Thursday, May 31, 2018

पंक्षी बनू उडती फिरू मस्त गगन आज नया राग हूँ दुनिया के चमन में 1-6-18

जन्म दिन पर विशेष नरगिस
विद्रोही नारी स्वर -प्यार की अभिव्यक्ति
पंक्षी बनू उडती फिरू मस्त गगन आज नया राग हूँ दुनिया के चमन में
कजरारी आँखों में सम्पूर्ण भाव अभिव्यक्ति के साथ मोहक अंदाज में अपनी मुस्कान लिए हिंदी सिनेमा की एक दिलकश व निराली व्यक्तित्व की मलिका नरगिस दत्त का जन्म कलकत्ता शहर में 1 जून 1929 हुआ था |
पिता उत्तम चंद मोहनचंद व माता जद्दन बाई के जन्मी कनीज फातिमा राशिद उर्फ़ नरगिस बचपन से ही डाकटर बनना चाहती थी | पर माँ जद्दन बाई हिन्दुस्तानी क्लासिकल सिंगर थी | नरगिस को बचपन से ही अभिनय का कोई शौक नही था | पर किस्मत के सितारे किस को कहा किस मुकाम पे प्रसिद्धि और अमरत्व प्रदान करता है -- कोई नही जानता |
मात्र छ: वर्ष की उम्र में एक बाल कलाकार के रूप में नरगिस सिनेमा के रुपहले परदे पर सन 1935 में वह फिल्म बनी तलाशे -- हक एक दिन उनकी माँ ने उनसे स्क्रीन टेस्ट के लिए निर्माता एवं निर्देशक महबूब खान के पास जाने को कहा | चूँकि नरगिस अभिनय के क्षेत्र में जाने की इच्छुक नही थी | इसीलिए उन्होंने सोचा कि अगर वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती है तो उन्हें अभिनेत्री नही बनना पडेगा |
पर होनी को तो कुछ और ही करना था | स्क्रीन टेस्ट के दौरान नरगिस ने बड़े अनमने ढंग से संवाद अदायगी की और सोचा कि महबूब खान उन्हें स्क्रीन टेस्ट में फेल कर देंगे लेकिन उनका यह विचार गलत निकला महबूब खान ने 1943 में बनी फिल्म '' तक़दीर '' के लिए बतौर नायिका उन्हें चुन लिया | उस वक्त नरगिस की उम्र मात्र चौदह वर्ष थी | सिनेमा की कमेस्ट्री में फिल्म '' अंदाज में दिलीप कुमार , राजकपूर ,और नरगिस को साइन दर्शको ने खूब सराहा |
उसके बाद भारतीय सिनेमा के रुपहले पर्दे में नरगिस की जोड़ी राजकपूर के साथ सुपर हित रही |
नरगिस ने अपने साइन कैरियर में लगभग 55 फिल्मो में अभिनय किया उनकी बहुत से फिल्मे माइल स्टोन साबित हुई ख़ास तौर पर मदर इंडिया तो भारतीय सिनेमा जगत का मील का पत्थर है | '' चोरी -- चोरी ------ आ जा सनम मधुर चादनी में हम नरगिस जब अल्हड अलमस्त युवती बन कर गाती है पंक्षी बनू उअद्ती फिरू मस्त गगन में तो वो अपने चुलबुले पन का एहसास कराती है |
'' दीदार , आवारा , मेला , अनहोनी , आग , आह , धुन , आग बरसात , लाजवती ,घर - संसार , बाबुल , श्री 420 , जैसे फिल्मो में अपने दक्ष अभिनय का पूरा परिचय दिया जो कभी भी भुला नही जा सकता |
जहा इन फिल्मो में नरगिस ने अपने अभिनय का कौशल दिखाया वही इन फिल्मो के गीतों के माध्यम से अपनी संवेदनशीलता का भी लोहा मनवाया |
'' ये रात भीगी भीगी , प्यार हुआ इकरार हुआ , राजा की आएगी बरात , इचक दाना बिचक दाना दाने उपर दाना , मेरी आँखों में बस गया कोई < अब रात गुजरने वाली है , घर आया मेरा परदेशी , काहे कोयल शोर मचाये ,
कहा जाता है कि राजकपूर नरगिस से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे | जब राजकपूर ने अपनी माँ के सामने इस प्रस्ताव को रखा था उनकी माँ ने साफ़ इनकार कर दिया इस रिश्ते को |
वर्ष 1957 में महबूब खान की फिल्म '' मदर इंडिया '' नरगिस के सिनेमा इतिहास में तो महत्वपूर्ण भूमिका अदा की इसके साथ ही नरगिस के व्यक्तिगत जीवन में मील का पत्थर साबित हुई | '' मदर इंडिया '' की शूटिंग के दौरान आग लगने से नरगिस उस आग में घिर गयी थी उस फिल्म का एक पात्र '' बिरजू '' ( सुनील दत्त ) ने नरगिस को बचाया | इस घटना के बाद नरगिस ने कहा था कि पुरानी नरगिस की मौत हो गयी है और नई नरगिस का जन्म हुआ है | नरगिस ने अपनी उम्र और हैसियत की प्रवाह किये बिना मदर इंडिया के बिरजू ( सुनील दत्त ) से 11 मार्च 1958 को विवाह सूत्र से बांध गयी | और नरगिस से नरगिस दत्त बन गयी | नरगिस दत्त व सुनील दत्त के तीन बच्चे संजय दत्त , प्रिया दत्त , नम्रता दत्त हुए |
शादी के बाद नरगिस दत्त ने फिल्मो में काम करना छोड़ दिया और सामाजिक कार्यो में अपना समय देने लगी | दस वर्ष बाद अपने भाई अनवर हुसैन के कहने पर 1967 में बनी फिल्म '' रात और दिन '' में अभिनय किया | इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरूस्कार से नवाजा गया | हिंदी सिनेमा के इतिहास में यह पहला मौक़ा था जब किसी अभिनेत्री को राष्ट्रीय पुरूस्कार दिया गया था |
नरगिस ने अपने सिनेमा कैरियर में बहुत मान -- सम्मान प्राप्त किया | नरगिस दत्त भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री हुई जिन्हें पद्म श्री से विभूषित किया गया | और उन्हें राज्य सभा का माननीय सदस्य चुना गया |
भारतीय सिनेमा के इतिहास में ऐसी सम्पूर्ण अभिनेत्री बहुत कम ही मिलेगी |
सुनील दत्ता ------ स्वतंत्र पत्रकार व विचारक

