Wednesday, April 20, 2016

महान क्रांतिकारी महावीर सिंह --- 20-4-16

महान क्रांतिकारी महावीर सिंह .............................( लोग भगत सिंह के साथ रहे क्रांतिकारी महावीर सिंह के बारे में शायद कम ही जानते होंगे | महावीर सिंह का जीवन संघर्ष और उसमे उनके पिता का उत्कृष्ट प्रेरणादायक योगदान आज के पिताओं ,पितामहो के लिए भी शिक्षाप्रद है |क्योंकि वर्तमान दौर के पिताओं का लक्ष्य अपने बेटो ,पोतो को धन ,पद -प्रतिष्ठा और पेशो की उंचाइयो पर येन -केन प्रकारेण चढाना हो गया है |अगर महावीर सिंह और उनके पिता जैसे लोगो के त्याग -बलिदान के फलस्वरूप हमारे राष्ट्र व समाज को कुछ अधिकार मिले थे व मिले है ,तो साम्राज्वाद की वर्तमान विश्वव्यापी चढत -बढत और पितामहो व पिताओं तथा बेटे -बेटियों की निरी स्वार्थी मनोदशाए राष्ट्र व समाज के खासकर बहुसंख्यक जन साधारण के वर्तमान व भविष्य को संकटग्रस्त भी जरुर करेगी |) महावीर सिंह का जन्म 16 सितम्बर 1904 के दिन शाहपुर टहला नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था |यह गाँव उत्तर प्रदेश के एटा जिले में है |पिता कुंवर देवी सिंह अच्छे वैद्ध थे और आस -पास के क्षेत्र में उनका अच्छा प्रभाव था |माता श्रीमती शारदा देवी सीढ़ी -सादी एक धर्मपरायण महिला थी |महावीर सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में हुई और उन्होंने हाईस्कूल परीक्षा पास की गवर्मेंट कालेज एटा से | बगावत की भावना महावीर सिंह में बचपन से ही मौजूद थी और राष्ट्र -सम्मान के लिए मर -मिटने की शिक्षा उन्होंने अपने पिता से प्राप्त की थी |घटना जनवरी सन 1922 की है |एक दिन कासगंज तहसील (जिला एटा ) के सरकारी अधिकारियों ने अपनी राजभक्ति प्रदर्शित करने के उद्देश्य से अमन सभा का आयोजन किया | जिलाधीश , पुलिस कप्तान ,स्कूलो के इंस्पेक्टर ,आस -पड़ोस के अमीर -उमरा राय बहादुर ,खान बहादुर आदि जमा हुए | छोटे -छोटे बच्चो को भी जबरदस्ती ले जाकर सभा में बिठाया गया |उनमे महावीर सिंह भी थे |लोग बारी -बारी उठकर अंग्रेजी हुकमत की तारीफ़ में लम्बे -लम्बे भाषण दे रहे थे |तभी बच्चो के बीच से किसी ने जोर से से नारा लगाया 'महात्मा गांधी की जय '!बाकी लडको ने भी उसके स्वर मिलाकर ऊँचे कंठ से समर्थन किया 'महात्मा गांधी की जय '! देखते -देखते गांधी विरोधियो की वह सभा गांधी की जय जयकार के नारों से गूंज उठी |जांच के फलस्वरूप महावीर सिंह को विद्रोही बालको का नेता घोषित कर दिया गया |सजा भी मिली पर उससे उनकी बगावत की भावना और भी मजबूत हो गयी | 1925 में जब वे कालेज पढने के लिए कानपुर आये तो असहयोग आन्दोलन सम्पात हो चुका था लेकिन देश की जनता के दिलो की आग ठंठी नही हुई थी |चारो ओर असंतोष की आग सुलग रही थी |स्वत:स्फुरित संघर्षो के रूप में किसानो की बगावते जारी थी |मजदुर तथा मध्यम वर्ग के लोग भी अपने -अपने तरीको से लड़ रहे थे |नौजवानों की क्रांतिकारी टोलियों ने फिर से हथियार उठा लिए थे |परिस्थितियों ने महावीर सिंह को अछूता नही छोड़ा |कालेज में क्रांतिकारी दल से उनका सम्पर्क हुआ और वे उसके सदस्य बन गये | उसी दौरान महावीर के पिता जी ने उनकी शादी तय करने के सम्बन्ध में उनके पास पत्र भेजा |पत्र पाकर वे चिंतित हुए |क्रांतिकारी साथियो से सलाह मशविरा किया |फिर उसी अनुसार पिता जी को राष्ट्र की आजादी के लिए क्रांतिकारी संघर्ष पर चलने की सूचना देते हुए शादी -व्याह के पारिवारिक संबंधो से मुक्ति देने का आग्रह किया |चन्द दिनों बाद पिता का उत्तर आया |उन्होंने लिखा कि '' मुझे यह जानकर बड़ी ख़ुशी हुई कि तुमने अपना जीवन देश के काम में लगाने का निश्चय किया है |मैं तो समझता था कि हमारे वंश में पूर्वजो का खून अब नही रहा और उन्होंने दिल से गुलामी कबूल कर ली है |तुम्हारा पत्र पाकर आज मैं अपने को बड़ा भाग्यशाली समझ रहा हूँ |शादी की बात जहा चल रही थी ,उन्हें जबाब लिख दिया है |निश्चिन्त रहो ,मैं ऐसा कोई काम नही करूंगा जो तुम्हारे मार्ग में बाधक हो | देश कि सेवा का जो मार्ग तुमने चुना है वह बड़ी तपस्या का और बड़ा कठिन मार्ग है लेकिन जब तुम उस पर चल ही पड़े हो तो पीछे न मुड़ना ,साथियो को धोखा मत देना और अपने बूढ़े पिता के नाम का ख्याल रखना | तुम जहा भी रहोगे मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है ..............तुम्हारा पिता .देवी सिंह क्रांतिकारी गतिविधियों में लगातार लगे रहे महावीर सिंह लाहौर में बुरी तरह बीमार पड़े |वे संग्रहणी व पेचिश से परेशान थे |कुछ भी हजम नही हो पा रहा था |साथियो ने राय दी कि कुछ दिनों के लिए एटा चले जाओ |तुम पर तो वारेंट नही है |ठीक हो जाने पर वापस चले आना |महावीर ने साथियो से कहा कि -क्या पिता जी कि चिठ्ठी उन्हें याद नही है |उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि पीछे मुडकर मत देखना उसमे घर का माया -मोह आदि सब शामिल था और उन्होंने वे शब्द बहुत सोच -समझ कर लिखे थे |फिर साथियो से हंस कर बोले -चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा |इसी बीच लाहौर में पंजाब बैंक पर छापा मारने कि योजना बनी |पहले दिन साथी बैंक पर भी गये |लेकिन महावीर सिंह को जिस कार द्वारा साथियो को बैंक से सही -सलामत निकाल कर लाना था वही ऐसी नही थी कि उस पर भरोसा किया जा सकता |अस्तु भरोसे लायक कार न मिलने तक के लिए योजना स्थगित कर दी गयी |तभी लाहौर में साइमन कमिशन आया |'साइमन कमिशन वापस जाओ " के नारों के साथ काले झंडे के एक विराट प्रदर्शन से उसका स्वागत किया गया |फिर अंधाधुंध लाठिया बरसी ,लाला जी आहात हुए और कुछ दिनों में उनकी मृत्यु हो गयी |यह राष्ट्र के पौरुष को चुनौती थी और क्रान्तिकारियो ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया |बैंक पर छापा मारने कि योजना स्थगित कर दी गयी और लाला जी पर लाठिया बरसाने वाले पुलिस अधिकारी को मारने का निश्चय किया गया |उस योजना को कार्यान्वित करने में भगत सिंह आजाद तथा राजगुरु के साथ महावीर सिंह का भी काफी योगदान था | vol 1 साडर्स की हत्या के बाद महावीर सिंह फिर अस्वस्थ रहने लगे |लाहौर का पानी उनके स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नही पड़ रहा था |उधर लाहौर का वातावरण भी काफी गरम था |सुखदेव ने उन्हें संयुक्त प्रांत (उत्तर - प्रदेश ) वापस जाने की सलाह दी |आगरा का पता उनके पास नही था ,इसलिए वे कानपुर चले गये और चार दिन सिसोदिया जी के पास छात्रावास में रहे |फिर इलाज के लिए अपने गाँव पिता जी के पास चले गये |आज एक गाँव तो कल दूसरे गाँव आज एक सम्बन्धी के यहा तो कल किसी दूसरे सम्बन्धी या मित्र के यहा |इस प्रकार रोज जगह बदलकर पिताजी से इलाज करवाने में लग गये कि जल्द -से -जल्द स्वस्थ होकर मोर्चे पर वापस जा सके |सन 1929 में दिल्ली असेम्बली भवन में भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त द्वारा बम फेके जाने के बाद लोगो की गिरफ्तारिया शुरू हो गयी और अधिकाश: क्रांतिकारी पकडकर लाहौर पहुचा दिए गये |महावीर सिंह भी पकडे गये |पुलिस या जेलवालो से किसी -न किसी बात पर आये दिन क्रान्तिकारियो का झगड़ा हो जाता था |उस समय वे लोग मोटे- तगड़े साथियो को चुन लेते थे और सबका गुस्सा उन पर उतारते |इस प्रकार हर मारपीट में भगत सिंह ,किशोरी लाल ,महावीर सिंह ,जयदेव कपूर ,गया प्रसाद आदि कुछ मोटे -तगड़े साथियो को बाकी के हिस्से की मार खानी पड़ती थी |जेल में क्रान्तिकारियो द्वारा अन्याय के विरुद्ध 13 जुलाई ,1929 से आमरण अनशन शुरू किया गया |दस दिनों तक तो जेल अधिकारियों ने कोई विशेष कार्यवाही नही की |उनका अनुमान था कि यह बीस -बीस बाईस -बाईस साल के छोकरे अधिक दिनों तक बगैर खाए नही रह सकेंगे |लेकिन जब दस दिन हो गये और एक -एक कर साथी बिस्तरों पर पड़ने लगे तो उन्हें चिंता हुई |सरकार ने अनशनकारियो कि देखभाल के लिए डाक्टरों का एक बोर्ड नियुक्त कर दिया था |अनशन के ग्यारहवे दिन से बोर्ड के डाक्टरों ने बलपूर्वक दूध पिलाना आरम्भ कर दिया |महावीर सिंह कुश्ती भी करते थे और गले से भी लड़ते थे ||जेल अधिकारी को पहलवानों के साथ अपनी कोठरी की तरफ आते देख वे जंगला रोकर खड़े हो जाते |एक तरफ आठ -दस पहलवान और दूसरी तरफ अनशन के कमजोर महावीर सिंह |पांच -दस मिनट की धक्का -मुक्की के बाद दरवाजा खुलता तो काबू करने की कुश्ती आरम्भ हो जाती |एक दिन जेल के दो अधिकारी को आपस में बात करते सुना कि 63 दिनों के अनशन में एक दिन भी ऐसा नही गया जिस दिन महावीर सिंह को काबू करने में आधे घंटे से कम समय लगा हो |डाक्टर के साथ भी ऐसी ही बीतती थी | महावीर सिंह ने शत्रु की अदालत को मान्यता देने से इनकार कर दिया था |लाहौर षड्यंत्र केस केअभियुक्तों के प्रचार से घबड़ाकर केस को जल्द -से जल्द समाप्त कर देने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने 1930 के आरम्भ में एक अध्यादेश जारी किया जिसका नाम था 'लाहौर षड्यंत्र केस आध्यादेश ' |इसे 1930 का तीसरा अध्यादेश भी कहा गया था |आध्यादेश के अनुसार लाहौर हाईकोर्ट के तीन जजों का एक ट्रिब्यूनल नियुक्त कर मजिस्ट्रेट की अदालत से केस उठाकर नयी अदालत को सुपुर्द कर दिया गया |नयी अदालत को यह भी अधिकार था कि उसकी निगाह में जब भी अभियुक्त दोषी प्रमाणित हो जाए ,तो बाकी गवाहों की गवाहिया लिए बगैर वही पर केस की सुनवाई समाप्त कर वह अपना निर्णय दे सकती थी |इस अदालत के विरुद्ध कही भी अपील नही हो सकती थी |अदालती सुनवाई के दौरान महावीर सिंह तथा चार अन्य साथियो ने (कुंदन लाल ,बटुकेश्वर दत्त ,गयाप्रसाद और जितेन्द्रनाथ सान्याल ) एक बयान द्वारा अपने उद्देश्य की व्याख्या करते हुए कहा की वे शत्रु की अदालत से किसी प्रकार के न्याय की आशा नही करते है |यह कहकर उन्होंने अदालत को मान्यता देने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने से इनकार कर दिया था | महावीर सिंह तथा उनके साथियो का यह बयान लाहौर षड्यंत्र केस के अभियुक्तों की उस समय की राजनितिक एवं सैद्दानतिक समझ पर अच्छा प्रकाश डालता है |बयान के कुछ अंश इस प्रकार थे : ".....................