Saturday, October 25, 2014

मेरे प्यारे -----


             शरारती साथियो ---


बचपन अपने आप में बहुत ही अदभुत होता है . ना जाने यह बचपन हम लोगो से कौन - कौन से खेल दिखता है शायद  बचपन में पढ़ी कोई बात हमारे जीवन के चरित्र को बनाने में बड़ा सहायक सिद्द हो हम बदमाशिया करे हम अपने बचपन को को भरपुर जिए मगर साथ में हमको क्या बनना है बड़े होकर इसको भी तय करे ? 

आओ आज विश्व के महान  वैज्ञानिक  ----



जिनके हम ऋणी है ---- अलेक्जेंडर ग्राहम बेल


आज की दुनिया बड़ी तेजी से चल रही है और बदल भी रही है --- आज हम  जिस ग्लोबल दुनिया में जी रहे  है उसमे एक ऐसे यंत्र का योगदान है जिसके बिना अब हम जी भी नही सकते है वो है टेलीफोन -- आज हम ले चलते है टेलीफोन के उस अविष्कारक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल के पास अगर उन्होंने इस यंत्र को ईजाद न किया होता तो शायद हम इस ग्लोबल दुनिया में नही जीते -----

तीसरे पहर का समय था बोर्डिंग -- हाउस के एक पुराने कमरे में बिजली के तार  बिखरे हुए थे | तारो के जाल में उलझा हुआ एक आदमी उपर के मंजिल में और दूसरे निचली मंजिल के एक कमरे में बैठा था | उपर कमरे में बैठा हुआ आदमी एक भद्दा सा यंत्र मुख से लगाये  बार - बार एक वाक्य बोल रहा था और नीचे बैठा हुआ आदमी उस वाक्य को सुनने का प्रयतन कर रहा था | अकस्मात नीचे बैठा हुआ आदमी अपना यंत्र फेंककर उठा और तेजी से उपरी मंजिल की और भभागा | उपर पहुचते ही वह ख़ुशी से चिल्लाया -- मैंने बात सुन ली | ईश्वर की सौगंध साफ़ सुनाई देती है | आपने कहा था --- '' यहाँ आइये मुझे आपकी जरूरत है '' | तारो में उलझा हुआ आदमी हँसने लगा -- '' ईश्वर का धन्यवाद है मुझे अपनी कई वर्ष की मेहनत का फल मिल गया '' |


यह महान वैज्ञानिक कोई और नही अलेक्जेंडर ग्ग्राहम  बेल थे | उन्होंने अपने साथी वाटसन से ( जो निचले कमरे में थे ) बाते की थी और जिस यंत्र पर ग्राहम बेल ने बात की थी , उसे आज हम टेलीफोन कहते है |

ग्राहम  बेल स्काटलैंड के एक नगर एडनबरा में जन्मे थे | उनके पिता प्रसिद्द आदमी थे | बेल के पिता ने गुंगो और बहरो को पढाने के लिए नये ढंग का आविष्कार किया था | ग्राहम बेल शुरू  में अपने नगर में पढ़ते रहे | फिर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए लन्दन भेजा गया | बाद में उन्होंने जर्मनी से पी . एच . डी की डिग्री प्राप्त की | शिक्षा के बाद घर वापस आये तो उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ चूका था | डाक्टरों ने कहा कि बेल को क्षयरोग होने की आशका है | उनके पिता को बहुत चिंता हुई | वह तत्काल बेटे को अपने साथ लेकर कनाडा चले गये | कनाडा में बेल का स्वास्थ्य सुधर गया |
ग्राहम बेल को बचपन से ही नई चीजे मालूम करने का शौक था | जब वह स्कूल में पढ़ते थे . तो एक दिन मित्रो के साथ एक पहाड़ी पर गये | वहा आटा पिसने का एक कारखाना था और बहुत सी गेहू की बालिया पड़ी थी | कारखाने के स्वामी ने सब लडको को एक -- एक बाली दी | बाकी लडको ने तो बालिया फेंक दी . लेकिन बेल बाली घर ले आये | उन्हें एक नई बात सूझी | झट जेब से नाख़ून तराश निकला और  उससे गेंहू के दानो को अलग -- अलग करने लगे | उन्होंने देखा कि इस ढंग से दाने बहुत जल्दी और  सफाई से निकल आते है | बेल ने अपना यह प्रयोग कारखाने के स्वामी को लिख भेजा | स्वामी ने उनको धन्यवाद किया और बालियों से गेंहू निकालने के लिए नाख़ून तराश से मिलती -- जुलती कई मशीन बनवा ली |
जब बेल का स्वास्थ्य ठीक हो गया तो उन्होंने अमरीका के पुराने नगर बोस्टन में एक स्कुल खोल लिया | इस स्कुल में बेल उन अध्यापको को प्रशिक्ष्ण  देते जो बहरो को पढाते थे | बेल को विश्व विद्यालय में प्रोफ़ेसर बना दिया गया | उन्ही दिनों बेल की मुलाक़ात एक भरी लडकी से हुई | यह लड़की बेल के काम    में बहुत मदद करती थी | बाद में दोनों ने विवाह कर लिया | बहरो को पढ़ाते -- पढ़ाते बेल ने सोचा कि किसी ऐसे यंत्र का आविष्कार करना चाहिए जिससे कई मील दूर बैठे हुए आदमी से बात की जा सके | उन्होंने सोचा कि बिजली की शक्ति के जरिये मनुष्य की आवाज एक जगह से दूसरी जगह पहुच सकती है |
मनुष्य के कान की बनावट का पता चला , तो बेल ने बोस्टन के एक बोर्डिंग -- हॉउस में दो कमरे किराए पर लिए और प्रयोगों में व्यस्त हो गये | कई दिन की लगातार मेहनत के बाद आखिर उन्होंने एक भद्दा यंत्र तैयार कर लिया | इस यंत्र से बेल ने अपने सहायक से यह बात कही , मिस्टर वाटसन , यहाँ आइये , मुझे आपकी जरूरत है |