Tuesday, May 29, 2018

बड़ा षड्यंत्र कारपोरेट घरानों का 29-5-18

नही लग पा रहा यौन हिंसा पर रोक --

देश के विभिन्न क्षेत्रो में यौन हिंसा की वीभत्स लज्जाजनक एवं डरावनी घटनाए पिछले कई सालो से घटती रही हैं | इन घटनाओं की संख्या और उनकी जघन्यता साल दर साल बढ़ रही है | प्रचार माध्यमि द्वारा दिन प्रतिदिन बच्चियों किशोरियों और महिलाओं के साथ हो रही जघन्य एवं वीभत्स दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म की बढती सूचनाये दिखाई और सुनाई जा रही है |
दुष्कर्मो की बढती घटनाओं को रोकने के लिए अपराधियों को कड़ी सजा देने की माँग भी उठ रही है | इसके फलस्वरूप भी केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिये ''साक्ष्य अधिनियम कानून '' ''अपराधिक कानून प्रक्रिया संहिता " तथा पाक्सो ( बच्चो को यौन अप्रदाह से सरक्षण कानून ) में संसोधन करके उसमे दुष्कर्म बलात्कार के दोषियों को दण्डित करने के लिए कड़े प्राविधानो को जोड़ा गया है | कम उम्र की बच्चियों के प्रति किये गये यौन हिंसा पर फाँसी तक का प्राविधान किया गया है | लेकिन क्या इन व अन्य कठोर कानूनों से दुष्कर्म की घटनाए रुक पाएंगी ? उनमे कमी आ पाएगी ? इसकी उम्मीद कम है | एक तो इसलिए की देश में अपराधो को रोकने के कानूनों को व्यवस्थित ढंग से और कड़ाई से लागू करने का रिकार्ड बहुत खराब है | बच्चो को यौन अपराधो से सरक्षण देने के लिए लागू किये गये 'पाक्सो ' कानूनों के वावजूद यौन अपराधो में निरंतर वृद्धि का उदाहरण हमारे सामने है | इसके अलावा नये सख्त कानूनों के वावजूद यौन हिंसा एवं दुष्कर्म की घटनाओं में कमी न आने की आशंका का दूसरा प्रमुख कारण समाज में फैलता या फैलाया जा रहा 'यौन प्रदुषण ' है | बढ़ते वायुमंडलीय प्रदुषण , जल प्रदुषण खाध्य प्रदुषण की तरह ही समाज की मानसिकता और संस्कृति को विभिन्न रूपों में प्रदूषित किया जा रहा है | इसी प्रदुषण के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की नशाखोरी के प्रदुषण के साथ यौन प्रदुषण के को भी बढ़ाया जा रहा है |