हमारा यह दृढ विश्वास है की साम्राज्यवाद लुटने -खसोटने के उद्देश्य से संगठित किए गये एक विस्तृत षड्यंत्र को छोडकर और कुछ नही है |साम्राज्वाद मनुष्य द्वारा मनुष्य का तथा एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को धोखा देकर शोषण करने की नीति के विकास की अंतिम अवस्था है |साम्राज्यवादी अपने लूट -खसोट के मंसूबो को आगे बढाने की गरज से केवल अपनी अदालतों द्वारा ही राजनितिक हत्याए नही करते वरन युद्ध के रूप में कत्ले -आम विनाश तथा अन्य कितने वीभत्स एवं भयानक कार्यो का संगठन करते है |ऐसे लोगो को ,जो उनकी लूट -खसोट की माँगों को पूरा करते है या उनके तबाह करने वाले घृणित मंसूबो का विरोध करते है ,गोली से उड़ा देने में वे जरा भी नही हिचकिचाते |'न्याय तथा शान्ति का रक्षक ' होने के बहाने वे शान्ति का गला घोटते है ,अशांति की सृष्टि करते है ,बेगुनाहों की जाने लेते है और सभी प्रकार के जुल्मो को प्रोत्साहन देते है | हमारा यह विश्वास है कि मनुष्य होने के नाते हर व्यक्ति आजादी का हक़दार है ,उसे कोई दुसरा व्यक्ति दबाकर नही रख सकता |हर मनुष्य को अपनी मेहनत का फल पाने का पूरा अधिकार है और हर राष्ट्र अपने साधनों का पूरा मालिक है |यदि कोई सरकार उन्हें उनके इन प्रारम्भिक अधिकारों से वंचित रखती है तो लोगो का अधिकार है -नही ,उनका कर्तव्य है की ऐसी सरकार को उलट दे ,उसे मिटा दे |चूँकि ब्रिटिश सरकार इन वसूलो से ,जिन के लिए हम खड़े हुए है बिलकुल परे है इसलिए हमारा दृढ विश्वास है कि क्रान्ति के द्वारा मौजूदा हुकूमत को समाप्त करने के लिए सभी कोशिशे तथा सभी उपाय न्याय संगत है |हम परिवर्तन चाहते है -सामाजिक ,राजनितिक तथा आर्थिक ,सभी क्षेत्रो में आमूल परिवर्तन |हम मौजूदा समाज को जड़ से उखाडकर उसके स्थान पर एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते है कि जिसमे मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण असम्भव हो जाए और हर व्यक्ति को हर क्षेत्र में पूरी आजादी हासिल हो जाए |हम महसूस करते है की जब तक समाज का पूरा ढाचा ही नही बदला जाता और उसकी जगह पर समाजवादी समाज की स्थापना नही हो जाती तब तक दुनिया महाविनाश के खतरे से बाहर नही है .vol 2 रही बात उपायों की -शांतिमय अथवा दुसरे -जिन्हें हम क्रांतिकारी आदर्श की पूर्ति के लिए काम में लायेंगे |हम कह देना चाहते है की इसका फैसला बहुत कुछ उन लोगो पर निर्भर करता है जिसके पास ताकत है |क्रांतिकारी तो फायदा चाहने के सिद्धांत पर विश्वास करने के नाते शान्ति के उपासक है -सच्ची और टिकने वाली शान्ति के जिसका आधार न्याय तथा समानता पर है ,न की कायरता पर आधारित तथा संगीनों की नोक पर बचाकर रखी जाने वाली शान्ति के | बयान के अन्त में कहा गया गया था ,'हम पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का अभियोग लगाया गया है |हम ब्रिटिश सरकार की बनाई हुई किसी भी अदालत से न्याय की आशा नही रखते और इसलिए हम न्याय के नाटक में भाग नही लेंगे |" केस समाप्त हो जाने पर सम्राट के खिआफ युद्ध और सांडर्स की हत्या में सहायता करने के अभियोग में उन्हें उनके सात अन्य साथियो के साथ आजन्म कारावास का दंड दिया गया |सजा के बाद कुछ दिनों तक पंजाब की जेलों में रखकर बाकी लोगो को (भगत सिंह राजगुरु सुखदेव और किशोरी लाल के अतिरिक्त )मद्रास प्रांत की विभिन्न जेलों में भेज दिया गया |महावीर सिंह और गयाप्रसाद को बेलोरी (कर्नाटक राज्य के अंतर्गत ) सेंट्रल जेल ले जाया गया | वे 1930 -31 के सत्याग्रह के दिन थे और बेलारी जेल स्याग्रही बन्दियो से भरा था |जेल में इन दोनों साथियो ने कैदी नम्बर की तख्ती सीने पर लटकाने ,टोपी पहने ,परेड के दौरान सर पर बिस्तरा आदि रखकर खड़े होने से इनकार कर दिया | जेलर अपने समय का मुक्केबाज था |वह सिपाहियों से उन्हें खड़ा करवाता ,फिर हर एक पर दस -दस ,पन्द्रह -पन्द्रह तक मुक्केबाजी का अभ्यास करता |जेलर ने वाडर से कहकर महावीर सिंह की कोठरी खुलवाई |वाडरो ने महावीर सिंह को बाहर लाकर जेलर के सामने खड़ा कर दिया और उसने मुक्केबाजी शुरू कर दी |उस दिन महावीर सिंह के हाथो में हथकड़ी नही थी |उन्होंने एक झटके से अपना दाहिना हाथ छुडा लिया और जेलर के मुँह पर इतनी जोर से घुसा मार दिया की हाथ -पैर बंधे कैदियों पर घुसेबाजी का अभ्यास करने वाले उस बुजदिल जेलर का बहादुर कैदियों पर मुक्केबाजी समाप्त हो गयी |हालाकि इसके बाद दंड महावीर सिंह को तीस बेतों की सजा झेलनी पड़ी |हर बेत की सजा के साथ टिकटिकी पर बंधे महावीर सिंह 'जिंदाबाद 'के नारे लगाते रहे |उनके पीठ की खाल उधडती रही ,पर उनके नारे तीव्रतर होते गये |तीस की गिनती पूरी होने पर वहा खड़े अस्पताल के लोगो ने उन्हें टिकटिकी से उतारा और स्ट्रेचर पर डालकर अस्पताल ले जाना चाहा |लेकिन महावीर सिंह ने स्ट्रेचर पर लेटने या किसी का सहारा लेने से इनकार कर दिया |उन्होंने जेलर की ओर देखकर जेल को क़पा देने वाली आवाज में एक बार फिर नारा लगाया और उन्नत भाल टहलते हुए अपने अहाते चले गये |जेलर भी सर झुकाए धीमी गति से चुपचाप अपने दफ्तर की ओर चल दिया -जैसे बेत महावीर सिंह को नही उसकी को लगे हो |जनवरी 1933 में उन्हें उनके कुछ साथियो के साथ मद्रास से अण्डमान (काला पानी )भेज दिया गया |उन दिनों अण्डमान जेल की हालत बड़ी खराब थी |वहा इंसान जानवर बनाकर रखा जाता था |अस्तु सम्मानजनक व्यवहार ,अच्छा खाना ,पढने -लिखने की सुविधाए ,रात में रौशनी आदि की मांगो को लेकर सभी राजनितिक बंदियों ने 12 मई,1933 से अनशन आरम्भ कर दिया |उससे पूर्व इतने अधिक बन्दियों ने एक साथ इतने दिनों तक कही भी अनशन नही किया था |अनशन के छठे दिन से ही अधिकारियों ने बलपूर्वक दूध पिलाने का कार्यक्रम आरम्भ कर दिया |vol 3 आधे घण्टे की कुश्ती के बाद दस -बारह व्यक्तियों ने मिलकर महावीर सिंह को जमीन पर पटक दिया और डाक्टर ने एक घुटना उनके सीने पर रखकर नली नाक के अन्दर चला दी |उसने यह देखने की परवाह नही की की नली पेट में न जाकर महावीर सिंह के फेफड़ो में चली गयी है |अपना फर्ज पूरा करने की धुन में पूरा एक सेर दूध उसने फेफड़ो में भर दिया और उन्हें मछली की तरह छटपटाता हुआ छोडकर अपने दल -बल के साथ दूसरे बन्दी को दूध पिलाने चला गया |यह घटना 17 मई 1933 की शाम की है |महावीर सिंह की तबियत तुरंत बिगड़ने लगी |कैदियों का शोर सुनकर डाक्टर उन्हें देखने वापस आया लेकिन उस समय तक उनकी हालत बिगड़ चूकि थी |उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहा देर रात के बारह बजे के बाद आजीवन लड़ते रहने का व्रत लेकर चलने वाला हमारा अथक क्रांतिकारी देश की माटी में विलीन हो गया |अधिकारियों ने चोरी -चोरी उनके शव को समुद्र के हवाले कर दिया |आगे चलकर उस अनशन में दो और क्रांतिकारी मोहित मित्र और मोहन किशोर शहीद हुए |महावीर सिंह के कपड़ो में उनके पिता का एक पत्र भी मिला था |वह पत्र उन्होंने महावीर सिंह के अण्डमान से लिखे उक्त पत्र के उत्तर में लिखा था | पत्र का सारांश कुछ ऐसा है "इस टापू पर सरकार ने देशभर के जगमगाते हीरे चुन -चुनकर जमा किए है |मुझे ख़ुशी है की तुम्हे उन हीरो के बीच रहने का मौक़ा मिल रहा है |उनके बीच रहकर तुम और चमको ,मेरा तथा देश का नाम अधिक रौशन करो ,यही मेरा आशीर्वाद है "| आज जिस आजादी का उपभोग हम कर रहे है उसकी भव्य इमारत की बुनियाद डालने में महावीर सिंह उन जैसे कितने अज्ञात क्रान्तिकारियो ने अपना रक्त और माँस गला दिया था |किसी देश में महावीर सिंह जैसे बहादुर देशभक्त और उनके पिता जैसी आत्माए रोज -रोज जन्म नही लेती |उनकी यादगार हमारे गौरवपूर्ण इतिहास की पवित्र धरोहर है |क्या हम उसका उचित सम्मान कर रहे है ? --"भगत सिंह के साथी क्रांतकारी शिव वर्मा की संस्मृतियो से | पिता का उपरोक्त पत्र महावीर सिंह द्वारा लिखे पत्र के उत्तर के रूप में आया था |महावीर सिंह का पत्र 'भगत सिंह एवं साथियो के दस्तावेज में मौजूद है |उसको हम संक्षिप्त रूप में दे रहे है | पूज्य पिताजी ! पोर्टब्लयेर (अंडमान ).....प्यारे भाई का क्या हाल है ...इसकी सुचना मुझे शीघ्र दीजिएगा |उसे केवल वैद्ध ही बनने का उपदेश न देना ,बल्कि साथ -ही साथ मनुष्य बनाना भी बतलाना |आजकल मनुष्य वही हो सकता है जिसे वर्तमान वातावरण का ज्ञान हो ,जो मनुष्य के कर्तव्य को जानता ही न हो परन्तु उसका पालन भी करता हो |इसलिए समाज की धरोहर को आलस्य तथा आरामतलबी तथा स्वार्थपरता में डालकर समाज के सामने कृतघ्न न साबित हो |इससे शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार की उन्नति करता रहे ,क्योकि दोनों आवश्यक है |शारीरिक पुष्टि अन्न तथा व्यायाम से तथा मानसिक अध्ययन से |उसे आजकल के वातावरण का ज्ञान करने के लिए समाचार पत्र तथा एतिहासिक ,साम्पत्तिक तथा राजनैतिक ,सामाजिक पुस्तको का अवलोकन (अध्ययन ) को कहिये |समाज से मेरा मतलब आर्य समाज अथवा अन्य संकीर्णताव्य्जक समाज नही है ,परन्तु जनसाधारण का है |क्योंकि ये धार्मिक समाज मेरे सामने संकीर्ण होने के कारण कोई भी मूल्य नही रखते है और साथ ही इस संकीर्णता तथा स्वार्थपरता तथा अन्यायपूर्ण होने के कारण सब धर्मो से दूर रहना चाहता हूँ और दुसरो को भी ऐसा ही उपदेश देता हूँ (और )उसको सबसे बढकर तथा मनुष्य तथा समाज का (के लिए )कल्याणकारी समझता हूँ वह है "मनुष्य का मनुष्य तथा प्राणी -मात्र के साथ के कर्तव्य बिना किसी जाति-भेद ,रंग भेद धर्म तथा धन भेद के "|....................आपका आज्ञाकारी पुत्र महावीर सिंह .....(सेलुलर जेल ,पोर्टब्लयेर (अंडमान ).

