किसी के जुबान से आप सुन सकते है कि अगर आपने बनारस की सुबह और अवध की शाम नही देखी तो आपने कुछ नही देखा |
बनारस की सुबह - इलाहाबाद की दोपहर , अवध की शाम और बुन्देलखण्ड की रात सारे भारत में प्रसिद्द है | कहा जाता है कि आत्महत्या के लिए उद्यत व्यक्ति को यदि सुबह बनारस में , दोपहर को इलाहाबाद में शाम अवध में और रात को बुन्देलखण्ड में घुमाया जाए तो उसे अपने जीवन के प्रति अवश्य मोह उत्पन्न हो जाएगा और शायद उसमे कवित्व की भावना भी जागृत हो जाए | उत्तर प्रदेश के साहित्यिक गढ़ इसके प्रमाण है |
यदि आपने बनारस की सुबह नही देखि है तो कुछ नही देखा | बनारस का असली रूप यहाँ की सुबह को ही देखने को मिलता है | अब सवाल यह है कि बनारस में सुबह होती कब है ? अंग्रेजी सिद्दान्त के अनुसार या हिन्दू ज्योतिष के अनुसार , इसका निर्णय करना कठिन है | लगे हाथ उसका उदाहरण भी ले लीजिये | अपने राम पैदाइशी ही नही , खानदानी बनारसी है , इस शहर की गलियों में नगे होकर टहले है , छतो पर कनकौवे उडाये है , पान घुलाया है , भान्फ़ छानी है और गहरेबाजी भी की है | लेकिन आज तक हम खुद ही नही जान पाए किबनारस की सुबह होती कब है ?
दो - तीन वर्ष पहले की बात है , हम काशी के कुछ साहित्यिको के साथ कवी सम्मेलन से लौट रहे थे | जाड़े की अँधियारी रात | बाढ़ बज चुके थे | घात किनारे नाव लगी | हमने आश्चर्य के साथ देखा -- एक आदमी दातों कर रहा था | जब यह पूछा गया कि इस समय दातों करने का क्या तुक है , तब उसने एक बार आसमान की ओर देखा और फिर कहा , '' सुकवा उगल बाय , अब भिनसार में कितना देर बाय | '' अर्थात शुक्र तारे का उदय हो गया है , अब सबेरा होने में देर ही कितनी है ? इतना कहकर उसने कुल्ला किया और बम महादेव की आवाज लगाता हुआ दुबकी मार गया | यह दृश्य देखकर कोट - चादर के भीतर हमारे बदन कॉप उठे |
सुबह के चार बजे से सरे शहर के मंदिरों के देवता अँगड़ाई लेते हुए स्नान और जलपान की तैयारी में जुट जाते है | मंदिरों में बजने वाले घड़ियालो और घंटो की आवाज से सारा शहर गूंज उठता है | सड़क के फुत्पाठो पर , दूकान की पटरियों पर सोयी हुई जीवित लाशें कुनमुना उठती है | फिर धीरे - धीरे बीमार तथा बूढ़े व्यक्ति - जिन्हें डाक्टरों की ख़ास हिदायत है कि सुबह जरा टहला करे -- सडको पे दिखाई देने लगते है | मकानों के वातायन से छात्रो के अस्पष्ट स्वर , गंगा जाने वाले स्नानर्थियो की भीड़ और घ्रेबाज इक्को और रिक्शो के कोलाहल में सारा शहर खो जाता है |
