Friday, April 10, 2015

बनारसी पान ------------------------ 10-4-15

मलंग पान खाता नही मेरे मित्र शारिक साहब पान के शौक़ीन है आज की यह पोस्ट उनको समर्पित करता हूँ |
बनारसी पान ----
बनारसी पान को पूरी दुनिया जानती है इसकी प्रसिद्दी सम्पूर्ण विश्व में है अमिताभ बच्चन की फिल्म '' डान '' इसकी अलग तरह से प्रस्तुती दी है फिलहाल आये चलते है बनारसी पान की तरफ | बनारस में पान की खेती नही होती | फिर भी बनारसी बीडो की महत्ता सभी स्वीकार करते है | लगभग सभी किस्मो के पान यहाँ , जगरनाथी जी , गया और कलकत्ता आदि स्थानों से आते है | पान का जितना बड़ा व्यावसायिक केंद्र बनारस है , शायद उतना बड़ा केंद्र विश्व का कोई नगर नही है | काशी में इसी व्यवसाय के नाम पर दो मुहल्ले बसे हुए है | सुबह सात बजे से लेकर ग्यारह बजे तक इन बाजारों में चहल- पहल रहती है | केवल शहर के पान विक्रेता ही नही , बल्कि दूसरे शहरों के विक्रेता भी इस समय पान खरीदने आते है | यहाँ से पान ' कमाकर ' विभिन्न शहरों में भेजा जाता है | ' कमाना ' एक बहुत ही परिश्रमपूर्ण कार्य है -- जिसे पान का व्यवसायी और उसके घर की महिलाये करती है , यही ' कमाने ' की क्रिया ही बनारसी पान की ख्याति का कारण है | इस समय भी बनारस में बीस हजार से अधिक पुरुष और स्त्रिया कमाने का कार्य करती है | कमाने का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि इस समय जो पान बाजार में हरी देशी पत्ती के नाम पर चालू है , उसे ही लोग एक साल तक पकाते हुए उसकी ताजगी बनाये रखते है | ऐसे ' पानो ' को मगही ' कहा जाता है
मगही जब सस्ता होता है तब पैसे में बीड़ा मिलता है , लेकिन जब धीरे धीरे स्टाक खत्म होने लगता है तब करीब दस रूपये तक यह पान बिकता है | यो बनारस जनता मगही पान के आगे अन्य पान को ' घास ' या बड़ का पत्ता ' सज्ञा देती है , किन्तु मगही के अभाव में उसे जगरनाथी पान का आश्रय लेना पड़ता है , अन्यथा प्रत्येक बनारसी मगही पान खाता है | इसके अलावा साँची - कपूरी या बंगला पान की खपत यहाँ नाम मात्र की होती है | बंगला पान बंगाली और मुसलमान ही अधिक खाते है | मगही पान इसीलिए अधिक पसंद किया जाता है कि वह मुंह में जाते ही घुल जाता है |
पान खाने की सफाई ----
बनारस के अलावा अन्य जगह पान खाया जाता है , लेकिन बनारसी पान खाते नही घुलाते है | पान घुलाना साधारण क्रिया नही है | पान का घुलाना एक प्रकार से यौगिक क्रिया है | यह क्रिया केवल असली बनारसियो द्वारा ही सम्पन्न होती है | पान मुंह में रखकर लार को इकठ्ठा किया जाता है और यही लार जब तक मुंह में भरी रहती है पान घुलता है | कुछ लोग उसे नाश्ते की तरह चबा जाते है , जो पान घुलाने की श्रेणी में नहीं आता है | पान की पहली पीक फेंक दी जाती है ताकि सुरती की निकोटीन निकल जाए | इसके बाद घुलाने की क्रिया शुरू होती है | अगर आप किसी बनारसी का मुंह फुला हुआ देख लें तो जाए कि वह इस समय पान घुला रहा है | पान घुलाते समय वह बाद करना पसंद नही करता | अगर बात करना जरूरी हो जाए तो आसमान की तरफ मुंह करके आपसे बात करेगा ताकि पान का , चौचक जम गया होता है , मजा किरकिरा न हो जाए | शायद ही ऐसा कोई बनारसी होगा जिसके रुमाल से लेकर पायजामे तक पान की पीक से रंगी न हो | गलियों में बने मकान कमर तक पान की पीक से रंगीन बने रहते है | सिर्फ इसी उदाहरण से स्पष्ट है कि बनारसी पान से कितनी पुरदर्द मुहब्बत करते है | भोजन के बाद तो सभी पान खाते है , लेकिन कुछ बनारसी पान जमाकर निपटने ( शौच करने ) जाते है , कुछ साहित्यिक पान जमाकर लिखना शुरू करते है और कुछ लोग दिन - रात गाल में पान दबाकर रखते है |
                                                              प्रस्तुती - सुनील दत्ता -      
आभार ' बना रहे बनारस '' पुस्तक से

