दिल्ली की अदालत में ------------ भगत सिंह
'' समाज का वास्तविक पोषक मजदुर है | जनता का प्रभुत्व मजदूरो का अंतिम भाग्य है | इन आदर्शो और विश्वास के लिए , हम हर उस कष्ट का स्वागत करेगे जिसकी हमे सजा दी जायगी | हम अपनी तरुनाई को इसी क्रान्ति की वेदी पर होम करने लाये है , क्योकि इतने गौरवशाली उद्देश्य के लिए कोई भी बलिदान बहुत बड़ा नही है ...
'' समाज का सबसे आवश्यक तत्व होते हुए भी उत्पादन करने वालो या मजदूरो से ,, उनके शोषक उनकी मेहनत का फल लूट लेते है , और उनको प्रारम्भिक अधिकार से भी वंचित कर देते है | एक ओर तो ,, सभी के लिए अनाज पैदा करने वाले किसानो के परिवार भूखो मरते है ; सारे संसार के बाजारों को सूत जुटाने वाला जुलाहा अपना और अपने बच्चो का तन ढकने के लिए भी पूरा कपड़ा नही जुटा पाता ; शानदार महल खड़े करने वाले राज , लुहार और बढ़ई झोपड़ियो में ही बसर करते और मर जाते है , और दूसरी ओर , पूंजीपति , शोषक अपनी संको पर ही करोड़ो बहा देते है | ...
'' समाज का वास्तविक पोषक मजदुर है | जनता का प्रभुत्व मजदूरो का अंतिम भाग्य है | इन आदर्शो और विश्वास के लिए , हम हर उस कष्ट का स्वागत करेगे जिसकी हमे सजा दी जायगी | हम अपनी तरुनाई को इसी क्रान्ति की वेदी पर होम करने लाये है , क्योकि इतने गौरवशाली उद्देश्य के लिए कोई भी बलिदान बहुत बड़ा नही है ...
'' समाज का सबसे आवश्यक तत्व होते हुए भी उत्पादन करने वालो या मजदूरो से ,, उनके शोषक उनकी मेहनत का फल लूट लेते है , और उनको प्रारम्भिक अधिकार से भी वंचित कर देते है | एक ओर तो ,, सभी के लिए अनाज पैदा करने वाले किसानो के परिवार भूखो मरते है ; सारे संसार के बाजारों को सूत जुटाने वाला जुलाहा अपना और अपने बच्चो का तन ढकने के लिए भी पूरा कपड़ा नही जुटा पाता ; शानदार महल खड़े करने वाले राज , लुहार और बढ़ई झोपड़ियो में ही बसर करते और मर जाते है , और दूसरी ओर , पूंजीपति , शोषक अपनी संको पर ही करोड़ो बहा देते है | ...
क्रान्ति से
हमारा अर्थ है -- अंत में समाज की एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना , जिसमे इस
प्रकार के हडकम्प का भय न हो , और जिसमे मजदुर वर्ग के प्रभुत्व को मान्यता
दी जाय और उसके फलस्वरूप विश्व संघ पूंजीवाद के बन्धनों , दुखो तथा युद्दो
की मुसीबतों से मानवता का उद्दार कर सके | ''
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