Wednesday, September 28, 2016

भारतीय शिक्षा की वास्तविक समस्याए 28-9-16

भारतीय शिक्षा की वास्तविक समस्याए
इन दिनों शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की बाते काफी जोरो से की जा रही है | इस बात की जरूरत भी लम्बे समय से महसूस की जा रही थी | सुधार की इन बातो के दो सिरे है --- पहला सिरा शिक्षा के इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के बारे में है और दूसरा विचारधारात्म्क | इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास की ज्यादातर बाते ऑनलाइन और सुचना क्रान्ति से जुडी सुविधाओं को स्कूलों को मुहैया कराने तक सीमित है | दूसरा गंभीर पहलु विचारधारात्मक है | इसका सम्बन्ध पाठ्यक्रमो के नवीनीकरण , परिवर्तन आदि से है |
यहनवीनीकरण या परिवर्तन मोटे तौर पर राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के विचारधारात्मक लक्ष्यों से सम्बन्धित है |
अब देखते है कि भारतीय शिक्षा की मूल समस्याए क्या है ---
1 --- भारतीय शिक्षा की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह दो हिस्सों में बटी है | गरीबो के लिए शिक्षा और अमीरों के लिए शिक्षा | इसके अनुसार ही स्कूलों की सारी व्यवस्था , शिक्षा का माध्यम आदि सभी बातो का निर्धारण होता है |
2 - शिक्षा का अल्पमत सरकारी बजट , जिसका अधिकाश हिस्सा शिक्षा पर खर्च न होकर बहुत तरह के निहित स्वार्थो की सेवा में खर्च होता है |
3 - उच्च शिक्षा की सारी व्यवस्था अमीर तबके के लिए है , जिसे अंतिम रूप से सुनिश्चित करने के लिए अंग्रेजी माध्यम के रूप में अप्रश्नेय इस्तेमाल है | यह प्रत्यक्ष तौर पर एक वर्ग की शिक्षा पर और शिक्षा के जरिये उच्चस्तरीय नौकरियों पर सम्पूर्ण और अभेद्य आरक्षण है | इस लक्ष्य के लिए एक विदेशी और औपनिवेशिक भाषा का दुरपयोग है | जिसका परिणाम राष्ट्रव्यापी हीनभावना का संचार है , प्रतिभा का हनन है और शिक्षा का सम्पूर्ण और एकमात्र लक्ष्य अर्थव्यवस्था और सुविधाओं में एक बहुत छोटे से वर्ग का एकाधिकार है |
4 - सुचना क्रांति का इस्तेमाल देशी हितो के लिए न होकर वैश्विक रूप से ताकतवर देशो के लिए इस प्रकार किया जा रहा है ताकि शिक्षा के जरिये अन्य देशो को अर्धशिक्षित वर्कपावर उनकी जरूरत के मुताबिक़ उपलब्ध हो सके |
5 - आधुनिक भारत ने राजा राममोहन राय से लेकर महात्मा गांधी तक विचारों की दो सौ साल लम्बी जद्दोजहद के बाद स्वरूप लेना आरम्भ किया था | स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ये मूल्य सशक्त हुए और उन सामाजिक मूल्यों में बदले जिन पर हमारी शिक्षा का ढाचा खड़ा होना था | इन मूल्यों को हमारी शिक्षा - प्रणाली उसके पाठ्यक्रम गुजरे वर्षो में सशक्त और प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रहे है और अब तो इन मूल्यों को अनावश्यक करार दिए जाने की योजनाबद्द कोशिश की जा रही है |
