Tuesday, May 28, 2019

आशा से भरकर जीवन देखने की कला

कथा -
आशा से भरकर जीवन देखने की कला
कोरिया में एक भिक्षुणी एक रात एक गाँव में भटक कर पहुच गयी | वह रास्ता भटक गयी थी जिस गाँव में उसे जाना था , वहां न पहुच कर दुसरे गाँव पहुच गयी | उसने जाकर एक दरवाजे पर दस्तक दिया | दरवाजा खुला | लेकिन उस गाँव के लोग दुसरे धर्म के मानने वाले थे , वह भिक्षुणी दुसरे धर्म की थी , वहाँ दरवाजा बंद करने वाले ने कहा की : देवी , यह द्वार तुम्हारे लिए नही है | हम इस धर्म को नही मानते है | तुम कही और खोज कर लो और उसने चलते वक्त यह भी कहा कि इस गाँव में शायद ही कोई दरवाजा तुम्हारे लिए खुले , कयोकी इस गाँव के लोग दुसरे ही धर्म को मानते है और हम तुम्हारे धर्म के शत्रु है | आप तो जानते ही है , धर्म धर्म आपस में बड़े शत्रु है | एक गाँव का अलग धर्म है , दुसरे गाँव का अलग धर्म है | एक धर्म वाले को दुसरे धर्म वाले के यहाँ कोई शरण नही , कोई आशा नही , कोई प्रेम नही | द्वार बंद हो जाते है | द्वार बंद हो गये उस गाँव के | वो भिक्षुणी गाँव के दो चार दरवाजे पर दस्तक दिया हर दरवाजे से यही आवाज मिली | सर्द रात थी वह अकेली स्त्री , कहाँ जायेगी ? लेकिन धार्मिक लोग इस तरह की बाते कभी नही सोचते | धार्मिक लोगो ने मनुष्यता जैसी बात कभी नही सोची | वे हमेशा सोचते है , हिन्दू है या मुसलमान ; बौद्ध है या जैन | आदमी का सीधा कोई मूल्य उनकी दृष्टि में कभी नही रहा है | वह स्त्री -- उस गाँव को छोड़ आगे बढ़ गयी आधी रात वह जाकर गाँव के बाहर एक वृक्ष के नीचे सो गयी | कोई दो घंटे बात ठंठ के कारण उसकी नीद खुल गयी | उसने आखें खोली | उपर आकाश तारो से भरा था | उस वृक्ष पर फुल खिल गये थे | रात में खिलने वाले फुल , उसकी सुगंध चारो तरफ फ़ैल रही थी | वृक्ष के फुल चटक रहे थे , आवाज आ रही थी और फुल खिलते चले जा रहे थे | वह आधी घड़ी तक मौन उन फूलो को निहार रही थी उन वृक्षों के फूलो को खिलते देखती रही | आकाश के तारो को देखती रही | फिर वह स्त्री दौड़ पड़ी गाँव की तरफ , फिर जाकर उसने उन दरवाजो को खटखटाया , जिन दरवाजो को उनके मालिको ने बंद कर लिया था |आधी रात को कौन आ गया " उन लोगो ने दरवाजे खोले , वही भिक्षुणी खड़ी है ! उन्होंने कहा : हमने मना कर दिया , यह द्वार तुम्हारे लिए नही है , फिर दुबारा क्यों आ गयी | लेकिन उस भिक्षुणी की आँखों से कृतज्ञता के आसूं बहे जा रहे थे , उसने कहा : नही अब द्वार खुलवाने नही आई मैं , अब ठहरने भी नही आई , केवल धन्यवाद देने आई हूँ | काश , तुम आज मुझे अपने घर में जगह देते तो रात आकाश के तारे और फूलो का चटक कर खिल जाना - मैं देखने से वंचित हो जाती | मैं सिर्फ धन्यवाद देने आई हूँ बड़ी कृपा थी की तुमने द्वार बंद कर लिए और मैं हले आकाश के नीचे सो सकी | तुम्हारी बड़ी कृपा थी की तुमने घर की दीवालो से मुझे बचा लिया और खुले आकाश में मुझे भेज दिया | जब तुमने भेजा था , तब तो मेरे मन को लगा था , कैसे बुरे लोग है | अब मैं यह कहने आई हूँ कि कैसे भले लोग है इस गाँव के | तुम लोगो ने मुझे एक अनुभव की रात दे दी , जो आनन्द मैंने आज जाना , जो फुल मैंने आज खिलते देखा , जैसे मेरे भीतर भी कोई प्राणों की कलि चटक गयी हो और खिल गयी हो | जैसी आज अकेली रात में मैंने आकाश इ तारे देखे है , जैसे मेरे भीतर ही कोई आकाश स्पष्ट हो गया हो ,और तारे खिल गये हो | मैं उसके लिए धन्यवाद करती हूँ भले लोग है तुम्हारे गाँव के लोग |
परिस्थिति कैसी है , इस पर कुछ निर्भर नही करता | हम परिस्थिति को कैसा लेते है , इस पर सब - कुछ निर्भर करता है | | हरेक व्यक्ति को परिस्थिति कैसी लेनी है , यह सिख लेना चाहिए | तब तो राह में पडा पत्थर भी सिधिया बन जाते है और जब हम परिस्थितियों को गलत ढंग से लेने के आदि हो जाते है तो सिधिया भी मंदिर की पत्थर मालुम पड़ने लगती है , दुर्भाग्य अवसर बन सकते है | उसे हम कैसे लेते है , हमारे देखने की दृष्टि क्या है ? हमारी पकड क्या है , जीवन का कोण हमारा क्या है , हम कैसे जीवन को लेते और देखते है ? आशा से भरकर जीवन को देखना चाहिए |

