कुपुत्र उड़ाते आस्था का मजाक --- दम तोडती गंगा
18 जून के काशी वार्ता में डा के . के शर्मा की रिपोर्ट के अनुसार
गंगा शब्द जेहन में आते ही आँखों के सामने अविरल बहती आस्थाए जुड़ जाती है ऐसे मोक्ष दायिनी गंगा को अपने ही कुपुत्रो की वजह से उदगम स्थल से निकलने के बाद उसके प्रवाह स्थलों के तीन शहरों कानपुर , इलाहाबाद , काशी में उसे कई बार दम तोड़ना पड़ता है | एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ इन तीनो शहरों से 3 हजार 23 एमएलडी गंदा पानी इस नदी में गिरता है | जिसके चलते इस पानी में 7 हजार 38
वीओडी का भार बढ़ जाता है | जिसके कारण आज गंगा जल आचमन के योग्य भी नही रह गया है | गौरतलब है कि गंगा उत्तराखंड से होकर कानपुर से उन्नाव होते हुए फतेहपुर , रायबरेली और तब मिर्जापुर से होकर इलाहाबाद व वाराणसी तक गुजरने की यात्रा में अनेको बार मृत्यु - तुल्य कष्ट सहती है | नदी को अपने अपशिष्टो को शुद्द करने का कोई मौक़ा ही नही मिलता | क्योकि इसके प्रवाह खंड के किनारे पर स्थित शहरों और उद्योगों द्वारा नदी में लगातार अपने स्वार्थ के चलते जहर उगलने वाले कचड़े प्रवाहित करते रहते है | मिर्जापुर से आकार जब गंगा इलाहाबाद में यमुना से मिलती है तब इसमें कुछ साफ़ पानी मिल जाता है जो दिल्ली से अपनी यात्रा करने के दौरान कुछ स्वस्थ्य होकर यहाँ आ कर मिलती है | उल्लेखनीय है कि कानपुर - वाराणसी खंड में नदी में 3 हजार एमएलडी अपशिष्ट गंदा जल छोड़ा जाता है |
सीपीसीबी ने बीओडी वाले 30 नालो की पहचान की थी | जिनसे गंगा में रोज कई हजार लीटर गन्दा पानी गिरता है | इस खंड की 33 में से 7 नालिया तो बुरी तरह से प्रदूषण फैलाती है | ये नालिया मिलकर कानपुर - वाराणसी खंड के कुल वीडीओ भार में 94% तक योगदान करती है | इसमें कानपुर की सबसे बुरी हालत में है |
इस प्रवाह खंड में दस नालिया बीस प्रतिशत गंदा जल निस्तारित करती रहती है | इस कारण से स्पष्ट तौर पर इसे पहले साफ़ करने की आवश्यकता है | इस सर्वे से यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि गंगा में गिरने वाला हर नाला गंदे अपशिष्ट ही लेकर आता है | कानपुर की आज स्थिति यह है कि 217 एमएलडी की स्थापित क्षमता वाला शहर केवल 100 एमएलडी गंदे जल का शुद्दिकरण कर पाता है | क्योकि या तो प्लांट काम नही करते या फिर अपशिष्ट प्लांट तक नही पहुचते | कानपुर शहर का सबसे प्रदूषित नाला सीसामऊ है | वाराणसी में 400 किमी , सम्बद्द का नेटवर्क मुख्य रूप से पुराने शहर और घाट इलाके में फैला है | जो की 100 साल पुराना है | शहर की अस्सी प्रतिशत आबादी झोपड़ियो में रहती है और खुले में शौच करती है | इनके अलावा गंगा में आने वाले खुले नालो पर भी बैठकर शौच करने की वजह से मलजल गंगा में गिरता रहता है | जरूरत है की डोर तू डोर शौचालय बनाये जाए | इनके अलावा जब तक कड़ाई से नियमो का पालन करते हुए नालो में गिरने वाले फैक्ट्रियो के कचरों को ट्रीटमेंट प्लान से साफ़ नही किया जाएगा | गंगा की इस बदहाली को कोई नही रोक पायेगा |
