Saturday, November 28, 2015

बड़ा कमाल ---- 29-11-15

बड़ा कमाल


एक सनकी राजा  था | एक बार वह अपने वजीर से किसी बात पर नाराज हो गया और उसे जेल की ऊँची मीनार में कैद कर दिया  |  वजीर के लिए बस बचने की एक ही सम्भावना थी कि वह किसी तरह उस गगनचुम्बी मीनार के ऊपरी तल पर बनी खिड़की के रस्ते बाहर निकले |  उस वजीर को जब कैद करके मीनार की तरफ ले जाया जा रहा था , तो लोगो ने देखा कि वह जरा भी चिंतित व दुखी नही है , बल्कि सदा की भाँती आनन्दित और प्रसन्न है | उसकी पत्नी ने रोते हुए उसे विदा दी और पूछा -- ' तुम्हे राजा  ने कैद करने का हुकम दिया है , ' फिर भी तुम प्रसंन्न हो ? यह सुनकर वजीर बोला -- ' इसमें दुखी होने की क्या बात है ? यह कैद तो बस कुछ दिनों की है | यदि तुम मेरा साथ दो तो , मैं चुटकियो में यहाँ से बाहर निकल सकता हूँ | '' इस पर पत्नी बोली -- हाँ - हाँ बताओ , मैं तुम्हारी किस प्रकार मदद कर सकती हूँ ? तब वजीर ने उससे कहा -- रेशम का एक अत्यंत पतला सूत भी मेरे पास पहुचाया जा सकता , तो मैं स्वतंत्रत हो जाउंगा | ' उसकी पत्नी ने बहुत सोचा , लेकिन उस ऊँची मीनार पर रेशम का पतला सूत पहुचाने का कोई उपाए उसकी समझ में नही आया | तभी उसे एक फकीर मिला | फकीर ने उससे कहा -- ' भृग नाम के कीड़े को पकड़ो और उसके पैर में रेशम के धागे को बाँध दो और उसको मुछो  पर शहद की एक बूंद रखकर उसे मीनार पर चोटी की ओर छोड़ दो | उसी रात को यह उपाए किया गया | वह कीड़ा सामने मधु की गंध पाकर उसे पाने के लोभ में धीर - धीरे उपर चढने लगा | उसने अंतत: एक लम्बी यात्रा पूरी कर ली और उसके साथ रेशम का एक छोर मीनार पर बंद उस वजीर कैदी के हाथ में पहुच गया | उस रेशम के पतले धागे के सहारे ही उसकी मुक्ति की राह खुली क्योकि उससे फिर सूत के धागे से डोरी पहुच गयी और फिर डोरी से मोटा रस्सा पहुँच  गया और रस्से के सहारे वह मीनार से निकलकर बाहर आ गया | यह कथा बताती है कि यदि युक्ति से काम लिया जाए तो छोटी - छोटी चीजो के सहारे भी
बड़ा कमाल किया जा सकता है |

Friday, November 27, 2015

मित्रता का महत्व 28-11-15

मित्रता का महत्व


जंगल के बीचो बीच एक बहुत बड़ा सरोवर था  | उसके उत्तरी तट पर एक मोर रहता था | एक दिन जंगल में घूमते हुए एक मोरनी भी वहा आ गयी | मोरनी को देखकर मोर बहुँत खुश हो ज्ञा | एक दिन मौक़ा पाकर उसने मोरनी के समक्ष प्रणय का प्रस्ताव रखा | मोरनी ने उससे कहा -- मैं तुम्हे अपना जीवन साथी बना लूँ , पर मैं यह जनाना चाहती हूँ कि तुम्हारे मित्र कितने है ? इस पर मोर ने कहा --- ' मेरा तो एक भी मित्र नही है | '  यह सुनकर मोरनी ने उसके साथ जोड़ा बनाने से इनकार कर डिया | अब मोर सोचने लगा कि सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है | उसने सरोवर के पूर्वी तट पर रहने वाले एक शेर , पश्चिमी तट पर रहने वाले कछुए और बगल में रहने वाली टिटहरी ( जो शेर के लिए शिकार का पता लगाने का काम करती थी ) से दोस्ती कर ली | अब मोर एक बार मोरनी के पास पहुचा और उसने अपने मित्रो के नाम गिनाये | यह जान्ने के बाद मोरनी उसके साथ रहने के लिए तैयार हो गयी | अब उन्होंने वही एक पेड़ पर अपना आशियाना बना लिया और सुखपूर्वक रहने लगे | उस पेड़ पर और भी कई पछियो का बसेरा था | कुछ दिन बाद मोरनी ने घोसले में अंडे दीये | एक दिन जंगल में शिकारी आये | उन्हें दिनभर जंगल में भटकने के बाद वावजूद कोई शिकार नही मिला | आखिर शाम को थक - हार कर वे उसी पेड़ की छाया में आकर ठहर गये और सोचने लगे किपेड़ पर चढ़कर अन्डो - चूजो से भूख मिटाई जाए | यह देखकर मोर दम्पत्ति को बेहद चिंता हुई | मोर सहायता के लिए मित्रो के पास दौड़ा | मोर को मुसीबत में देख टिटहरी ने जोर - जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया | शेर समझ गया कि कोई शिकार है | वह उसी पेड़ के नीचे चला जहा शिकारी बैठे थे | इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया | शेर से डर कर भागते शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची | जैसे ही उन्होंने कछुए को पकड़ने के लिए हाथ बढाया , कछुआ पानी में खिसक गया और शिकारियों के पैर वही दलदल में फंसकर रह गये | इतने में शेर वह आ गया और उन्हें ठिकाने लगा दिया | यह देख मोरनी ने मोर से कहा --- ' मैंने तुम्हारे साथ जोड़ा बनाने से पूर्व मित्रो के बारे में पूछा था | सो बात काम की निकली ना ! यदि आज ये मित्र ना होते , तो हमारी खैर नही थी | ' मोर ने भी उसकी बात से सहमती जताई और जीवन में मित्रता का महत्व समझाने के लिए उसे धन्यवाद दिया |