कंचनजघा की सूर्योदय की छटा अगर आपने न देखि हो अथवा देखने की इच्छा हो तो आप बनारस अवश्य चले आइये | यह दृश्य आप काशी के घाटो के किनारे देख सकते है | मेढक की छतरियो जैसी घुटी हुई अनेक खोपडिया , जिन्हें देखकर चपतबाजी खेलने के लिए हाथ खुजलाने लगत अ है , नाइयो के पास लेते हुए मालिश कृते हुए जवान पठ्ठे , आठ - आठ घंटे स्पीड के साथ माला फेरते हुए भक्त , ध्यान में मगन नाक दबाए भक्तिने , कमंडल में अक्षत -- फूल लिए सन्यासियों तथा स्नानर्थियो का समूह , अशुद्द और अस्पष्ट मन्त्रो का पाठ करती दक्षिणा संभालती हुई पंडो की जमात , साफा लगानेवाले नवयुवको की भीड़ और बाबा भोलानाथ की शुभकामनाओं का टेलीग्राफ पहुचाने वाले भिखमंगो की भीड़ -- सब कुछ आपको काशी के गातो के किनारे सुबह देखने को मिलेगा |
मिर्जा ग़ालिब की वकालत ----
अगर आपको मेरी बात का यकीन न हो तो नजमुद्दौला , निजाम जंग मिर्जा असदुल्ला बेग खा उर्फ़ मिर्जा ग़ालिब का ब्यान ले लीजिये ----
त आल्ल्ला बनारस चश्मे बद दूर
बहिश्ते खुर्रमो फिरदौसे मामूर
इबातत खानए नाकसिया अस्त
हमाना कावए हिन्दोस्ता अस्त
( हे परमात्मा , बनारस को बुरी दृष्टि से दूर रखना क्योकि यह आनन्दमय स्वर्ग है | यहाँ घंटा बजानेवालो अर्थात हिन्दुओ की पूजा का स्थान है यानी यही हिन्दुस्तान का काबा है |)
बुतानशरा हयूला शोलए तूर
सरापा नूर , ऐजद चश्म बद दूर
मिया हां ना.जुको दिल हां तुवाना
जे नादानी बकारे ख्वशे दाना
तबस्सुम बस कि दर दिल हां तिबी ईस्त
दहन हा रश्के गुल हाए रबी ईस्त
जे अगेजे कद अन्दाजे खरामे
बी पाये गुल बुने गुस्तरद: दामे
( यहाँ के बुतों अर्थात और बुतों अर्थात सुन्दरियों की आत्मा तूर के पर्वत की ज्योति के समान है | वह सिर से पाँव तक इश्वर का प्रकाश है | इन पर कुदृष्टि न पड़े | इनकी कमर तो कोमल है , किन्तु ह्रदय बलवान है | यो इनमे सरलता है , किन्तु अपने काम में बहुत चतुर है | इनकी मुस्कान ऐसी है कि हृदय पर जादू का काम करती है | इनके मुखड़े इतने सुन्दर है कि रबी अर्थात चैत के गुलाब को भी लजाते है | इनके शरीर की गति तथा आकर्षक कोमल चाल से ऐसा जान पड़ता है कि गुलाब के समान पाँव के फूलो का जाल बिछा देती है | )
ज ताबे जलवये ख्वेश आतिश अफरोज
बयाने बुतपरस्तो बरहमन सोज
बी लुफ्ते मौजे गौहर नर्म रु तर
बी नाज अज खूने आशिख गर्म रु तर
( अपनी ज्योति से , जो अग्नि के समान प्रज्वलित है , यह बुतपरस्त तथा बरहमन की बोलने की शक्ति भस्म कर देती है अर्थात यह इनका सौन्दर्य देखकर मूक हो जाते है | पानी में उनका विलास मोती की लहरों से भी नर्म और कोमल जान पड़ता है | पानी में स्नान करनेवाली जो अठखेलिया करती है , उनसे जो पानी के छीटे उठते है , उनकी ओर कवी का संकेत है | उनका नाज अर्थात हास - विलास आशिक के खून से भी गर्म है | )
व सामाने गुलिस्ता बर लबे गंग
ज ताबे रुख चिरागा वर लबे गंग
रसाद: अज अदाए शुस्त व शूए
बी हर मौजे नवेदे आबरुए
कयामत कामता , मिजगा दराजा