ग्राहम बेल अपने आविष्कार पर बहुत परसन्न हुए | उन दिनों नगर में एक प्रदर्शनी लगी हुई थी | बेल ने लोगो को दिखाने के लिए अपना यंत्र प्रदर्शनी में रख दिया < लेकिन किसी ने उस यंत्र में रूचि नही ली | इस बात से बेल को बड़ा दुःख हुआ | सयोगवश ब्राजील के सम्राट को , जो प्रदर्शनी देख रहे थे , इस आविष्कार का पता चला | उन्होंने टेलीफोन का चोगा कान पर रखकर ग्राहम बेल से कहा -- '' आप मुझसे कोई बात करे "

बेल ने अपने यंत्र से शेक्सपियर के प्रसिद्द नाटक से एक वाक्य बोला | दूसरी और खड़े ब्राजील के सम्राट उछल पड़े  '' बिलकुल साफ़ आवाज आती है ''  सम्राट इस आविष्कार से खुश हुए , तो सब लोग रूचि लेने लगे और बेल प्रख्यात हो गये |
इधर बेल का आविष्कार सफल हुआ , उधर कई अन्य लोग भी टेलीफोन के अविष्कारक बन बैठे | बेल के लिए बड़ी कठिनाई पैदा हो गयी | कई दावेदारों ने बेल पर मुकदमे कर दिए | बेल एक अवधि तक अदालतों में फंसे रहे | आखिर वह मुकदमा जीत गये और सबने मान लिया कि असल आविष्कार ग्राहम  बेल का है | अब बेल लोगो के लिए टेलीफोन तैयार करना चाहते थे लेकिन उनके पास रुपया नही था | उन्होंने कई लोगो से मदद मांगी | जब रुपयों का प्रबंध हो गया , तो टेलीफोन तैयार होने लगा | इससे बेल के पास धन का पर्याप्त संचय होने लगा |
ग्राहम  बेल ने अपने नाम से एक कम्पनी तैयार की | उसमे तीन भागीदार थे | कम्पनी ने व्यसाय शुरू कर दिया , लेकिन बेल को व्यवसाय से कोई दिलचस्पी नही थी | उन्होंने सोचा कि अब दूसरी चीज का आविष्कार होना चाहिए | बेल ने फोटोफोंन और ग्रामाफोन का आविष्कार किया | उन्होंने एक ऐसी पतंग तैयार की , जिसमे बैठकर एक आदमी उड़ सकता था | यह पतंग कुछ ऊँची उड़कर नीचे गिर पड़ी | अब बेल भेड़ो पर प्रयोग करने लगे | उनका विचार था कि वह ऐसी भेड़ पैदा करने में सफल हो जाए , जो सदा जुडवा बच्चे दिया करेगी | बेल का यह प्रयोग सफल नही हुआ | बेल ने एक कुत्ते को मानवीय बोली सिखानी शुरू की थी | यह कुत्ता थोड़ा बहुत बोलने भी लगा | लोगो को पता चला , तो दूर -- दूर से उस कुत्ते को देखने के लिए आए |


ग्राहम बेल बहुत समय के बाद अपने नगर एडनबरा लौटे | अब वह प्रख्यात आदमी थे | बेल के नगर के लोगो ने उनका बड़ा सम्मान किया | आखिर 1922 में अगस्त की दो तारीख को ग्राहम बेल का देहान्त हो गया |

आज हम टेलीफोन के द्वारा घर बैठे दूर से दूर बैठे अपने परिचितों से बाते कर लेते है जब भी टेलीफोन की गनती बजती है ग्राहम बेल के याद ताजा हो जाती है | वर्तमान दौर की सुचना -- क्रान्ति और उसका लाभ उठा रहा मानव समाज इस सुचना -- क्रान्ति के प्रारम्भिक पर महान अविष्कारक ग्राहम बेल के ऋणी है और ता उम्र ऋणी रहेगे |


-सुनील दत्ता
  स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक
                             
   आभार सुरजीत की पुस्तक '' प्रसिद्द वैज्ञानिक और उनके आविष्कार '' से

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (27-10-2014) को "देश जश्न में डूबा हुआ" (चर्चा मंच-1779) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बाबू जी आपका आशीर्वाद मिलता रहे यही कामना करता हूँ --- आदरणीय प्रतिभा जी आपने मेरे ब्लॉग को देखा और अपने विचार दिए आपको प्रणाम करता हूँ | मुझे आशा है कि आप मुझे अपने सुझाव से और परिष्कृत करेगी

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  3. Bahut rochak va sunder jaankari...aabhar !!

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  4. आप सबका बहुत - बहुत आभार

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