Tuesday, April 19, 2016

प्रधान मंत्री जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कूड़ा निस्तारण की समस्या 19-4-16

प्रधान मंत्री  जी  के  संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कूड़ा निस्तारण  की  समस्या

वाराणसी के रमना में कूड़ा डम्पिंग आस पास के गावों के एक लाख लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है .यह स्थान  बी एच यू से मात्र  3 किलोमीटर , संत रविदास मंदिर से 1 किलोमीटर और गंगा तट से 300 मीटर  की  दूरी  पर  है. बाढ़  का डूब क्षेत्र  होने  के कारण यहाँ बाढ़  के  दिनों  में 8-14 फीट तक पानी आ जाता है , ऐसे में कूड़ा बह कर आगे गांवों और रहायशी इलाकों तक पहुच जाता है तथा बाढ़  घटने पर वापस यही कूड़ा गंगा में भी मिलता है.

2007 में उत्तर प्रदेश जल निगम द्वारा गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अंतर्गत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रमना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए अधिगृहीत भूमि का आज कूड़ा डंपिंग के लिए प्रयोग किया जा  रहा है, जबकि भूमि अधिग्रहण कानून की व्यवस्था के ताहत  अधिग्रहीत भूमि का उसी कार्य  के  लिए  प्रयोग  किया  जाना  चाहिए  जिस कार्य  के  लिए  उसका  अधिग्रहण किया गया हो, सवाल  यह है कि जब सीवेज ट्रीट मेंट प्लांट  स्थापित नही  हुआ तो  भूमि का  हस्तांतरण कूड़ा डंपिंग के लिए नगरनिगम  को कब किया गया  , क्या इसके लिए स्थानीय और प्रभावित होने वाले लोगों से सहमति ली गयी थी.