ज मिजगा बर सफे - दिल तीर: बाजा
बी मस्ती मौज रा फरमुद: आराम
ज नगजे आब रा बखशिन्दा अन्दाम
( गंगा किनारे यह क्या आ गयी , एक उद्यान आ गया है | इनके मुख के प्रकाश से गंगा के किनारे दीपावली का दृश्य हो गया है | उनके नहाने -- धोने की अदा से प्रत्येक मौज को आबरू का आमन्त्रण मिलता है | इन सुन्दर डील - डौलवाली तथा बड़ी - बड़ी पलकोवाली सुन्दरियों से कयामत आती है | यह दिल की पंक्ति पर अपनी बड़ी बरौनियो से तीर चलाती है | अपनी मस्ती से इन्होने गंगा की लहरों को शांत कर दिया है | अपनी सुन्दरता से इन्होने पानी को स्थिर कर दिया है | )
फताद: शौरिशे दर कालिबे आब
ज माही सद दिलश दर सीना बेताब
ज ताबे जलवा हां बेताब गश्त:
गोहर हां दर सदफ हा आव गश्त:
ज बस अर्जे तमन्ना मी कुनद गंग
ज मौजे आबहा वा मी कुनद गंग
( पुन: पानी के शरीर के अन्दर इन्होने हलचल उत्पन्न कर दी और सीने में सैकड़ो दिल मछली के समान छटपटाने लगे | अपने सौन्दर्य की उष्णता से विकल होकर वह पानी में चली गयी और ऐसा जान पड़ता है जैसे सीप में मोती हो | गंगा भी अपने ह्रदय की अभिलाषा प्रकट करती है और पानी की अपनी लहरों को खोल देती है कि आओ इसमें स्नान करो | )
बनारस की सुबह की तारीफ़ में मिर्जा ग़ालिब का यह कलाम पेश करने के बाद यह जरूरी नही कि ऐरो - गैरो की भी गवाही पेश करूं | गोकि एक शायर ने यह तक़रीर पेश की है कि सुबह के वकत आसमान के सारे बादल बनारस की गंगा में दुबकी लगाकर पानी पीते है और फिर उसे सारे हिन्दुस्तान में ले जाकर बरसा देते है | उस शायर का नाम याद नही आ रहा है , इसके लिए मुझे दुःख है |
प्रस्तुती सुनील दत्ता --------- आभार बना रहे बनारस से
बनारस की सुबह - इलाहाबाद की दोपहर , अवध की शाम और बुन्देलखण्ड की रात सारे भारत में प्रसिद्द है | कहा जाता है कि आत्महत्या के लिए उद्यत व्यक्ति को यदि सुबह बनारस में , दोपहर को इलाहाबाद में शाम अवध में और रात को बुन्देलखण्ड में घुमाया जाए तो उसे अपने जीवन के प्रति अवश्य मोह उत्पन्न हो जाएगा और शायद उसमे कवित्व की भावना भी जागृत हो जाए | उत्तर प्रदेश के साहित्यिक गढ़ इसके प्रमाण है |
यदि आपने बनारस की सुबह नही देखि है तो कुछ नही देखा | बनारस का असली रूप यहाँ की सुबह को ही देखने को मिलता है | अब सवाल यह है कि बनारस में सुबह होती कब है ? अंग्रेजी सिद्दान्त के अनुसार या हिन्दू ज्योतिष के अनुसार , इसका निर्णय करना कठिन है | लगे हाथ उसका उदाहरण भी ले लीजिये | अपने राम पैदाइशी ही नही , खानदानी बनारसी है , इस शहर की गलियों में नगे होकर टहले है , छतो पर कनकौवे उडाये है , पान घुलाया है , भान्फ़ छानी है और गहरेबाजी भी की है | लेकिन आज तक हम खुद ही नही जान पाए किबनारस की सुबह होती कब है ?
