अप्रत्यक्ष कर संग्रह में तेज वृद्दि ?
बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को । ------ आदम गोंडवी
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को । ------ आदम गोंडवी
अंग्रजी दैनिक द हिन्दू ( 13 ) मई में प्रकाशित सूचनाओं के अनुसार अप्रत्यक्ष कर की संग्रह
में 46.2% की वृद्दि दर्ज की गयी
है | यह
अप्रैल 2014
में यह कर
संग्रह 2,661 करोड़ रूपये था | उसकी तुलना में अप्रैल 2015 में यह संग्रह 47,747 करोड़ पहुच गया है | अभी जून में यह संग्रह और ज्यादा
हो जाना है | क्योकि 1 जून
से बजट में प्रस्तावित सेवाकर में वृद्दि की घोषणा को लागू हो जानी है | अभी यह सेवा कर 12.36
% की दर से लग रही
है | पहली
जून से न केवल इसकी दर 14% हो जाएगी , बल्कि कर दायरे का भी विस्तार हो जाएगा | उदाहरण आन लाइन बस व हवाई टिकट लेने होटलों में
भोजन करने सैलून में बाल कटवाने व्यूटी पार्लर की सेवा लेने मैरेज लान या मैरेज
हाल बुक करने आदि जैसे क्षेत्रो में सेवाकर का दायरा विस्तारित हो जाएगा | बजट घोषणा में
वित्तमंत्री जी 2015-16 के इस वित्त वर्ष में कुल 6 लाख 46 हजार 267 करोड़ रूपये के अप्रत्यक्ष राजस्व कर संग्रह का लक्ष्य रखा
है | अप्रैल
महीने में पिछले साल के मुकाबले 46.2% की भारी वृद्दि को देखते हुए तथा एक महीने में 47 हजार 747 करोड़ रूपये की प्राप्ति
के साथ जून में सेवा कर में विस्तार एवं वृद्दि को देखते हुए सरकार के अप्रत्यक्ष
कर संग्रह का यह लक्ष्य आसानी से हासिल हो जाना है | अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार
लक्ष्य से ज्यादा संग्रह कर लेगी | इसकी सुनिश्चिता इसलिए ज्यादा है कि अप्रत्यक्ष कर में
आमतौर चोरी नही होती | प्रत्यक्ष कर के मुकाबले बहुत कम होती है | यह कर वस्तुओ सेवाओं के
उत्पादन व बिक्री के साथ वसूल होती रहती है | इसीलिए इस कर को अप्रत्यक्ष कर
भी कहा जाता है | इसकी देनदारी प्रत्यक्ष करो की तरह धनाढ्य वर्गो तथा उच्च वेतनभोगी तबको को ही
नही बल्कि समस्त अमीर - गरीब जनता को करना रहता है | धनाढ्य एवं उच्च लोगो तथा बेहतर आमदनियो
के लोगो द्वारा वस्तुओ एवं सेवाओं को कही ज्यादा खरीदने व उसका उपभोग करने के
वावजूद व्यापक आबादी ( एक अरब से उपर की जनसाधारण आबादी ) द्वारा वस्तुओ एवं
सेवाओं की खरीद धनाढ्य एवं उच्च हिस्से से सैकड़ो गुना ज्यादा होती है | इसीलिए अप्रत्यक्ष कर का
खासा बड़ा हिस्सा देश के व्यापक जनसाधारण द्वारा ही दिया जाता है | इसके विपरीत आयकर ,
निगम कर न्यूतम वैकल्पिक कर एवं अन्य करो के रूप में लिए जाने वाले प्रत्यक्ष कर
की देनदारी धनाढ्य उच्च एवं बेहतर आय के
हिस्सों से लिया जाना है | इन प्रत्यक्ष करो में विभिन्न रूपों में कर चोरियों के
साथ कर – निलम्बन और कर – अवकाश से छुट का काम हमेशा ही