6 - भारत एक बहुसांस्कृतिक देश है | यह बहुलता , क्षेत्रीय भी है और सांस्कृतिक भी है | हमारी शिक्षा में उत्तर भारत की धार्मिक संस्कृतिक से इतर परम्पराओं की शिनाख्त भी नही है |
7 - शिक्षा के य्द्देश्य के रूप में लगातार आजीविका पर गैरजरूरी बल दिया जा रहा है , इसका परिणाम यह हुआ कि शिक्षा से मूल्य और मनुष्यता का विलोप हुआ है , जबकि यह बहुत बड़ा सच है की शिक्षा का रोजगार से वैसा प्रत्यक्ष सम्बन्ध हो ही नही सकता , कयोकी जब अर्थव्यवस्था रोजगार न उत्पन्न कर सके तो आजीविका के लिए शिक्षित होने मात्र से रोजगार कैसे मिल जाएगा ? यानी यह मामला ऐसा है की समस्या की जड़ कही है , इलाज कही किया जा रहा है |
ये कुछ मुख्य बिंदु थे | संक्षेप में भारत को आधुनिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण बहुलतावादी संस्कृति , 19 वी सदी के भारतीय पुनर्जागरण और स्वतंत्रता आन्दोलन के मूल्यों पर आधारित शिक्षा - व्यवस्था , शिक्षा के इन्फ्रास्टक्चर पाठ्यक्रमो की आवश्यका है , जो देश के करोड़ो बच्चो युवाओं को शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल कर सके | यह शिक्षा वर्ग - भेद को खत्म करने का माध्यम बने , न कि उसे और सुदृढ़ करने और संरक्षित करने का उपकरण मात्र बनकर रह जाए , जैसी कि वह आज है | यह शिक्षा बच्चे के मष्तिष्क को धार्मिक , जातीय क्षेत्रीय , सामजिक पूर्वाग्रहों से मुक्त करे और उसके अस्तित्व को बेहतर ढंग से निर्मित करे | शिक्षा राष्ट्रवाद की राजनीति की प्रयोगशाला न बने , बल्कि ऐसी हो जिसके भीतर से यह राष्ट्र अपनी भावी पीढी के रूप में भाषा और सामाजिक स्तर की हीन भावना से मुक्त हो सके |
अहा ! जिन्दगी ---- सम्पादक आलोक श्रीवास्तव

Monday, September 26, 2016

भारतीय नारी दशा और दिशा 27- 9 - 19

​सिंह की तरह गर्जना है --
स्वरागिनी जन विकास समिति द्वारा सेवा सदन में दिनाक 10 सितम्बर दिन शनिवार को सेवा सदन में भारतीय नारी दशा और दिशा पर राष्ट्रीय संगोष्टी आयोजित की गयी |
स्वरागिनी संगीत संस्था व स्वरागिनी जन विकास समिति के अध्यक्षा श्रीमती अंजना सक्सेना ने कहा कि हमारा देश विविधताओ में एक है देश में अराजकता बढती जा रही है आज समाज किस दिशा की और मुड रहा है समाज में रहने वालो को खुद ही पता नही ऐसे में कबीर साहब प्रासंगिक हो जाते है और हम व हमारे साथियो ने अपनी संस्था के माध्यम से जनचेतना लाने के लिए स्लम एरिया के साथ गाँव - गिरांव में - - शिक्षा स्वास्थ्य , सूफी संगीत संगीत के साथ ही हमारे भविष्य के लिए हमारे क्रांतिवीरो ने अपने वर्तमान की चिंता किये बिना अपना वर्तमान हमारे लिए आहूत कर दी थी यही स्वरागिनी सामाजिक जन विकास समिति का मुख्य उद्देश्य है कि हम इन सारे विषयों पर जनजागरण करे | स्वागत के क्रम में संस्था के संरक्षक श्री सचिन सक्सेना ने कहा कि आज वर्तमान में देश अस्त - व्यस्त है धर्मांध का जोर है ऐसे में जो संवेदी प्रबुद्द जन है उन्हें समाज के इन विषमताओ के खिलाफ सामने आना चाहिए इस समस्याओं पर हमारी संस्था ने एक छोटी सी पहल कि है हम आप उपस्थित जनों से आशीर्वाद कि आशा रखते है
