बचपन के संघर्षों में जीवन की मरुभूमि में
एक विचारों का योद्धा बना दिया।
विचारों की धार बहनी चहिए,
बचपन की लहर में।
आभासी दुनिया से निकलकर
समाज के वास्तविक धरातल पर
आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
(बाबू जी)
का अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य चर्चा के लिए
आमन्त्रण शायद मेरे एक नये चरित्र को गढ़ने की
शुरूआत बनने जा रही है।
हृदय के सागर में ज्वारभाटे की तरह
शब्द उद्वेलित होते चले गये।
और यही कारण है कि ब्लॉग
"शरारती बचपन"
से एक नयी शुरूआत के नेपथ्य में
बाल साहित्य पुरातन व अद्यतन
के परिवेश में
बालकों को परिचित कराना।
अतीत के महत्वपूर्ण दस्तावेज
संस्कृति-सभ्यता के गौरव से जुड़ा
विस्तृत कलासंस्कृति, पुरातन लोक कला
सिनेमा, क्रान्तिकारियों के उस यथार्थ से
साक्षात्कार कराना व भारतीय गौरवशाली इतिहास से
परिचित कराने के लिए मैंने
आदरणीय बाबू जी से
विनम्र आग्रह किया
और उन्होंने देवभूमि खटीमा (उत्तराखण्ड)
की सरजमीं पर
मेरे नये चरित्र की शुरूआत कर दी और
आशीर्वादस्वरूप
"शरारती बचपन"
ब्लॉग बनाकर अपना स्नेह प्रदान किया।
इसके साथ ही अद्वतीय अनमोल व्यक्तित्व
डॉ.सिद्धेश्वर सिंह (गाजीपुर)
से सम्बन्ध रखने वाले
छोटे भाई से मुलाकात भी मेरे लिए गौरव की बात है।
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