Saturday, October 5, 2019

जमात - ए - उलमा -ए हिन्द और उल्माओ के आन्दोलन भाग -तीन

लहू बोलता भी है -

जमात - ए - उलमा -ए हिन्द और उल्माओ के आन्दोलन भाग -तीन

भाग दो से आगे -
ब्रिटिश अधिकारियो के दस्तावेजो से पता चलता है कि मुस्लिम जंगे - आजादी तंजीम के जरिये संघर्ष की रोजाना आवाजे कही - न कही - से उठने लगी , जो की आगे चलकर सन 1857 की जंगे - आजादी की जमीन तैयार करने में काम आई | हर तरफ से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ माहौल बनने लगा | रोजाना यह अफवाह जोर पकडती गयी कि अंग्रेज सभी हिन्दुस्तानियों को ईसाई बनने और मजहब बदलने पर मजबूर कर रहे है | इन बातो का असर हिन्दुस्तानी सिपाहियों और फौजियों के दिलो - दिमाग पर भी पड़ने लगा | उलमाओं के फतवों के जरिये अंग्रेजो के खिलाफ मुसलमानों को लामबंध करना शुरू कर दिया | जब काफी तादात में मुसलमानों ने जंगे - आजादी के लिए अपना मिजाज बना लिया , तब आगे का आन्दोलन चलाने के लिए मौलाना महमुदुल हसन , मौलाना मोहम्मद अली , मौलाना शौकत अली , मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी , मौलाना अब्दुल कलाम आजाद , मौलाना मक्बुलुरह्मान वगैरह ने मिलकर एक आजाद तंजीम गदर पार्टी के नाम से बनाई | थाना भवन मुजफ्फर नगर में एक जलसा हुआ , जिसमे आस पास के मशहूर उलमा इकठ्ठा हुए , इनमे मौलाना हाजी इम्दादुल्लाह महाजिर मक्की , हजरत हाफ़िज़ जामिन अली हजरत मौलाना शेख मोहम्मद मुहद्दिस , हजरत मौलाना कासिम नानोतवी हजरत मौलाना राशिद अहमद गंगोही , हजरत मौलाना अहसान , मौलाना मजहर वगैरह का नाम खासकर लिया जाता है | इस में दो तजाविज पर राय - मशवरा हुआ |
1- अंग्रेजो के खिलाग जंग शुरू करना |
2- जब जंग शुरू होगी तो आन्दोलन की हद में आयेगा या नही |
पहले इशु पर सबकी राय एक थी | दुसरे पर हालत के मुताबिक़ फैसला लेने की बात तय हुई | इसी बैठक में मौलाना कासिम नानोतवी ने इस्लामी रौशनी में बताया कि मुसलमानों और मजहब की हिफाजत के लिए जब तक सभी इलाको के मुस्लिम एक - साथ ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने के लिए तैयारी नही कर लेते , तब तक हमे इन्तजार करना चाहिए | उससे कबल जेहाद का एलान नही करना चाहिए | इस पर मौलाना कासिम नानोतवी ने जबाब दिया कि अंग्रेजो से सभी पहले की संधियों की खिलाफवर्जी करते हुए कई बेगुनाह मुस्लिमो को सूली पर चढा दिया | इन हालात में एक तरफा संधि से बंधे रहने के लिए हम मजबूर नही है | इसलिए हम ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जंग शुरू कर सकते है |

प्रस्तुती - सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक
लहू बोलता भी है - सैय्यद शाहनवाज कादरी - भाग तीन

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