Sunday, December 13, 2015

अंहकार ------------------ 13-12-15

अंहकार


वन में एक साधू का आश्रम था | उसने ताप के जरिये अनेक सिद्दिया हासिल की थी | इस वजह से उसके मन में तनिक दम्भ उभर आया था | उसके इस दम्भ को चूर करने  के लिए स्वंय ईश्वर एक महात्मा के वेश में उनके आश्रम पहुचे और बोले -- ' मैंने सूना है कि आपने अनेक सिद्दिया प्राप्त की है ?  साधू ने कहा -- ' जी , आपने ठीक सूना है | मैं इन सिद्दियो के बल पर कुछ भी कर सकता हूँ | ' तब महात्मा ने कहा -- ' क्या आप अपनी सिद्दी के जरिये किसी को भी पलभर में मार सकते है ? ' हाँ - हाँ !' साधू का जबाब था | तभी महात्मा ने देखा कि वही आश्रम के पास से एक हाथी  गुजर रहा था | उन्होंने साधू को सम्बोधित करते हुए कहा -- ' क्या आप इस विशाल प्राणी को अभी मार सकते है ? '
साधू ने मुस्कुराते हुए जबाब दिया -- ' इसमें कौन - सी बड़ी बात है ! यह काम तो मैं चुटकियो में कर सकता हूँ | ' यह कहकर साधू ने जमीन से थोड़ी मिटटी उठाई , उस पर मंत्र फूँका और उसे हाथी की ओर उछल देया | हाथी  तत्काल जमीन पर गिर पडा और थोड़ी देर तडपने के बाद उसके प्राण - पखेरू उड़ गये | महात्मा ने चकित होते हुए साधू से कहा -- वाकई , आपमें तो अपार शक्ति है |
मैंने तो कल्पना भी नही की थी | मुझे क्या पता कि आप वाकई हाथी को मार देंगे |
अब हाथी  की हत्या का पाप मुझे ही लगेगा | ' यह सुनकर साधू बोला -- ' आप व्याकुल ना हो , मैं इसे पुन: जीवित कर सकता हूँ | ' अच्छा , कैसे - कैसे ? महात्मा ने व्यग्र हो पूछा | तब साधू बोला -- आप खुद ही देख ले | ' 
यह कहते हुए साधू ने पहले की तरह पुन: थोड़ी मिटटी उठाई और कुछ मन्त्र पढ़ते हुए हाथी  पर दे मारा | मिटटी पड़ते ही हाथी  पुन: जीवित हो उठा | ' महात्मा हाथी को पुन: जीवित देखकर मुस्कुराए और साधू की ओर देखकर बोले -- ' आप तो कुछ भी  कर सकते है ?
साधू ने छाती फुलाकर कहा -- हाँ - हाँ ! मैं कुछ भी कर सकता हूँ | ' तब महात्मा ने कहा -- किन्तु मुझे आपसे यह पूछना है कि यह जो आपने पहले हाथी को मार दिया , फिर उसे जिला दिया , इससे आपको क्या लाभ मिला ? इससे आपकी स्वंय की कितनी उन्नति हुई ? क्या इससे आप अभी तक भगवान को पा सके ? यदि नही तो फिर इन चमत्कारों का क्या अर्थ है , इन सिद्दियो का क्या प्रयोजन ? इतना कहकर महात्मा वेशधारी भगवान वह से अंतरध्यान हो गये |

