Sunday, June 17, 2018

काशी के हेमन्त दा - जन्मदिन पर 17-6-18

काशी के हेमन्त दा - जन्मदिन पर
''कही दीप जले कही दिल - जरा देख ले आकर परवाने ,
ऋतूराज हेमन्त भारतीय नये वर्ष की शुरुआत हेमन्त अपने आप में निराला - मनमोहक - अल्हड खुशनुमा अन्दाज- प्रकृति का अदभुत सौन्दर्य शायर अपनी कल्पनाओ को शब्दों के रंगों से सजाता है तो कही कविमन हेमन्तराज को अपने शब्दों को उड़ान देते हुए उसके श्रृगार के स्वरूप की अभिव्यक्ति देता है | ऐसे ही संगीत की दुनिया में एक अनमोल बेशकीमती कोहिनूर थे हेमन्त कुमार मुखोपाध्य्या जिन्हें प्यार से उनके करोड़ो चाहने वाले हेमन्त दा बुलाते थे ----- उत्तरायणी बहती माँ गंगे की धारा व श्मशान वासी देवाधि देव महादेव की पावन भूमि ( काशी ) आज का वर्तमान वाराणसी में 16 जून 1920 को जन्म लिया था | हेमन्त दा की प्रारम्भिक शिक्षा कलकत्ता के '' मित्रा विद्यालय में हुई वहा से शिक्षा पूरी करने के बाद वो '' जादवपुर विश्व विद्यालय में इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया -- लेकिन उनका मन वह बेचैन रहता उन्होंने इंजीनियरिंग की शिक्षा अधूरी छोड़ दी | हेमन्त दा के कल्पना की उड़ान अलग थी उनका रूह अन्दर से बेचैन था उनके बेचैन रूह की तडप को सकूं दिया संगीत ने और हेमन्त दा ने उस संगीत में अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को समाहित कर लिया और उन्होंने संगीत को अपना पथ बना कर एक पथिक की तरह इस रास्ते पर निकल पड़े | संगीत क्षेत्र में आने से पहले दादा ने बांग्ला साहित्य में अपने वजूद का एहसास करा दिया था | उन्होंने एक बांग्ला पत्रिका '' देश '' के लिए कार्य प्रारम्भ किया उनकी लिखी कहानिया इसमें प्रकाशित होने लगी | परन्तु दादा का रास्ता तो अलग था सो उन्होंने 1930 आते - आते अपने आप को संगीत में पूर्णतया समाहित कर दिया | दादा के बचपन के मित्र '' सुभाष '' की सहायता से आकाशवाणी कलकत्ता में बांगला गीत गाने का अवसर मिला | हेमन्त दा ने संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा बंगला संगीतकार '' शैलेश गुप्त से ली उसके बाद शास्त्रीय संगीत की पूर्ण शिक्षा उन्होंने उस्ताद फैयाज खान से प्राप्त किया | 1937 में संगीतकार शैलेश गुप्त के संगीत निर्देशन में '' विदेशी कम्पनी -- '' कोलंबिया लेबल '' के लिए उन्होंने गैर फ़िल्मी गीतों को स्वर दिया उसके बाद उन्होंने '' ग्रामाफोनिक कम्पनी आफ इंडिया '' के लिए अपने सुर दिए | 1940 में कमलदास गुप्त के संगीत निर्देशन में हेमन्त दादा ने पहला हिंदी गीत गया '' कितना दुःख भुलाया तुमने '' गाने का मौका मिला 1941 में बंगला फिल्म के लिए स्वर दिया | 1944 में पहली बार हेमन्त दादा ने एक गैर फ़िल्मी गीत के लिए संगीत दिया इसी वर्ष पंडित अमरनाथ के संगीत निर्देशन में फिल्म '' इरादा '' में प्ले बैक सिंगर का ब्रेक लिया इसके साथ ही कोलंबिया लेबल कम्पनी के लिए कवि गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर के काव्यो को '' रविन्द्र संगीत ' को रिकार्ड कराया | 1947में पहली बार स्वतंत्र संगीतकार के रूप में बांग्ला फिल्म '' अभियात्री '' के लिए संगीत दिया इसी दौरान हेमन्त दादा का रुझान वामपथ की तरफ हुआ वो उस समय '' भारतीय जन नाट्य संघ ( इप्टा ) के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करने लगे | समय का प्रवाह रुकता नही है वो