रमना के बड़े  भूभाग में कई फीट ऊँचे कूड़े की पटान हो चुकी है , निकलने वाली मीथेन गैस  में स्थान स्थान पर  लगी  आग से  दुर्गन्ध युक्त धुवाँ और  गैस  निकल कर आसप  आपस के लोगों पर दुष्प्रभाव छोड़ रही है, पशु पक्षी, खेती, बाग़ बगीचे सब प्रभावित हैं , लेकिन कोई पुरसाहाल नही है . कूड़े की ढेर पर गायें और अन्य पशु पोलिथीन खा रहे है कभी कभार कूड़े की आग में फस जाने से उनकी मौत भी  हो  जा रही  है, कूड़े से वस्तुएं बीनने वाले बच्चे भी इसी माहौल में अपनी आजीविका के लिए जान जोखिम में डाले  इस स्थान पर दिखाई देते हैं . पोलिथीन उड़ उड़ कर आस पास में लोगो की छतों पर इकठ्ठा हो जाती है. स्थानीय लोगों के अनुसार इलाके में सांस, हृदय और त्वचा सम्बन्धी रोगी बढ़े हैं. 

शहर के इतने समीप कूड़ा डम्पिंग करना और दुष्प्रभाव को कम करने का कोई वैज्ञानिक तरीका न अपनाया जाना अंत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.
 
वाराणसी में पर्यावरण की प्रति सचेत कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं  द्वारा कुछ संस्थाओं और संगठनों के साथ मिल कर शहर की कूड़े की स्थिति पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ की गयी है जिसमे सभी पहलू को लेने की कोशिश की जायेगी. इस प्रयास में आई आई टी बी एच यू के मालवीय उद्यमिता संवर्धन केंद्र , साझा संस्कृति मंच, केयर फॉर एयर अभियान आदि सदस्य शामिल हैं.   



वल्लभाचार्य पाण्डेय
सामाजिक कार्यकर्त्ता
साझा संस्कृति मंच , वाराणसी
91-9415256848

शव साधना ------ मार्कण्डेय

जीवन के यथार्थ को कलमबद्ध करने का अपना ही सलीका होता है |
मार्कण्डेय जी ने अपनी कहानियो में जो सहजता अपनी लेखनी से ढाला है | उसके चलते कहानी को आम आदमी भी बड़ी ही आसानी से समझ सकता है समाज के विसंगतियो को ........................
शव साधना
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घूरे बाबा ने साफी को कमंडल से पानी गिरा कर भिगोया , फिर उसे निचोड़ कर झटकारा और बाए हाथ की हथेली पर फैलाकर अपनी कमरी पर आ बैठे |
घेचू कंडे की आग को अभी मुंह से धधका ही रहा था कि बाबा जोर से खाँस कर चिल्ला पड़े , बम भोले ! '' आवाज दूर -- दूर तक आसमान को छूकर झर पड़ी | पास की बस्ती में कुत्ते झाँव -- झांव -- आँव ...... करके एक स्वर से रोने लगे और चिक -- चिक .किरर . की आवाज करता हुआ चिडियों का एक झुण्ड झरबेरी में हुर्रर से उड़ा और फिर लौट कर वही आ बैठा |
रात का तीसरा पहर |
माघ -- पूस की थारी और चुडइनियो के भीट की झरबेरी के घने , काले झाड |
बाबा इसी में एक दिन चरवाहों को समाधिस्थ मिले थे और उनके इस विस्मय -- जनक अवसारण की बात आग की तरह चारो ओर फ़ैल गयी थी |
' भगवान का एक रूप ही समझो , बाबा को ! घेचू रोज लौट कर सुखी से कहता और बिना कुछ खाए -- पिए खटिया में धँस जाता |
सुखी को पता है कि बाबा लोगो के घरो से आये मोहनभोग और दूध के कटोरे अपने चेलो को देकर कभी -- कभी धुनी की राख ही घोल कर पी लेते है | उसका आदमी लँगोटी फिचता है बाबा की | उसे सिद्धि मिल जायेगी , कुछ दिनों में | पर अभी सिद्धि , इसी उमिर में ! साल ही भर तो हुए मेरे गवने के और अभी न लड़का , न बच्चा | साधू -- सन्यासी की सोहबत बहुत अच्छी नही , जाने क्या मारन -- मोहन कर दे , सुखी को चिंता हो आई |
बाबा न कंकड़ की नन्ही चिलम को हाथ की उंगलियों और होठो में लपेट कर ऐसे खीचा कि कंकड़ दीये की लौ की तरह जल उठा |
फिर झुंझलाए -- से संड्से को उठा कर उन्होंने धुनी में दो बार मारा और आसन से एक कमरी उठा कर पीठ पर डाल ली | शरीर सहित से गनगना रहा था | कंकड़ की गरमी आज जैसे माथे से उतर ही नही रही थी | झबरा धुनी से सता घेचू के पैरो के पास मुँह किये ऊँघ रहा था | बाबा इधर - उधर मेल्हते रहे , फिर संड्से को उठा कर धुनी की आग में डाल दिया | जब संड्सा लाल हो गया , तो उन्होंने उसे उठाया और अपनी पिंडलियों के रोये जलाने लगे | फिर एकाएक चीख पड़े , बम भोले ! बम भोले ! पर घेचू जैसे मिनका ही नही और झबरा आँखे मुलमुला कर रह गया | उधर कुत्ता पे - पे करता भागा और इधर पदमासन लगा कर अकड गये | घेचू हाथ जोड़ कर , ' महाराज -- महाराज कहता हुआ कापने लगा |
सेवक से कोई खता हो गयी भगवान ?
' बालक , मन में कही चोर है तेरे ! तन
तो तूने साहब को दे दिया , पर मन तिरिया में बसा है तेरा ... तिरिया विनाश
का घर है | माया से अब छुट्टी ले घेचू , नही तो अब तू साहब का है , उसके
दरबार में आना आसान है , पर जाना मुश्किल है ! ' बाबा बोलते जा रहे है , पर
घेचू की आवाज बन्द हो गयी है | गरम् संड्से में कुत्ते की चमड़ी उचक आई है
और अब धुनी की धधकती आग में जल कर बदबू कर रही है | बाबा का राख में लिपटा
नगा शरीर ठुठ की तरह धरती में गडा है | हर क्षण वह कडा पड़ता जा रहा है |
लोहे की सख्त ठनक - सी उनकी बात धरती को फोड़ कर कर निकलती -- सी लगती है |
घेचू की दुनिया कुम्हार की चाक की तरह तेज चक्कर काट रही है |
' यह मैं
नही बोल रहा , मैं नही ..... ! बाबा नेवले की तरह गर्दन निकालते है और
विस्फारित नेत्रों से घेचू की ओर देख कर कहते है , ' वह चुड़ैल , डाइन ,
कलंकिनी , कुलच्छिनी , कुलटा .......' क्षण भर को वह एका - एक
रुकते है , पर आँखे एकटक घेचू की आँखों में गडी है | फिर कुछ और जोर से तड़क कर बोलते है , ' ले यह आग का अँगीठी अपनी मुठ्ठी में !
घेचू की हथेली आग से सट जाती है , अजीब सी बदबू , पर घेचू टस - से मस नही होता |
' सात समुन्दर पर साहब के देश में तेरा महल बन गया | बोल , सत्त गुरु की !
' इतने धीरे से बोलता है ? ' और एक गरम् सड्सा उसकी पीठ पर चिपक गया | घेचू चिल्ला पडा |
' सत्त गुरु की , महराज ? सत्त गुरु की ! '
'
तूने मेरे कहने पर तिरिया का त्याग तो कर दिया , पर वह साहब की है , उसे
साहब को दे दे ! धरोहर साधू कभी नही धरता | पर साहब भी क्यों लेगा उसे ,
साहब भी .....| ' बाबा चीख उठे , ' वह इस समय उस बनमानुस गडरिये के साथ सो
रही है ! '
' सच महराज ? ' घेचू जैसे होश खोता जा रहा था |
' और
नही तो क्या झूठ बोलेगा , साधू ? यह दिव्य -- दृष्टि सब देख रही , चल --
अचल , सब | देख -- देख , वह दोनों गुल्छरे उड़ा रहे है , हाँ हाँ हाँ $$$ ! '
बाबा की अंगुलिया संकेत के लिए उठी रही और घेचू की आँखे अँधेरे की चट्टान
से टक्कर मारती रही | तभी बाबा ने धुनी से सड्सा निकालकर घेचू के हाथ में
थमाते हुए कहा , ले इसे बालक ! " उनकी आवाज चढती जा रही थी , ' यह साहब का
हथियार है | उसकी पीठ पर इससे एक दाग बना कर उसी के हाथ साहब का दंड वापस
कर और वहा बैठ कर उसके लौटने का इन्तजार कर | परम प्रसाद तेरे पास पहुँच
जाएगा | यह धुनी उसके पापो को जला कर छार कर देगी | इस अँधेरे पर साहब की
सवारी है , घेचू! "
घेचू अगिया -- बैताल की तरह अँधेरे में खो गया |
घूरे बाबा ने गरदन इधर - उधर झटकारी | हाथो को ढीला किया और कमर में बंधी
मूँज की मोटी रस्सी की हुण्डीदार गाँठ खोल दी |
घूरे बाबा की धुनी बुझ गयी , --- दूसरे दिन सुबह गाँव वालो के मुंह पर यही बात थी |
--- शरम की बात है हमारे गाँव के लिए | हम लोग कल लकड़ी नही जुटा सके |
'
बाबा कहते है , कोई राज -- विग्रह होगा या महामारी फैलेगी | तेज की अग्नि
कैसे बुझ गयी ? तुम लोग नादाँन हो , जो लकड़ी की कमी की बात सोच कर पछता
रहे हो | इस धुनी में तो माटी जलती है , हवा जलती है , आकाश जलता है ,
पांचो तत्व जलते है , जिसे यह गुरु का सड्सा छू दे , वही जलकर छार हो जाता
है | घूरे बाबा घूमकर महिला दर्शनार्थियों की ओर देखते है |
- पुत्र की कामना .........! बुझी हुई , भारे -- भारे -- सी , भूखी ...
--- पति की कामना ! .... चपल , लोलुप , पियासी ....
धन की कामना ! उदास , रसहीन , मुर्दा ...
रोग मुक्ति की कामना ! ..... बीमार , पिली -- पिली
बाबा
उखड जाते है | पद्मासन को और भी चुस्त बना लेते है और अपनी नाभि पर दृष्टि
जमा , सुन्न हो जाते है | सब लोग हाथ जोड़ लेते है | --- गये समाधि में
बाबा !
प्राय: ऐसा ही होता है | बाबा बोलते -- बोलते चुप हो जाती है |
धीरे -- धीरे झरबेरी का वह अदभुत निकुन्ज सूना हो जाता है | बस , सडसे के
दाग से पीठ पर लाल -- लाल , लम्बी पट्टी की तरह घाव लिए झबरा और हाथो में
साधू की धुनी का प्रसाद सम्भाले घेचू : गदोरिया फूल कर गुब्बारा हो रही है |
गहरे बुखार में शरीर झुलस रहा है , जैसे जड़ काट कर कोई हरा -- भरा पेड़
जमीन में गाड दिया गया हो और सूरज की तेज रौशनी में उसकी पत्तियाँ , कोमल
टहनिया मुरझा कर लटक गयी हो | साधू इसी को कहते है , जब वह ठुठ की तरह सुख
जाए , धरती से रस - ग्रहण करना बन्द कर दे |
कल की सुबह बाबा ने
सुखी को पहली बार देखा था -- काली भुजंग , बड़ी -- बड़ी आँखों वाली , सलोनी
तिरिया , छरछरा , धनुष की तरह लचीला बदन , साँप की तरह चिकनाई .. और वह
क्या नही देख सकते थे , घूरे बाबा ठहरे , कोई मामूली सन्यासी तो नही | उनके
जलते हुए अंतर में सुखी के मोहक रूप और नशीली आँखों ने आग का सुजा घुसेड
दिया था |
बाबा दिन भर बेचैन रहे | उनके सीने में असख्य चीटिया काट रही
थी और बार -- बार उन्हें अपने गुरु का ध्यान हो आता था , साधू के लिए कुछ
असम्भव नही | वह जो चाहे कर सकता है |
घूरे बाबा का प्रयोग भी सफल हुआ |
घेचू कल रात भुत की तरह दौड़ता हुआ घर पहुँचा था | सुखी चौखट से उठेगी , पैर फैलाए , मोहनी की तरह मदन के लिए जाग रही थी |
हवा
के सर्द झोके सुखी के सीने में आज गुदगुदी पैदा कर जाते थे , इसीलिए पुवाल
की गर्मी में सोकर वह आज की रात भी खोना नही चाहती थी | बाबा के यहाँ कल
सुबह पहली बार गयी थी | पुत्र भी बाबा की कृपा से मिल सकता है | पूरे चार
महीने का बदला वह आज लेती घेचू से , सन्यासी की सोहबत आज उसे खल रही थी ,
लेकिन सहसा इस बालक सन्यासी के हाथ में सड्सा देख कर वह चौकी पड़ी थी | काली
मकोय -- सी पुतली आँखों की विस्तृत सफेदी नाच उठी थी ! क्षण -- भर को
घेचू सहमा था ... पर सात समन्दर पार साहब के देश में तुम्हारा महल बन गया
... देख , देख वह गुलछरे उड़ा रही है ..... और सामने बैठी सुखी के बाल घेचू
की मुठ्ठियों में आ गये थे , निशान तो उसे ....
धुनी की आग ही नही ,
कंकड़ की चिलम भी ठंठी पड़ गयी थी उस रात | बाबा का रोम -- रोम गरमाई से
टहक गया था | नस -- नस में चिपक गयी थी | पाप जल कर छार हो गये थे |