18 जून के काशी वार्ता में डा के . के शर्मा की रिपोर्ट के अनुसार
गंगा शब्द जेहन में आते ही आँखों के सामने अविरल बहती आस्थाए जुड़ जाती है ऐसे मोक्ष दायिनी गंगा को अपने ही कुपुत्रो की वजह से उदगम स्थल से निकलने के बाद उसके प्रवाह स्थलों के तीन शहरों कानपुर , इलाहाबाद , काशी में उसे कई बार दम तोड़ना पड़ता है | एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ इन तीनो शहरों से 3 हजार 23 एमएलडी गंदा पानी इस नदी में गिरता है | जिसके चलते इस पानी में 7 हजार 38
वीओडी का भार बढ़ जाता है | जिसके कारण आज गंगा जल आचमन के योग्य भी नही रह गया है | गौरतलब है कि गंगा उत्तराखंड से होकर कानपुर से उन्नाव होते हुए फतेहपुर , रायबरेली और तब मिर्जापुर से होकर इलाहाबाद व वाराणसी तक गुजरने की यात्रा में अनेको बार मृत्यु - तुल्य कष्ट सहती है | नदी को अपने अपशिष्टो को शुद्द करने का कोई मौक़ा ही नही मिलता | क्योकि इसके प्रवाह खंड के किनारे पर स्थित शहरों और उद्योगों द्वारा नदी में लगातार अपने स्वार्थ के चलते जहर उगलने वाले कचड़े प्रवाहित करते रहते है | मिर्जापुर से आकार जब गंगा इलाहाबाद में यमुना से मिलती है तब इसमें कुछ साफ़ पानी मिल जाता है जो दिल्ली से अपनी यात्रा करने के दौरान कुछ स्वस्थ्य होकर यहाँ आ कर मिलती है | उल्लेखनीय है कि कानपुर - वाराणसी खंड में नदी में 3 हजार एमएलडी अपशिष्ट गंदा जल छोड़ा जाता है |
सीपीसीबी ने बीओडी वाले 30 नालो की पहचान की थी | जिनसे गंगा में रोज कई हजार लीटर गन्दा पानी गिरता है | इस खंड की 33 में से 7 नालिया तो बुरी तरह से प्रदूषण फैलाती है | ये नालिया मिलकर कानपुर - वाराणसी खंड के कुल वीडीओ भार में 94% तक योगदान करती है | इसमें कानपुर की सबसे बुरी हालत में है |
इस प्रवाह खंड में दस नालिया बीस प्रतिशत गंदा जल निस्तारित करती रहती है | इस कारण से स्पष्ट तौर पर इसे पहले साफ़ करने की आवश्यकता है | इस सर्वे से यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि गंगा में गिरने वाला हर नाला गंदे अपशिष्ट ही लेकर आता है | कानपुर की आज स्थिति यह है कि 217 एमएलडी की स्थापित क्षमता वाला शहर केवल 100 एमएलडी गंदे जल का शुद्दिकरण कर पाता है | क्योकि या तो प्लांट काम नही करते या फिर अपशिष्ट प्लांट तक नही पहुचते | कानपुर शहर का सबसे प्रदूषित नाला सीसामऊ है | वाराणसी में 400 किमी , सम्बद्द का नेटवर्क मुख्य रूप से पुराने शहर और घाट इलाके में फैला है | जो की 100 साल पुराना है | शहर की अस्सी प्रतिशत आबादी झोपड़ियो में रहती है और खुले में शौच करती है | इनके अलावा गंगा में आने वाले खुले नालो पर भी बैठकर शौच करने की वजह से मलजल गंगा में गिरता रहता है | जरूरत है की डोर तू डोर शौचालय बनाये जाए | इनके अलावा जब तक कड़ाई से नियमो का पालन करते हुए नालो में गिरने वाले फैक्ट्रियो के कचरों को ट्रीटमेंट प्लान से साफ़ नही किया जाएगा | गंगा की इस बदहाली को कोई नही रोक पायेगा |
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