भगीरथ की प्रतीक्षा में है माँ गंगा
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विश्व के प्राचीनतम ज्ञान सकलन ऋग्वेद में गंगा सहित अनेक नदियों से राष्ट्र कल्याण की प्रार्थना है |गंगा भारत की पहचान है ,आस्था और संस्कृति है |मृत्यु के समय दो बूंद गंगाजल की अभीप्सा सनातन है |गंगा राष्ट्र जीवन का स्पंदन है |पवन में ,प्राण में पृथ्वी ,पाताल और परमधाम तक में चेतना की जो तरल संवेदना तैरती है ,गंगा उसी की एक कंठ -मधुर सज्ञा है |देश की 37% सिंचित क्षेत्रफल गंगा बेसिन में है |गंगा के अभाव में समृद्धि ,सांस्कृतिक भारत की कल्पना नही की जा सकती |तेरहवी शताब्दी के महान कवि विद्यापति ने गंगा विनती में कहा था कि दृष्ट्वा ,स्मृत्वा ,स्पृश्य (दर्शन ,स्मरण ,स्पर्श ) से ही गंगा मैया श्रद्दालुओं के मन में आ बसती है |
भारतीय सभ्यता और संस्कृति की प्रतीक गंगा काशी में उत्तरवाहिनी होकर भगवान भोलेनाथ के मस्तक पर विराजमान होकर अर्द्धचन्द्राकार रूप में अपनी मोहनी छटा बिखेर रही है |काशी में गंगा के उत्तर की ओर बहने के निसंदेह: कुछ वैज्ञानिक कारण भी है |गंगा को एक साधारण नदी मान ले तो यथार्थ के धरातल पर स्थूल धौमिकीय कारण पर्याप्त माने जा सकते है |आइंस्टाइन ने यह सिद्ध करने में कोई कसर नही छोड़ी है कि सारी नदियों का मार्ग सर्पिल आकृति गुरुत्वाकर्षण होती है |
लेकिन हिन्दू -मन गंगा को किसी सामान्य सरिता के रूप में न देखता है न जानता है और न मानता है |वृहत्तर सत्य के संदर्भ में उसे सारे वैज्ञानिक कारण सतही और कामचलाऊ लगते है |उसे गंगा में प्राणों का उल्लास दिखाई देता है | बहन का पवित्र प्यार दिखाई देता है ,माँ कि ममता दिखाई देती है और कुल मिलाकर आत्मा के उत्कर्ष कि सीमा दिखाई देती है |वस्तुत:काशी में गंगा के उत्तर -परवाह का प्रश्न विज्ञान से उतना सम्बन्धित नही है जितना आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि से है |काशी में गंगा के उत्तर की ऑर बहने का एक आध्यत्मिक रहस्य है |हजारो साल पहले एक बार महर्षि अत्रि ने ज्ञानवल्क्य से उपासना के संदर्भ में प्रश्न किया |याज्ञवल्क्य ने महर्षि अत्रि से कहा था कि इसके लिए अविमुक्त कहा अवस्थित है ,किस स्थान पर उनकी प्रतिष्ठा है? तब ज्ञानवक्ल्य ने एक गूढ़ उत्तर दिया था -वर्णाया नास्या च प्रतिष्ठित: | अविमुक्ति क्षेत्र कहा जाता है |यह क्षेत्र वरुणा और नास्या अर्थात वरुणा और अस्सी उपनदियो के बीच स्थित है |यही अविमुक्त क्षेत्र काशी है |आज इसी अविमुक्त क्षेत्र काशी में मोक्षदायनी गंगा का अस्तित्व खतरे में है |इसके लिए प्रकृति नही हम जिम्मेवार है |प्रदूषित गंगा मानवता के हित के लिए कराह रही है और एक भगीरथ का रास्ता देख रही है जो गंगा को मुक्ति दिलाये |हमारे पूर्वजो ने गंगा को माँ कहा |गंगा तट तीर्थ बने ,स्नान ,योग और ध्यान के पीठ बने |भारत के मन ने धरती की गंगा को आकाश में भी बहाने का कौशल निभाया |कृष्ण ने अर्जुन को बताया -पार्थ तारो में आकाश गंगा मैं ही हूँ |धरती की नदियों को आकाश में बहाने का शिल्प भारत का ही प्रज्ञा चमत्कार है |भारतीय पूर्वजो का उद्देश्य गंगा की महता ही बताना था भारत में मन में प्रतिपल गंगा का भाव है |गंगा से जुडा एक विशाल अर्थतंत्र है |तीर्थ है ,तीर्थो से जुड़े व्यापारी और पुजारी है ,मछुवारे है |गंगा से निकलने वाली नहरे है |गंगा एक विपुल क्षेत्र की सिंचाई का साधन है |वर्षा ऋतू की नदी नही है गंगा बारह मॉस हिमखंडो से बहती है ढेर सारी नदियों को आत्मसात करती है |माँ गंगा भारत का काव्य है ,आध्यात्म है अर्थ्य है ,आचमन ,पूजन वन्दन है गंगा |गंगा का