Friday, May 24, 2019

हमारी प्यारी धरती ---- खतरे में

हमारी प्यारी धरती ---- खतरे में


वर्ष 1945 से 2019 के बीच इस विश्व में कुल 2056 आणविक परिक्षण हुए है , जिसमे से संयुक्त राज्य अमरीका में 1030 , रूस में 715 फ्रांस में 210 , चीन में 45 इंग्लैण्ड में 45 नार्थ कोरिया में 6 और भारत में 3 और पाकिस्तान में 2 परीक्षण हुए | आणविक विखण्डन की घटना पहली बार 17 दिसम्बर 1938 को दो जर्मन वैज्ञानिकों - ओटो हाँन व फ्रीटज स्ट्रासमैंन - के समक्ष घटी | युरेनियम के अणुओ की न्यूट्रान से प्रतिक्रिया करवाते हुए उन्हें एक नया तत्व मिला - बेरियम | इस प्रतिक्रिया के दौरान युरेनियम का अणु- विभाजन हो गया और इससे बेरियम के साथ - साथ एक महाऊर्जा उत्पन्न हुई | इसी घटना से पैदा हुए भयंकर तबाही की सम्भावना वाले आणविक हथियार | आज विश्व के 9 देशो के पास 14215 आणविक शस्त्र है जिसमे से 92% अमरीका और रूस के पास है | यह सारे हथियार इस पृथ्वी को कई बार नष्ट करने के लिए पर्याप्त है | विश्व का पहला आणविक परीक्षण अमरीका के न्यू मेकिसको में 16 जुलाई 1945 में किया गया | इसी वर्ष अमरीका के राष्ट्रपति ट्रूमैन ने जापान के दो नगरो - हिरोशिमा और नागासाकी - पर अगस्त 6 और अगस्त 9 -1945 को आणविक बम गिराने का आदेश दिया | ये आणविक विस्फोट मनुष्यता के इतिहास में सर्वाधिक विनाश और संहार के प्रतीक बन गये | लगभग 250000 लोग धरती से मानो लुप्त हो गये |
इन विस्फोटो के दशको पश्चात तक जापान में हजारो लोग आणविक विकिरण के प्रभाव से कैंसर से पीड़ित होते रहे , हजारो लोगो की कैंसर से मौत होती रही जो लोग बचे उन्होंने अपग और रुगण बच्चो को जन्म दिया | विश्व भर में जिन जगहों पर हजारो आणविक परीक्षण हुए वहां उनके प्रभाव में कोई आकंडे उपलब्ध नही है , क्योकि प्रत्येक देश अपनी इन जानकारी को गोपनीय रखता है | इन आणविक परीक्षणों के अतिरिक्त बहुत - सी दुर्घटनाये हुई जिनसे वातावरण में आणविक विकिरण का रिसाव हुआ | वर्ष 1964 में एक अमरीकी सैटेलाईट जिसमे प्लूटोनियम था , अन्तरिक्ष में विस्फोटित हो गया जिससे बड़ी मात्रा में आणविक प्रदूषण धरती के वातावरण में आ गया | वर्ष 1978 में एक रुसी सैटेलाईट जो आणविक ऊर्जा से संचालित था , दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसके टुकड़े उत्तरी कनाडा में जा गिरा | आणविक हथियार लेकर जाते दो अमरीका वायुयान स्पेन और ग्रीनलैंड में वर्ष 1966 और 1968 में दुर्घटनाग्रस्त होकर गिरे |
