Saturday, September 26, 2015

अतीत ----------- 26-9-15

अतीत -----------


एक दिन खुदीराम बोस एक मंदिर में गये | वहा  कुछ लोग मंदिर के सामने भूखे - प्यासे धरना देकर पड़े थे | पूछने पर पता चला कि ये सभी लोग किसी - न - किसी असाध्य रोग से पीड़ित है , इसी कारण मन्नत मानकर यहाँ भूखे - प्यासे पड़े है कि भगवान इन्हें स्वप्न  में दर्शन देंगे , तब ये अपना धरना समाप्त करेगे |
इस पर खुदीराम बोले -- ' मुझे भी तो एक दिन इसी प्रकार भूखे - प्यासे धरना देना है | ' पास में खड़े एक व्यक्ति ने उनसे पूछा -- ' तुम्हे ऐसा कौन - सा असाध्य रोग हो गया है , जो तुम यहाँ पर धरना दोगे | "

खुदीराम मुस्कुराकर बोले -- ' क्या गुलामी से भी बढ़कर कोई असाध्य रोग हो सकता है | मुझे तो गुलामी के रोग को दूर करना है " |

Friday, September 25, 2015

अपना शहर बदल रहा है -- 25-9-15

अपना शहर बदल रहा है --
इसी शहर में बचपन बीता हर क्षेत्र में जीने वाला अपना यह शहर इसकी हर गतिविधियों से वाकिफ हूँ चाहे राजनीति , समाजिक कार्य , इतिहास , भूगोल , परम्पराए हो चाहे इसका बाजार --- आज अपने शहर के बाजार पे बात करते है उस बाजार का एक छोटा सा हिस्सा अगर वह हिस्सा ना होता तो शहर कहे या जनपद उसका इतिहास कभी न बनता कागज पे इतिहास तो लिखा जाता है पर वह कितना सच होता है मुझे नही मालुम पर जो इतिहास तस्वीरो से बनती है वो साक्षी बनता है आने वाले कल का और वही इतिहास होता है और वो हिस्सा है फोटोग्राफी ( छायाकन ) आइये आज ले चलते है आपको उन इतिहासकारों से रूबरू कराने जिन लोगो ने यह इतिहास बनाया चित्रों के माध्यम से कही उनके चित्र किसी परिवार के पूरे खानदान की कहानी कहता है तो कभी वो किसी परिवार के सबसे लाडले बेटे की नगु तस्वीरो के माध्यम से बचपन की कहानी कहता है कही वो एक अलग सामाजिक इतिहास बनाता है जनपद के सामजिक कार्यो की जिसे समाज का कोई विकास हो रहा हो तो कही वो अपनी तस्वीरो से सामजिक क्रान्ति की बात करता हुआ यह बोलता है हम भी अब अपनी परम्परा और रुढियो को तोड़ते हुए कुछ आधुनिक हो रहे है इन टूटते परम्पराओं और आन्दोलन का गवाह बनते है वह तस्वीरे जो छायाकारो ने अपने कैमरे से सजोया | आजमगढ़ की फोटोग्राफी का इतिहास करीब नब्बे साल का होने जा रहा है यहाँ के पहले फोटोग्राफर त्रियुगी नारायण सेठ जो मुजफ्फरपुर के रहने वाले थे उन्होंने आजमगढ़ में पहला स्टूडियो एम् जे स्टूडियो के नाम से कालीनगंज में खोला उसके बाद आये हरिसिंह जो परगना निजामाबाद आजमगढ़ के रहने वाले थे उन्होंने जिले में दूसरा स्टूडियो गौड़ स्टूडियो के नाम से खोला व तीसरे फोटोग्राफर सरदार नानक सिंह जो पंजाब से यहाँ आये थे उस वक्त पुराने सब्जीमण्डी में गुरुद्वारा था उसके देख भाल करने की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी नानक सिंह जी उसी के साथ अपने परिवार के भरण – पोषण के लिए वेस्ली कालेज के गेट के बगल में अस्थायी स्टूडियो कायम किये उसके बाद एजाज साहब जो रेलवे की नौकरी में थे वो नौकरी छोड़कर यहाँ आकर फोटोहाउस नाम से चौक में स्टूडियो स्थापित किये इसके साथ ही शंकर पाण्डेय जी सूरज टाकिज के पास छायाचित्र कला मदिर नाम से स्टूडियो खोले इन लोगो ने श्वेत श्याम फोटोग्राफी के पुराने मानक पर बहुत ही शानदार काम किया यह कहना गलत न होगा की इन्होने जहा प्रोफेशनल फोटोग्राफी की उसके साथ ही उस वक्त के जनपद के इतिहास को भी चित्रों के माध्यम से महफूज रखा | उस वक्त विश्व फोटोग्राफी में जो श्वेत – श्याम चित्र के नए तकनीक आये उनका इन लोगो ने बखूबी प्रयोग किया | मुझे याद है मैंने अपने यहाँ एम् . जे स्टूडियो की खीची तस्वीरो को देखा है क्या शानदार तस्वीरे