Friday, January 17, 2020

आजादी के पहले दिन रहे भूखे

राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर
आजादी के पहले दिन रहे भूखे
देश का बटवारा हुआ | हालाकी बाहरी दुनिया की घटनाओ के प्रति मैं बहुत सचेत नही था , लेकिन मानसिक रूप से मुझे बहुत दुख पहुचा | जो सयुकत परिवार से आया है , उसे परिवार का टूटना बुरा लगेगा ही | यह देश का टूटना था , इससे तकलीफ होनी स्वाभाविक थी | अनेक लोग कहते है कि सुभाषचंद्र रहते तो इस बटवारे को रोकते | मैं यह तो नहीं कहता की वे बटवारा रोक सकते थे , लेकिन वे प्रबल विरोध जरूर करते | गांधी जी भी इसके विरोधी थे | लेकिन सरदार पटेल , मौलाना आजाद और जवाहर लाल ने ऐसी परिस्थितिया पैदा कर दी थी की सबने विवशता मे बटवारे का विचार किया | अब 15 अगस्त । 1947 को आजादी आई तो अपने दोस्तो के साथ मैं बलिया मे था | उस दिन जलूस निकला था | मेरे साथ थे , गौरीशंकर राय और पारसनाथ मिश्र | शायद विश्वनाथ चौबे भी थे | हम लोग जलूस मे शामिल नही थे | सिर्फ अगल - बगल से देख रहे थे | जब दोपहर हो गयी तो हमे भूख लगी | लेकिन हमारे पास खाने के लिए पैसे नही थे | मैंने सोचा की यह कैसी आजादी आई की पहिले ही दिन भूखा रहना पड़ रहा है | शायद यह एक संकेत था की यह आजादी क्या लेकर आने वाली है | बाद मे हमे किसी मंत्री के एक सचिव मिल गए | बलिया के सुखपुर गाँव के थे ,पारसनाथ जी के परिचित थे | उन्होने पैसे दिये तो हम लोगो ने खाना खाया | जब गांधी की हत्या की गयी तो बड़ी तीव्र प्रतिकृया हुई | लोग हिन्दू महासभा और आर एस एस के सदस्यो पर हमला करने के लिए तैयार थे | हमारे यहाँ डा गुरु हरख सिंह जी थे | वे एक जाने - माने चिकित्सक थे | उन्ही के यहाँ हिन्दू महासभा के नेता महंत दिग्विजयनाथ जी ठह्र्रते थे | उनके घर पर हमला करने के लिए भीड़ जाने वाली थी | गौरीशंकर राय और मुझे यह खबर लगी तो हमने कुछ साथियो के साथ मिलकर यह घोषणा कर दी की किसी के घर पर कोई हमला नही करेगा , हालाकी हम लोग आर एस एस के बहुत खिलाफ थे | इस इलाके मे हम युवाओ का इतना दबदबा या असर था की किसी तरह का कोई हमला नही हुआ | हमारा कहना था की जो लोग हत्या से नही जुड़े है उन पर हमला गलत है | गांधी को जिसने मारा वह होगा कोई आर एस एस वाला , लेकिन उसके लिए आर एसे एस के पूरे समुदाय पर हमला गलत है |

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