इनके अलावा इंग्लैण्ड , अमरीका और स्विट्जरलैंड के आणविक रिएक्टरो में दुर्घटनाये हुई जिनसे भारी नुक्सान हुआ | इन सभी दुर्घटनाओ में से सर्वाधिक भयंकर रही रूस के चेनोर्विल और जापान के फुकुशिमा की आणविक दुर्घटनाये | चेनोर्विल में हुई दुर्घटना से एक लाख से अधिक लोगो ने हमेशा के लिए अपने घर , नौकरिया और सामजिक सुरक्षा गँवा दिए | 1986 में घटी इस भयंकर घटना के कारण हजारो लोग कैंसर के शिकार हुए | इस घटना क दुष्परिणाम के सही सही आकंडे आज भी ज्ञात नही है | जापान के फुकुशिमा में 11 मार्च 2011 को एक तीव्र भूंकप के बाद समुद्र से 15 मीटर सुनामी उठी जिसने फुकुशिमा - दाईची आणविक केंद्र के तीन आणविक सयंत्रो को अपनी चपेट में ले लिया | पहले तीन दिन में यह तीनो सयंत्र पिघल गये और समुद्र के जल में भारी आणविक रिसाव हुआ | इस क्षेत्र से लगभग एक लाख लोगो को निकाला गया और 1000 लोगो की मौत हो गयी | पिछले 8 दशको में हुए इन सभी आणविक विस्फोटो , परीक्षणों और दुर्घटनाओ से धरती के वातावरण में भारी मात्रा में आणविक विकिरण का रिसाव हुआ | यह रेडियोएक्टिव सामग्री बहुत हल्की होती है और हवा के साथ दूर - दूर तक आसानी से फ़ैल जाती है , | वर्षा के चलते तो यह धरती में चली जाती है , लेकिन बात यही नही खतम होती - इस भयानक सामग्री की बहुत बड़ी मात्रा हमारी हिम खंडो में जाकर समा गयी है जो विश्व भर में फैले हैं | मई 2019 में वियना में हुई एक वैज्ञानिक सभा में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने विश्व को एक बड़े खतरे से अवगत कराया | उनके परीक्षणों से पता चला है कि आर्कटिक , आइसलैंड , एल्पस -ककाक्स पर्वतों , ब्रिटिश कोलम्बिया और अन्टार्कटिका के हिम खंडो में रेडियो - एक्टिव तत्व भारी मात्रा में जमा हो गये है | बर्फ एक ऐसा प्रदार्थ है जिसमे आणविक सामग्री कई दशको तक सक्रिय अवस्था में रह सकती है | बढती हुई जागतिक उष्मा से इन हिम - खंडो के पिघलने की सम्भावना तेजी से बढ़ रही है | इन सभी हिम खंडो में रहने वाले प्राणियों के शरीरो में सामान्य से 10 गुना अधिक कैसियम पाया गया है जो एक आणविक प्रदार्थ है | आज भी आये दिन एक दुसरे देश को आणविक हमले की धमकी देता दिखाई देता है | अब विश्व में एक भी आणविक परिक्षण नही होना चाहिए और विश्व भर के देशो के वैज्ञानिकों को इन हिम - खंडो को सुरक्षित रखने के उपाए निकालने होंगे | यदि हमारे राजनेता युद्ध का उन्माद फैलाते या युद्ध की तैयारी करते दिखे तो सबके द्वारा उनका जमकर विरोध होना चाहिए , क्योकि प्रशन किसी को सबक सिखाने या किसी से बदला लेने का नहीं हमारे जीवन और भविष्य का हैं |
आभार ----येस ओशो