थी उस समय का सबसे नए तकनीकि प्रयोग द्वारा बनाया गया था | एजाज साहब ने शिब्ली मंजिल के उस समय के क्रिया -- कलापों ( इतिहास ) को सहेजा जिसको आज भी देखा जा सकता है शिब्ली एकेडमी में करीब सत्तर के दशक में नया स्टूडियो वेस्ली कालेज के सामने खुला जिसका नाम था कमल स्टूडियो जिसके प्रोइराइटर थे बलिया के अलाउद्दीन भाई उस समय तक फोटोग्राफी का विकास बहुत हो चुका था तब जहा नानक सिंह मिनटों कैमरा से काम करते थे वही पर प्लेट कैमरा और बॉक्स कैमरा याशिका मैंट , रोलीकाट , रोली फ्लैक्स याशिका ए याशिका डी जैसे कैमरे का इस्तेमाल होने लगा था सन अस्सी के दशक में यहाँ फोटोग्राफी ने करवट बदली और उस वक्त सुनील दत्ता ने प्रेस फोटोग्राफी करना शुरू किया 1984 में उनके खीची तस्वीर दिनमान – रविवार पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई उसी समय वही से शुरू हुआ फोटो पत्रकारिता का नया युग इसके साथ ही उस समय ओम शंकर अग्रवाल त्रिलोकी जालान और भी बहुत सारे लोग शौकिया फोटोग्राफी शुरू कर दिए थे अस्सी के दशक में आजमगढ़ में समनांतर नाट्य संस्था द्वारा पहली फोटो प्रदर्शनी का आयोजन नेहरु हाल में किया गया | नब्बे के दशक में फोटोग्राफी की दुनिया बदली और उसने श्वेत - श्याम की जगह रंगीन फोटोग्राफी में बदल गयी उस समय यहाँ सुनील दत्ता द्वारा कलर फोटोग्राफी की शुरुआत हुई उसी के साथ जौनपुर से आर के चौरसिया भ आये उन्होंने और सुनील दत्ता ने दोनों ने आजमगढ़ के फोटोग्राफी को एक नयी दिशा प्रदान किया आर के चौरसिया तो शुद्द प्रोफेशनल बन गये लेकिन सुनील दत्ता ने प्रयोगधर्मी फोटोग्राफी की परम्परा को आगे बढाया जो आज तक कायम है नब्बे के दशक में सुनील दत्ता द्वारा प्रयोग धर्मी फोटोग्राफी पर एकल प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जिसमे काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के विजुल आटर्स के डीन ए पी गज्जर के साथ कबीर पंथी डा शुकदेव सिंह , प्रख्यात इतिहासकार डा शान्ति स्वरूप वर्मा तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शैलेन्द्र सागर इस एकल प्रदर्शनी में शिरकत किये थे इस प्रदर्शनी का संचालन प्रो प्रभुनाथ सिंह मयंक ने किया उसके बाद सुनील दत्ता ने आठवी राष्ट्रीय फोटो प्रदर्शनी में एक मात्र ऐसे जनपद के फोटोग्राफर थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश का नेतृत्व नागपुर में किया उसके बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के साथ ही इलाहाबाद के राष्ट्रीय संग्रहालय के बौद्दथका आर्ट गैलरी में उस माय के इलाहाबाद के तत्कालीन एस एस पे श्री ओ पी एस मलिक के निर्देशन में साथ दिनों का एकल प्रदर्शनी किया जिसमे इलाहाबाद विश्व विद्यालय के फाइन आर्ट्स के हेड प्रो राजेन्द्र विश्वकर्मा अजय जेटली , इतिहास विभाग के प्रो शर्मा के साथ ही इलाहाबाद के विश्व विद्यालय के पूर्व हेड पंडित गोविन्द चन्द्र जी ने शिरकत किया था | नब्बे के दशक में ही अतरराष्ट्रीय चित्रकार फ्रेंक वेस्ली के आगमन पर उनके आगमन पर रैदोपुर स्थित चन्द्र भवन में उनके सम्मान में एकल प्रदर्शनी का आयोजन किया तब फ्रेंक ने कहा था अब हमारा शहर बदल रहा है | अब जनपद में फोटोग्राफरों की भरमार है पर वास्तविक रूप में देखा जाए तो अब फोटोग्राफी कला का स्तर अब वो नही रहा जो हमारे आदरणीय बुजुर्गो ने इसे जो आयाम दिया था अब तो कैमरे का स्वरूप ही बदल गया है पहले लोग अपनी फोटोग्राफी कला की क्षमता को अपने डार्करूम से दिखाते थे अब लोगो के हाथो में डिजीटल कैमरा आ गया जो अब उस तरह का परफ्रामेंस नही देता है |
---------------------------------------------------------------- कबीर