चलता रहता है | हालाकि सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों या गैर सरकारी उच्च
वेतनभोगीयो में उनके घोषित वेतन भत्तो में कर चोरी की गुंजाइश नही रहती | पर उनकी
इधर – उधर की भ्रष्टाचारी
कमाई ( जो अक्सर ज्यादा होती है ) इस टैक्स के दायरे से बाहर ही रहती है | इसके
अलावा उन्हें अपना टैक्स बचाने के कई कानूनी रस्ते ( उदाहरण जैसे बीमा व विकास – पत्र आदि के रास्ते ) भी रहते
है |
इन टैक्सों के कानूनी बचाव में टैक्स अदालतों के साथ – साथ स्वंय सरकार भी मौजूद रहती
है | सरकारे धनाढ्य वर्गो को विभिन्न रूपों में टैक्सों की छुट देती रहती है |
धनाढ्य वर्गो एनम कम्पनियों द्वारा की जाती रही टैक्स चोरिया देश व विदेश में काले
धन के बड़े हिस्से के रूप में मौजूद है | इसके अलावा उन्हें घोषित तौर पर सरकारों
द्वारा दी जाती रही छुटो का अनुमान इस बात से भी लगा सकते है कि देश की विभिन्न
मोर्चो की सरकारों ने 2004—05 से लेकर 2014 तक देश के धनाढ्य हिस्से को 42 लाख करोड़ की घोषित छुट दिया हुआ है | स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष
कर की वसूली एक तो धनाढ्य एवं उच्च वर्गो के वास्तविक आय व लाभ आदि के फर्जी झूठे
आकड़ो के चलते उनके अनुमानित निर्धारण से कही कम हो पाती है , दुसरे उस निर्धारण
राशि में भी सरकारे उन्हों धनाढ्य करदाताओ को लाखो करोड़ की छुट देती रहती है |
अत: स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष कर के मुकाबले अप्रत्यक्ष कर की प्राप्ति कही
ज्यादा सुनिश्चित रहती है | अब इसी अप्रत्यक्ष कर में वृद्दि के साथ इसका विभिन्न
क्षेत्रो में विस्तार किया जा रहा है | फलस्वरूप अप्रत्यक्ष कर संग्रह में रिकार्ड
वृद्दि के साथ इसके परिणाम स्वरूप जनसाधारण पर कर – भार का रिकार्ड बोझ भी बढ़ जाना है | यह रिकार्ड बोझ मालो – सामानों एकं सेवाओं की बढती
रिकार्ड महगाई के रूप में बढना है | फिर यह रिकार्ड बोझ जनसाधारण को अपने आवश्यक
उपभोग को भी काटने –
घटाने के लिए मजबूर करता रहेगा , जैसा की हो भी रहा है |
इसके विपरीत धनाढ्य एवं उच्च वर्गो द्वारा की जाती रही प्रत्यक्ष कर चोरियों
और उन्हें सरकारों द्वारा दिए जाते रहे प्रत्यक्ष कर छुटो रियायतों के फलस्वरूप इन
वर्गो की धनाढ्यता तथा बेहतर आय के माध्यम वर्गीय हिस्सों तक की सुविधा सम्पन्नता
आदि में लगातार वृद्दि होती जानी है जैसा की हो रहा है |
इन परस्पर विरोधी कराधान की स्थितियों से भी यह बात समझी जा सकती है की देश का
सर्वाधिक धनाढ्य एवं साधन सम्पन्न हिस्सा अपने प्रत्यक्ष करो में कमी करवाने करो
में छुट लेने के उद्देश्य से भी सरकारों पर अप्रत्यक्ष करो को बढाने का दबाव डालता
रहा है | इसलिए भी अप्रत्यक्ष कर में वृद्दि व विस्तार को लेकर विरोधी पार्टिया
एवं प्रचार माध्यमो में कोई हो – हल्ला नही मचा रहा है |
No comments:
Post a Comment