Thursday, November 15, 2018

राफेल - बोफोर्स - का माजरा ?

राफेल - बोफोर्स - का माजरा ?

फ्रांस के राफेल विमान सौदे की चर्चा पिछले दो - तीन माह से लगातार चल रही है | इस सौदे के जरिये वर्तमान केन्द्रीय सरकार तथा प्रधानमन्त्री पर इस सौदे के भारतीय भागीदार रिलायंस डिफेन्स कम्पनी के मालिक अनिल अम्बानी को अधिकतम एवं अवाछ्नीय लाभ पहुचाने का आरोप लग रहा है | अक्तूबर के शुरुआत में यह मामला उच्चतम न्यायालय में पहुच गया है | राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार के साथ उद्योगपति अनिल अम्बानी को लाभ पहुचाने के चलते कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमन्त्री को इस रक्षा सौदे का भागीदार बताते रहे है |
इस आरोप को निराधार नही कहा जा सकता | इस सन्दर्भ में तथ्यगत बात है कि 2012 में कांग्रेस नेतृत्व की संप्रग सरकार द्वारा 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए 54 हजार करोड़ के तय सौदे को अप्रैल 2015 में भाजपा नेतृत्व की वर्तमान सरकार द्वारा 36 राफेल विमानों के लिए 58 हजार करोड़ के सौदे को बदल दिया गया | उस समय के तय सौदे में एक विमान के 526 करोड़ रूपये के कीमत को अप्रैल 2015 में एक विमान की 1670 करोड़ रूपये की कीमत में बदल दिया गया | जाहिर है कि 2012 से लेकर 2015 तक के महज तीन सालो में अंतरराष्ट्रीय कीमतों मेवृद्धि से तथा अप्रैल 2015 तक रूपये के अवमूल्यन से भी विमान की कीमत में तीन गुना की मूल्य वृद्धि नही हो सकती |
कोई भी समझ सकता है कि तीन गुना मूल्य वृद्धि के साथ 126 लडाकू विमानों के 54 हजार करोड़ की जगह अब 36 विमानों के 58 हजार करोड़ के सौदे से राफेल विमान निर्माता एवं विक्रेता फ्रांसीसी कम्पनी डसाल्ट का लाभ अब पहले से कई गुना बढ़ जाना है | इसके साथ ही इस सौदे में भागीदारी बने भारतीय कम्पनी रिलायंस डिफेन्स को भारी लाभ मिलना निश्चित है | साथ ही अंतरराष्ट्रीयव राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदा हथियारों सौदों के उच्च स्तरीय दलालों , रक्षा क्षेत्र के बड़े अधिकारियो को जरुर लाभ मिलना है | इसके अलावा इस सौदे से सरकार के उच्च पदों पर बैठे लोगो को भी प्रत्यक्ष भ्रष्टाचारी लाभ मिलना तय है | वैसे तो अंतरराष्ट्रीय सौदों में खासकर उच्च तकनीकी के मशीनों उपकरणों के आयात की सौदेबाजी में सरकार की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष भूमिका के साथ अत्यधिक लाभ एवं भ्रष्टाचार का होना आम बात है | फिर रक्षा सौदों में यह मामला इसलिए और ज्यादा होता है कि ऐसे सौदों के साथ राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर गोपनीयता का मामला आगे कर दिया जाता है | सौदों के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहा भी जा रहा है | राफेल विमान सौदे की असलियत सामने आय या न आय , पर रक्षा सौदे के सन्दर्भ में असली बात तो यही है कि इनके अंतरराष्ट्रीय खरीद बिक्री में उच्चस्तरीय मुनाफाखोरी , दलाली एवं अन्य भ्रष्टाचार का काम पहले से होता रहा है | आधुनिक हथियारों लडाकू विमानों एवं अन्य सैन्य साजो - सामानों की मालिक अंतरराष्ट्रीय साम्राज्यी कम्पनिया वैश्विक बाजार में भयंकर प्रतिद्वंदिता के चलते इस भ्रष्टाचार को बड़े स्तर पर बढ़ावा देती रही है | फिर उसे इस देश की और अन्य देशो की सरकारे स्वीकारती भी रही है | हाँ , अब इसमें एक महत्वपूर्ण अंतर जरुर आ गया है | 1990-95 तक सभी रक्षा सौदों में विकसित साम्राज्यी देशो की हथियार एवं लडाकू विमान