इसका परीलक्षण''सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विभिन्न रूपों में बढ़ रहा है | इस तरह के परीलक्षण समाज में व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता के अधिकार , नारी स्वतंत्रता के अधिकार तथा अन्य पहनावे ओढने के तथा रहन - सहन के स्वतंत्रता के अधिकार तथा स्वतंत्रताओ के बढ़ते अधिकारों के साथ स्पष्टता के साथ होता रहा है | अभी तक माने सामाजिक एवं पारिवारिक नियंत्रण को अराजकतापूर्ण ढंग से छिन्न - भिन्न करते हुए उपरोक्त स्वतंत्रताओ को बढावा दिया जा रहा है | बिना शादी - व्याह के ही व्यस्क युवक - युवतिया को एक साथ रहने की ( लिव इन रिलेश्न्न्शिप की ) कानूनी छुट व स्वतंत्रता दिया जाना भी इसी का परीलक्षण है | बताने की जरूरत नही है कि यह कानूनी स्वतंत्रता एक साथ रहने की ही स्वतंत्रता नही है , बल्कि सामजिक मान्यताओं के विपरीत उच्छ्रीखल यौन सम्बन्धो की स्वतंत्रता भी है |
यौन सम्बन्धो की ऐसी ही स्वतंत्रताओ को समाज में विभिन्न रूपों में बढ़ावा देते हुए सामजिक एवं पारिवारिक सम्बन्धो के चले आ रहे प्राचीन ही नही बल्कि आधुनिक युग के व्यवस्थित ताने - बाने को तोड़ा और नष्ट किया जा रहा है | यौन सम्बन्धो यौन क्रियाओं की प्रचारित समस्याओं और उसके विविध रूपों वाले प्रचारित समाधानों की बाढ़ के साथ साथ सुरक्षित एवं उच्छ्रिखल यौन सम्बन्धो को इलेक्ट्रानिक एवं प्रिंट मीडिया में निरंतर प्रचारित किया जा रहा है | स्थित यह है कि नामी गिरामी समाचार पत्रों के पूरे के पूरे पेज पर ऐसी सूचनाओ को अर्द्धनग्न चित्रों के साथ प्रकाशित किया जाता है | एक ही समाचार पत्र के एक पेज पर दुष्कर्म की घटनाओं की सूचनाए रहती है , किसी दूसरे पेज पर उस घटना पर गंभीर चिंता चर्चा दुःख और उन्हें रोकने की सलाहे रहती है और बाद के किसी पेज पर यौन समस्याओं के समाधान के नाम पर अर्द्धनग्न विज्ञापन एवं प्रचार भरे होते है | इसके अलावा आम उपभोग के तमाम मालो सामानों के प्रचारों पैकजो पर नारियो की दैहिक सुन्दरता और उनके अर्द्धनग्न प्रोग्रामो का दिन रात प्रसारण किया जाता है | सच्चाई को बताने - दिखने के नाम पर पिछले 30 - 40 सालो से उन्मुक्त एवं उच्छ्रीखल यौन सम्बन्धो को लेकर बन रही फिल्मो की बाढ़ आती रही है | खुले यौन सम्बन्धो को बच्चो के साथ यौन सम्बन्धो को खुले आम प्रदर्शित करने वाली वेवसाईट इंटरनेट पर उपलब्द्ध है | आम समाज के पहनावे - ओढ़ावे में खासकर लडकियों के पहनावे में आधुनिक फैशन और फिल्मो के रंग ढंग की अंधा - धुंध नकल को लगातार बढ़ावा मिल रहा है यह खुद अभिवाह्को द्वारा दिया जा रहा है | अगर लड़के आधी बांह की शर्ट जींस फैशनबुल कुरता पजामा या शूट पहन रहे है तो लडकिया बिना बांह वाले काफी नीचे तक कटे वस्त्र पहन रही है | यौन सम्बन्धो पर खुली या कहिये नग्नता पूर्ण चर्चाओं के साथ मर्यादित एवं माने वैवाहिक सम्बन्धो की जगह गैर वैवाहिक यौन स्ब्न्धो को बढ़ावा दिया जा रहा है |

