Sunday, June 10, 2018

गरीबो से दूर होती चिकित्सा सेवा --- 10-6-18

दवा कम्पनियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नही

डाक्टर जेनरिक दवाइया नही लिखते - कम्पनियों को फायदा पहुचाने के चक्कर में --
आने वाले समय में आम आदमी चिकित्सा सेवा से वंचित होता जाएगा

6 अप्रैल के हिंदी दैनिक ''हिन्दुस्तान में अमरीका का यह समाचार प्रकाशित हुआ है कि आधे से ज्यादा अमेरिकी वहाँ के डाक्टरों के पास नही जाते | एक सर्वे में उन अमेरिकियों ने यह कहा है कि स्वास्थ्य की एक योजना को लेकर वे जितने बिल की उम्मीद रखते है , वह उससे कही ज्यादा आता है | उसे चुकाने में उनकी बचत का एक बड़ा हिसा खर्च हो जाता है | हाँलाकि अमेरिका की बड़ी संख्या स्वास्थ्य बीमाधारक है | इसके बावजूद उनके द्वारा किये गये भुगतान स्वास्थ्य सेवाए नही मिल पाती | फिर उन्हें स्वास्थ्य सेवाए जरूरत के समय नही मिल पाती | अमेरिका जैसे विकसित देश की उन्नत एवं व्यवस्थित स्वास्थ्य सेवा से इस देश की स्वास्थ्य सेवाओं की कोई तुलना ही नही है | इसके वावजूद वहाँ के जनगणके स्वास्थ्य सेवा की उपरोक्त सूचना से इस देश की स्वास्थ्य सेवा का कुछ आकलन किया जा सकता है | इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर 50% अमेरिकी लोग बढ़ते स्वास्थ्य बिल के चलते स्वास्थ्य सेवाओं से दूर है तो भारत जैसे अन्य विकासशील देशो की बहुसंख्यक गरीब एवं साधारण आय वाली खासी बड़ी आबादी ( लगभग 70% या उससे अधिक आबादी ) वांछित स्वास्थ्य सेवाओं से दूर रहना एकदम स्वाभाविक है | यह आबादी या तो योग्य चिकित्सको एवं चिकित्सीय सेवाओं तक पहुँच ही नही पाती या उसे आधे - अधूरे में ही छोड़ देती है | उसका कारण भी चिकित्सको एवं चिकित्सीय सेवाओं से वंचित अमेरिकियों जैसा ही है | चिकित्सकीय सेवाओं को प्राप्त करना दोनों देशो के जनसाधारण के लिए एक बड़ा आर्थिक बोझ है |हाँलाकि उनमे महत्वपूर्ण अन्तर भी है | वह यह कि स्वास्थ्य सेवाओं पर जहां अमेरिकियों की बचत का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है वही इन सेवाओं को पाने के प्रयास में इस देश की जनसाधारण के जीविकोपार्जन के आवश्यक ससाधन जमीन एवं सम्पत्तियों भी गिरवी हो जाती है या बिक जाती है | वह अमेरिकयो की तरह बचतहीन नही बल्कि साधनहीन हो जाता है | सवाल है कि स्वास्थ्य सेवाओं और चिकित्सको की इस मँहगाई और जनसाधारण पर उसके बढ़ते बोझ
का कारण क्या है ?