Tuesday, April 7, 2015

श्रेष्ठ काव्य सृजन ------- रवीन्द्रनाथ टैगोर -------------------------- 8-4-15




एक बार गुरुदेव रवीन्द्रनाथ  टैगोर और अंग्रेजी के महान कवि विलियम बटलर यीट्स के मध्य इस बात को लेकर चर्चा हो रही थी कि श्रेष्ठ काव्य का सृजन कैसे होता है | महाकवि यीट्स ने श्रेठ काव्य के बारे में अपने विचार रखते हुए  बोला --- ' कविता तो एक प्रवाह है , ह्रदय के भावनात्मक सौन्दर्य की अभिव्यक्ति है  | कविता में व्यक्ति के मन के भाव प्रगट होते है  | दूसरे शब्दों में कहे तो भावनात्मक अवस्था में कविता फूट पड़ती है , इसके स्वर माधुर्य निखरने लगते है और अपनी लय के संग प्रवाहित होने लगते है | इस प्रवाह की लय बनी रहनी चाहिए  , तभी श्रेठ कविता का सृजन होता है | '   गुरुदेव ने उनकी बातो से सहमति जताते हुए कहा -- ' तुमने सही कहा मित्र , काव्य तो वास्तव में ऐसा ही होना चाहिए | किन्तु यहाँ पर मैं एक बात और जोड़ना चाहूंगा कि जब कवि अपनी चेतना के शिखर पर आरूढ़ होता है तो उस समय कविता रूपी उद्दार उसकी चेतनात्मक लौ को स्पर्श करते है  | फिर वहा  से कविता नि:सृत होती है , झरनों के समान झरती है | ऐसी कविता के माध्यम से चेतना के उच्च स्तर  तक पँहुचा जा सकता है | ऐसी कविता की हरेक पंक्तिया मन्त्र बन जाती है | यदि मैं भारतीय महाकाव्यों की बात करूँ तो ऋग्वेद  ऐसा प्रथम महाकाव्य है , जिसकी हरेक रिचाए छंदबद्द  एवं मंत्रात्मक है | ' इसके बाद रवीन्द्रनाथ  टैगोर ने यीट्स से सवालिया लहजे में कहा -- ' आप यह तो जानते ही होंगे कि इन ऋचाओं के रचयिता को ऋषि कहा जाता है ? यीट्स बोले -- ' ऋषि ही कवि होते है | इन्हें तो सर्वश्रेष्ठ कहा जा सकता है | ' रवीन्द्रनाथ  ने कहा -- ' हाँ मित्र , ऋषि विलक्षण कवि होते है , जिनकी दृष्टि प्रकृति के आर - पार होती है | वे द्रष्टा  होते है , जो जीव , प्रकृति एवं परमात्मा के दिव्य सम्बन्धो के अनुभव को कहते है | यही दिव्य एवं परम अनुभव छंदबद्द होकर प्रवाहित होता है और अपने सानिध्य में आने वालो को दिव्य ऊर्जा से सरोबोर कर देता है | यही सच्ची एवं श्रेष्ठ कविता है | रामायण . महाभारत व गीता जैसे ग्रन्थ इसी श्रेणी में आते है | ' रवीन्द्रनाथ  की बाते यीट्स के ह्रदय में उतर रही थी और वे अनुभव कर रहे थे कि जब तक मनुष्य भावनाओं की श्रेष्ठता तक नही पहुचेगा , तब तक उसके जीवन में समस्वरता नही आएगी और न ही वह किसी काव्य प्रवाह का माध्यम बन सकेगा |


                                                                                                                 ----------------- कबीर

Wednesday, April 1, 2015

सुबहे बनारस ------------------------------ 2-4-15

किसी के जुबान से आप सुन सकते है कि अगर आपने बनारस की सुबह और अवध की शाम नही देखी तो आपने कुछ नही देखा |