स्त्री पुरुष के बीच यौन आकर्षण और यौन सबंध को नैसर्गिक बताते हुए सदियों से चली आ रही यौन सम्बन्धो की सामाजिक पारिवारिक वर्जनाओं को नकारा जा रहा है | इन सब का परीलक्षण बढ़ते उच्छ्रीखल पूर्णता यौन सम्बन्धो में तथा यौन हिंसा की बढती घटनाओं में होता रहा है | यौन स्ब्न्धो के इन व अन्य प्रचारों व्यवहारों को समाज में बढ़ता यौन प्रदूषण ही कहा जाना चाहिए | पिछले 30-35 सालो में तेजी से बढ़ रही बाजारवादी व्यवस्था के धनाढ्य मालिको सचालको ने असली नकली शुद्द - अशुद्ध आवश्यक - अनाश्यक मालो - सामानों को बाजार का हिस्सा बना दिया है | धुआधार प्रचारों के जरिये जन - जन में उसके प्रति ललक - लालच खड़ा कर दिया है | ऐसे ही सामानों के उपभोग को लोगो के दिलो दिमाग पर चढाया जा रहा है ठीक इसी तरह यौन चर्चाओं एवं सम्बन्धो को विभिन्न रूपों में प्रचारित करके उसे युवा और प्रौढ़ आयु के लोगो पुरुषो - स्त्रियों खासकर नई उम्र के लड़के लडकियों के दिलो दिमाग में बैठाया जा रहा है | तरह - तरह की बढती नशाखोरी के साथ यौन सम्बन्धो का नशा भी दिया जा रहा है | वैश्वीकरणवादी बाजारवादी व्यवस्था की बढती आर्थिक , सामाजिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप जिस तरह आर्थिक राजनितिक क्षेत्र में आर्थिक एवं राजनितिक भ्रष्टाचार कदाचार बढ़ता जा रहा है , उसी तरह इस व्यवस्था के अंतर्गत सामाजिक जीवन में यौन कदाचार एवं यौन हिंसा की समस्याए घटनाए बढती रही है | ध्यान देने की बात यह है कि ये समस्याए विकसित साम्राज्यी देशो के साथ बढ़ते आर्थिक कुटनीतिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धो के साथ बढती रही है | अमरीका इंग्लैण्ड जैसे साम्राज्यी देशो से उनकी पूंजी माल सामान के बढ़ते आगमन के साथ आती रही भोगवादी संस्कृति के अभिन्न अंग के रूप में बढ़ रही है | देश दुनिया के धनाढ्य एवं उच्चवर्गो द्वारा लागू की जा रही है | वैश्वीकरणवादी नीतियों के जरिये बढ़ाई जा रही है | इसके परिणाम स्वरूप समाज का नवयुवक वर्ग अपने पारिवारिक सामाजिक दायित्त्व से उदासीन तथा यौन हिंसा का अपराधी बनता जा रहा है | शिक्षा एवं रोजगार की समस्याओं के विरुद्ध आन्दोलन , संघर्ष करने की जगह नशाखोरी एवं अराजक बनता जा रहा है | इसके अलावा भोगवादी संस्कृति और यौन प्रवृतिया व्यवहारों से वैवाहिक सम्बन्धो के जरिये बना पारिवारिक जीवन का मूल आधार दरकता टूटता जा रहा है | देश दुनिया के उच्च आर्थिक कुटनीतिक हिस्से धर्म , जाति क्षेत्र के विवादों के जरिये सामाजिक एकजुटता को अधिकाधिक तोड़ते जाने के साथ ही पारिवारिक संस्थाए को भी तोड़ने में लगे हुए है | जनसाधारण की किसी भी स्तर की एकजुटता को बाटने - तोड़ने का सुनियोजित प्रयास करते रहे है | निचोड़ के रूप में कहे तो बढ़ता यौन प्रदुषण एवं बढती यौन हिंसा विदेशी पूंजी के बढ़ते आगमन एवं प्रभुत्व वैश्वीकरणवादी बाजार व्यवस्था के फैलाव के साथ आती और बढती रही भोगवादी संस्कृति का अहम् हिस्सा और हथकंडा है | इसे बढ़ावा देने में देश - विदेश के धनाढ्य एवं उच्च वर्ग बड़े स्तर के प्रचार माध्यम और उससे जुड़े विद्वान् बुद्धिजीवी उच्चस्तरीय कलाकार फिल्मकार रचनाकार आदि लगे हुए है | स्वाभाविक बात है कि वैश्वीकरणवादी बाजारवाद के बढ़ते लुट पर साम्राजयी देशो से बनते बढ़ते रहे सम्बन्धो पर रोक व नियंत्रण लगाये बिना यह भोगवादी संस्कृति यौन प्रदूषण व यौन हिंसा को रोकना सम्भव नही है | फिर इस पर रोक लगाने का काम उपरोक्त धनाढ्य एवं उच्च हिस्से नही कर सकते | वे हिस्से स्वंय अपने धन सत्ता के लाभ के लिए उसे बढ़ावा देने में लगे हुए है | इसीलिए उनके द्वारा यौन हिंसा का बहुप्रचारित विरोध दिखावटी एवं निष्प्रभावी विरोध ही साबित होगा | इसके वास्तविक विरोध के लिए जनसाधारण समाज के सवेदनशील और सक्रिय लोगो को ही आगे आना होगा | सामाजिक व्यवस्था को बचाए रखना है और भावी पीढ़ी के सवालों से बचना है तो देश के हर वर्ग के लोगो को जागना होगा , अन्यथा देश गर्त में चला जाएगा |