दो - तीन वर्ष पहले की बात है , हम काशी के कुछ साहित्यिको के साथ कवी सम्मेलन से लौट रहे थे | जाड़े की अँधियारी रात | बाढ़ बज चुके थे | घात किनारे नाव लगी | हमने आश्चर्य के साथ देखा -- एक आदमी दातों कर रहा था | जब यह पूछा गया कि इस समय दातों करने का क्या तुक है , तब उसने एक बार आसमान की ओर देखा और फिर कहा , '' सुकवा उगल बाय , अब भिनसार में कितना देर बाय | '' अर्थात शुक्र तारे का उदय हो गया है , अब सबेरा होने में देर ही कितनी है ? इतना कहकर उसने कुल्ला किया और बम महादेव की आवाज लगाता हुआ दुबकी मार गया | यह दृश्य देखकर कोट - चादर के भीतर हमारे बदन कॉप उठे |
सुबह के चार बजे से सरे शहर के मंदिरों के देवता अँगड़ाई लेते हुए स्नान और जलपान की तैयारी में जुट जाते है | मंदिरों में बजने वाले घड़ियालो और घंटो की आवाज से सारा शहर गूंज उठता है | सड़क के फुत्पाठो पर , दूकान की पटरियों पर सोयी हुई जीवित लाशें कुनमुना उठती है | फिर धीरे - धीरे बीमार तथा बूढ़े व्यक्ति - जिन्हें डाक्टरों की ख़ास हिदायत है कि सुबह जरा टहला करे -- सडको पे दिखाई देने लगते है | मकानों के वातायन से छात्रो के अस्पष्ट स्वर , गंगा जाने वाले स्नानर्थियो की भीड़ और घ्रेबाज इक्को और रिक्शो के कोलाहल में सारा शहर खो जाता है |
कंचनजघा की सूर्योदय की छटा अगर आपने न देखि हो अथवा देखने की इच्छा हो तो आप बनारस अवश्य चले आइये | यह दृश्य आप काशी के घाटो के किनारे देख सकते है | मेढक की छतरियो जैसी घुटी हुई अनेक खोपडिया , जिन्हें देखकर चपतबाजी खेलने के लिए हाथ खुजलाने लगत अ है , नाइयो के पास लेते हुए मालिश कृते हुए जवान पठ्ठे , आठ - आठ घंटे स्पीड के साथ माला फेरते हुए भक्त , ध्यान में मगन नाक दबाए भक्तिने , कमंडल में अक्षत -- फूल लिए सन्यासियों तथा स्नानर्थियो का समूह , अशुद्द और अस्पष्ट मन्त्रो का पाठ करती दक्षिणा संभालती हुई पंडो की जमात , साफा लगानेवाले नवयुवको की भीड़ और बाबा भोलानाथ की शुभकामनाओं का टेलीग्राफ पहुचाने वाले भिखमंगो की भीड़ -- सब कुछ आपको काशी के गातो के किनारे सुबह देखने को मिलेगा |
मिर्जा ग़ालिब की वकालत ----
अगर आपको मेरी बात का यकीन न हो तो नजमुद्दौला , निजाम जंग मिर्जा असदुल्ला बेग खा उर्फ़ मिर्जा ग़ालिब का ब्यान ले लीजिये ----
त आल्ल्ला बनारस चश्मे बद दूर
बहिश्ते खुर्रमो फिरदौसे मामूर
इबातत खानए नाकसिया अस्त
हमाना कावए हिन्दोस्ता अस्त
( हे परमात्मा , बनारस को बुरी दृष्टि से दूर रखना क्योकि यह आनन्दमय स्वर्ग है | यहाँ घंटा बजानेवालो अर्थात हिन्दुओ की पूजा का स्थान है यानी यही हिन्दुस्तान का काबा है |)
बुतानशरा हयूला शोलए तूर
सरापा नूर , ऐजद चश्म बद दूर
मिया हां ना.जुको दिल हां तुवाना
जे नादानी बकारे ख्वशे दाना
तबस्सुम बस कि दर दिल हां तिबी ईस्त
दहन हा रश्के गुल हाए रबी ईस्त
जे अगेजे कद अन्दाजे खरामे
बी पाये गुल बुने गुस्तरद: दामे