अपने गति से निरंतर बहता जाता है उसी समय की गति ने हेमन्त कुमार को बांग्ला फिल्म इण्डस्ट्रीज में संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया अब उनकी उड़ान का रास्ता बाकी था इसी दरम्यान हेमेन गुप्त बम्बई आ गये थे और उन्होंने हेमन्त दादा को भी बुला लिया | 1951 में फिल्मिस्तान के बैनर तले बनने वाली फिल्म '' आनन्द मठ '' के लिए हेमेन गुप्त ने हेमन्त कुमार को संगीत देने की पेशकश की | फिल्म '' आनन्द मठ '' की सफलता के बाद हेमन्त बतौर हिंदी सिनेमा के कैनवास पर संगीतकार के रूप में स्थापित हो गये | '' आनन्द मठ के इस गीत को स्वंय हेमन्त दादा व कवि प्रदीप लता जी ने स्वर दिया था '' वन्दे मातरम ''आज भी उस गीत की तेजस्विता उसी तरह बरकरार है कही वो गीत बज रहा हो उस गीत की तरंग कानो तक आती है तो पूरा शरीर मन मस्तिष्क झंकृत हो जाता है | आज भी वो गीत व्यवस्था के विरुद्द संघर्ष का नाद ब्रम्ह बना हुआ है |
1954 का वर्ष हेमन्त दादा के लिए अनोखा वरदान साबित हुआ हेमन्त दादा ने एक संगीत से सजी फिल्म '' नागिन '' के सारे गीतों को अपने संगीत से सजाया ही उसके अलावा उस फिल्म में स्वर भी दिए |
वो जिन्दगी के देने वाले - जिन्दगी के लेने वाले
प्रीत मेरा छीनकर बता तुझे क्या मिला ''
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काशी देखि मथुरा देखि देखे तीरथ सारे
कही न मन का मीत मिला तो आया तेरे द्वारे ''
हेमन्त दा जब संगीतकार हुए उस वक्त देश में बहुत उथल पुथल था ऐसे में वो देश के नौजवानों के लिए वन्देमातरम गा कर ऊर्जा देते है वही दूसरी तरफ नौजवानों के दिलो की बाते मीठे अंदाज में गाते नजर आते है |
फिल्म '' नागिन '' के गीतों ने ऐसी अपार सफलता अर्जित किया हेमन्त कुमार को हिंदी सिनेमा के संगीत के शिखर पर खड़ा कर दिया | नागिन फिल्म का हर गीत उसका संगीत अपने आप में जादू बिखेरता है सुनने वालो के दिलो में आज भी यह गीत गहराइयो तक उतरता है | इस फिल्म के लिए उन्हें ' फिल्म फेयर एवार्ड से सम्मानित किया गया |1959 में हेमन्त कुमार ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा '' हेमन्ता बेला प्रोडेकसन '' नाम की फिल्म कम्पनी की स्थापना की इसके बैनर तले मृणाल सेन के निर्देशन में बांग्ला फिल्म '' नील आकाशेर नीचे का निर्माण किया | यह फिल्म बाक्स आफिस पर अपार सफलता अर्जित की | इस फिल्म को गोल्ड मेडल एवार्ड से सम्मानित किया गया | हेमन्त दादा ने बांग्ला फिल्म '' भूली नाई '' दुई भाई '' आलोर पिपासा '' काँच काटा हीरा '' बालिका बोधु '' देशबोन्धू चित्रजन '' आनंदिता '' दिन आमार होए रोहिलो '' कपाल कुण्डला'' भालोबासा - भालोबासा जैसे बांग्ला फिल्मो में न्धुर संगीत दिया ही इसके साथ ही उन्होंने हिंदी सिनेमा में '' डाकू की लडकी '' बहु '' बिन्दास '' भागवत महिमा '' अनजान '' अर्ब का सौदागर '' दुर्गेश नन्दनी '' एक ही रास्ता '' हमारा वतन '' बन्दी '' चम्पाकली '' एक झलक '' हिल स्टेशन '' कितना बदल गया इंसान '' मिस मेरी '' हम भी इंसान है '' दो मस्ताने '' सहारा '' हेमन्त दा ने जिन भी फिल्मो में संगीत दिया और स्वर दिया वो आज भी अमर है |
बीस साल बाद के वो गीत आज भी लता जी की आवाज में आज भी वो गीत ''कही दीप जले कही दिल - जरा देख ले आकर परवाने , तेरी कौन सी है मंजिल --- ''बेकरार कर के हमे यु न जाइए आपको हमारी कसम लौट आइये --- '' हम तुम्हे इतना प्यार करेगे '' सपने सुहाने लडकपन के मेरे नयनो में डोले भर बन के उनकी यादगार फिल्म ''साहिब बीबी और गुलाम ''
के गीत '' पिया ऐसो जिया में समाए गयो रे कि मैं तन मन की सुध बुध गवा बैठी ''
भवरा बड़ा नादान बगियन का मेहमान है '' इस फिल्म का हर गीत मील का पत्थर है आज भी यह गीत लोगो के होठ पर बरबस ही आ जाते है | '' मझली दीदी के गीत '' उमरिया बिन खेवट की नइया '' फिल्म खामोशी को आज भी दर्शक भूल नही पाया जब हेमन्त दा बोल पड़ते है '' पुकार लो -- तुम्हारा इन्तजार है तुम पुकार लो ख़्वाब चुन रहे है रात बेकरार है से अपने दिल की आवाज को सम्प्रेषित करते है तो वही नायिका से कहवा देते है सात्विक प्रेम की परिभाषा में '' हमने देखि है उन आँखों की महकती खुशबु , हाथ से छूकर इसे रिश्तो का इल्जाम न दो - सिर्फ एहसास है यह रूह से महसूस करो - प्यार को प्यार रहने दो कोई नाम न दो --- जैसे गीत आज भी हृदय के स्पन्दन को बढा देते है इसी फिल्म में जब नायक कल्पना की उड़न भरता है तो अलग अजीब सी रूमानियत छ जाती है इस गीत को सुनते ही '' वो शाम कुछ अजीब थी - ये शाम भी अजीब है वो कल भी पास - पास थी वो आज भी करीब है '' | फिल्म '' उस रात के बाद '' मेरी आवाज किसी शोर में जब डूब गयी मेरी खामोश बहुत दूर बहुत दूर सुनाई देगी फिल्म '' अनुपमा '' के वो गीत '' या दिल की सुनो दुनिया वालो या मुझ को अभी चुप रहने दो - मैं गम को ख़ुशी कैसे कह दूँ - जो कहते है उनको कहने दो '' ऐसे गीतों को भला आज भी लोग कैसे भूल सकते है आज भी वैसे ही तजा है वो गीत जैसे सुबह गुलाब पे गिरे ओस सूरज की रौशनी पाकर चमकते है मोतियों की तरह '' कुछ दिल ने कहा --- कुछ दिल ने सूना ऐसी भी बाते होती है --
1979 में हेमन्त दादा ने बांग्ला फिल्म आनंदिता का निर्देशन किया पर यह फिल असफल रही ---- 1979 में हेमन्त दादा चालीस और पचास के दशक में सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में गाए गीतों को दुबारा रिकार्ड किया उसे लीजेंड आफ ग्लोरी टू के रूप में जारी किया गया |
हेमन्त दादा ने जितने बांग्ला फिल्मो में संगीत दिया उससे ज्या हिंदी फिल्मो के लिए काम किया अन्य भाषाओं में भी उनके गाए गीत इतनी ही मधुरता लिए है ख़ास तौर से इन्होने जो गैर फिल्मो में गीत गाए वो अपूर्व है |
फिल्म '' ममता में गाए उनका यह गीत जहा एक तरफ प्रेम की अतिरेक अभिव्यक्ति देता है वही प्रेम के अदभुत दर्शन को भी निखारता है ---
'' छू प् लो यु दिल में प्यार मेरा जैसे मंदिर में लौ दिए की , तुम अपने चरणों में रख लो मुझको ''
1989 में हेमन्त कुमारको बाग्लादेश के ढाका शहर में '' माइकल मधुसुदन '' एवार्ड से सम्मानित किया गया भारत लौटने के बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वो संगीत की दुनिया का ध्रुव तारा 26 सितम्बर1989 को हम सबसे विदा लेकर एक ऐसी अनन्त यात्रा पे निकल गया और हमारे चिर स्मृतियों में छोड़ गया कुछ अनकहे गीत --
न तुम हमे जानो न हम तुम्हे जाने
आज हेमन्त दादा का जन्म दिन है ऐसे स्वर के जादूगर को मेरा शत शत प्रणाम
सुनील दत्ता -- स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-06-2018) को "कैसे होंगे पार" (चर्चा अंक-3006) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आभार गुरुवार आपका जो आपने चर्चा मंच पर स्थान दिया

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