संगोष्टी का आरम्भ बनारस से आये अवाम का सिनेमा के प्रवक्ता व नेशनल लोकरंग एकेडमी उत्तर प्रदेश के महासचिव कबीर द्वारा विषय प्रवर्तन करते हुए उन्होंने कहा कि मैं भारतीय नारी हूँ -- भारतीय नारी मेरी कहानी अभिशप्त कि है , इस कहानी के प्रसार पर वेदना का विस्तार है , रक्त का रंग उस पर चढा है दुर्भाग्य के कीचड़ में वह सनी है | मैं नारी हूँ |
पितृसत्ताक - युग से पूर्व मातृसत्ताक युग कि भारतीय नारी , जिसने वनों का शासन किया , जनों का निग्रह | तब मैं नितांत नग्नावस्था में गिरी शिखरों पर कुलाँच भर्ती थी गुफा - कंदराओ में शयन करती थी वन - वृक्षों को आपाद मस्तक नाप लेती थी तीव्र्गतिका नदियों का अवगाहन करती थी शक्ति परिचायक मेरे अंगो में तब स्फूर्ति थी | शशक कि गति का मैं मैं परिहास , मृग कि कुलाच का तिरस्कार | सूअर को मैं अपने पत्थर के भाले पर तौल लेती थी और सिंह कि लटो से मैं बच्चो के झूले बांधती थी |सिंघ्वाहिनी थी तब मैं काल्पनिक दुर्गा नही प्रयोग सिद्द चण्डी थी मैं | व् गोष्ठी के क्रम को आगे बढाते हुए प्रो लक्ष्मण शिंदे ने कहा कि आज वर्तमान में नारी शकतीशाली हुई है पर आज भी नारी का तिरस्कार जारी है उन्होंने कहा कि आज जरूरत है कि नारी स्वंय पहल करे आज नारी पुरुषो से कन्धा मिलाकर काम कर रही है |
गोष्ठी कि विशिष्ठ वक्ता सामाजिक कार्यकत्री सुश्री पुष्पा सिन्हा ने इस विषय पर बोलते हुए कहा कि आज कि
औरतो ने विकास किया है पर आज भी भारत कि महिलाए आधे से ज्यादा आबादी में उनकी जिन्दगी कि कथा त्रासदी की है इसके साथ ही उन्होंने कही कि ऐसा नही है कि सिर्फ आम आदमी कि नारिया पीड़ित है जो समाज के उच्च तबका है उनके यहाँ कि नारीअपने पर होने वाले अत्याचारों को व्यक्त नही कर पाती है न ही वो अपने आसुओ को निकाल नही पाती है इनसे अच्छा तोआम आदमी की औरते है जो कम से कम खुलकर रो लेती है | पुष्पा दीदी ने कहा कि आज भी गाँव - गिरांव में नब्बे प्रतिशत औरते ही काम करती है और उनके पति दिन भर ताश खेलते रहते वही बाई काम से लौटकर फिर अपने घर का काम समेटती है और इसके बाद भी पुरुष प्रताड़ित करता है | औरत कि सारी कमाई मर्द के जेब में चला जाता है इसके साथ ही पुष्पा दीदी ने आगे कहा कि ऐसा नही कि यह नीचले तबके में ही है यह समाज के हर तबके में स्त्री प्रताड़ित है हां प्रताड़ना का स्वरूप अलग होता है और इन सब बातो के लिए नारी स्वय जिम्मेवार है |भारतीय नारी को अपने स्वंय के मनोबल को दृढ करना होगा यह सोचना होगा कि सामने वाला कुछ नही कर सकता अगर हमारा संकल्प मजबूत है हमारी आँखों में '' संघर्ष सामने है सही पर जोर लगाकर बंधन तोड़ दूंगी | आगे कि मंजिल सर करुँगी जिन्होंने लाल सूरज को छिपाकर रखा है || गुरुग्राम, संगोष्ठी कि अध्यक्षता करते हुए हरियाणा से पधारे स्वनामधन्य श्री श्याम "स्नेही" जी ने सेमीनार के केंद्र बिंदु "भारतीय नारी की दशा-दिशा" के संदर्भ में बोलते हुए जहाँ एक ओर पुरुष प्रताड़ित महिला की शब्दों में समुचित व्याख्या की श्रोता स्वत: उस बहती गंगा में अवगाहन करने लगे।