Monday, December 7, 2015

कुरान शरीफ ----------------- 7-12-15

कुरान शरीफ
इस्लाम उस परम्परा का हिस्सा है जिसमे यहूदी और ईसाई धर्म पैदा हुए | उसे इब्राहिम का धर्म कहते है | इब्राहिम का बेटा था इस्माइल | इब्राहिम को दूसरी पत्नी सारा से एक बेटा पैदा हुआ -- इसाक | सारा के सौतेलेपन से इस्माइल को बचाने की खातिर इब्राहिम ईस्माइल को लेकर अरेबिया के एक गाँव मक्का चले गये | उनके साथ एक इजिप्त का गुलाम हगर भी था | इब्राहिम और इस्माइल ने मिलकर काबा का पवित्र आश्रम बनाया | ऐसा माना जाता था कि काबा आदम का मूल आशियाना था | काबा में एक पुराना धूमकेतु गिरकर पत्थर बन गया था | कुरान के जिक्र के मुताबिक़ अल्लाह ने इब्राहिम को हुक्म दिया की काबा को तीर्थ बनाया जाए | काबा में बहुत सी पुरानी मुर्तिया भी थी , जिन्हें अल्लाह की बेटिया कहा जाता था | उन देवताओं को काबा के पत्थर से ताकत मिलती थी |
मुस्लिम परम्परा कहती है कि वह इलाका ' अज्ञान ' के युग में डूबा रहा , क्योकि वह इब्राहिम के दर्शन से दूर हट गया | सदिय गुजरी और उस इलाके में रहने वाली एक जमात में एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम मुहम्मद था | पैदा होने से पहले ही उसके वालिद का इन्तेकाल हो गया , और बचपन में माँ मर गयी | एक चरवाहों की टोली की स्त्री ने उसकी परवरिश की |
महम्मद जैसे ही जवान हुए , अपने चाचा के पास लौट आये और उनके साथ घुमने लगे | सफर के दौरान सीरिया की ओर बढ़ते हुए , एक ईसाई पादरी की नजर उन पर पड़ी और उसने मुहम्मद की गहरी आध्यात्मिकता को पहचान लिया | मुहम्मद और उनके चाचा एक अमीर , खुबसूरत और अक्लमंद स्त्री की सेवा में थे ; जिसका नाम था खादिजा | मुहम्मद ने खादिजा का कामकाज इतने बेहतरीन ढंग से सम्भाला कि खुश होकर खादिजा ने उनसे निकाह कर लिया | उस वक्त मुहम्मद पच्चीस साल के थे और खादिजा चालीस की |
काबा पर चल रही बुतपरस्ती से तंग आकर कुछ लोग इब्राहिम के ' एक ही अल्लाह ' वाले धर्म की अभिप्प्सा कर रहे थे | उन्हें ' हुनाफ ' कहा जाता था | मुहम्मद भी उनमे से एक थे | मुहम्मद का उसूल था कि वह हर साल रमजान के महीने में मक्का के करीब , हेरा की पहाडियों पर अपने परिवार के साथ गुफा में जाकर रहते थे और ध्यान में समय बिताते थे |
मुहम्मद जब चालीस के हुए तब की बात है : रमजान के आखरी दिनों में एक घटना घटी | वे या तो सोये हुए थे या फिर तन्द्रा में थे ; तब उन्होंने एक आवाज सुनी : ' पढ़ " |
उन्होंने कहा , ' मैं पढ़ नही सकता | '
फिर से आवाज आई :पढ़ "
मुहम्मद बोले , ' मैं पढ़ नही सकता
आवाज फिर गरजी , ' पढ़ |
मुहम्मद ने पूछा , क्या पढू
पढ़ : अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान और रहम वाला है |
पढो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया |
आदमी को खून की पुटक से बनाया |
पढो और तुम्हारा रब ही सबसे बड़ा करीम है |
जिसने कलम से लिखना सिखाया |
आदमी को सिखाया जो न जानता था .......
जब वे जग गये तो वे अल्फाज उनके जेहन में ऐसे बस गये मानो दिल पर खुद गये हो |
वे गुफा के बाहर गये और पहाड़ी पर उन्होंने फिर से वही दबंग आवाज सुनी :
‘ ऐ मुहम्मद ! तू अल्लाह का पैगम्बर है और मैं जिब्राईल हूँ | ‘
उन्होंने आँखे उपर उठाई तो उन्हें आदमी की हमशक्ल एक फरिश्ता आसमान और जमीन के बीच खड़ा दिखाई दिया | मुहम्मद स्तब्ध खड़े रह गये | जिधर मुँह करे वही उन्हें फरिश्ता दिखाई देता | आखिर जब फरिश्ता विलीन हुआ , मुहम्मद कापते हुए घर आये | खादिजा ने उन्हें बहुत धीरज बढाया | उसे मुहम्मद की पाक रूह में बहुत भरोसा था |
वह मुहम्मद को अपने चचेरे भाई के पास ले गयी जो बहुत बूढ़े और समझदार थे | उन्होंने फरमाया कि जो फरिश्ता पुराने मोजेस के पास आया था वही मुहम्मद के पास आया है और मुहम्मद अपने लोगो के पैगम्बर चुने गये है |
मुहम्मद की परेशानी की वजह यो समझी जा सकती है कि हुनाफा सच्चे मजहब को कुदरत में ढूढ़ते थे और अशरीरी आत्माओं के साथ होने वाले सम्पर्क पर भरोसा नही रखते थे | मुहम्मद यह नही समझ पा रहे थे कि उनका देखा हुआ फरिश्ता अच्छा है या बुरा | मंत्र फेरने वाले , टोना – टोटका करने वाले , यहाँ तक कि उन दिनों शायर भी अ करते थे कि उन पर जिन्न उतरा है | मुहम्मद विनम्र और खामोश तबियत के शख्स थे : अकेले रहना , मौन और शांत जीवन बिताना पसंद करते थे | पूरी मनुष्य जाति में से उन्ही को चुना जाना , उसके बाद इतने बुलंद पैगाम को लेकर इंसानों का अगुवा बनना .... उनमे डर पैदा हुआ |