बनारस की सुबह - इलाहाबाद की दोपहर , अवध की शाम और बुन्देलखण्ड की रात सारे भारत में प्रसिद्द है  | कहा जाता है कि आत्महत्या के लिए उद्यत व्यक्ति को यदि सुबह बनारस में , दोपहर को इलाहाबाद में शाम अवध में और रात को बुन्देलखण्ड में घुमाया जाए तो उसे अपने जीवन के प्रति अवश्य मोह उत्पन्न हो जाएगा और शायद उसमे कवित्व की भावना भी जागृत हो जाए | उत्तर प्रदेश के साहित्यिक गढ़ इसके प्रमाण है |



यदि आपने बनारस की सुबह नही देखि है तो कुछ नही देखा | बनारस का असली रूप यहाँ की सुबह को ही देखने को मिलता है | अब सवाल यह है कि बनारस में सुबह होती कब है  ? अंग्रेजी सिद्दान्त के अनुसार या हिन्दू ज्योतिष के अनुसार , इसका निर्णय करना कठिन है | लगे हाथ उसका उदाहरण भी ले लीजिये | अपने राम पैदाइशी ही नही , खानदानी बनारसी है , इस शहर की गलियों में नगे होकर टहले है  , छतो पर कनकौवे उडाये है  , पान घुलाया है , भान्फ़ छानी है और गहरेबाजी भी की है | लेकिन आज तक हम खुद ही नही जान पाए किबनारस की सुबह होती कब है  ?

दो - तीन वर्ष पहले की बात है  , हम काशी के कुछ साहित्यिको के साथ कवी सम्मेलन से लौट रहे थे | जाड़े की अँधियारी रात | बाढ़ बज चुके थे  | घात किनारे नाव लगी | हमने आश्चर्य के साथ देखा -- एक आदमी दातों कर रहा था | जब यह पूछा गया कि इस समय दातों करने का क्या तुक है , तब उसने एक बार आसमान की ओर देखा और फिर कहा  , '' सुकवा उगल बाय , अब भिनसार में कितना देर बाय | '' अर्थात शुक्र तारे का उदय हो गया है , अब सबेरा होने में देर ही कितनी है ? इतना कहकर उसने कुल्ला किया और बम महादेव की आवाज लगाता हुआ दुबकी मार गया | यह दृश्य देखकर कोट - चादर के भीतर हमारे बदन कॉप  उठे  | 


सुबह के चार बजे से सरे शहर के मंदिरों के देवता अँगड़ाई लेते हुए स्नान और जलपान की तैयारी में जुट जाते है | मंदिरों में बजने वाले घड़ियालो और घंटो की आवाज से सारा शहर गूंज उठता है | सड़क के फुत्पाठो पर  , दूकान की पटरियों पर सोयी हुई जीवित लाशें कुनमुना उठती है | फिर धीरे - धीरे बीमार तथा बूढ़े व्यक्ति - जिन्हें डाक्टरों की ख़ास हिदायत है कि सुबह जरा टहला करे -- सडको पे दिखाई देने लगते है  | मकानों के वातायन से छात्रो के अस्पष्ट स्वर  , गंगा जाने वाले स्नानर्थियो की भीड़ और घ्रेबाज इक्को और रिक्शो के कोलाहल में सारा शहर खो जाता है |

कंचनजघा की सूर्योदय की छटा अगर आपने न देखि हो अथवा देखने की इच्छा हो तो आप बनारस अवश्य चले आइये  | यह दृश्य आप काशी के घाटो के किनारे देख सकते है  | मेढक की छतरियो जैसी घुटी हुई अनेक खोपडिया , जिन्हें देखकर चपतबाजी खेलने के लिए हाथ खुजलाने लगत अ है , नाइयो के पास लेते हुए मालिश कृते हुए जवान पठ्ठे , आठ - आठ घंटे स्पीड के साथ माला फेरते हुए भक्त , ध्यान में मगन नाक दबाए भक्तिने , कमंडल में अक्षत -- फूल लिए सन्यासियों तथा स्नानर्थियो का समूह , अशुद्द और अस्पष्ट मन्त्रो का पाठ करती दक्षिणा संभालती हुई पंडो की जमात , साफा लगानेवाले नवयुवको की भीड़ और बाबा भोलानाथ की शुभकामनाओं का टेलीग्राफ पहुचाने वाले भिखमंगो की भीड़ -- सब कुछ आपको काशी के गातो के किनारे सुबह देखने को मिलेगा |  