क्या आधुनिक बाज़ार व्यवस्था जनसाधारण की विरोधी नही है ? 28-11-15

क्या आधुनिक बाज़ार व्यवस्था जनसाधारण की विरोधी नही है ?
हम आधुनिक युग में जी रहे है | आधुनिक युग की बाज़ार व्यवस्था में जी रहे है | क्योंकि हमारे भोजन - वस्त्र , घर - मकान , शिक्षा - इलाज़ की सभी बुनियादी जरूरते बाज़ार से जुड़ने पर ही मिल पाती है और फिर छोटे - बड़े लाभ - मुनाफे कमाना तो बाज़ार व्यवस्था का अपरिहार्य हिस्सा है और यही बाज़ार व्यवस्था का वास्तविक लक्ष्य भी है | वर्तमान सामाजिक - व्यवस्था को बाज़ार व्यवस्था क्यों कहा जा रहा है ? इसका एकदम सीधा जबाब है कि इस सामाजिक व्यवस्था में राष्ट्र व् समाज के सभी लोगो को खरीद - बिक्री की प्रक्रिया से जुड़ना लाजिमी है | कुछ भी पाने के लिए कुछ बेचना और खरीदना जरूरी है | कुछ बेचे बिना कोई भी कुछ खरीद नही सकता | उदाहरण के लिए मजदूर को अपना भोजन , कपड़ा खरीदने के लिए अपनी श्रमशक्ति को बेचना जरूरी है .अपरिहार्य है | किसानो को अपनी खेती के लिये तथा अपने कपड़े -लत्ते तथा दूसरी जरुरतो के लिए अपने कृषि उत्पाद को या अपने किसी सदस्य की श्रम शक्ति को बेचना जरूरी है | यही स्थिति तमाम छोटे उत्पादकों की है |
इसके अलावा, चिकित्सा , शिक्षा तथा कानून व न्याय के क्षेत्र के लोगो के लिए भी जरूरी है कि वे पहले अपनी बौद्धिक क्षमता को बेचने लायक बने| इसके लिए विभिन्न क्षेत्रो का शिक्षा ज्ञान हासिल करे | फिर अपने शिक्षा ज्ञान का बिक्री - व्यापार करे | चाहे उसका नौकरी के जरिये वेतन आदि के रूप में मूल्य पाए या फिर अपने निजी काम धंधे के जरिये उसका व्यापार करे| अपनी सेवा का कम या ज्यादा मूल्य पाए और फिर उससे अपने जीवन को संसाधनों , सुविधाओं को खरीदे | व्यापारियों , उद्योगपतियों के मालो , सामानों की बिक्री से लाभ - मुनाफे के लिए आवश्यक ही है की वे अपने मालो , सामानों की बिक्री बाज़ार बढाये | इसी लक्ष्य से उत्पादन विनिमय को संचालित करे| यही वह हिस्सा है , जो बाज़ार - व्यवस्था का प्रबल हिमायिती है | उसका संचालक है | इसे आप इस तरह भी कह सकते है कि जंहा व्यापारी , उद्योगपति नही है या छोटे स्तर के है तो वंहा बाज़ार व्यवस्था नही है | अगर कंही व्यापारी व उद्योगपति अत्यंत छोटे स्तर के है तो इस बात का सबूत है कि अभी वंहा छोटे - मोटे बाज़ार तो है , पर बाज़ार व्यवस्था भी नही है | उदाहरण ---- आज से 100 - 200 साल पहले भारतीय समाज में खासकर ग्रामीण समाज में लोगो के आवश्यकताओ कि पूर्ति ग्रामीण समाज में मौजूद श्रम विभाजन से ही पूरी हो जाती थी | किसी ख़ास सामान के लिए ही उन्हें बाज़ार जाना पड़ता था |लेकिन आधुनिक बाज़ार व्यवस्था के आगमन के साथ बाज़ार का यानी खरीद - बिक्री केंद्र का विकास नगर , शहर , कस्बे से होता हुआ हर चट्टी - चौराहे तक फ़ैल गया है | हर आदमी खरीद - बिक्री कि प्रक्रिया से जुड़ गया है और अधिकाधिक जुड़ता जा रहा है |आधुनिक युग कि बाज़ार व्यवस्था ने हर किसी कि महत्ता महानता को चीन लिया है , कयोंकि हर तरह का हुनर , ज्ञान , अनुभव , बिकाऊ माल बन गया है | उसे पाने का लक्ष्य मालो , सामानों कि तरह ही उसकी खरीद - फरोख्त बन गया है |आज कोई आश्चर्य नही कि , मनुष्य का मूल्य उसके गुणों के आधार पर नही बल्कि खरीद - बिक्री की क्षमता के आधार पर किया जा रहा है |इस बाज़ार व्यवस्था का अनिवार्य पहलु यह भी है कि यदि किसी के पास बेचने के लिए कुछ भी नही है या जिसका श्रम - सामान बिकाऊ नही है तो उसके जीने का अधिकार भी नही है |फिर तो वह किसी के सहारे या फिर भीख - दान अथवा ठगी , चोरी के जरिये ही जीवन जी सकता है |बाज़ार व्यवस्था के वर्तमान दौर के विकास में यही हो रहा है |आधुनिक आर्थिक व तकनिकी विकास के दौर में साधारण श्रम और साधारण उत्पादन कि बाज़ार में मांग घटी जा रही है | या तो उनकी बिक्री ही नही हो पा रही है , या फिर उनका मूल्य इतना कम है कि उससे न तो उपभोग के सामानों को खरीदकर श्रम शक्ति का पुनरुत्पादन किया जा सकता है और न ही बढ़ते लागत के चलते उन साधारण मालो , सामानों का ही पुन: उत्पादन किया जा सकता है | साधारण मजदूरों , किसानो ,सीमांत व छोटे किसानो, दस्तकारो तथा छोटे कारोबारियों कि यही स्थिति है| वे बाज़ार में टूटते जा रहे है |
चूँकि वर्तमान दौर की बाज़ार व्यवस्था विश्व - बाज़ार व्यवस्था का एक अंग है | इसका संचालन व नियंत्रण देश - दुनिया के धनाढ्य एवं उच्च हिस्से कर रहे है | उसे वे अपने जैसे लोगो के लिए या फिर अपने सेवको के लिए बाज़ार व्यवस्था को बदल रहे है |आम आदमी को उससे बाहर करते जा रहे है |बेकार , बेरोजगार , संकटग्रस्त होकर जीने और मरने के लिए छोड़ते जा रहे है |क्या यह बाज़ार व्यवस्था जनसाधारण के जीवन- यापन कि उसके बुनियादी हितो कि विरोधी नही है ? क्या जनहित में देश व समाज कि व्यवस्था में जनसाधारण कि आवश्यकतानुसार बदलाव अनिवार्य , अपरिहार्य नही हो गया है ?
क्या इस देश के लोगो को इसपे सोचना नही चाहिए ..............!!
सुनील दत्ता ---- स्वतंत्र पत्रकार -- समीक्षक

Monday, November 23, 2015

मानव पूजी से ही होगा सबका विकास 24-11-15

मानव पूजी से ही होगा सबका विकास

स्वस्थ और सुशिक्षित नागरिक ही किसी देश के विकास की जमानत होते है | अर्थशास्त्र की शब्दावली में इसे मानव पूजी कहा जाता है | अर्थशास्त्र में , आम तरीके से उत्पादन के पांच साधन माने जाते है , जिसमे श्रम व पूजी दो महत्वपूर्ण सक्रिय साधन माने गये है | नोबेल पुरूस्कार विजेता अर्थशास्त्री थ्योडोर शुल्त्ज ने 1961 में पहली बार मानव पूजी का तसव्वुर पेश किया | अमेरिकन इकोनामिक रिव्यू के मार्च 1961 के अंक में प्रकाशित उनके आलेख में उन्होंने व्यक्ति की शिक्षा , प्रशिक्ष्ण , कौशल उन्नयन आदि पर किये जाने वाले सभी व्यव उसकी उत्पादकता कार्यकुशलता , तथा आमदनी में वृद्दि करते है | वही मानव पूजी की भूमिका के बारे में नोबल पुरूस्कार से सम्मानित अमेरिका के ही एक और विश्वविख्यात अर्थशास्त्री गैरी बेकर ने कहा था कि मानव पूजी का आशय दक्षता , शिक्षा स्वास्थ्य और लोगो को प्रशिक्ष्ण से है | यह पूजी है क्योकि ये दक्षताए या शिक्षा लम्बे समय तक हमारा अभिन्न बनी रहेगी | उसी तरह जिस तरह कोई मशीन , प्लाट या फैक्ट्री उत्पादन का हिस्सा बने रहते है | किस्सा कोताह यह है कि सैद्दांतिक रूप से पूजी दो प्रकार है | पहली वो जो मूर्तरूप में दिखाई देती है -- भौतिक पूजी है | इस पूजी का उत्पादन कार्य में प्रत्यक्ष प्रयोग होता है | दूसरी , मानव पूजी जो मूर्तरूप से दिखाई नही देती लेकिन जो उत्पादन की गुणवत्ता तथा मात्रा दोनों में वृद्दि करती है | उसमे श्रमिक के श्रम कौशल के साथ - साथ , स्वरोजगार करने वाले व उद्यमी का उद्यमिता कौशल भी शामिल होता है | बेकर कोरिया का उदाहरण देते हुए कहते है कि समूचा कोयला उत्तरी कोरिया में है , दक्षिण कोरिया में नही | कोरियाई युद्द से पहले उत्तरी कोरिया - कोरिया का अपेक्षाकृत समृद्द हिस्सा था | आज उत्तर कोरिया आर्थिक रूप से चरमराया गया है | जबकि दक्षिण कोरिया समृद्द लोकतांत्रिक देश के तौर पर उभरा है | मुझे लगता है कि दक्षिण कोरिया की समृद्दी इसीलिए है कि उसने अपनी आबादी की प्रतिभा को प्रोत्साहन देने और उसका उपयोग करने को लेकर खासा प्रयास किया | मतलब यह है कि मानव पूजी वह महत्वपूर्ण सम्पत्ति है , जिसके जरिये भौतिक संसाधनों की कमी के वावजूद प्रगति का रास्ता तेजी के साथ तय किया जा सकता है |
पिछले हफ्ते विश्व आर्थिक मंच यानी डब्लूईएफ द्वारा जारी ह्यूमन कैपिटल रिपोर्ट 2015 के अनुसार , 124 देशो की सूची में भारत मानव पूजी सुचांक में 57.62 अंक के साथ 100वे स्थान पर है | डब्लूईएफ द्वारा तैयार की गयी मानव पूजी रिपोर्ट के अनुसार भारत , न केवल ब्रिक्स देशो - रूस , चीन , ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रिका से नीचे है , बल्कि भारतीय उपमहादीप के उसके पड़ोसी देशो श्रीलंका , भूटान , तथा बाग्लादेश से भी नीचे है | मानव पूजी के दोनों आयामों - शिक्षा और स्वास्थ्य में भारत की हालत पतली है | हाल ही में साख्यिकी और कार्यक्रम कार्यन्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय ने 71 वे दौरे के सर्वेक्षण के आकडे जारी किये है | इस दौर का सर्वेक्षण ' सामजिक उपयोग शिक्षा ' विषय पर कराया गया था | इन आकड़ो के मुताबिक़ , ग्रामीण इलाको में साक्षरता दर 71 प्रतिशत है , जबकि इसकी तुलना में शहरी इलाको में यह 86 फीसदी है | साथ ही साठ वर्ष और उससे अधिक उम्र वाली साक्षर महिलाओं की तुलना में पुरुषो में अधिक साक्षरता देखी गयी |
यह तो रही सिर्फ साक्षरता की बात | ध्यान रहे , तकनीकी रूप से साक्षर होने में और वास्तविक साक्षर में बड़ा अंतर है | असलियत में अधिसंख्य साक्षर अर्धसाक्षर ही है | उच्च शिक्षा , जो की मानव पूजी का अहम् हिस्सा है , में भारत का प्रदर्शन काफी निराशाजनक है | आंकड़े बताते है कि ग्रामीण इलाको में 4.5 फीसदी पुरुषो और 2.2 फीसदी महिलाओं ने स्नातक या उससे अधिक स्तर की शिक्षा पूरी की है | वही शहरी इलाको में 17 प्रतिशत पुरुषो और 12 प्रतिशत महिलाओं ने इस स्तर तक शिक्षा पूरी की | मतलब साफ़ है आर्थिक विकास की नित - नई सीढिया चढ़ता भारत अभी भी उच्च शिक्षा के मामले में काफी पीछे है |
दूसरी तरफ , स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी कोई तसल्लीबख्श प्रदर्शन नही है | कुछ समय पहले ' सेव द चिल्ड्रन ' की विश्व की माओ की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट में भारत को दुनिया के 80 कम विकसित देशो में 76 वा स्थान मिला है | इस मामले में भारत कई गरीब अफ़्रीकी देशो से भी पीछे है | रिपोर्ट के मुताबिक़ , भारत में हर 140 महिलाओं में से एक पर बच्चे को जन्म के दौरान मरने का जोखिम रहता है | यह आकडा चीन और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशो की तुलना में कही अधिक है | चीन में हर 1500 महिलाओं में एक महिला पर प्रसव के दौरान मौत का खतरा होता है , वही श्रीलंका में यह आकडा 1100 पर एक और म्यामार में 180 पर एक है | ध्यान रहे की संयुक्त राष्ट्र की ' द पावर आफ 1.8 बिलियन ' नामक रिपोर्ट के मुताबिक़ , कुल जनसंख्या के मामले में हलाकि भारत चीन से पीछे है , लेकिन 10 - 24 साल की उम्र के 35.6करोड़ लोगो के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है | रिपोर्ट में कहा गया है की अपनी बड़ी युवा आबादी के साथ विकासशील देशो की अर्थव्यवस्थाए नई उंचाई पर जा सकती है , बशर्ते वे युवा लोगो की शिक्षा व स्वास्थ्य में भारी निवेश करे |
अगर देश को दीर्घकालिक विकास के पथ पर ले जाना है तो इसके लिए स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रो में पहल तो करनी ही होगी | इस साल के बजट आवटन में इन क्षेत्रो को भारी अनदेखी हुई है | जाहिर है कि अगर मानव पूजी निर्माण करना है तो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को और ज्यादा मजबूत और जिम्मेदार बनाना होगा | और ऐतिहासिक तौर पर यह स्वंय - सिद्द तरीका भी है |

Friday, November 20, 2015

अपना शहर - मगरुवा --- रहस्यमयी मुस्कान --- सत्ता के चिथड़ो में लिपटे मगरुवा 21-11-15

अपना शहर -
मगरुवा --- रहस्यमयी मुस्कान --- सत्ता के चिथड़ो में लिपटे मगरुवा
बहुत दिनों बाद हल्की ठढ का असर ,मौसम में गुनगुनाती धूप मजा दे रही थी , ऐसे में मुझे चाय की तलब महसूस हुई अपने स्टूडियो से निकल कर तिलोकी चाय वाले की दूकान की तरफ नजर दौड़ाया कुछ जाने - पहचाने चेहरे नजर आ रहे थे तलब ने कदम आगे बढा दिए स्टूडियो के बगल में पड़े कांक्रीट के पहाड़ो से गुजर कर आगे बढा देखा साथी दीप नारायन , बृजेश सिंह व वेद उपाध्याय पहले से गल - गौच कर रहे है मेरी नजर दीप पर पड़ी वो अपने होठो को दबाकर हल्की मुस्कान फेंक रहे थे उनके इस तरह मुस्कुराने में उनका अलग अंदाज है रहस्यमयी मुस्कान बहुत कुछ कह जाती है ऐसे में दिल के अन्दर उठ रहे गुबार को वो कभी - कभी छुपा नही पाते है और कह जाते है इसी बीच मगरुवा आ गया शायद उसे भी तलब थी चाय की मैं भी वहा पहुच गया और एक मुद्दे पे चर्चा शुरू ही किया था कि दीप का रहस्मयी मुस्कान बदस्तूर जारी था मैंने ही दीपनारायण को छेड़ दिया दीप गजब की मुस्कान मारते हो तब दीपनारायण बोल पड़े जाए देबा मजा मत ला हमने कहा ऐसी कोई बात नही तब तक मेरी नजर सत्ता के चिथड़ो में लिपटे मगरुवा पर पड़ी उससे कुछ पूछता मैं उससे पहले दीपनारायण का गुबार बाहर निकला और उन्होंने मुझसे कहा उनकी आवाज में जहा दर्द था वही आक्रोश भी झलक रहा था मैंने कहा कि दीप आखिर कहना क्या चाहते हो जो कहना चाहते हो वो बया कर दो वहा खड़े सारे लोगो के बीच ' दीप ने अपनी बाते शुरू की दुष्यंत की इन लाइनों ' कहते हुए कल मिला था नुमाइश में वो चिथड़ा ओढ़े हुए , मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है ' आज दीप का आक्रोश देखने लायक था वो अपनी रौ में बोल पड़े --- समाजवादी दो रँगे बैनर का चिथड़ा , ओढना कहना गलत होगा , लपेटे खड़ा था मगरुवा , दीप ने पूछा मगरुवा से , इसे क्यों लपेट रखा है तुमने ? ------ उसके चहरे पे कोई विषाद नही था , बड़े बेफिक्री से उसने कहा , इसे इसलिए ओढ़ रखा है कि''' साहब लोगो की निगाह पड़ेगी | वाह क्या बात है उसे पता है कि साहब लोगो को ' बदलते मौसम के साथ कौन सा रंग पसंद है | ' दीप आज मुड में थे कुछ कहने को वो मुखातिब हुए बृजेश सिंह की तरफ और बोले भाई इसे दो रँगे का अर्थ पता है , सत्ता के प्रतीक का चिथड़ा इसके काम आया कि नही , यह पूछना बेमानी है | उसकी बातचीत , उसके बारे में हमारी शुरूआती समझ से ज्यादा जटिल थी | दीप उसे देख रहा था और सातवे वेतन आयोग की सिफारिशो के आईने में उसकी तस्वीर बना रहा था , उसने मुझसे कहा कि मेरी सोच बेवकूफाना है शायद इसे किसी की फ़िक्र नही है , एक आदमी उसे छेड़ रहा था , यह काहिल है कुछ करना ही नही चाहता है ,..... वह बोल पडा लोग जाहिल है , जालिम है कुछ करने ही नही देते है --- जाने कितने धर्मो के प्रतीक मगरुवा ने अपने शरीर पर डाल रखे थे , दुनिया भर के लाकेट -- सिक्के -- माला -- चुल्ला चूड़ी और न जाने क्या - क्या |
दीप उसे बिडम्बना व विद्रूप का नगा साक्ष्य बता रहा था उसके साथ बहुत देर तक नही रहा जा सकता था | उसने भाप लिया | हम चलते इससे पहले मगरुवा चाल पडा यह कहते हुए कि सच्चाई गई बन में , सोचा अपने मन में | उसके जाने के बाद दीप ने कहा ' दादा ' सच्चाई के बन गमन की मगरुवा की उदघोषणा मेरी स्मृति में अब भी गूंज रही है ...............

लौकिक सम्पदा --- 20-11-15

लौकिक सम्पदा

अयोध्या के विशाल गौरवमयी साम्राज्य के अधिपति थे महाराज चक्कवेण | वे जितने रणकुशल थे , उतरने ही नीतिकुशल , न्यायनिष्ठ और दुआर भी थे | भगवान नारायण की भक्ति और सहज  उनका स्वभाव था | इतने बड़े साम्राज्य के अधिपति होते हुए भी वे एक साधारण -- सी कुटिया में रहते हुए अपनी गुजर - बसर करते थे | एक बार उनके महामंत्री ने उनसे अनुरोध किया -- ' महाराज अन्य  राजागण अपनी प्रत्येक क्रिया  में ऐश्वर्य का प्रदर्शन करते है  | इतनी ही नही , वे आपस की चर्चा में यह व्यंग्य भी करते है कि तुम्हारा  राजा दरिद्र है , जो एक साधारण -- सी कुटिया में रहता है | '  महामंत्री के इस कथन पर महाराजा चक्कवेण थोड़ी देर चुप रहे , फिर बोले -- ' मन्त्रिवर ,, आप दुसरो की ऐसी बातो पर ध्यान क्यों देते है ! वैसे सच है कि मैं एक अर्थ में दरिद्र ही हूँ , किन्तु एक अर्थ में वे महादरिद्र है | मैं अपनी तमाम लौकिक सम्पदा को अपनी प्रजा की सेवा में लगा चुका हूँ , परन्तु इसी के साथ मैंने सत्कर्म -- सद्भाव व सद्ज्ञान की सम्पदा पाई भी है | कोई इस सत्य पर विचार कर सकता हो तो कहा जा सकता है कि सेवा से श्रेष्ठ अन्य कुछ भी नही है | जब हृदयपूर्वक सेवा की जाती है , जब ह्रदय दुसरो के दुःख से दुखी होना सिख जाता है , तब एक नए व्यक्तित्व का जन्म होता है | पर दुःख से जब हृदय विदीर्ण  होता है , तब व्यक्तित्व की सीमाए भी विदीर्ण होती है | व्यक्तित्व में पनपती है एक परम व्यापाक्ता | स्वचेतना में प्र्म्चेतना समाती है | नारायण भक्त भी अपने भगवान की तरह व्यापक हो जाता है और ऐसे में निजी लाभ - लोभ की कामनाये चित्त से उसी तरह झड जाती है , जैसे कि पतझड़ आने पर पेड़ से सूखे प[त्ते | मेरे अंत: करण की स्थिति कुछ ऐसी ही हो गई है | ' महामंत्री उनकी बात ध्यान से सुन रहे थे | महाराज ने आगे कहा  - ; जैसे अन्य राजाओं को विलासिता - ऐश्वर्य  में सुख मिलता  है , उसी तरह बल्कि उससे कई गुना अधिक सुख मुझे जनजीवन की सेवा में मिलता है | सेवा में मिलने वाला प्रत्येक कष्ट मुझे गहरी तृप्ति देता है | हर दिन मेरे द्वारा जो भावभरे हृदय से सत्कर्म किये जाते है , मन से जनता की भलाई के लिए योजनाये बनाई जाती है उससे बड़ा तृप्त और कुछ नही |

Saturday, November 14, 2015

कानपुर का '' गरीबखाना '' 14-11-15

कानपुर का '' गरीबखाना ''
जहा सर्वधर्म समभाव बसता है --------
आधुनिकता के इस पागलपन भरे दौड़ में भी कानपूर में एक आशियाना ऐसा भी है जहा भारतीय परम्परा का सयुक्त परिवार सहेज कर रहा है उन मूल्यों को जो पारम्परिक है |
आपने मुसाफिरखाना , यतीमखाना और न जाने कौन - कौन से नाम सुने होंगे लेकिन मैं जिस '' गरीबखाने '' की चर्चा करने जा रहा हूँ वह जगह जहा भारतीय परम्पराओं के साथ जीवन को जीने की लयबद्दता के ताल - मेल को देखा |
जहा दुनिया अपनी परम्पराओं को छोड़कर आधुनिक तौर - तरीको में ढालने की कोशिश कर रही है | वही इस गरीबखाने में भारतीय संस्कृति में जीने वाले लोग एक मिशाल के तौर पर देखे जा सकते है आइये इस गरीबखाने के लोगो से रूबरू होते है , घर की सबसे बड़ी सदस्य माँ फिर पुरुष सदस्यों में सबसे बड़े सुभाष भइया, सुधीर जी , संजय जी इन भाइयो में सामाजिक ताने - बने से लेकर घर के ताने-बाने अदभुत संगम कम शब्दों में मनोभावों की अभिव्यक्ति से बात करते है वैसे ही घर की तीनो बहुए जो एक साथ बहनों की तरह रहती है ,इनकी भी कमेस्ट्री भी अदभुत लगी बाजार भी तीनो एक साथ रसोई में भी तीनो एक साथ यह लगा ही नही तीनो तीन घर से आई हो ऐसा लगा कि तीनो ने इस घर को परम्पराओ व संस्कृति की मजबूत डोर से बाँध रखा है आधुनिकता के लिए कोई स्थान ही न हो घर के बच्चे कुशल , कबीर , नानक सर्वधर्म समभाव का प्रतीक वही दो बेटिया इस चमन के खुबसूरत फूल एक है गेसू तो दूसरी नाजुक इनके बीच चार दिन जीने में इनके जरिये जाना जिन्दगी को इस तरह भी जिया जाता है कही नानक और गेंसू का आपस में प्यार भरा झगड़ा तो कही कबीर और नाजुक में झगड़ा पर वह भी एक दुसरे के प्रेम का प्रतीक इन लोगो के बीच बिताये वह सारे लम्हे स्मरणीय है |


Friday, November 13, 2015

दृढशक्ति -------------- 14-11-15

दृढशक्ति --------------


डोमनपूरा गाँव में रहने वाले दो छोटे बालक सुभाष व अनिल आपस में गहरे मित्र थे | एक रोज वे सुबह - सुबह अकेले बाहर खेलने निकल गये | वे खेलने में इतने मस्त थे कि उन्हें पता ही नही चला कि वे भागते - भागते कब एक सुनसान जगह पर पहुच गये | उस जगह एक पुराना कुआँ था | उनमे से अनिल भागते हुए गलती से उस कुए में जा गिरा | कुए में गिरते ही वह जोर - जोर से बचाओ - बचाओ की आवाज लगानी शुरू की सुभाष भी मदद के लिए आवाज निकालने लगा पर उस सुनसान जगह पर उन दोनों की आवाज सुनने वाला कोई नही था | इस वजह से उन्हें कोई मदद नही मिल पा रही थी | तभी कुए के पास खड़े सुभाष की नजर पास रखी बाल्टी और रस्सी पर पड़ी | उसने तुरंत वह रस्सी उठायी और उसका एक सिरा वह गड़े एक पत्थर से कास कर बांधा और दूसरा सिरा नीचे कुए में फेंक दिया | कुए में गिर अनिल ने रस्सी का सिरा पकड़कर अपनी कमर में लपेट लिया | अब सुभाष अपनी पूरी ताकत लगा कर आखिर कार अनिल को उपर खीच ले आया और अनिल की जन बचाने में सफल रहा | जब गाँव में जाकर उन दोनों ने यह बात बताई तो किसी ने भी उन पर यकीन नही किया | एक आदमी बोला -- ' तुम एक बाल्टी पानी तो कुए से निकल नही सकते , इसको कैसे बहार खीचा होगा ! तुम झूठ बोल रहे हो | ' इस पर एक बुजुर्ग ने उसकी बात काटते हुए कहा -- सुभाष और अनिल सच बोल रहे है हमे इनकी बात पर यकीन करना चाहिए | सुभाष इसलिए अनिल को निकाल पाया क्योकि इसके पास कोई दूसरा रास्ता नही था इसके अलावा वह इसे यह कहने वाला भी नही था कि ' तुम ऐसा नही कर सकते ' | कहानी का निष्कर्ष यही है कि जिन्दगी में सफलता पाने के लिए हमे ऐसे लोगो की बातो पर ध्यान नही देना चाहिए , जो कहते है कि ' तुम इसे नही कर सकते | ' दुनिया में अधिकतर लोग इसलिए सफल नही हो पाते क्योकि वे ऐसे लोगो की बातो में आ जाते है जो न खुद कामयाब होते है और न इस बात में यकीन करते है कि दुसरे कामयाब हो सकते है | इसलिए अपने दिल की सुने  | आप सब कुछ कर सकते है , जो आप करना चाहते है | स्वंय पर संशय करना छोड़े व सफलता की ओर बढ़े |

Tuesday, November 10, 2015

चालीस में पांच नदिया शुद्द है भारत की 11-11-15

चालीस में पांच नदिया शुद्द है भारत की
भारतीय संस्कृति का विकास नदियों के किनारों से हुआ है नदिया हमारी आस्थाओं का केंद्र है तो यह हमारे जीवन से जुडी है , कुछ स्थानों पे आज भी यह सिचाई का साधन है तो भारत के मल्लाहो की जीवन दायिनी है पूरे देश में गंगा , यमुना नदियों के प्रदुषण की चर्चा आये दिन होता रहता है इसके लिए देश के प्रधानमन्त्री से लेकर अन्य लोग सर फोड़ते है लेकिन एक ताजा अध्ययन बताता है कि देश की तमाम नदिया प्रदुषण की चपेट है | केन्द्रीय प्रदुषण बोर्ड
( सी पी सी बी ) ने देश की चालीस नदियों की प्रदुषण जांच कर दावा किया है कि सिर्फ दक्षिण भारत की चार एवं असम की एक नदी ही स्वच्छता के मानको में खरी उतरी है | बाकी 35 नदिया बुरी तरह से प्रदुषण की चपेट में है | इनमे सतलुज से लेकर साबरमती , तुंगभद्रा और दमनगंगा तक शामिल है |
सी पी सी बी ने2005 से लेकर 2013 तक के आकड़ो को आधार बनाया है | इस अवधि में 40 नदियों की 83 स्थानों पर निगरानी की जिसमे चार मानको का ध्यान रखा गया |
एक बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड ( बी ओ डी ) दूसरा , डिजाल्व आक्सीजन ( डी ओ ) तीसरा , टोटल कोलीफार्म ( टी सी ) तथा चौथा मानक टोटल डिजाल्व सॉलिड ( टी डी एस ) | मुल्त: बी ओ डी पानी में आक्सीजन को इस्तेमाल करने वाले तत्वों को दर्शाता है | जबकि डी ओ कुल आक्सीजन की मात्रा को | टी सी कुल बैक्टीरिया की उपस्थिति और टी डी एस पानी में मौजूद ठोस तत्वों को दर्शाता है | पानी में बैक्टीरिया की मात्रा ज्यादा - विभिन्न स्थानों की जांच में पाया गया है कि पानी की गुणवत्ता सबसे ज्यादा खराब इसमें कोलीफार्म बैक्टीरिया की मौजूदगी से हुई है | सिर्फ 11 फीसदी स्थानों पर ही कोलीफार्म बैक्टीरिया मानको के अनुरूप मिले |
बाकी जगहों पर यह तय मानक से ज्यादा थे | नियमो के तहत 100 मिलीलीटर पानी में इस बैक्टीरिया की संख्या 500 से ज्यादा नही होनी चाहिए | लेकिन अधिकतम संख्या यमुना के कई स्थानों पर 17 करोड़ तक पाई गयी है | इसी प्रकार 51 नमूनों में बी ओ डी की मात्रा ज्यादा पाई गयी जबकि 57 स्थानों पर डी ओ की अधिकता के कारण पानी की गुणवत्ता खराब निकली | इसी प्रकार 39 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता टी डी एस के कारण खराब थी | प्रति लीटर पानी में डी ओ 5 मिग्रा एवं बी ओ डी 3 मिग्रा प्रति लीटर या इससे ज्यादा होना चाहिए | जबकि टी डी एस की मात्रा 500 एम् जी से ज्यादा होनी चाहिए | सर्वेक्षण के दौरान सिर्फ पांच नदिया ही ऐसी निकली जिनका पानी मानक के अनुसार है और वही नदिया पूरे भारत में स्वच्छ है |

Monday, November 9, 2015

अर्पण 10-11-15

माँ से सुनी एक कहानी ----
अर्पण
बंगाल में एक सुविख्यात शक्तिसाधक हुए है , जिनका नाम था -- रामप्रसाद | उनकी साधना एवं भक्ति ने बंगाल के जन - मन को विभोर किया | उनके गाये गीत तथा उनके द्वारा कहे व लिखे गये भजन आज भी वहा के घर - घर में प्रेम से गाये जाते है | दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस भी उनके भजनों के बड़े अनुरागी थे | ऐसे परम अनुरागी भक्त के पास एक रोज एक युवा साधक का आना हुआ | उस युवा साधक का नाम था निशिकांत भट्टाचार्य |
वह युवक देखने में तेजस्वी प्रतीत होता था | वह दृढ - निश्चयी और देवी भगवती की साधना के प्रति समर्पित - संकल्पित था | परन्तु न जाने क्यों उसका मन बार - बार साधना से उचटता रहता | वह अपने मन को साधना में एकाग्र करने की भरसक कोशिश करता , पर कही न कही उसका ध्यान भटक जाता रोज पाठ करना उसका नित्य नियम था , उसकी दिनचर्या की प्रत्येक महानिशा या तो पाठ में गुजरती थी अथवा देवी - माँ की नामवली के जप में |
उसके स्वरों में आकुलता एवं विरह झलकता था | फिर भी उसके अस्तित्व के किसी कोने में गहरी पीड़ा छिपी थी | उसने आकर अपनी यह व्यथा रामप्रसाद जी को बताई | उन्होंने उसकी पूरी बात ध्यान से सुनी -- जानते हो तुम्हारी समस्या क्या है ? युवक द्वारा जिज्ञासा प्रगट करने पर उन्होंने कहा -- ' तुम युवा हो , भावुक हो , देवी माँ की कृपा को पाना चाहते हो | परन्तु समस्या यह है कि तुम्हारे मन - बुद्दी से सांसारिक लाभ - हानि का गणित अब तक गया नही है |
जगन्माता के चरणों में तुमने अपनी बुद्दी का अर्पण नही किया | बस यही कमी है | बुद्दी को अपनी आत्मा की अनुगामिनी बनाओ | जब तक तुम बुद्दी का समर्पण - रूपांतरण नही कर लेते , तुम्हारा चित्त यू ही उचटा रहेगा | जब तुम माँ के हो गये , तो फिर तुम्हारी बुद्दी उससे विलग क्यों है | अपनी बुद्दी को उसका बना लो | फिर सारी समस्या सुलझ जायेगी | '

एक अनोखा व्यक्तित्व --- 10-11-15

एक अनोखा व्यक्तित्व ---
1942 के भारत छोडो आन्दोलन के दौरान जब सारे प्रमुख नेता गिरफ्तार किये जा चुके थे तब अरुणा आसफ अली ने अपने निर्भीकता का परिचय देते हुए 9 अगस्त के दिन मुंबई के गवालिया टैंक मैदान में तिरंगा झंडा फहराकर अंग्रेजो को देश छोड़ने की खुली चुनौती दे डाली | इस महान योद्दा का जन्म 16 जुलाई 1909 को हरियाणा ( तत्कालीन पंजाब ) के कालका में हुआ था | लाहौर और नैनीताल से शिक्षा पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गयी और कोलकाता के गोखले मेमोरियल कालेज में अध्यापन का कार्य करने लगी |
सेनानी आसफ अली से शादी करने के बाद अरुणा भी स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रूप से हिस्सेदारी करने लगी | शादी के बाद उनका नाम अरुणा आसफ अली हो गया | सन 1931 में गाँधी इरविन समझौते के तहत सभी राजनितिक बन्दियो को छोड़ दिया गया लेकिन अरुणा आसफ अली को नही छोड़ा गया | इस पर महिला कैदियों ने उनकी रिहाई न होने तक जेल परिसर छोड़ने से इन्कार कर दिया | माहौल बिगड़ते देख अंग्रेजो ने अरुणा को भी रिहा कर दिया | सन 1932 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखा गया | वहा उन्होंने राजनितिक कैदियों के साथ होने वाले बुरे व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल की जिसके चलते गोरी हुकूमत को जेल के हालत सुधारने को मजबूर होना पडा | रिहाई के बाद राजनितिक रूप से अरुणा ज्यादा सक्रिय नही रही लेकिन 1942 में जब भारत छोडो आन्दोलन शुरू हुआ तो वह आजादी की जंग में एक नायिका बनकर उभरी | गांधी जी के आव्हान पर 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस ने मुंबई सत्रमें भारत छोडो आन्दोलन का प्रस्ताव पास हुआ | गोरी हुकूमत ने सभी प्रमुख नेताओं को हिरासत में ले लिया | ऐसे में अरुणा आसफ अली ने गजब की दिलेरी का परिचय डिया | 9 अगस्त 1942 को उन्होंने अंग्रेजो के चाक - चौबंद व्यवस्था को धत्ता बताकर मुम्बई के गवालिया टैंक मैदान में तिरंगा झंडा फहरा दिया

ब्रितानी हुकूमत ने उन्हें पकडवाने वाले को पांच हजार रूपये का इनाम देने की घोषणा की | वह जब बीमार पड़ गयी तो गांधी ने उन्हें एक पत्र लिखा कि वह समर्पण कर दे ताकि इनाम की राशि को हरिजनों के कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जा सके | उन्होंने समर्पण करने से मना कर दिया |1946 में गिरफ्तारी वारंट वापस लिए जाने के बाद वह लोगो के सामने आई |
आजादी के बाद भी अरुणा ने राष्ट्र और समाज के कल्याण के लिए बहुत से काम किये |

Sunday, November 1, 2015

सृष्टि में जो मंगल है , उसका अभिसिंचन - विस्तार हो | 2-11-15

सृष्टि में जो मंगल है , उसका अभिसिंचन - विस्तार हो |


श्रुतिधर ने देखा कि पुराने भवन में मकड़ियो ने जहा - तहा जले बन रखे है | पशुओ ने गोबर फैला रखा है | उन्हें लगा कि इसमें रहना तो नरक के  समान है |
उन्होंने भवन को अमगल कहते हुए उसका परित्याग कर दिया और समीप के गाँव में जाकर रहने लगे | निर्धन ग्रामवासी मैले - कुचैले वस्त्र पहनकर सत्संग में शामिल होते है , यह देखकर उनके मन में पुन: अकुलाहट भर गयी | श्रुतिधर ने गाँव को भी अमगल  कहकर उसका भी परित्याग किया और निर्जन वन में एकाकी कुटी बनाकर रहने लगे | रात शान्ति पूर्वक गुजरी | किन्तु प्रात: उठते ही उन्होंने कुटी के बाहर देखा कि जंगली जानवरों द्वारा आखेट किये हुए वन्य पशुओ की हड्डिया व रक्त के छीटे  इधर - उधर पड़े है |
उन्हें वन में भी अमगल  दिखा | तभी उन्हें सामने श्वेत सलिला सरिता दिखाई दी | वे कुटी का परित्याग कर उसे शीतल पयस्विनी के आश्रय में चले हए |
अंजली बाँध उन्होंने जल ग्रहण किया तो अंत: करण प्रफुल्लित हुआ | तभी उन्होंने देखा कि बड़ी मछली ने छोटी मछली पर आक्रमण  कर उसे निगल लिया |
इस उथल - पुथल से नदी के तट तक हिलोर पहुची , जिससे वहा  रखे मेढक के अंडे - बच्चे पानी में उतराने  लगे | तभी बहते - बहते किसी कुत्ते की लाश वहा आ पहुची |
यह दृश्य देखते ही उनका ह्रदय घृणा से भर गया | अब कहा जाए ? इससे तो अच्छा है कि जीवन ही समाप्त कर लिया जाए | अमगल से बचने का उन्हें यही उपाए शेष लगा |
श्रुतिधर ने लकडियो की चिता बनाई और प्रदक्षिणा कर उस पर बैठने ही वाले थे कि महर्षि वैशम्पायन का उधर से गुजरना हुआ | यह कौतुक देख उन्होंने श्रुतिधर से इसका कारण पूछा | श्रुतिधर ने पूरी व्यथा कह सुनाई |
सुनकर महर्षि हँसे और बोले -- ' चिंता में तुम्हारा शरीर जलेगा , तो उसमे भरे मल भी जलेगे , जिससे अमगल ही तो उपजेगा | ' ऐसे में क्या तुम्हे शान्ति मिल सकेगी ? श्रुतिधर कुछ ना बोल सके | तब महर्षि ने कहा -- ' सृष्टि में अमगल से मगल कही अधिक है | घर में रहकर सुयोग्य नागरिको का निर्माण , गाँव में शिक्षा संस्कृति का विस्तार , वन में उपासना की शान्ति और जल में प्रदुषण का प्रक्षालन , प्रकृति की प्रेरणा यही तो है |
सृष्टि में जो मंगल है , उसका अभिसिंचन - विस्तार हो |
जो अमगल है , उसका शुची - संस्कार किया जाए |

श्रुतिधर ने देखा कि पुराने भवन में मकड़ियो ने जहा - तहा जले बन रखे है | पशुओ ने गोबर फैला रखा है | उन्हें लगा कि इसमें रहना तो नरक के  समान है |
उन्होंने भवन को अमगल कहते हुए उसका परित्याग कर दिया और समीप के गाँव में जाकर रहने लगे | निर्धन ग्रामवासी मैले - कुचैले वस्त्र पहनकर सत्संग में शामिल होते है , यह देखकर उनके मन में पुन: अकुलाहट भर गयी | श्रुतिधर ने गाँव को भी अमगल  कहकर उसका भी परित्याग किया और निर्जन वन में एकाकी कुटी बनाकर रहने लगे | रात शान्ति पूर्वक गुजरी | किन्तु प्रात: उठते ही उन्होंने कुटी के बाहर देखा कि जंगली जानवरों द्वारा आखेट किये हुए वन्य पशुओ की हड्डिया व रक्त के छीटे  इधर - उधर पड़े है |
उन्हें वन में भी अमगल  दिखा | तभी उन्हें सामने श्वेत सलिला सरिता दिखाई दी | वे कुटी का परित्याग कर उसे शीतल पयस्विनी के आश्रय में चले हए |
अंजली बाँध उन्होंने जल ग्रहण किया तो अंत: करण प्रफुल्लित हुआ | तभी उन्होंने देखा कि बड़ी मछली ने छोटी मछली पर आक्रमण  कर उसे निगल लिया |
इस उथल - पुथल से नदी के तट तक हिलोर पहुची , जिससे वहा  रखे मेढक के अंडे - बच्चे पानी में उतराने  लगे | तभी बहते - बहते किसी कुत्ते की लाश वहा आ पहुची |
यह दृश्य देखते ही उनका ह्रदय घृणा से भर गया | अब कहा जाए ? इससे तो अच्छा है कि जीवन ही समाप्त कर लिया जाए | अमगल से बचने का उन्हें यही उपाए शेष लगा |
श्रुतिधर ने लकडियो की चिता बनाई और प्रदक्षिणा कर उस पर बैठने ही वाले थे कि महर्षि वैशम्पायन का उधर से गुजरना हुआ | यह कौतुक देख उन्होंने श्रुतिधर से इसका कारण पूछा | श्रुतिधर ने पूरी व्यथा कह सुनाई |
सुनकर महर्षि हँसे और बोले -- ' चिंता में तुम्हारा शरीर जलेगा , तो उसमे भरे मल भी जलेगे , जिससे अमगल ही तो उपजेगा | ' ऐसे में क्या तुम्हे शान्ति मिल सकेगी ? श्रुतिधर कुछ ना बोल सके | तब महर्षि ने कहा -- ' सृष्टि में अमगल से मगल कही अधिक है | घर में रहकर सुयोग्य नागरिको का निर्माण , गाँव में शिक्षा संस्कृति का विस्तार , वन में उपासना की शान्ति और जल में प्रदुषण का प्रक्षालन , प्रकृति की प्रेरणा यही तो है |
सृष्टि में जो मंगल है , उसका अभिसिंचन - विस्तार हो |
जो अमगल है , उसका शुची - संस्कार किया जाए |