विकास की लपट में झुलसता हुआ विश्व
यदि हम इस विश्व में फ़ैल रहे प्र्दुष्ण की बात करे तो औध्योगिक क्रान्ति का समय आधार रेखा माना जाता है | तब से आज तक धरती का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है जो महासागरो के स्तर को ऊँचा उठाने में व खौफनाक तूफ़ान और बाढो को जन्म देने में पर्याप्त सक्षम है |
आने वाले कुछ वर्ष मनुष्यता के इतिहास में अति महत्वपूर्ण है | इस समय मनुष्य द्वारा किये गये कृत्य इस बात का निर्णय करंगे कि इस धरती पर जीवन सम्भव है अथवा नही |
पिछले सौ - सवा सौ वर्षो में जो हमने इस धरती के साथ किया है उसके भुगतान का समय आ चुका है | अब दो विकल्प बचे है : एक , कि हम अपने भूतकाल के सारे कृत्यों को धो डाले और आने वाली महाप्रलय को टाल दें | दूसरा, हम यह भुगतान बाद में चक्रवर्ती व्याज के साथ करें | एक ही अंतर है इन दोनों में पहले वाला बलिदान कर हम अपने जीवन की रक्षा करंगे दूसरा भुगतान हमे स्वंय अपने जीवन से करना होगा | 8 नवम्बर को संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक रिपोर्ट जारी कि जो सम्पूर्ण विश्व के लिए अंतिम चेतावनी है | इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि वैश्विक जलवायु के सम्पूर्ण सर्वनाश से बचना है तो समाज और विश्व अर्थव्यवस्था को एक महा रूपांतरण से गुजरना होगा | इसके लिए कारगर कदम उठाने का समय समाप्त हो चला है |
यदि हम इस विश्व में फ़ैल रहे प्रदुषण की बात करें तो औध्योगिक क्रान्ति का समय आधार रेखा माना जाता है | तब से आज तक धरती का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चूका है , जो महासागरो के स्तर को उंचा उठाने में व खौफनाक तूफ़ान और बाढो को जन्म देने पे पर्याप्त सक्षम है | इस समय मनुष्यता जितनी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों को वातावरण में फेंक रही है . हम वर्ष 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा रेखा पार कर जायेंगे |
धरती के तापमान वाली यह नगण्य - सी दिखने वाली वृद्धि एक आने वाले भयावह भविष्य का संकेत है | आज हम धरती के वातावरण में 40 अरब टन कार्बन डायआक्साइड हर वर्ष जमा कर रहे है | पूर्व की वैज्ञानिक खोजे मानती थी कि धरती के वातावरण में 2 डिग्री का बढना एक सुरक्षित सीमा है लेकिन ऐसा गलत प्रमाणित हुआ है | एक महाविपत्ति अनुमान से पूर्व ही दस्तक देने लगी है | लगभग 6000 वैज्ञानिक अध्ययनों के पश्चात एक 400 पन्नो की रिपोर्ट तैयार की गयी है जिसके अनुसार धरती को कार्बन तटस्थ करना होगा और यह कार्य वर्ष 2050 तक पूरा हो जाना चाहिए | इसका अर्थ यह हुआ कि यदि हम एक टन कार्बन जलवायु में फेंकते है तब एक टन कार्बन निकालनी भी होगी | इस स्थिति में भी मात्र 50% प्रतिशत सम्भावना है कि हम इसमें सफल हो संके | इस रिपोर्ट के अनुसार आगामी 2 वर्षो से हमे ऊर्जा की खपत कम करनी होगी | एक क्रांतिकारी कदम चाहिए और हमे फासिल इधनो जैसे कोयला , पेट्रोल और डीजल के उपयोग से बचना होगा | इसके लिए बायो - इधनो का प्रयोग प्रारम्भ करना होगा , लेकिन इसके लिए भारत के क्षेत्रफल से दुगने क्षेत्र में बायो इधन की फसले उगानी होंगी , जिसमे हम वातावरण से 12 अरब टन कार्बन निकल पायेंगे |
जागतिक उष्मा को 1.5 डिग्री सेल्सियस के अन्दर रखने के लिए मनुष्यता को एक बड़ी कीमत चुकानी है जो प्रतिवर्ष 2.4 खराब डालर होगी | यह कीमत वर्ष २2035 तक अदा करनी होगी जो सम्पूर्ण विश्व की आय का 2.5 %प्रतिशत है | इस प्रकरण में भारत , अफ्रीका और चीन जैसे देशो की भूमिका बहुत बड़ी और संगीन है | यहाँ लगातार बढ़ते विकास के साथ प्रदुषण का तूफ़ान सा आ रहा है | जहाँ आइसलैंड , तजाकिस्तान , स्वीडन , फ्रांस स्विट्जरलैंड , नार्वे और न्यूजीलैंड जैसे देशो ने अपनी निर्भरता तेजी से फासिल इधन पर कम कर दी है और स्वंय को हरे देशो की सूचि में शामिल कर दिया है ,वही दक्षिण अफ्रिका , मंगोलिया , चीन , भारत जैसे देश बिजली के उत्पादन के लिए भारी मात्रा में कोयला जला रहे है | वर्ष 2017 में भारत के नीति आयोग ने 3 वर्षीय योजना तैयार की है जिसमे कोयले के खननं और उत्पादन को बढाने पर जोर दिया हैं | नीति आयोग की इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के 30 करोड़ लोग बिना बिजली कि सुविधा कर रह रहे है | भारत की तीन चौथाई बिजली कोयले को जला कर ही प्राप्त होती है और आने वाले कई दशको तक कुछ भी बदलने वाला नही |
विडम्बना यह है कि हमारे पास दशको का समय नही है , जो भी उठाने है , तुरंत उठाने होंगे अन्यथा इसका भुगतान अगली पीढ़ी को अपना जीवन देकर करना होगा | जैसे ही इस धरती का वातावरण 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार करेंगा धरती पर उगने वाली फसले बर्बाद होने लगेगी , धरती को सर्वाधिक आक्सीजन देने वाले अमेजन के जंगल समाप्त हो जायेंगे | 2 डिग्री उष्मा की बढ़ोत्तरी समुद्रो के स्तर को 9 फुट बढ़ा देगी और तटीय क्षेत्रो में बसे लोग खतरे में आ जायेंगे | मैदानी इलाको में बसे लोग शीतल जगहों पर पलायन करने लगेंगे क्योकि बढ़ते हुए तापमान के कारण आग के थपेड़ो जैसी हवाय हम पर आक्रमण करने लगेंगी | यह आने वाले भविष्य की एक भयावह तस्वीर है क्योकि इससे विश्व भर की अर्थव्यवस्थाए ताश के पत्तो के महल की तरह धाराशायी होंगी और हमारा सामाजिक ढांचा पूरी तरह तहस - नहस हो जाएगा | विकास और विकास - यह अंधी दौड़ हमे छोडनी होगी | फासिल इधनो पर हमारी निर्भरता एक भयावह अव्यवस्था को जन्म देने जा रही है | हमारे पास दो विकल्प है कि हम अपने उपभोग पर अभी लगाम लगाये या फिर ऐसे भविष्य के लिए तैयार रहें जिसमे इस पृथ्वी पर जीवनसंभव ही नही होगा |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-11-2018) को "भाई दूज का तिलक" (चर्चा अंक-3150) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
पञ्चपर्वों की श्रंखला में
भइया दूज की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपने मेरे लेख को स्थान दिया इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ
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