क्रांतिवीर करतार सिंह सराभा
जो कोई पूछे कि कौन हो तुम , तो कह दो बागी है नाम मेरा |
जुल्म मिटाना हमारा पेशा , गदर करना है काम अपना |
नमाज संध्या यही हमारी , और पाठ पूजा सभी यही है ,
धरम- करम सब यही है हमारा , यही खुदा और राम अपना | सराभा
बेशक सराभा के बचपन के बारे में अधिकतर विवरण उपलब्ध नही है , फिर भी यह जरूरी पता लगता है कि करतार सिंह 24 मई 1896 को लुधियाना जिले के गाँव सराभा में सरदार मंगल सिंह और बीबी साहिब कौर के घर पैदा हुआ और कम उम्र में ही उसे ही माँ - बाप की मृत्यु का आघात सहना पडा | उसकी परवरिश की जिम्मेदारी पूरी तरह उसके दादा सरदार बदन सिंह पर आन पड़ी थी | करतार सिंह अपने माँ - बाप का इकलौता पुत्र था | उसकी एक बहन भी थी , जिसका नाम था धन कौर | दादा करतार से बेहद प्रेम करते थे | वह उसे खेती बाड़ी के काम में नही डालना चाहते थे उनकी इच्छा थी कि करतार पढ़ लिख कर किसी अच्छे रोजगार में लग जाए | करतार का गाँव के प्राथमिक स्कूल में दाखिला करवा दिया गया | प्राथमिक शिक्षा के बाद वह गुजरवाल के वर्नैकुलर मिडल स्कूल का विद्यार्थी बना , फिर लुधियाना के मालवा खालसा हाई स्कूल में जा दाखिला लिया |स्कूल की पढ़ाई के दौरान करतार सिंह साथियो का अगुवा और हरमन प्यारा विद्यार्थी था | चुस्त चालाक भी बहुत था | वह हंसमुख और मसखरे स्वभाव का भी था | उसकी सर्वप्रियता के कारण दूसरे विद्यार्थी उसका साथ पाने के लिए उतावले रहते थे | वास्तव में होनहार चुस्त और होशियार करतार सिंह शुरू से ही नेतृत्व के गुण थे | उसकी इसी योग्यता के कारण उसके साथी उसे 'अफलातु ' कहकर बुलाते थे | 'अफलातु ' कहने का भाव था कि उसमे अजीब और अनहोनी बाते करने की योग्यता और दिलेरी थी | उम्र के अगले पड़ाव में उसने अपने इन्ही गुणों का भरपूर प्रदर्शन किया | कई साथी उसकी फुर्ती और तेजी से प्रभावित होकर मजाक में उसे ' उड़ता साँप' भी कहते थे |
मालवा स्कूल में सातवी कशा में पढ़ते हुए उसने भोलेपन वाली चुस्ती और होशियारी के चलते सोचा कि क्यों झूठा सार्टिफिकेट बनाकर नौवी में दाखिला ले लिया जाए और उच्च शिक्षा का लक्ष्य एक दो साल पहले ही पूरा कर लिया जाए |
उसने मालवा स्कूल से सातवी का सार्टिफिकेट लिया और उसे नौवी का बनाकर आर्य स्कूल में दाखिल हो गया | पहले तो स्कूल वालो को कुछ पता ही नही लगा , बाद में पता लगने पर स्कूल वालो ने एक्शन लेने की सोची तो करतार को भनक लग गयी | आगे की पढ़ाई के लिए वह उड़ीसा में अपने चाचा बख्शीश सिंह के पास चला गया और वहा जाकर दसवी पास करने के बाद कालिज में दाखिला ले लिया | नया से नया ज्ञान हासिल करने की तलब के चलते वे पाठ्य पुस्तके पढने के अलावा और भी बहुत सारा साहित्य पढता रहा था | सार्टिफिकेट में बदलाव करके नौवी में दाखिल होने की कोशिश से उसके स्वभाव के इस पक्ष का पता चलता है कि उसे ऊँची मंजिल छूने की ' कितनी चाहता थी और वह जल्दी से जल्दी बड़ा मुकाम हासिल करने का अभिलाषी था |
चाचा के पास रहकर पढ़ते हुए उसे अंग्रेजी बोलने और लिखने का अच्छा अभ्यास हो गया | वह अंग्रेजी साहित्य पढने में दिलचस्पी लेने लगा | उस समय बंगाल और उड़ीसा आदि इलाको में बहुत हद तक राजनितिक चेतना पैदा हो चुकी थी | सराभा स्कूली पुस्तको के अलावा चूँकि दुसरे साहित्य भी पढता रहता था | इसलिए उस पर इस राजनितिक जागृति का भी प्रभाव पड़ना शुरू हो गया | देश प्रेम और देश सेवा भावना उसके अन्दर कुलबुलाने लगी |
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