार्ग में जरुर कष्ट हुआ होगा , इतनी कीचड़ आपके पैरो में लग गयी | कहाँ तकलीफ पड़ी ?क्या अड़चन आई ?
तो उसने कहा , अड़चन ? अड़चन कोई भी नही | तुम अगर अपनी दौलत दिखाना चाहते हो तो हम अपनी फकीरी दिखाना चाहते है | हम फकीर है | हम लात मारते है तुम्हारे बहुमूल्य कालीनो को | सम्राट हंसा और उसने कहा , मैं तो सोचता था की तुम बदल गये होगे लेकिन तुम वही के वही , आओ गले मिलो | जब हम अलग हुए थे स्कूल से , तब से और अब में कोई फर्क नही पडा है | हम एक ही साथ , हम एक जैसे | अंहकार के रस्ते बड़े सूक्ष्म है | फकीरी भी दिखलाने लगता है | इससे थोडा सावधान होना जरूरी है | और जब अंहकार परोक्ष रस्ते लेता है तो ज्यादा कठिन हो जाता है | सीधे सीधे रस्ते तो बहुत ठीक होते है

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-04-2019) को "भाषण हैं घनघोर" (चर्चा अंक-3299) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह रूहानी आनन्द से सराबोर करती बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण बोधकथा आदरणीय | सादर शुभकामनायें और आभार इस सूक्ष्म अंहकार से अवगत करवाने के लिए |

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