Wednesday, September 16, 2015

जिन्दगी हमेशा कुछ नया सिखाती है बशर्ते आप सीखना चाहे -------------- 17-9-15

जिन्दगी हमेशा कुछ नया सिखाती है बशर्ते आप सीखना चाहे

हमेशा कुछ नया करने का कलेवर रहा मुझमे शायद मेरे अन्दर जन्मजात विद्रोह की प्रवृत्ति है इसलिए मैं अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद किसी भी सरकारी संस्थान का गुलाम नही बना इस परतंत्र भारत में कम से कम स्वंय स्वतंत्र होकर कुछ नया कर गुजरने की ललक ने मुझे बहुत कुछ सिखाया - बचपन भी आभाव में जिया आज भी आभाव में जीता हूँ पर इसका कोई मलाल नही मुझे पता है जीवन के सुख को बटोरने के लिए आपको पतित होना पड़ेगा या अपनी आवाज को बंद रखना पड़ेगा वो मेरे लिए असंभव था मैंने हमेशा मुखर होकर घर हो या बहार अपनी आवाज की बुलंदी को बनाये रखा है सामने कोई भी हो अगर वो गलत है तो गलत है अगर मैं कही गलत हूँ तो तुरंत अपनी गलतियों को सुधारता हूँ | इसी क्रम में जब शाह आलम के बार - बार काल आने पर और यह कहने पर की आप समय से पहुचे मैंने अपना मोपेड उठाया और बरहज की यात्रा पे निकल गया परवाह नही था आगे क्या होगा बस लक्ष्य सामने था कि शाह ने मुझे जो वक्त मुकरर किया है उस वक्त पे वहा पहुच जाऊ बस शाह के दिए वक्त में मात्र पन्द्रह मिनट देर से पहुचा मैं पहुचते ही शाह के चेहरे पे एक रौनक देखी शाह ने तुरंत माइक पकड़ा दिया संचलन में लग जाइये सो मैं शुरू हो गया राहुल की वो पक्तिया जो अब '' प्रतिरोध की संस्कृति '' अवाम का सिनेमा '' का तराना बन चूका है | भागो मत दुनिया को बदलो - मत भागो दुनिया को बदलो , कल भी तुम्हारा था कल भी तुम्हारा है सब मिल कर बाजु कस लो - बच्चो के बीच में यह गीत प्रस्तुत करना मेरे लिए एक रोमांच था --------- क्रमश :

प्रतिरोध --------------- 17-9-15

प्रतिरोध की भाषा हम भूलते जा रहे है
हम आज कही भी घर - बाहर
प्रतिरोध करने से डरने लगे है
हम क्या से क्या होते जा रहे है ?
क्या सच हम
अब मनुष्य है ?
जिस मानव में प्रतिरोध नही
वो कापुरुष ही है -- कबीर