आज घेचू मन मारे बैठा है | लोगो के उठकर जाते ही बाबा का ध्यान भंग हो गया और वह कंकड़ की चिलम अपने हाथ ही से खुर - चने लगे है |
' खालिस गाँजा कभी पीया है , घेचू ? रात -- रात भर भजन के लिए तपसी सुखा गाँजा पीते है ' |
' नही , किरपानिधान ! '
' तो आज पियो | धोकर बानाता हूँ गाँजे को ' |
' अपने हाथ से , प्रभु ! लोक में हँसी होगी ! '
बाबा हँसे ' लोक ' में ? . साधू का कोई लोक नही होता | ' और थैली से गाँजे का चिप्पड़ निकाल कर हथेली पर मलने लगे |
'
तेरी तो गदोरी ही ले ली साहब ने , लेकिन वह बहुत कुछ देगा इसके बदले ,
घेचू , बहुत कुछ | सुदामा के दो मुठ्ठी चावल खा कर | ...... बाबा ने चिलम
भर ली और दो बार हवा में झुला कर घेचू के आगे करते हुए कहा , ' तू ही लगा
भोग ! अब थोड़ी ही कसर है तेरे जती होने में ! '
' नही महराज , हम तो चरन -- सेवक है ! ' घेचू के होठ सुख रहे थे और बुखार की ज्वाला में सारा शरीर ताप रहा था |
सूरज की रौशनी झरबेरी की छत पर पसरी हुई थी और कही -- कही किरने निकुंज को बेध रही थी | झबरा अपनी दोनों टांगो पर गरदन फैलाए बाबा का मुँह ताक रहा था | घेचू की दृष्टि रह - रह कर उसकी पीठ के उचरे हुए चमड़े पर टिक जाती थी और सुखी की बड़ी -- बड़ी आँखों का दुःख , क्रोध और विस्मय -- भरा निश्चय . वह अपने मन को दबा कर गाँजे की चिलम हाथ में लेता है , लेकिन मुठ्ठी बंधे तब न ! एह हाथ से चिलम पकड कर हल्की -- सी फूंक लेता है और चिलम बाबा को फेर देता है | बाबा सुररर करके खीचते है | चिलम उलटते है , गाँजा रखते है , फिर खीचते है - लगातार चार चिलम ! फिर घेचू की हथेली अपने हाथो में लेकर फटी -- फटी आँखों से देखते रह जाते है | सहसा सुखी का चेहरा उन्ही हथेलियों में उग आता है और उनका सारा शरीर तमतमा कर अकड जाता है | नारी भोग है ! उन्हें अपने गुरु का ध्यान हो आता है और वह उत्फुल होकर चीखने लगते है , ' सत्त गुरु घेचू ! सत्त गुरु की ............!
घेचू किसी तरह अपने पपडियाहे होठ खोलता है , ' सत्त गुरु की ....|
' आज गढ़ी की बारी है , न घेचू ? ' बाबा पहली बार खाने की बात पूछते है , ' अच्छा भोग आता है उनके यहाँ से | रतनजोत आती ही होगी नौकरों के साथ ! '
' हाँ महाराज , बड़े पुण्यात्मा है , मालिक ! '
' मालिक कहता है बुद्धू , जती हो कर ? मालिक तो अब तू है , तू !'
बाबा की अंगुलियाँ अब घेचू के मुंह के पास पहुँच गयी है | तू चाहे तो रतनजोत तेरी दासी बन जाए , दासी ! '
क्या कहते है प्रभू ! '
' सच कहता हूँ , बुद्धू ! तिरिया और भूय पौरूख की है , पुरुख की ! ' बाबा और कुछ कहते -- कहते रुक जाते है , उन्हें अपनी बीबी का ख्याल हो आया है | -- साहब किस तरह उसे आफिस भेजकर खुद बँगले ही में रुक जाया करते थे और बार -- बार दौरे पर जाने वाले लोगो के साथ उसे भेज दिया करते थे | वह तो उस दिन गाडी छूट जाने के कारण घर लौटा , तो कोठरी में ताला बंद | दूसरे दिन उसे जान से खत्म करा देने की तैयारी , अपनी ही बीबी की सलाह से | लेकिन वाह रे घूरे बाबा ! उनके चेहरे पर प्रतिहिंसा की धूप छिटक आई है | रतनजोत तुम्हे कलेवा लेकर आती है | बड़े -- बड़े घर की तिरिया तुम्हारे तलवे की धुल पोछ कर सन्तान की भीख मांगती है | बाबा इधर -- उधर देखते है | अभी रात की तेल गरम् करने वाली कटोरी धुनी के पास ही पड़ी है | और गर्व पुल -- कित सड्सा
लकड़ी की एक गाँठ के सहारे सीना ताने उठ्घा है | बाबा रात उसे तोड़ कर फेंक देना चाहते थे .... पर सुखी ?
---- अहोभाग्य महाराज , दासी की अर्ज है यह !
बाबा संड्से को उठाकर लकड़ी की झवाई गाँठ को ठोकने लगे | आग की छुरिया छूटने लगी और एक से दूसरी , तीसरी बनती गयी | घेचू आँख उठाकर उपर देखता है , बेल की पत्तिया झुलस चली है और हवा के चलने से कभी -- कभी टूट कर गिर पड़ती है |
घूरे बाबा का यह अनोखा मठ लोक -- प्रसिद्ध है | उनके महातम की कहानिया कही जाती है और एक नही पचीसो उन कहानियों के चश्मदीद गवाह मिल जाते है , जो हर बात को अपने ही आगे हुई बताते है |
बाबा रात को चुडइनिया के तालाब के उपर पलत्थी मार कर बैठ जाते है और डाईने उनके पाँव पखारती है | नही तो थी किसी की हिम्मत उधर झाँकने की रात को ! गढ़ी का छोकरा घोड़ा समेत वही डर कर मर गया | डाईने उसके कलेजे का खून चूस कर पी गयी | अब तो रतन -- जोत रात -- बिरात नौकरों को ले कर बाबा का भोग लगाने पँहुच जाती है |
सुखी रात मठिया में होती है और औरत भक्तो को साधारण मनाही कब रोक सकी है ! बाबा को विघ्न का डर है , इसलिए उन्होंने अपने तेज की वृद्धि के लिए शव -- साधना की भयानक क्रिया प्रारम्भ कर ली है |
बाबा आजकल शव -- साधना कर रहे है | रोज रात मुर्दहवा घाट जा , मुर्दे की लाश पकड कर मन्त्र का जाप करते है | दारु से नहाते है | मुर्दे के माँस का भक्षण करते है | रात को भक्त्त मठिया पर नही जाते |
सवेरे कभी आदमी की खोपड़ी , कभी हाथ -- पाँव की सुखी हड्डी झरबेरी के कोने में पड़ी मिलती है | लोग दंग ! इस त्रिकालदर्शी बाबा का एक वाक्य कुछ -- का कुछ कर सकता है | बड़े -- बड़े ठाकुरों के नौजवान लड़के पेड़ की मोटी -- मोटी सिल्लिया जोराई से ढोते है | बड़े घरो की स्त्रिया बाबा की एक बात के लिए , उनके चरणों की एक धूल कण के लिए तरसती रहती है | दूर -- दूर के लंगड़े -- लूले अपाहिज आते है और बाबा की धुनी की ख़ाक से चंगे होकर लौट जाते है | सूरज डूबते ही डाकिनी का आवाहन होता है और घेचू आसमान की ओर मुंह उठा जोर से तुरही फूंकता है | लोग सन्न हो जाते है | डर के मारे औरते कापती , अपने बच्चो के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है |
--- अब कोई सिवान में कदम नही रखेगा | मठिया में प्रेत -- साधना करते है , बाबा ! नही तो इतना जस कैसे रहे ! रात को बस बम भोले ----- बम भोले ---- सत्तगुरु की , आवाज सुनाई पड़ती है |
सुखी निखर आई है | कमर की हड्डिया थोड़ी - चौड़ी हो गयी है | आँखों के नीचे का अस्थि -- भाग चिकना हो गया है |
समय के खेल में आदमी कैसा बदल जाता है | सुखी थोड़ा झुक कर चलती है |
मदिरा का भभका चलता है उसके घर | खाने -- पिने की क्या चिंता | दूध से मलाई छान कर नीचे का दूध बाबा के आगे टाल देती है और बचा -- खुचा हलुआ घेचू और कुत्ते को | बाबा उससे डरते है | स्त्रियों को भभूत देते हुए , सुखी पर निगाह पड़ते ही उनका हाथ कापने लगता है , पसीना छूटने लगता है | साहब का चिमटा अब घेचू के हाथ में रहता है | भोग की थाली अब वही ग्रहण करता है | ऐरे -- गैरे रोगियों को अब घेचू के हाथ की भभूत ही चंगा कर देती है | बस , विश्वास नही है तो एक रतनजोत को उस पर और घूरे बाबा यही चाहते है और सुखी बाबा और घेचू दोनों खूब जान गयी है |
झरबेरी के पत्ते पीले होकर गिर गये है | बस , डाले और नुकीली टहनिया , जिनमे काँटे | चाहे फिर नई पत्तियाँ आये और यह दैवी गुंबद ढक जाए उनसे , पर अभी तो इसकी चुभन बनी हुई है |
सुखी चुभ रही है अब , घेचू को भी , जो संन्यास का भोग भोगना सीख गया है , शव -- साधना और माया की खुमारी को समझ गया है और --- रतनजोत तो तेरी दासी हो सकती है , दासी ! --- बाबा की बात उसे याद है और बाबा को भी , जो रतनजोत को अगले जनम के वैधव्य से मुक्ति दिलाना चाहते है |
' रतन , साहब पिछले जनम में तेरे उपर नाराज था , चार जनमो तक लगातार तुम्हे वैधव्य भुगतना है ! बाबा एक दिन रतनजोत से कह रहे थे | पर उसके मठ से बाहर निकलते ही , ' तेरे साहब के बच्चे की ! ढोंग रचता है ! ' सुखी के भरपूर झापड़ से बाबा की दाढ़ी के कुछ राख -- मिश्रित बाल उधड गये थे | घेचू जल्दी -- जल्दी तुरही फूकने लगा था , कही कोई आ ना जाए ! और आधे रास्ते आये लोग लौट गये थे |
--- शव -- साधना ! शव -- साधना ! प्रेतों का वास हो गया मठिया में |
आदमी छड कर मर जाएगा ! बाबा ने तो चुडइनिया की डाईनो को वश में कर लिया है |
फागुन की चुहल दरवाजे पर आ खड़ी हुई है | फसल के मारे सिवान बोझिल हो रहा है | जिसके दो मन होता था , वह दस मन तौल रहा है और बाबा के प्रताप की दुहाई दे रहा है |