वहीं दूसरी ओर महिला के कर्तव्य और अधिकार के साथ सनातन संस्कृति के रक्षिका के रुप में भी चिन्हित किया। देश और मानवता की जन्मदात्री जननी बताया वहीं, अवांछित और अराजक तत्वों के हाथों तब्दील होते समाज विरोधी ताकतों से अवगत कराया। जिसमें बोतल पर पलते बच्चों के अन्धकार पूर्ण भविष्य की ओर इशारा किया। कबीर को उद्धृत करते हुए राष्ट्र एकता के निमित्त कालोचित प्रासंगिक बताया, वहीं उनके अन्तरभावों को प्रचार-प्रसार करने पर बल दिया। गुरुग्राम, हरियाणा से पधारे स्वनामधन्य श्री श्याम "स्नेही" जी ने सेमीनार के केंद्र बिंदु "भारतीय नारी की दशा-दिशा" के संदर्भ में बोलते हुए जहाँ एक ओर पुरुष प्रताड़ित महिला की शब्दों में समुचित व्याख्या की श्रोता स्वत: उस बहती गंगा में अवगाहन करने लगे।वहीं दूसरी ओर महिला के कर्तव्य और अधिकार के साथ सनातन संस्कृति के रक्षिका के रुप में भी चिन्हित किया। देश और मानवता की जन्मदात्री जननी बताया वहीं, अवांछित और अराजक तत्वों के हाथों तब्दील होते समाज विरोधी ताकतों से अवगत कराया। जिसमें बोतल पर पलते बच्चों के अन्धकार पूर्ण भविष्य की ओर इशारा किया। कबीर को उद्धृत करते हुए राष्ट्र एकता के निमित्त कालोचित प्रासंगिक बताया, वहीं उनके अन्तरभावों को प्रचार-प्रसार करने पर बल दिया। स्वरागिनी संगीत संस्था व स्वरागिनी जन विकास समिति के अध्यक्षा श्रीमती अंजना सक्सेना ने कहा कि आह्मारा देश विविधताओ में एक है देश में अराजकता बढ़ी हुयी है आज समाज किस दिशा कि और मुद रहा है समाज में रहने वालो को खुद ही पता नही ऐसे में कबीर साहब पार्स्न्गिक हो जाते है और हम व हमारे साथियो ने अपनी संता के माध्यम से जनचेतना लाने के लिए स्लम एरिया के साथ गाँव - गिरांव में \शिक्षा स्वास्थ्य , सुफु स्नागीत संगीत के साथ ही हमारे भविष्य के लिए हमारे कारनिवीरो ने अपने भविष्य कि चिंता किये बिना अपना वर्तमान हमारे लिए आहूत कर दी थी यही स्वरागिनी सामाजिक जन विकास समिति का मुख्य उद्देश्य है |इस गोष्ठी में श्रीमती सीमा मोटे , श्रीमती निर्मला सिंह .,श्री हरे राम वाजपेयी श्री नयन राठी श्रीमती सुभद्रा खापर्डे डा सुरेश पटेल शुशीला सेन ओमप्रकाश सोमानी समाजसेवी व साहित्यकारों का अंगवस्त्रम द्वारा उनका अभिनन्दन किया गया कार्यक्रम की शुरुआत स्वरागिनी संगीत संस्था के उदिता आशय कशिश , कुशल , ईशान उदित द्वारा कबीर के दोहे से किया गया उसके बाद श्रीमती अलका कपूर द्वारा कबीर भजन गया गया | धन्यवाद ज्ञापन कबीर गायक डा दशरथ यादव जी ने किया इस कार्यक्रम में उपस्थित लोगो में श्री सचिन सक्सेना . नरेंद्र बागौरा . ओम विजय वर्गीय , संजय श्रीवास्तव , महेश यादव श्रीमती अर्चना वर्गीय , श्रीमती अमिता , मीरा राजदान , श्रीमती रेखा यादव श्रीमती हंजा बाई श्री तेजू लाल यादव आदि लोग उपस्थित रहे |