सुनील दत्ता 'कबीर " स्वतंत्रत पत्रकार - समीक्षक

Tuesday, May 1, 2018

'' हँसने की चाह ने मुझको इतना रुलाया है '' -मन्ना डे 1-5-18

'' हँसने की चाह ने मुझको इतना रुलाया है '' -मन्ना डे




' जिन्दगी कैसी है पहेली , कभी तो हंसाये कभी ये रुलाये '
कभी देखो मन नही चाहे पीछे -- पीछे सपनों के भागे
एक दिन सपनो का राही
चला जाए सपनों के आगे कहा


जीवन के इस फलसफे की अभिव्यक्ति देने वाले मन्ना डे का आज जन्मदिन है |
कलकत्ता महानगर के उत्तरी इलाके का हिस्सा जो एक ओर चितरजन एव्नु और दूसरी ओर स्वामी विवेकानन्द स्ट्रीट से घिरा है | हेदुआ के नाम से जाना जाता है जहा आज भी नूतन के साथ पुरातन के दर्शन होते है | हेदुआ के इस सडक का नाम शिमला स्ट्रीट है -- शिमला स्ट्रीट की एक गली मदन बोसलेन की गलियों की पेचीदा सी गलिया चंद दरवाजो पर पैबंद भरे टाटो के पर्दे और धुंधलाई हुई शाम के बेनाम अँधेरे सी गली से इस बेनूर से शास्त्रीय संगीत के चिरागों की शुरुआत होती है एक भारतीय दर्शन का पन्ना खुलता है और प्रबोध चंद डे ( मन्ना डे ) का पता मिलता है |
1 मई 1920 को श्री पूर्ण चन्द्र डे व महामाया डे के तीसरे पुत्र प्रबोध चन्द्र डे के रूप में जन्म लिया | बाल्यकाल में प्रबोध को लोग प्यार से मन्ना कह के बुलाते थे |
मन्ना दा के घर का माहौल सम्पूर्ण रूप से संगीतमय था | उनके चाचा श्री के सी डे स्वंय बड़े संगीतकार थे इसके साथ ही उस घर में बड़े उस्तादों का आम दरफत था जिसका गहरा असर मन्ना के बाल मन पर पडा उसका असर बहुत ही गहरा था | हेदुआ स्ट्रीट के एक किनारे खुबसूरत झील थी लार्ड कार्व्लिस नाम से और दूसरी ओर स्काटेज क्रिश्चियन स्कूल उसी में इसकी शिक्षा दीक्षा हुई | मन्ना दा अपने कालेज के दिनों में अपने दोस्तों के बीच गाते थे | इसी दरमियाँ इंटर कालेज संगीत प्रतियोगिता हुई उसमे मन्ना दा ने तीन वर्ष तक सर्वश्रेष्ठ गायकी का खिताब अपने नाम कर लिया |
यही संगीत प्रतियोगिता मन्ना डे के जीवन का पहला टर्निग प्वाइंट है | इसके बाद ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी अपने चाचा संगीतकार श्री के सी डे के चरणों मैं बैठकर अपनी संगीत साधना की शुरुआत की और अपने संगीत को दिशा देने लगे |
मन्ना डे के बड़े भाई प्रणव चन्द्र डे तब तक संगीतकार के रूप में स्थापित हो चुके थे | दुसरे बड़े भाई प्रकाश चन्द्र डे डाक्टर बन चुके थे और मन्ना के पिता अपने तीसरे बेटे को वकील बनाना चाहते थे | पर नियति के विधान ने तो तय कर दिया था कि प्रबोध चन्द्र डे को मन्ना डे बनना है |