बहरहाल जैसे – जैसे कुरान का संदेशा , उनके रग – रग में बैठता चला गया वैसे – वैसे उनमे नई ताकत लहराई , उन्हें सौपी गयी जिम्मेदारी का नया अहसास उभरता चला गया | लगभग तेईस साल तक उन पर कुरान की आयते उतरने का सिलसिला जारी रहा | मजेदार वाकया है कि जो पढ़ नही सकता था , उसे पढने का आदेश दिया गया | इस पवित्र किताब को ‘ अलकुरान ‘ कहा गया ; जिसका मतलब है , पढना – उस इंसान का पढ़ना जो पढ़ना नही जानता था |
तकरीबन तीन साल तक मुहम्मद अपना इहलाम अपने परिवार को सम्प्रेषित करते रहे | उनकी सबसे पहली शागिर्द उनकी बीबी खादिजा दूसरा था उनका चचेरा भाई अली , तीसरा अबू बकर ( एक सौदागर ) और चौथा उनका गुलाम झैद| उस दौरान मक्का के लोगबाग तो उन्हें पागल समझते थे | तीसरा साल खत्म होते – होते उन्हें फिर हुक्म हुआ , ‘ उठ और सावधान कर | ‘ तब से मुहम्मद लोगो के बीच जाकर उपदेश देने लगे | वे उन दिनों चल रही मूर्ति पूजा के खिलाफ बोलने लगे कि ‘ रात और दिन , विकास और विनाश , जिन्दगी और मौत , ये शक्तिशाली नियम अल्लाह की ताकत के प्रतीक है , उन्हें छोड़कर क्या मूर्तियों को पूजते फिरते हो ? ‘
बस इस उपदेश से कुरेशो की जमात और मुहम्मद के मानने वालो में चिनगार लगी जो देखते ही देखते आग में भभक उठी | मुहम्मद की शांत और अंतर्मुखी जिन्दगी जंग की बाग्दौद बन गयी | मुहम्मद और उनके मानने वाले बेइन्तहा सताए गये |
कुरान शरीफ इस्लाम का केंद्र बिनु है | कुरान के पहले हिस्सों में एक अल्लाह को कायम किया हुआ है | बाद की आयते सगठन के बारे में और मुस्लिम समूह की समाज व्यवस्था के विषय में है |
जैसे ही मुहम्मद को इलहाम होता था , वे उसे रटते थे और फिर अपने शिष्यों को कठस्थ करने को कहते थे | कुरान को कहने से उन आयतों का संगीत , सौन्दर्य और शक्ति प्रगट होती है | कुरान , कुछ दबी हुई , कुछ उदास आवाज में पढ़ा जाता है , क्योकि उस समय इंसान की जो हालत थी उससे उदास हुए अल्लाह का वह इलहाम है | मुहम्मद कहते थे , जब तुम पढ़ते हो तब रोओं | ‘ कहते है कुरान पढने से तन – मन के सारे जखम भर जाते है , निर्मलता आती है , सब कुछ घुल जाता है , जैसे कोई जादू सा तारी होता है | कुरान में यहूदी और ईसाई इतिहास की कहानिया पायी जाती है | अदम और ईव का किस्सा शुरुआत में ही दर्ज है | वही फरिश्ता जिब्राईल जिसने मुहम्मद को संदेश दिया , मेरी के पास ईसा मसीह के आने का संदेश लेकर गया था |
कुरान शरीफ के पांच वर्ग है :
खुदा क फरमान
जो खुदा ने सुझाया है लेकिन अनिवार्य नही है |
जो खुदा ने कानून औसत ठहराया |
जिसमे खुदा ने इशारा किया कि ठीक नही है , लेकिन उसे करने से मना नही किया |
जो खुदा ने बिल्कुअल मना किया है |
यह किताब कानून की पाश्चात्य धारणा से कही अधिक व्यापक है क्योकि वह जीवन के हर पहलु को छूती है | अधिकतर कानूनों पर मानवीय अदालत अम्ल नही कर सकती थी इसीलिए उसे रब की अदालत पर छोड़ा गया | कुरान शरीर के बुनियादी कानून मुसलमानों के लिए है | खुदाई नूर ने जिस नक्शे को उघाडा है , उसे हर मुस्लिम को निभाने की कोशिश करनी चाहिए |
कुरान के अल्फाज़ अल्लाह के अल्फाज है | ये सत्य के इशारे है |
ओशो का नजरिया -----
कुरान ऐसी किताब नही जिसे पढ़ा जाए , कुरान ऐसी किताब है जिसे गाया जाए | अगर तुम पढोगे तो चुक जाओगे | अगर गाओगे तो इन्शाअल्लाह प् लोगे |
कुरान किसी दार्शनिक या विद्वान् की रचना नही है | मुहम्मद बे पढ़े – लिखे थे | वे अपने नाम के दस्तखत भी नही कर सकते थे , लेकिन खुदा की खुदाई से सरोबोर थे | उनकी मासूमियत की वजह से वे चुने गये और उन्होंने गीत गाना शुरू किया ; और वह गीत है कुरान |
अरेबिक मेरी समझ में नही आती , लेकिन मैं कुरान को समझ लेता हूँ क्योकि कुरान की लय समझता हूँ , और अरेबिक सुरों की लय की खूबसूरती को समझता हूँ | मतलब की फ़िक्र किसे है ? जब तुम एक फूल देखते हो तो क्या मतलब पूछते हो ? फूल होना काफी है | आग की लपट काफी है ; उसकी खूबसूरती ही उसका मतलब है | उसकी अर्थहीनता अगर लयबद्द है तो वही उसका अर्थ है |
कुरान वैसी है | और मैं धन्यवाद देता हूँ कि परमात्मा ने मुझे इजाजत दी ... और ध्यान रहे , कोई परमात्मा नही है , यह सिर्फ कहने का एक ढंग है | कोई मुझे इजाजत नही दे रहा है ... इन्शाअल्लाह इस माला का अंत मैं कुरान से करने जा रहा हूँ – सबसे खुबसूरत , सबसे अर्थहीन , सबसे अर्थपूर्ण लेकिन मनुष्य जाति के इतिहास में सबसे अतार्किक किताब ---
--------------------------- ओशो ------- बुक्स आई हेव लव्ड पुस्तक से

Sunday, December 6, 2015

आखिर जीवन का वास्तविक प्रयोजन क्या है ? 7-12-15

आखिर जीवन का वास्तविक प्रयोजन क्या है ?
छत्रपति शिवाजी अपने कौशल के जरिये दिल्ली के बादशाह के चंगुल से छुट कर लौटे थे | रास्ते में उन्होंने अपना जीवन दाँव पर लगाते हुए एक गाँव को दस्युओ के हाथो लुटने से भी बचाया था | लौटकर आने के बाद उनका यह पहला दरबार था | सिंहासन के दाई ओर अष्ट प्रधानो के ऊँचे और भव्य आसन थे | बायीं ओर सामन्तो की पक्ति थी |
सभी सभासद अपना - अपना स्थान ग्रहण किये हुए थे | शिवाजी के लौटकर आने के बाद कोई गम्भीर समस्या नही आई थी | शत्रु का समाचार न था और नवीन आक्रमण की भी कोई योजना अभी नही थी | यो इन सबके होने पर भी शिवाजी की निष्काम कर्म - वृत्ति उनके मानस पटल पर चिंता की लकीरे नही खीचने देती थी |
सभासदों के बीच चर्चा चल रही थी |
तभी तानाबा ने एक प्रशन पूछा --- ' आखिर जीवन का वास्तविक प्रयोजन क्या है ? ' शिवाजी इस प्रश्न का उत्तर देने वाले थे , तभी उन्हें द्वार पर समर्थ गुरु रामदास के आने की सुचना मिली | छत्रपति तुरंत द्वार की ओर दौड़ पड़े | सभासद भी उनके पीछे हो लिए | शिवाजी ने द्वार पर पहुचकर गुरु को प्रणाम किया , उन्हें सम्मानपूर्वक भीतर लेकर आये और अपने राजसिंहासन पर बिठाया | इसके बाद शिवाजी ने समर्थ गुरु से कहा -- ' प्रभु तानाबा जानना चाहते है कि जीवन का असली मतलब क्या है ? अब आप ही इस प्रश्न का समाधान करे | ' समर्थ गुरु ने शांत स्वर में जबाब दिया -- ' गति और शक्ति ! इन दोनों का संयुकत ही जीवन है और उसका मतलब है सतत जागरूकता | ' दरबार में सभी के नेत्र अब भी समर्थ गुरु के मुख पर इस तरह लगे थे कि वे अभी तृप्त नही हुए है | मूक नेत्र भाषा में सबने कुछ और सुनने की प्रार्थना की | समर्थ गुरु उन सबका मंतव्य समझ गये और बोले -- ' जिज्ञासा , पर्यटन , विचार और त्याग का अविरल प्रवाह ही जीवन है | इनमे से किसी के भी मूर्क्षित होने का मतलब है जीवन की रुग्णावस्था | इनकी निवृत्ति में मृत्यु है और पूर्णता में मोक्ष |