परवाह अन्द्ध नाद है |नील टेम्स या डेन्यूब के उदगम स्थलों का दर्शन करने कोई नही जाता ,लेकिन गोमुख का दर्शन भारत में परमलब्धि है |अब तक ऋषिकेश और हरिद्वार तक गंगा जल शुद्ध था ,अब गढ़मुक्तेश्वर तक की यात्रा में इसकी हताशा है ,लेकिन कुमाऊ रूहेलखंड ,मुरादाबाद ,बरेली शाहजहापुर ,हरदोई पार करते गंगा औद्योगिक कचरे के घोल में परिवर्तित होती जा रही है गंगा |गंगा का अविरल प्रवाह देश - काल ,सभ्यता संस्कृति और आस्था अर्थशास्त्र सहित सभी दृष्टियों का आह्वान है |अगर हम सरकारी प्रयासों की बात करे तो हरिद्वार से आगे गंगा की सफाई और इसके पानी को नहाने लायक बनाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने गंगा एक्सन प्लान की शुरुआत की थी |इस परियोजना पर 1984 से अब तक एक हजार करोड़ रूपये खर्च किए जा चुके है ,लेकिन गंगा जल में कोई सुधार नजर नही आता |ऐसा नही है की गंगा के पानी को स्वच्छ नही किया जा सकता है |ऐसा हो सकता है ,लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ -गंगा आम लोगो को भी अपनी इस धरोहर के प्रति संवेदनशील होना पडेगा |राजनीत मौन है |आश्चर्य है की संसदीय व्यवस्था भी इसी प्रश्न पर कोई साकार ध्यानाकर्षण नही कर पा रही है |विश्व व्यापार संगठन प्रायोजित औद्योगिक घरानों से निर्देशित सरकारी तंत्र को जगाने के लिए जनांदोलन ही एक मात्र विकल्प है |कुछ नि:स्वार्थी लोग आगे आये है |प्रत्येक गंगा भक्त के सामने भगीरथ बन जाने का अमृत अवसर है ...................................माँ गंगा को मोक्षदायनी ,जीवनदायनी ,आइये गंगा को फिर वही स्वरूप देने का काम करे जो गंगा का पहले स्वरूप था .....................
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विश्व के प्राचीनतम ज्ञान सकलन ऋग्वेद में गंगा सहित अनेक नदियों से राष्ट्र कल्याण की प्रार्थना है |गंगा भारत की पहचान है ,आस्था और संस्कृति है |मृत्यु के समय दो बूंद गंगाजल की अभीप्सा सनातन है |गंगा राष्ट्र जीवन का स्पंदन है |पवन में ,प्राण में पृथ्वी ,पाताल और परमधाम तक में चेतना की जो तरल संवेदना तैरती है ,गंगा उसी की एक कंठ -मधुर सज्ञा है |देश की 37% सिंचित क्षेत्रफल गंगा बेसिन में है |गंगा के अभाव में समृद्धि ,सांस्कृतिक भारत की कल्पना नही की जा सकती |तेरहवी शताब्दी के महान कवि विद्यापति ने गंगा विनती में कहा था कि दृष्ट्वा ,स्मृत्वा ,स्पृश्य (दर्शन ,स्मरण ,स्पर्श ) से ही गंगा मैया श्रद्दालुओं के मन में आ बसती है |
भारतीय सभ्यता और संस्कृति की प्रतीक गंगा काशी में उत्तरवाहिनी होकर भगवान भोलेनाथ के मस्तक पर विराजमान होकर अर्द्धचन्द्राकार रूप में अपनी मोहनी छटा बिखेर रही है |काशी में गंगा के उत्तर की ओर बहने के निसंदेह: कुछ वैज्ञानिक कारण भी है |गंगा को एक साधारण नदी मान ले तो यथार्थ के धरातल पर स्थूल धौमिकीय कारण पर्याप्त माने जा सकते है |आइंस्टाइन ने यह सिद्ध करने में कोई कसर नही छोड़ी है कि सारी नदियों का मार्ग सर्पिल आकृति गुरुत्वाकर्षण होती है |
लेकिन हिन्दू -मन गंगा को किसी सामान्य सरिता के रूप में न देखता है न जानता है और न मानता है |वृहत्तर सत्य के संदर्भ में उसे सारे वैज्ञानिक कारण सतही और कामचलाऊ लगते है |उसे गंगा में प्राणों का उल्लास दिखाई देता है | बहन का पवित्र प्यार दिखाई देता है ,माँ कि ममता दिखाई देती है और कुल मिलाकर आत्मा के उत्कर्ष कि सीमा दिखाई देती है |वस्तुत:काशी में गंगा के उत्तर -परवाह का प्रश्न विज्ञान से उतना सम्बन्धित नही है जितना आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि से है |काशी में गंगा के उत्तर