ताल और लय , तान और पलटे , मुरकी और गमक का ज्ञान उनके प्रथम गुरु के सी डे से मिला | इसके साथ ही विकसित हुआ गीत के शब्दों के अर्थ और भाव को मुखरित करने की क्षमता इसके साथ ही मिला अपने चाचा जी की आवाज का ओज और तेजस्विता , स्वर में विविधता सुरों का विस्तार उन पर टिकने की क्षमता ये सम्पूर्णता मन्ना दा ने अपने साधना से प्राप्त किया | नोट्स लिखने का ज्ञान मन्ना ने अपने बड़े भाई प्रणय दा से प्राप्त किया | इसके साथ ही अपने चाचा के सी डे के साथ संगीत सहायक के रूप में कार्य करते हुए युवक मन्ना के जीवन में एक नई करवट ली 1942 में मन्ना दा बम्बई आ गये और यहाँ के सी दास और एस डी बर्मन को भी असिस्ट करने लगे | अब वो स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशक बनना चाहते थे उन्होंने बहुत सारी फिल्मो में अपना संगीत भी दिया | परिस्थितियों की प्रतिकूलता अक्सर आदमी के इरादों को तोड़ता है युवक मन्ना भी ऐसी मन: स्थिति से गुजर रहे थे |
'' हँसने की चाह ने मुझको इतना रुलाया है ''
हताशा और मायूसी से जूझते हुए मन्ना ने यह सोचा होगा कि वो समय भी आयेगा जब सम्पूर्ण दुनिया में मेरे गाये गीत लोग गुनगुनाएगे |
उन्होंने अपना कार्य करते हुए शास्त्रीय संगीत के उस्ताद अब्दुल रहमान व उस्ताद अमानत अली खान साहब से शात्रीय संगीत सिखने का कर्म जारी रखा |
1953 में मन्ना दा की जीवन में दो टर्निग प्वाइंट आता है वही से ये संगीत का सुर साधक अपनी संगीत की यात्रा पर बे रोक टोक आगे की ओर अग्रसर होता है |
प्रथम प्वाइंट इनका सुलोचना कुमारन से विवाह करना और दूसरा वो संगीत का इतिहास बनाने वाला तवारीख जब वो राजकपूर जी के लिए अपनी आवाज देते है वही से मन्ना दा की एक नई संगीत यात्रा की शुरुआत होती है |
राजकपूर की फिल्म '' बुट्पालिश '' के गीत से जहा मन्ना दा से दुनिया की तरक्की के लिए नई सुबह का आव्हान करते है
'' रात गयी फिर दिन आता है
इसी तरह आते -- जाते ही
ये सारा जीवन जाता है
ये रात गयी वो नई सुबह आई ''
से मानव जीवन में आशावाद की एक नई किरण को जन्म देता है वही पर प्यार का इकरार भी करना जानता है
'' आ जा सनम मधुर चांदनी में हम तुम से मिले वीराने में भी आ जायेगी बहार ''
'' प्यार हुआ इकरार हुआ फिर प्यार से क्यु डरता है दिल ''
गाकर नौजवानों को प्यार की परिभाषा पढाते हुए आगे निकल आते है |
शंकर जयकिशन ने ख्याति लब्ध पंडित भीमसेन जोशी के साथ इनकी संगत भी कराई |