मिर्जा ग़ालिब की वकालत ----


अगर आपको मेरी बात का यकीन न हो तो नजमुद्दौला , निजाम जंग मिर्जा असदुल्ला बेग खा उर्फ़ मिर्जा ग़ालिब का ब्यान ले लीजिये ----

त आल्ल्ला बनारस चश्मे बद दूर
बहिश्ते खुर्रमो फिरदौसे मामूर
इबातत खानए नाकसिया अस्त
हमाना कावए हिन्दोस्ता अस्त



( हे परमात्मा , बनारस को बुरी दृष्टि से दूर रखना क्योकि यह आनन्दमय स्वर्ग है  | यहाँ घंटा बजानेवालो अर्थात हिन्दुओ की पूजा का स्थान है यानी यही हिन्दुस्तान का काबा है |)




बुतानशरा हयूला शोलए तूर
सरापा नूर , ऐजद चश्म बद दूर
मिया हां ना.जुको दिल हां तुवाना
जे नादानी बकारे ख्वशे दाना
तबस्सुम बस कि दर दिल हां तिबी ईस्त
दहन हा रश्के गुल हाए रबी ईस्त
जे अगेजे कद अन्दाजे खरामे
बी पाये गुल बुने गुस्तरद: दामे


( यहाँ के बुतों अर्थात और बुतों अर्थात सुन्दरियों की आत्मा तूर के पर्वत की ज्योति के समान है | वह सिर से पाँव तक इश्वर का प्रकाश है | इन पर कुदृष्टि न पड़े | इनकी कमर तो कोमल है , किन्तु ह्रदय बलवान है | यो इनमे सरलता है , किन्तु अपने काम में बहुत चतुर है  | इनकी मुस्कान ऐसी है कि हृदय पर जादू का काम करती है  | इनके मुखड़े इतने सुन्दर है कि रबी अर्थात चैत के गुलाब को भी लजाते है  | इनके शरीर की गति तथा आकर्षक कोमल चाल से ऐसा जान पड़ता है कि गुलाब के समान पाँव के फूलो का जाल बिछा देती है | )


ज ताबे जलवये ख्वेश आतिश अफरोज
बयाने बुतपरस्तो बरहमन सोज
बी लुफ्ते मौजे गौहर नर्म रु तर
बी नाज अज खूने आशिख गर्म रु तर


( अपनी ज्योति से  , जो अग्नि के समान प्रज्वलित है , यह बुतपरस्त तथा बरहमन की बोलने की शक्ति भस्म कर देती है अर्थात यह इनका सौन्दर्य देखकर मूक हो जाते है | पानी में उनका विलास मोती की लहरों से भी नर्म और कोमल जान पड़ता है | पानी में स्नान करनेवाली जो अठखेलिया करती है  , उनसे जो पानी के छीटे उठते है , उनकी ओर कवी का संकेत है | उनका नाज अर्थात हास - विलास आशिक के खून से  भी गर्म है | )

व सामाने गुलिस्ता बर लबे गंग
ज ताबे रुख चिरागा वर लबे गंग
रसाद: अज अदाए शुस्त व शूए
बी हर मौजे नवेदे आबरुए
कयामत कामता , मिजगा दराजा
ज मिजगा बर सफे - दिल तीर: बाजा
बी मस्ती मौज रा फरमुद: आराम
ज नगजे आब रा बखशिन्दा अन्दाम

( गंगा किनारे यह क्या आ गयी , एक उद्यान आ गया है | इनके मुख के प्रकाश से गंगा के किनारे दीपावली का दृश्य हो गया है | उनके नहाने -- धोने की अदा से प्रत्येक मौज को आबरू का आमन्त्रण मिलता है | इन सुन्दर डील - डौलवाली तथा बड़ी - बड़ी पलकोवाली सुन्दरियों से कयामत आती है | यह दिल की पंक्ति पर अपनी बड़ी बरौनियो से तीर चलाती है  | अपनी मस्ती से इन्होने गंगा की लहरों को शांत कर दिया है | अपनी सुन्दरता से इन्होने पानी को स्थिर कर दिया है | )

फताद: शौरिशे दर कालिबे आब
ज माही सद दिलश दर सीना बेताब
ज ताबे जलवा हां बेताब गश्त:
गोहर हां दर सदफ हा आव गश्त:
ज बस अर्जे तमन्ना मी कुनद गंग
ज मौजे आबहा वा मी कुनद गंग


( पुन: पानी के शरीर के अन्दर इन्होने हलचल उत्पन्न  कर दी और सीने में सैकड़ो  दिल मछली के समान छटपटाने लगे  | अपने सौन्दर्य की उष्णता से विकल होकर वह पानी में चली गयी और ऐसा जान पड़ता है जैसे सीप में मोती हो  | गंगा भी अपने ह्रदय की अभिलाषा प्रकट करती है और पानी की अपनी लहरों को खोल देती है कि आओ इसमें स्नान करो | )
बनारस की सुबह की तारीफ़ में मिर्जा ग़ालिब का यह कलाम पेश करने के बाद यह जरूरी नही कि ऐरो - गैरो की भी गवाही पेश करूं  | गोकि एक शायर ने यह तक़रीर पेश की है कि सुबह के वकत आसमान के सारे बादल बनारस की गंगा में दुबकी लगाकर पानी पीते है और फिर उसे सारे हिन्दुस्तान में ले जाकर बरसा देते है | उस शायर का नाम याद नही आ रहा है , इसके लिए मुझे दुःख है |


प्रस्तुती सुनील दत्ता            --------- आभार बना रहे बनारस से

अनूठे उस्ताद 1-4-15


काशी नगर के बाहर एक महन्त का आश्रम था  | उनके पास कई लोग अपनी समस्याए लेकर आते और वे उनका   उचित समाधान करते | एक दिन एक शिष्य ने महन्त से प्रश्न किया -- गुरुदेव , आपके गुरु कौन है  ?  आपने  किससे शिक्षा ग्रहण की है  ?  महंत मुस्कुराए और बोले -- '  मेरे एक नही , सैकड़ो गुरु है , जिनसे मैंने सीखा  है  | पर मैं यहाँ तुम्हे दो गुरुओ के बारे में बताता हूँ | इतना कहकर महंत थोडा रुके , फिर बोले - गर्मी  के दिन थे  | मैं एक रोज एक निर्जन मार्ग पर जा रहा था  | राह में चलते हुए मुझे प्यास लगने लगी और मैं पानी की तलाश में घूम रहा था | मुझे वहा  एक पोखरा नजर आया और मैं उस ओर बढ़ गया |  तभी वहा  पर एक कुत्ता आया | वह भी प्यासा था  | जैसे ही वह पानी पीने के लिए पोखरे के नजदीक पहुचा , उसे पानी में एक और कुत्ता नजर आया जो कि वास्तव में उसकी परछाई थी  | कुत्ता उसे देखकर डर गया और भौकते हुए पीछे हट गया | थोड़ी देर बाद वह फिर आया , लेकिन परछाई को देख कर पुन: पीछे हट गया | ऐसा कई बार हुआ | कुत्ता परछाई को देखकर भौकता और पीछे हट जाता | लेकिन जब उससे प्यास सहन नही हुई तो अंतत: वह अपने डर के वावजूद पोखरे में कूद पडा | उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब हो गयी  |  यह देखकर उस कुत्ते से मुझे एक बड़ी सीख  मिली कि सफलता उसे ही मिलती है , जो डर का साहस से मुकाबला करता है  | ' शिष्य ने महंत से पूछा -- और आपका दूसरा गुरु कौन था  ? ' मेरा दुसरा गुरु एक छोटा बच्चा था | मैं रात के समय एक गाँव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा जलती मोमबत्ती लेकर जा रहा है  | मैंने उससे पूछा -- क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई  ?  उसके हाँ कहने पर मैंने  उससे कहा ' एक क्षण था जब यह मोमबत्ती बुझी हुई थी और फिर एक क्षण आया , जब यह जल गयी | क्या तुम मुझे वह स्रोत दिखा सकते हो , जहा से वह ज्योति आई ? सुनकर बच्चा  हंसा और मोमबत्ती को फूंक मारकर बुझाते  हुए बोला -- अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है | क्या आप बता सकते है कि वह कहा  गयी ? यह सुनते ही मेरा ज्ञानी होने का अंहकार चकनाचूर हो गया और तबसे मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिया | इसके बाद महंत ने शिष्यों को समझाते हुए कहा -- '' शिक्षा  कही से भी और किसी से भी और कभी भी मिल सकती है | जरूरत इस बात की है कि हम हरदम सीखने  के लिए तैयार रहे |