की ऑर बहने का एक आध्यत्मिक रहस्य है |हजारो साल पहले एक बार महर्षि अत्रि ने ज्ञानवल्क्य से उपासना के संदर्भ में प्रश्न किया |याज्ञवल्क्य ने महर्षि अत्रि से कहा था कि इसके लिए अविमुक्त कहा अवस्थित है ,किस स्थान पर उनकी प्रतिष्ठा है? तब ज्ञानवक्ल्य ने एक गूढ़ उत्तर दिया था -वर्णाया नास्या च प्रतिष्ठित: | अविमुक्ति क्षेत्र कहा जाता है |यह क्षेत्र वरुणा और नास्या अर्थात वरुणा और अस्सी उपनदियो के बीच स्थित है |यही अविमुक्त क्षेत्र काशी है |आज इसी अविमुक्त क्षेत्र काशी में मोक्षदायनी गंगा का अस्तित्व खतरे में है |इसके लिए प्रकृति नही हम जिम्मेवार है |प्रदूषित गंगा मानवता के हित के लिए कराह रही है और एक भगीरथ का रास्ता देख रही है जो गंगा को मुक्ति दिलाये |हमारे पूर्वजो ने गंगा को माँ कहा |गंगा तट तीर्थ बने ,स्नान ,योग और ध्यान के पीठ बने |भारत के मन ने धरती की गंगा को आकाश में भी बहाने का कौशल निभाया |कृष्ण ने अर्जुन को बताया -पार्थ तारो में आकाश गंगा मैं ही हूँ |धरती की नदियों को आकाश में बहाने का शिल्प भारत का ही प्रज्ञा चमत्कार है |भारतीय पूर्वजो का उद्देश्य गंगा की महता ही बताना था भारत में मन में प्रतिपल गंगा का भाव है |गंगा से जुडा एक विशाल अर्थतंत्र है |तीर्थ है ,तीर्थो से जुड़े व्यापारी और पुजारी है ,मछुवारे है |गंगा से निकलने वाली नहरे है |गंगा एक विपुल क्षेत्र की सिंचाई का साधन है |वर्षा ऋतू की नदी नही है गंगा बारह मॉस हिमखंडो से बहती है ढेर सारी नदियों को आत्मसात करती है |माँ गंगा भारत का काव्य है ,आध्यात्म है अर्थ्य है ,आचमन ,पूजन वन्दन है गंगा |गंगा का परवाह अन्द्ध नाद है |नील टेम्स या डेन्यूब के उदगम स्थलों का दर्शन करने कोई नही जाता ,लेकिन गोमुख का दर्शन भारत में परमलब्धि है |अब तक ऋषिकेश और हरिद्वार तक गंगा जल शुद्ध था ,अब गढ़मुक्तेश्वर तक की यात्रा में इसकी हताशा है ,लेकिन कुमाऊ रूहेलखंड ,मुरादाबाद ,बरेली शाहजहापुर ,हरदोई पार करते गंगा औद्योगिक कचरे के घोल में परिवर्तित होती जा रही है गंगा |गंगा का अविरल प्रवाह देश - काल ,सभ्यता संस्कृति और आस्था अर्थशास्त्र सहित सभी दृष्टियों का आह्वान है |अगर हम सरकारी प्रयासों की बात करे तो हरिद्वार से आगे गंगा की सफाई और इसके पानी को नहाने लायक बनाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने गंगा एक्सन प्लान की शुरुआत की थी |इस परियोजना पर 1984 से अब तक एक हजार करोड़ रूपये खर्च किए जा चुके है ,लेकिन गंगा जल में कोई सुधार नजर नही आता |ऐसा नही है की गंगा के पानी को स्वच्छ नही किया जा सकता है |ऐसा हो सकता है ,लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ -गंगा आम लोगो को भी अपनी इस धरोहर के प्रति संवेदनशील होना पडेगा |राजनीत मौन है |आश्चर्य है की संसदीय व्यवस्था भी इसी प्रश्न पर कोई साकार ध्यानाकर्षण नही कर पा रही है |विश्व व्यापार संगठन प्रायोजित औद्योगिक घरानों से निर्देशित सरकारी तंत्र को जगाने के लिए जनांदोलन ही एक मात्र विकल्प है |कुछ नि:स्वार्थी लोग आगे आये है |प्रत्येक गंगा भक्त के सामने भगीरथ बन जाने का अमृत अवसर है ...................................माँ गंगा को मोक्षदायनी ,जीवनदायनी ,आइये गंगा को फिर वही स्वरूप देने का काम करे जो गंगा का पहले स्वरूप था .....................
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteवैचारिक सोच का सृजन ।
aabhaar
Deleteaabhaar
ReplyDeleteHappy Birthday Gifts Ideas Online
ReplyDeleteHappy Valentines Gift Ideas Online
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