--- सच्चे सन्त का यही गुन है | मुठ्ठी -- भर दो तो दौरी भर पाओ ! इस बार ठाकुर जग्य करेंगे | बहुत बड़ा भंडारा दिया जाएगा | मठिया के तहद एक बहुत बड़ा ठाकुर द्वारा बनेगा | गाँव -- गाँव चन्ना जुट रहा है | पर बाबा रुपिया को हाथ से नही छूते|
जती डरता है माया से | धन्य है घूरे बाबा ! ' सुखी लोगो से कहा करती है |
ठाकुर परीक्षा लेंगे , सुखी की बात की ! रतनजोत चांदी का रुपया धरेगी बाबा की कमरी के नीचे | लेकिन सब सुखी की राय से होगा | बाबा के मठ में सुखी के बिना पत्ता भी नही हिल सकता | इस लिए तुरही बजते ही सुखी अपने बालो को कन्धे से आगे ले आकर लपेटती है , भैरवी बनती है | धुनी की आग खरोंच कर धधकाती है और तडक कर बोलती है , ' सत्त गुरु की ! '
बाबा भी सत्त की कहते है , पर धीरे -- से क्योकि सुखी की आँखे लाल हो रही है | अभी -- अभी रतनजोत का हाथ अपने हाथ में लेकर आगामी जीवन से वैधव्य की कहानी फिर से सुनाते हुए उसने बाबा को देख लिया है | बाबा भोग से भी वंचित है सारे दिन |
' जोर से बोल , साहब ! ' सुखी दहांडती है |
' सत्त गुरु की ! ' बाबा की आवाज कापती है और बाये हाथ से सुखी घेचू को झोक देती है ' तुरही फूंक , तुरही ! '
घेचू उठ कर चला गया , तो सुखी ने तडक कर कहा , ले यह अगीठा हाथ में | तेरी परिच्छा है कल ! '
हाँ? साधू के बच्चे , साधू की ! '
बाबा की मुठ्ठी कस जाती है , ओह मालिक ! ' वह चिल्ला पड़ते है तो सुखी कहती है , ' तेरे ही लाभ के लिए है यह | कल रतनजोत एक चाँदी का रुपया धरेगी तेरी कमरी के नीचे ! तू उस पर बैठते ही हाथ झटकारते हुए चिल्ला पड़ना , --- जल गया ! जल गया ! माया ने डस लिया ! अच्छा , भूलना नही ? जोगी हाथ से धन नही छूता और तू तो ईस्सर का अवतार है , इस जवार के लिए | ईस्सर से भी बड़ा , जो मरे हुए को जिला देता है | '
अग्नि -- परीक्षा ने साधू के यश के तम्बू को और उंचा तान दिया है , पर वह घोर ताप में दह रहे है | बाबा को बुखार है ! अचम्भे की बात है ! सुखी तलवे सहलाती है , अजवाइन पिस कर माथे पर चढाती है | लोगो को दर्शन के लिए मना करती है |
' प्रेत से लड़ाई हुई है बाबा की | मानुस ने कही से झाँक कर देख लिया है | साहब नाराज है | शव -- साधना का यही सब तो खतरा है | घेचू महा -- साधना के लिए समुद्र को चला गया | ' सुखी लोगो से कह कर सुबक -- सुबक कर रोती है |
ररोइया चिरई रात -- भर मठिया पर रोती है | गेदुर कीच - कीच करते है और उल्लू अँधेरे के बाण की तरह निर्जन आकाश का सीना चीरते चले जाते है | महारानी सुखी के पाँव बेहद थरथराते है , जैसे पांवो का खून ही चूस लिया हो प्रेत ने | चेहरा पीला पड़ गया है |
चुडइनिया के मठ से , बम भोले , अथवा सत्त गुरु , की आवाज नही सुनाई पड़ती | अब वहा रात के अँधेरे में बाबा सुखी की जांघो पर सिर रखकर , उसकी कमर में हाथ डाले घटो रोते है , ' आखिर गढ़ीवाले कब तक रतनजोत के भागने की बात छिपाएंगे | एक - न एक दिन घेचू के साथ उसके भागने का पता ............|
सुखी अपने तेल में डूबे बाल आँखों से परे करके बाबा की आँखों में देखती है | आँसू चू- चू कर बाबा के जटा -- मंडल में समा जाते है |
' अब थोड़े ही दिन बाकी है | '
' थोड़े ही दिन ? ' बाबा चौकते है |
' हाँ कभी दर्द भी होता है | चलते हुए पाँव कापते है | '
' तो कल कैंची लाना न भूलना | यह लम्बी जटा तो भागने भी न देगी | '
' ठाकुर -- द्वारे का चंदा तो तुम्हारे ही पास --- बस उसे बाँध लेना |
कही दूर देश चलेंगे , सुखी ! "
बात बात पूरी भी नही होती बाबा की और सुखी उनके जटा -- मंडित सिर को बाँहों में घेर कर कस लेती है |..........