आदि की निर्माता कम्पनियों के साथ अंतरराष्ट्रीय दलाल तथा भारत सरकार के मंत्री अधिकारी रक्षा विशेषज्ञ एवं उच्च सैनिक अधिकारी ही शामिल रहते थे | पर अब खासकर 2000 के बाद रक्षा क्षेत्र में निजीकरणवादी नीतियों को लागू करने के बाद से देश की निजी धनाढ्य कम्पनियों को भी रक्षा क्षेत्र में उद्पादन व व्यापार की छुट दे दी गयी है | इसलिए पहले के सौदों में लाभ खोरी के साथ भ्रष्टाचार में और ज्यादा उछाल आना लाजिमी है | कयोकी भारतीय रक्षा कम्पनी के रूप में अब इसमें एक नया मुनाफाखोर वर्ग शामिल हो गया है | यही कारण है कि 1980 के दशक में हुए बोफोर्स सौदे में अंतरराष्ट्रीय इटैलियन दलाल क्वालोची तथा भारतीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के साथ भारतीय दलाल बिन चड्डा , रक्षा सचिव एस के भटनागर को उस भ्रष्टाचार के लिए आरोपित किया गया था | पर अब रक्षा क्षेत्र में लागू किये गये निजीकरण के साथ प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी , रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण तथा 10 अप्रैल 2015 को हुए राफेल डील से महज 15 दिन पहले बनी उद्योगपति अनिल अम्बानी की रिलायंस डिफेन्स कम्पनी को मुख्य रूप से आरोपित किया जा रहा है | यह बात भी लगभग निश्चित है कि देश के रक्षा क्षेत्र में बढ़ते निजीकरण के साथ आने वाले दिनों में रक्षा सौदों में उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार एवं अवांछित लाभ के और ज्यादा मामले सामने आयेंगे | उच्च तकनीक वाले बोफोर्स तोप डील और राफेल ल;डाकू विमान डील जैसे रक्षा सौदों में इस भ्रष्टाचार का आधार आधुनिकतम हथियारों , लडाकू जहाजो पनडुब्बियो आदि के निर्माण व व्यापार में दुनिया के चंद देशो की अतिधनाढ्य कम्पनिया और उनमे वैश्विक बाजार के लिए चलती रही भयंकर प्रतिद्वंदिता है | इस प्रतिद्वंदिता में अमेरिका , रूस , इंग्लैण्ड , फ्रांस व अन्य देशो की साम्राज्यी कम्पनियों के साथ वहाँ की सरकारे शामिल रहती है | उन देशो की सरकारे अपने यहाँ के रक्षा सामानों की अंतरराष्ट्रीय सौदों का प्रतिनिधत्व भी करती रहती है | अपने बिक्री बाजार को बढाने के लिए ये कम्पनियों अपने और खरीददार देशो के सरकारों के प्रतिनिधियों मंत्रियों अधिकारियो को सीधे - सीधे या फिर अंतरराष्ट्रीय दलालों के जरिये अपने पक्ष में कर लेने का हर भ्रष्टाचार करती है | भारत जैसे तमाम पिछड़े व विकासशील देशो की सैन्य या गैर सैन्य औद्योगिक मालो - सामानों के उत्पादन - व्यापार में लगी धनाढ्य कम्पनिया भी इन देशो की सरकारों पर रक्षा सौदों के लिए दबाव बनती रहती है | फिर भारत जैसे देशो में उच्च तकनिकी के सिने साजो - सामानों के बढ़ते आयात का दुसरा आधारभूत कारण इन देशो में तकनिकी पिछड़ेपन के साथ हर क्षेत्र में वैज्ञानिक तकनीकी विकास को प्रोत्साहन न देना या उसे हतोत्साहित करते रहना था और है |इन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय आधारों के साथ अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर निजी साम्राज्यी व पूजीवादी कम्पनियों को अधिकाधिक छुट देने बढाने के फलस्वरूप रक्षा क्षेत्र में करोड़ो अरबो के होने वाले अत्यधिक व अवांछित लाभों भ्रष्टाचारो को रोका जाना कदापि सम्भव नही है | हाँ उसे उठाकर इस उस सरकार को निशाना जरुर बनाया जा सकता है | उसके राजनितिक इस्तेमाल के साथ उसको चुनावी मुद्दा बनाकर सत्तासीन पार्टी को अपदस्थ करने का कम भी किया जा सकता है | पर उस भ्रष्टाचार को रोका नही जा सकता |