यह कोई छिपी हुई बात नही है कि इसका प्रमुख कारण चिकित्सकी सेवा से जुडी कम्पनियों कारोबारियों तथा योग्य चिकित्सको एवं चिकित्सा सेवा के अन्य पेशेवर कामो में लगे लोगो के बेतहाशा बढ़ता लाभ कमिशन एवं आय है | एक ही दवा के विभिन्न कम्पनियों के पेटेंट मूल्यों में भारी अंतर है | फिर पेटेंट और जेनरिक दवाओं के मूल्यों में तो अन्तर है ही | दिलचस्प बात है कि कम से कम मूल्य वाली किसी जेनरिक दवा कम्पनी को भी उस दवा के उत्पादन व्यापार में खासा लाभ होता है | फिर ज्यादा मूल्य और वह भी पेटेंट मूल्य की दवाओं के लाभ के बारे में पूछना ही कुछ नही है | यही कारण है कि भारतीय अरबपतियो में से सबसे ज्यादा संख्या 20 की संख्या दवा उद्योग से जुड़े अरबपतियो की है | टेक्नोलाजी मीडिया दूरसंचार एवं अन्य क्षेत्रो के अरबपतियो की संख्या उनसे कम है | यह स्थिति चिकित्सकीय सेवा से जुड़े अन्य सहायक साधनों सामानों में भी है | उनके उत्पादन व्यापार प्रचार में भी धनाढ्य कम्पनिया लगी हुई है | वे दवाओं की तरह ही चिकित्सकीय सेवाओं के अन्य मालो सामानों को उनके वास्तविक मूल्य और उसमे निहित साधारण या औसत लाभ पर ही नही बल्कि उससे कई गुना ज्यादा दाम पर बेचती रही है | इनकी मँहगाई इसलिए नही है कि उनका उत्पादन मँहगा है , बल्कि उनकी मँहगाई का वास्तविक कारण उनकी मालिक कम्पनियों का प्रचंड लाभ है | सुशिक्षित एवं योग्य चिकित्सक भी ऊँचे मूल्यों की दवाओं को कही ज्यादा लिखते और बिकवाते है | बदले में उन्हें कम्पनिया हर तरह से खुश करती है | दवा कम्पनियों द्वारा उत्पादित दवाओं के अधिकाधिक मूल्य निर्धारण पर सरकारों का कोई नियंत्रण नही है | इसी तरह सुशिक्षित चिकित्सको एवं जांच करता की फीस और उनकी मनमानी वृद्धियो पर भी कोई नियंत्रण नही है | न ही उनकी फीसो और उसकी वृद्धियो का कोई सिद्धांत या मापदंड ही है | उनमे कोई एकरूपता भी नही है | उनकी फ़ीस निर्धारण का मापदंड साल दर साल की जाती रही मनमानी वृद्धि में ही निहित है | जब की अभी भी देश के नामी चिकित्सको की 80% से अधिक संख्या समस्त जनता से वसूले टैक्सों से स्थापित व्यवस्थित सार्वजनिक क्षेत्र के मेडिकल कालेजो में ही निहित शिक्षित दीक्षित हुई है | उसके लिए बहुत कम खर्चा हुआ है |इसलिए भी उनके द्वारा अपनी फ़ीस को मनमाने ढंग से बढाते हुए मरीजो को चिकित्सकीय सुविधा एवं परामर्श से वंचित कर देना किसी भी तरह ठीक नही है | कोई यह नही कहेगा कि उन्हें साधारण आदमी से बेहतर आय और सुविधा की जरूरत नही है | लेकिन इसका मतलब सीमाहीन अथवा अनियंत्रित आय भी नही है | वह औसत आय या बेहतर आय की जगह अधिकतम वसूली जाने वाली बन गयी है | यही कारण है कि डाक्टर बन जाने के चंद सालो के बाद ही सभी सुशिक्षित डाक्टरों के पास धन , सुख सुविधा और अन्य संसाधनों जमीन मकान अस्पताल का अम्बार लग जाता है | एक तरफ दवा कम्पनिया व अन्य चिकित्सकीय साधनों की कम्पनियों की असीमित लूट वाली मुनाफाखोरी और दूसरी तरफ चिकित्सको एवं अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के पेशेवरो द्वारा निर्ममता के साथ की जाती रही उच्चस्तरीय आय 70% आबादी को चिकित्सकीय सुविधा पाने से वंचित कर देती है | गरीब एवं साधारण आय वाले रोगियों को सुशिक्षित डाक्टरों के पास जाने से रोक देती है या फिर आधे अधूरे इलाज के बाद ही उन्हें उसे छोड़ देने के लिए मजबूर कर देती है | अमेरिका का हेल्थ केयर और हेल्थ इंशोरेंस जैसी योजना वहाँ 50% आबादी के लिए चिकित्सा सेवा तक पहुच नही बना पाया है | इस देश में भी स्वास्थ्य बीमा लागू किये जाने के बाद भी 70% आबादी चिकित्सकीय सेवा में अपनी पहुच नही बना पाएगी | चिकित्सकीय सेवाओं तथा जनसाधारण रोगियों के बीच दूरियों का बढना तक तक निश्चित है , जब तक दवाओं के मूल्यों तथा कम्पनियों के मुनाफो पर नियंत्रण लगाने के साथ चिकिसको एवं चिकित्सा सेवाओं से जुड़े पेशेवर लोगो की मनमानी फ़ीस व कमाई पर नियंत्रण नही लगाया जा सकता | उन पर सरकारों के साथ जन्सदाहरण का संगठित नही डाला जाता देश हर क्षेत्र में नया जन आन्दोलन माँग रही है |


सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

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