Sunday, April 10, 2016

समय - द्वार पर इतिहास की दस्तक ------- अहा ! जिन्दगी के सम्पादकीय से सम्पादक आलोक श्रीवास्तव्

साभार ---

अहा ! जिन्दगी के सम्पादकीय से सम्पादक आलोक श्रीवास्तव्
समय - द्वार पर इतिहास की दस्तक
भारत इतिहास के एक नये मुहाने पर खड़ा है | 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई | 1947 में उसका काम खतम हो गया था | 1925 में हिंदुत्व के विचारों पर आधारित राजनीतियो का एक नया आविर्भाव आर एस एस के रूप में हुआ , भविष्य में जनसंघ और भाजपा जिसकी राजनितिक अभिव्यक्तिया बनी | इतिहास की इकहरी व्याख्या और उसकी उतनी गहरी पीड़ा से हिंदुत्व की यह राजनीति जन्मी थी | उसका उत्स साम्प्रदायिकता और हिटलर - मुसोलीन के फासीवाद में नही , अतीत में पराजित हिन्दू राजसत्ताओ की दुखद स्मृतियों में था | हाँ , बाद में प्रशाखाए साप्रदायिकता और हिटलर - मुसोलीन तक भी गयी | 1992 के बाबरी ध्वंस और 2014 के आम चुनाव इसके नजरिये से इसकी उपलब्धिया तो है , पर अंतिम सीमाए भी | एक तरह से इस राजनीति का भी यह समापन - पर्व है | कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म भी 1925 में हुआ | मार्क्स या लेलिन को यदि यह अवसर मिलता कि भारत में इस पार्टी की राजनितिक - समाजिक समझ और विमर्श को और बाद में राजनीतिक लाइनों के आधार पर हुए विभाजनो को देख - समझ पाते तो उनके पास अपना सर पीटने को छोड़कर शायद कोई काम बचता | भारत की सारी वामपंथी राजनीति नीतिगत रूप से रूस और चीन के राष्ट्रीय स्वार्थो की अनुगामी होकर रह गयी | भारतीय दार्शनिक परम्पराओं और जनता के जीवन से ऊर्जा नही ग्रहण कर सकी | और अपने आरम्भ से ही अपने अंत की कहानी लिखने में लग गगई |
इस प्रकार तीन विचारधाराए , तीन राजनितिक दल हिन्दुस्तान के जन जीवन के क्षितिज पर उभरे और अपनी - अपनी सकारत्मक - नकारात्मक भूमिकाये निभा कर अब एक अंत पर खड़े है -- आज से नही अनेक सालो से , पर दुराग्रह बने रहने का है | इस दुराग्रह को खाद - पानी भारत की उस मध्यमवर्गीय जनता से मिलता रहा है , जो कभी इनमे अपनी आर्थिक स्थितियों को बेहतर होता देखती है , तो कभी अपनी रुढियो की सलामती देखती है , अपने विश्वासों , मान्यताओं ही नही अपनी जातीय पहचानो और एक उहापोह में लिपटे से मानसिक जगत को बना रह पाती है |
इस थोड़े से राजनितिक व्योरे का सन्दर्भ यह है कि आज भारत जहा खड़ा है , वहा उसे एक नई राजनीति चाहिए | भारत को एक नया समाज चाहिए | और यदि क्रान्ति की बात करे , तो भारत को नई क्रांति चाहिए | राष्ट्रवाद की बाते करे , तो भारत को एक नया राष्ट्रवाद चाहिए | भारत की केन्द्रीय सत्ता पर भारत के नागरिक समाज का शासन चाहिए --- एक ऐसे नागरिक समाज का शासन , जो यह समझ रखता हो कि भारत आज भी गाँवों का देश है , और इसकी सम्पूर्ण सामाजिक सरचना में बदलाव की जरूरत है | इतिहास ने भारत को बार - बार यह सिखाया है कि वह दुनिया के उन राष्ट्रों में से है जो अपने कैसे भी वर्तमान को अपनी इच्छाशक्ति से पलटने की सामर्थ्य रखता है | यह भारत का 19 वी सदी का भारत नही है , 20 वी सदी के आरम्भ और अंत का तो दूर - यह 21 वी सदी के आरम्भ का भारत भी नही है | यह भारत जाग रहा है , करवटे बदल रहा है और अब उठ खड़ा होना चाहता है |
परिवर्तन की आहटे दसो दिशाओं से है देश के समस्त सामाजिक जीवन और सामाजिक ढाँचे पर है | ग्लोब्लाईजेशंन का झुनझुना बज कर थम चुका है | विकास के पहिये अवरुद्द है | झूठे नारों का इस साइबर स्पेस से लम्बा जीवन नही चल सकता | गाँव - शहर - कस्बे में जिन्दगी यदि बदली नही भी है , तो बदलना चाहती है | जन असंतोष को दिशा नही मिली है तो भी उसे दिशा की तलाश है और जरुरत भी | परम्परागत राजनीति की चूले हिल चुकी है | भले वही नेता , वही दल जीतकर संसद और विधानसभा में पहुच रहे है | यह बात सिर्फ इसकी सूचक है की जनता अपना चुनने का अधिकार छोड़ना नही चाहती , इसीलिए वे चुने जा रहे है , न कि इसलिए कि वह उन्हें ही चुनना चाहती है | नये नेता किसी अन्तरिक्ष से नही आयेगे | किसी करिश्मे से भी नही और विलक्ष्ण व्यक्तित्व के किसी अनूठेपन से भी नही | वे आयेगे उन सवालों और मुद्दों से जिनसे भारत की जनता अब न तो बच सकती है , न जिन्हें वह अब अनदेखा कर सकती है और न जिनके आगे घुटने टेक सकती है | एक नया भारत बन रहा है | भारात का इक नया मनोविज्ञान बन रहा है | इस मनोविज्ञान को एक नई राजनीति गढ़नी ही पड़ेगी |
आधुनिकता , लोकतंत्र , समता , सामाजिक नवीनीकरण , जहा देश के आन्तरिक मोर्चे है , वही वैश्विक स्तर पर इस भारत को अपनी स्वतंत्र आर्थिक सत्ता का निर्माण करना होगा , जो बुरी तरह से ताकतवर देशो के हितो में उलझकर रह गयी है | इस सबके लिए युवा पीढ़ी को एक गहरी सांस्कृतिक और बौद्दिक तैयारी की दरकार है | यह बदलता हुआ समय हर किसी से सवाद करना चाहता है , और साक्षी होना भी |

Thursday, April 7, 2016

असेम्बली में बम विस्फोट - ---- 8-4-14

जानना है कि इन क्रांतिवीरो ने असेम्बली में बम क्यों फेंका

असेम्बली में बम विस्फोट --
हि.सो.रि.ए ने अपनी कार्यवाही का दूसरा स्थल केन्द्रीय असेम्बली को चुना | असेम्बली में मजदुर वर्ग के बढ़ते हुए आन्दोलन के विरुद्द ट्रेडर्स डिसप्युस बिल ( औद्योगिक झगड़े सम्बन्धी विधयेक) और ' पब्लिक सेफ्टी बिल ' ( जन सुरक्षा विधेयक ) पर बहस हो रही थी | मार्च 1929 में सरकार ने एस.ए डांगे , मुजफ्फर अहमद , स.वि.घाटे और मजदुर वर्ग के 29 दूसरे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था | इसके द्वारा अंग्रेज विरोधी जन - संघषो की दूसरी बाढ़ में , जो उस समय आती दिख रही थी , राष्ट्रीय शक्तियों के किसी भी भाग को मजदूर वर्ग के निश्चयात्मक और गैर समझौतावादी नेतृत्व में जाने देने की सम्भावना को ब्रिटिश सरकार खत्म कर देना चाहती थी | सारा देश इस पर क्षुब्ध था | सरकार के इन कदमो के खिलाफ हि.सो.रि.ए ने असेम्बली में बम विस्फोट कर आम जनता के इस विरोध को एक तीव्र रूप से व्यक्त करना चाहा | एसोसिएशन के सदस्य अपनी तय की हुई तारीख से पहले , सरकारी सदस्यों के बैठने के प्रबंध की जानकारी प्राप्त करने के लिए दर्शको की.हैसियत से एक - एक करके असेम्बली भवन में गये थे |
8 अप्रैल 1929 को वायसराय इन दोनों बिलों को जारी करने की घोषणा असेम्बली में करने वाला था . हालाकि बहुमत ने इन दोनों विधेयको के खिलाफ राय दी थी | हि.सो.रि.ए ने उस दिन का काम भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के जिम्मे किया था | दोनों बड़ी आसानी से दर्शको की गैलरी में जाकर बैठ गये | जैसे ही सर जार्ज शुस्टर ने वह घोषणा की . भगत सिंह अपनी कुर्सी से उठे और योजना के अनुसार होम मैम्बर ( गृह सदस्य ) की बेंच के पीछे की ओर एक बम फेंका . जिससे कि असेम्बली के अध्यक्ष श्री बिठ्ठल भाई पटेल और पंडित मोतीलाल नेहरु को जो पास ही बैठे थे . चोट न लग सके | भगत सिंह के बम विस्फोट की कर्णभेदी धाय से सदस्य और दर्शक गण सम्भल ही पाए होगे कि बटुकेश्वर दत्त ने दूसरा बम फेंका |
असेम्बली भवन धुएं से भर गया | '' इन्कलाब जिंदाबाद ! '' ब्रिटिश साम्राज्यवाद -- मुर्दाबाद '' और दुनिया के मजदूरो --- एक हो ! '' के नारे लगाते हुए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने हि.सो.रि.ए के पर्चे बाटना शुरू किया | बच निकलना आसान था , लेकिन हि.सो. रि.ए की योजना थी कि उनको स्वंय गिरफ्तार हो जाना चाहिए जिससे वे सारे देश के लिए अपना कार्यक्रम घोषित करने और उसे सक्रिय बनाने के लिए अपने मंच की तरह अदालत का इस्तेमाल कर सके | इसीलिए वे वही डटे रहे | सार्जेन्ट टेरी को उन्हें गिरफ्तार करने के लिए सिर्फ वहा तक चलकर जाना ही पडा | पुलिस की लारी उनको लेकर चली | रास्ते में उसे एक तांगा मिला जिसमे भगवतीचरण , उनकी स्त्री और बच्चा शचीन्द्र तीनो थे | बच्चे ने भगत सिंह की झलक देखी | वह उनको पहचान गया और हर्षोत्फुल्ल हो चिल्लाया: लम्बे चाचा जी ! माँ ने फुर्ती से बच्चे को रोक लिया , जिससे वह अपनी पहचान की और आगे अभिव्यक्ति करके उन्हें भी पुलिस के चक्कर में न फंसा दे |
उनके इरादे ------
क्या भगत सिंह और उनके साथी गोरी चमड़ी वाले अफसरों के खून के प्यासे , कुछ बर्बर युवक भर थे ? सांडर्स को गोली मारने के बाद बाटे हुए उनके पर्चे को देखने पर , कोई भी उन पर ऐसा कोई लाछन नही लगा सकता था | असेम्बली भवन में बाटे हुए उनके पर्चे भी यही बताते है | उन पर्चो से मनुष्यों के रक्तपात के प्रति उनकी दिली नफरत और न्याय के लिए उनकी ललक की भी झलक मिलती है | अंग्रेज शासन का हित इसी में था कि जनता के सामने भगतसिंह के कार्यो को दूसरे ही रंगों में पेश किया जाए , नही तो उनको अमानुषिक दण्ड देने पर सारे देश की सम्वेदना और क्रोध का ज्वार उमड़ पड़ता | इसीलिए . उस पर्चे पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था | हिन्दुस्तान टाइम्स के एक उत्साही संवाददाता ने किसी तरह विस्फोट के ठीक बाद ही उस पर्चे की एक प्रति हासिल कर ली और उसी दिन दोपहर को अखबार का एक विशेष संस्करण निकला . जिसने उसके विषय की जानकारी को जनता की सम्पत्ति बना दिया |
पर्चा इस प्रकार था:
'' बधिरों को सुनाने के लिए एक भारी आवाज की आवश्यकता पड़ती है | ऐसे ही एक अवसर पर , एक फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद - भाइयो -- द्वारा कहे गये इन अमर शब्दों के साथ , '' हम दृढतापूर्वक अपने इस कार्य को न्यायपूर्ण ठहराते है | ''
' हम यहाँ सुधारों { माटेग्यु - चेम्सफोर्ड सुधाओ } के लागू होने के पिछले दस वर्षो के अपमानजनक इतिहास की कहानी को बिना दोहराए और भारत के माथे पर इस सदन -- इस तथाकथित भारतीय पार्लियामेंट द्वारा मढ़े हुए अपमानो का भी बिना कोई जिक्र किये . देख रहे है कि इस बार फिर , जबकि साइमन कमीशन से कुछ और सुधारों की आशा करने वाले लोग उन टुकडो के बटवारे के लिए ही एक दूसरे पर भौक रहे है . सरकार हमारे उपर पब्लिक सेफ्टी ( जन सुरक्षा ) और ट्रेडर्स डिसप्युट्स [ औद्योगिक विवाद ] जैसे दमनकारी बिलों [ विधेयक ] को थोप रही है | प्रेस सेडीशन बिल ' को उसने अगली बैठक के लिए रख छोड़ा है | खुले आम काम करने वाले मजदूर नेताओं की अंधाधुंध गिरफ्तारिया साफ़ बताती है कि हवा का रुख किस तरफ है |
इन अत्यंत ही उत्तेजनापूर्ण परिस्थितियों में पूरी संजीदगी के साथ अपनी पूरी जिम्मेदारी महसूस करते हुए , हि.सो.रि.ए ने अपनी सेना को यह विशेष कार्य करने का आदेश दिया है जिससे कि इस अपमानजनक नाटक पर पर्दा गिराया जा सके | विदेशी नौकरशाह शोषक मनमानी कर ले | लेकिन जनता की आँखों के सामने उनका असली रूप प्रगट होना चाहिए |
जनता के प्रतिनिधि अपने चुनाव - क्षेत्रो में वापिस लौट जाए और जनता को आगामी क्रान्ति के लिए तैयार करे | और सरकार भी यह समझ ले कि असहाय भारतीय जनता की ओर से ' पब्लिक सेफ्टी ' और ट्रेडर्स डिसपियुटस '' बिलों तथा लाला लाजपत राय की निर्मम हत्या का विरोध करते हुए हम उस पाठ पर जोर देना चाहते है जो इतिहास अक्सर दोहराया करता है |
यह स्वीकार करते हुए दुःख होता है कि हमे भी , जो मनुष्य को जीवन को इतना पवित्र मानते है , जो एक ऐसे वैभवशाली भविष्य का सपना देखते है , जब मनुष्य परम शान्ति और पूर्ण स्वतंत्रता भोगेगा , मनुष्य का रक्त बहाने पर विवश होना पडा है | लेकिन मनुष्य द्वारा होने वाले मनुष्य के शोषण को असम्भव बनाकर , सभी के लिए स्वतंत्रता लाने वाली महान क्रान्ति की वेदी पर कुछ व्यक्तियों का बलिदान अवश्यभावी है | इन्कलाब जिंदाबाद ! '' हस्ताक्षर -- बलराज ---कमांडर इन चीफ
प्रस्तुती -- सुनील दत्ता ------- आभार '' भगत सिंह व्यक्तित्व और विचारधारा ''