( यहाँ के बुतों अर्थात और बुतों अर्थात सुन्दरियों की आत्मा तूर के पर्वत की ज्योति के समान है | वह सिर से पाँव तक इश्वर का प्रकाश है | इन पर कुदृष्टि न पड़े | इनकी कमर तो कोमल है , किन्तु ह्रदय बलवान है | यो इनमे सरलता है , किन्तु अपने काम में बहुत चतुर है | इनकी मुस्कान ऐसी है कि हृदय पर जादू का काम करती है | इनके मुखड़े इतने सुन्दर है कि रबी अर्थात चैत के गुलाब को भी लजाते है | इनके शरीर की गति तथा आकर्षक कोमल चाल से ऐसा जान पड़ता है कि गुलाब के समान पाँव के फूलो का जाल बिछा देती है | )
ज ताबे जलवये ख्वेश आतिश अफरोज
बयाने बुतपरस्तो बरहमन सोज
बी लुफ्ते मौजे गौहर नर्म रु तर
बी नाज अज खूने आशिख गर्म रु तर
( अपनी ज्योति से , जो अग्नि के समान प्रज्वलित है , यह बुतपरस्त तथा बरहमन की बोलने की शक्ति भस्म कर देती है अर्थात यह इनका सौन्दर्य देखकर मूक हो जाते है | पानी में उनका विलास मोती की लहरों से भी नर्म और कोमल जान पड़ता है | पानी में स्नान करनेवाली जो अठखेलिया करती है , उनसे जो पानी के छीटे उठते है , उनकी ओर कवी का संकेत है | उनका नाज अर्थात हास - विलास आशिक के खून से भी गर्म है | )
व सामाने गुलिस्ता बर लबे गंग
ज ताबे रुख चिरागा वर लबे गंग
रसाद: अज अदाए शुस्त व शूए
बी हर मौजे नवेदे आबरुए
कयामत कामता , मिजगा दराजा
ज मिजगा बर सफे - दिल तीर: बाजा
बी मस्ती मौज रा फरमुद: आराम
ज नगजे आब रा बखशिन्दा अन्दाम
( गंगा किनारे यह क्या आ गयी , एक उद्यान आ गया है | इनके मुख के प्रकाश से गंगा के किनारे दीपावली का दृश्य हो गया है | उनके नहाने -- धोने की अदा से प्रत्येक मौज को आबरू का आमन्त्रण मिलता है | इन सुन्दर डील - डौलवाली तथा बड़ी - बड़ी पलकोवाली सुन्दरियों से कयामत आती है | यह दिल की पंक्ति पर अपनी बड़ी बरौनियो से तीर चलाती है | अपनी मस्ती से इन्होने गंगा की लहरों को शांत कर दिया है | अपनी सुन्दरता से इन्होने पानी को स्थिर कर दिया है | )
फताद: शौरिशे दर कालिबे आब
ज माही सद दिलश दर सीना बेताब
ज ताबे जलवा हां बेताब गश्त:
गोहर हां दर सदफ हा आव गश्त:
ज बस अर्जे तमन्ना मी कुनद गंग
ज मौजे आबहा वा मी कुनद गंग
( पुन: पानी के शरीर के अन्दर इन्होने हलचल उत्पन्न कर दी और सीने में सैकड़ो दिल मछली के समान छटपटाने लगे | अपने सौन्दर्य की उष्णता से विकल होकर वह पानी में चली गयी और ऐसा जान पड़ता है जैसे सीप में मोती हो | गंगा भी अपने ह्रदय की अभिलाषा प्रकट करती है और पानी की अपनी लहरों को खोल देती है कि आओ इसमें स्नान करो | )
बनारस की सुबह की तारीफ़ में मिर्जा ग़ालिब का यह कलाम पेश करने के बाद यह जरूरी नही कि ऐरो - गैरो की भी गवाही पेश करूं | गोकि एक शायर ने यह तक़रीर पेश की है कि सुबह के वकत आसमान के सारे बादल बनारस की गंगा में दुबकी लगाकर पानी पीते है और फिर उसे सारे हिन्दुस्तान में ले जाकर बरसा देते है | उस शायर का नाम याद नही आ रहा है , इसके लिए मुझे दुःख है |
प्रस्तुती सुनील दत्ता --------- आभार बना रहे बनारस से
वाह! बहुत
ReplyDeleteबनारस के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी।
shukriya kavita ji
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