जो प्रसिद्धि मन्ना दा को बंगला फिल्म जगत से मिला वो हिन्दी फिल्म जगत से कम था या अधिक यह कहना बहुत कठिन है | एक सवाल खड़ा होता है कि मन्ना ने बंगला फिल्म जगत को छोड़कर मुम्बई का रुख क्यों किया |
मुंबई आने के बाद ही मन्ना का हर स्वरूप का एक्सपोजर हुआ मन्ना का अगला दौर एक अनोखा दौर था जहा पर मन्ना ने भारतीय भाषाओ में गीत गाये उर्दू में गजल , उडिया , तेलगु , मलयालम , कन्नड़ , भोजपुरी और बंगला भाषाओ में इस विविधता के कारण मन्ना दा को एक न्य फ्रेम मिला | एक और सवाल की पाश्वर गायकी के साथ ही मन्ना दा ने गैर फ़िल्मी गीतों को गाया है | जिसके अंदाज बड़े निराले है
'' सुनसान जमुना का किनारा
प्यार का अंतिम सहारा
चाँदनी का कफन ओढ़े सो रहा किस्मत का मारा
किस्से पुछू मैं भला
अब देखा कही मुमताज को
मेरी भी एक मुमताज थी |
दूसरी तरफ अपने गैर फिल्मो से नारी संवेदनाओं का एक ऐसा दर्शन दिया
'' सजनी -------- नथुनी से टूटा मोती रे
धुप की अगिया अंग में लागे
कैसे छुपाये लाज अभागी
मनवा कहे जाए
भोर कभी ना होती रे

मन्ना डे ऐसे फनकार थे जो कामेडियन महमूद के लिए भी गाते थे और हीरो अशोक कुमार के लिए भी चाहे वो शास्त्रीय संगीत हो या किशोर कुमार के साथ '' फिल्म पड़ोसन '' की जुगल बंदी चाहे वो एस डी बर्मन , रोशन या शंकर जयकिशन सभी ने उनके हुनर को सलाम किया |
मन्ना साहब ने जिन किरदारों के लिए गीत गाये वो किरदार इतिहास के पन्नो पर दस्तावेज बन गये |
फिल्म '' उपकार '' में प्राण ने उसमे मलंग बाबा की सकारत्मक भूमिका की और मलंग बाबा एक गीत गाता है


'' कसमे वादे प्यार वफा सब बाते है बातो का क्या
कोई किसी का नही ये झूठे नाते है नातो का क्या
इस गीत ने प्राण का पूरा किरदार ही बदल दिया और मलंग बाबा हिन्दी सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया |
1971 मन्ना डे को पद्म श्री से सम्मानित किया गया 2005 में पदम् भूषण से नवाजा गया और इस सुर साधक को 2007 में दादा साहेब फाल्के एवार्ड से समानित किया गया | आज ये सुर साधक चिर निद्रा में विलीन हो गया यह कहते हुए

गानेर खाताये शेशेर पाताये एई शेष कोथा लिखो
एक दिन -- आमी झिलाम तार पोरे कोनो खोज नेई |
इस सुर साधक को शत शत नमन
-सुनील दत्ता
स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक