Saturday, December 28, 2019

अभी भी एक काँटे का ज़ख्‍़म हँसता है

अभी भी एक काँटे का ज़ख्‍़म हँसता है
(उस आदमी के नाम जिसके जन्‍म से कोई संवत शुरू नहीं होता)
वह बहुत देर तक जीता रहा
कि उसका नाम रह सके
धरती बहुत बड़ी थी
और उसका गाँव बहुत छोटा
वह सारी उम्र एक ही छप्‍पर में सोता रहा
वह सारी उम्र एक ही खेत में हगता रहा
और चाहता रहा
कि उसका नाम रह सके
उसने उम्र भर बस तीन ही आवाजें सुनीं
एक मुर्गे की बांग थी
एक पुशओं के हाँफने की आवाज
और एक अपने ही मसूड़ों में रोटी चुबलाने की
टीलों की रेशमी रोशनी में
सूर्य के अस्‍त होने की आवाज उसने कभी नहीं सुनी
बहार में फूलों के चटखने की आवाज उसने कभी नहीं सुनी
तारों ने कभी भी उसके लिए कोई गीत नहीं आया
उम्र भर वह तीन ही रंगों से बस वाकिफ रहा
एक रंग जमीन का था
जिसका कभी भी उसे नाम न आया
ए करंग आसमान का था
जिसके बहुत से नाम थे
लेकिन कोई भी नाम उसकी जुबान पर नहीं चढ़ता था
एक रंग उसकी बीबी के गालों का था
जिसका कभी भी उसने शर्माते हुए नाम न लिया
मूलियां वह‍ जिद से खा सकता था
बढ़कर भुट्टे चबाने की उसने कई बार जीती शर्त
लेकिन खुद वह बिन शर्त ही खाया गया
उसके पके हुए खरबूजों जैसे उम्र के साल
बिना चीरे ही निगले गए
और कच्‍चे दूध जैसी उसकी सीरत
बड़े स्‍वाद से पी ली गई
उसे कभी भी न पता चल सका
वह कितना सेहतमन्‍द था
और यह लालसा कि उसका नाम रह सके
शहद की मक्‍खी की तरह
उसके पीछे लगी रही
वह खुद अपना बुत बन गया
लेकिन उसका बुत कभी भी जश्‍न न बना
उसके घर से कुएँ तक का रास्‍ता
अभी भी जीवित है
लेकिन अनगिनत कदमों के नीचे दब गए
लेकिन कदमों के निशान में
अभी भी एक काँटे का ज़ख्‍़म हँसता है
अभी भी एक काँटे का ज़ख्‍़म हँसता है
- पाश