Sunday, August 11, 2019

अलमस्त फकीर

अलमस्त फकीर --------------------- अमीर खुसरो
तीर , तलवार , दरबार , सरकार से हटकर भी एक ऐसी दुनिया है इस जहांन में जहा सिर्फ हर ओर एक नगमा है प्यार का हर सांसो का एक एहसास है , एक ऐसी रूहानी दुनिया जहा सिर्फ मुहब्बत है प्यार है और उस प्यार में खोने का कोई एहसास नही बस समर्पण है जहा चाह कोई नही है वह है फकीरों की दुनिया जिसमे न दीन का पता न जाति का पता न ही किसी राजकाज का पता वहा तो अलमस्ती है प्यार के एहसास का --------------------------------------
ऐसे ही एक फकीर का आस्ताना
ऐ री सखी मोरे पिया घर आए
भाग लगे इस आँगन को
बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।
ऐसे मस्ती में जीने वाले अलमस्त फकीर अमीर खुसरो जैसे मोहब्बत भरे दिल के आत्मा को शान्ति मयस्सर आई ये हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन की खानकाही फजा थी | दिल्ली की ग्यास्पुरी बस्ती में जहा अब जमुना किनारे हुमांयू का मकबरा है | यही पर रहते थे वो अकला मस्त फकीर जिन्होंने आम आवाम के मन की शान्ति के लिए दीनी प्रेम के एहसास को आम पैगाम बनाया | अमीर खुसरो अपने पीर ख्वाजा निजामुद्दीन के हमदम और हमराज भी रहे | ख्वाजा निजामुद्दीन की बानबे बरस की ब्रम्हचारी मुजर्रत जिन्दगी में खुसरो रंग और आवाजे बिखेतरे रहे और उनसे टूटकर इश्क किया |
खुसरो कहते है -- ऐ पीर निजामुद्दीन तुम हुस्नो जमाल के बादशाह हो और खुसरो तुम्हारे दर का फकीर | इस फकीर पर रहम करो | करम की नजर से इसे नवाज दो | नजरे क्रम कुन | खुसरो अपने पीर से फकीर व औलिया निजामुद्दीन से राज ओ नियाज की बाते करते और रूहानी शान्ति की दौलत समेत करते | कभी एक गुफ्तगू के दौरान हजरत निजामुद्दीन ने कहा ' खुसरो हमने तुम्हे तुर्क अल्लाह का खिताब दिया है | बस चलता तो वसीयत कर जाते कि तुम्हे हमारी कब्र में ही सुलाया जाए | तुम्हे जुदा करने को जी नही चाहता , मगर दिन भर कमर से फटका बाधे दरबार करते हो | जाओ कमर खोलो | आराम करो | तुम्हारी नफ्स ( अस्तित्व ) को भी तुम पर हक़ है | शब्बा खैर | ''

आम आवाम इस सूफी शायर की यही मुहब्बत आम लोगो की देसी - जुबानो में इसने मजे - मजे के दोहे कहे | अमीर खुसरो ने अपनी रचना शिल्प को एक आयाम दिया फकीरी का उन्होंने कहमुकरनियो- गीत - गजल , पहेलियाँ लिखे जो हिन्दुस्तान के गाँव - गाँव आज भी गूजता है | सावन के गीत , चक्की के गीत , शादी व्याह के गीत , पनघट के गीत , जो किताबो में लिपिब्द्द नही मिलते जो लोगो की जुबानो पर मिलते है |
अमीर खुसरो ने ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के न रहने पर यह मार्मिक दोहा कहा |
'' गोरी सोवे मेज पे मुख पर डाले केस ,
चल खुसरो घर आपने रेन भई चंहु देस |
खुसरो अपनी फकीरी में कहते है
' खुसरो रेन सोहाग की , सो जागी पी के संग |
तन मोरा मन पीहू का , सो दोनों एक ही रंग || -------------------- सुनील दत्ता  कबीर

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-08-2019) को "खोया हुआ बसन्त" (चर्चा अंक- 3426) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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