एक बात और -
रक्षा सौदों में अत्यधिक लाभ एवं भ्रष्टाचार के सन्दर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात की अनदेखी करने या उस पर पर्दा डालने का सबसे बड़ा सबूत यह है की ऐसे हर भ्रष्टाचार में उस भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा लाभ कमाने वाली तथा उसे बढावा देने वाली अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियों पर कोई इल्जाम नही लगता | उदाहरण तोप सौदे में दलाली करवाने और देश के अधिकारियो की करोड़ो का घुस खिलाने वाली स्विट्जरलैंड की बोफोर्स कम्पनी को लगभग मुक्त रखा गया | उसी तरह राफेल लडाकू विमान की ड्सालट कम्पनी पर कोई इल्जाम नही लगाया जा रहा है | सारा इल्जाम बिचौलियों पर ही लगाया जा रहा है | जाहिर है ऐसे लोगो से आप राष्ट्रहित जनहित की आशा भी नही कर सकते |

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-11-2018) को "ओ३म् शान्तिः ओ३म् शान्तिः" (चर्चा अंक-3158) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. राफेल - बोफोर्स - का माजरा ?
    a
    9:28 pm (3 मिनट पहले)

    मैं

    राहुल भारतीय राजनीति के न सिर्फ राहू हैं नेहरू वंश के लिए भी कुलनाशी बांस ही साबित होंगे।जिस तरह पाक के एजेंडा को आगे बढ़ाते हुए देश की सुरक्षा से जुड़े राफेल मामले में देश द्रोह के स्तर पर उतर आये हैं ,देश की प्रतिरक्षा से जुड़े इस मामले को बिना समझे बूझे बाल -हट की तरह उछाल रहें हैं इसका खामियाज़ा २०१९ में पार्टी के सामने आ जाएगा। इस ज़मानती आदमी को लगता है अब और कुछ गंवाने को शेष रहा नहीं हो सकता राफेल का दाव लग जाए।



    भूलना नहीं चाहिए पासें लगाने और फेंकने वाला सकुनी मारा जाता है। जिस तरह से नेहरू पंथी अपशिष्ट कांग्रेस देश के हितों को नुक्सान पहुंचा रही है उसके लिए इलेक्शन के मुद्दों की बातें बनाना उनके देशद्रोही कारनामों को छिपा नहीं सकता। देश के राहु और कांग्रेस के राहुल के ख़ास प्रिय एक साथी राष्ट्र के सेना अध्यक्ष को गली का गुंडा कहते हैं क्या ये कम अपराध है ?



    उनका एक और साथी जिसे फिल्म लाइन में बलात्कार के दृश्य का प्रवर्तक माना जाता है वह नक्सलवादियों को क्रांतिकारी कहता है।



    एक बहुत अनुभवी चाटुकारा यह कहती है डसाल्ट का मुख्यप्रशासनिक अधिकारी महात्मा गांधी नहीं है। कहना तो वह यह चाहती है कि वह राहुल गाँधी नहीं है। अपने झूठ को छिपाने के लिए महात्मा गांधी का सहारा क्यों ले रही है। अब जब उनके झूठ बे -नकाब हो रहे हैं तो उन्हें महात्मा गांधी याद आ रहे हैं। तब उन्हें महात्मा गांधी क्यों नहीं याद आये जब उन्होंने स्वाधीनता के थोड़ा पहले यह कहा था कि अब कांग्रेस को राजनीतिक पार्टी के तौर पर समाप्त करके समाज सेवा करनी चाहिए। ये तो ठीक वैसे ही हुआ कि फिसल पड़े तो हर गंगे। जुबान पर राहुल है बचाव के लिए महात्मा गांधी है।





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