Monday, September 17, 2018

आंकड़ो के खेल में भारत 6ठवें अमीर देशो में

आंकड़ो के खेल में भारत 6ठवें अमीर देशो में



दिनाक 21 मई 2018 के समाचार पत्रों में अफ्रोशिया बैंक की ताजा रिपोर्ट प्रकाशित हुई है | इस रिपोर्ट में भारत का विश्व का 6 ठवां अमीर देश बताया गया है | इस रिपोर्ट में 62 हजार अरब डालर से भी अधिक दौलत वाला अमेरिका पहले नम्बर पर है | दूसरे , तीसरे चौथे और पांचवे पर चीन जापान ब्रिटेन जर्मनी काबिज है | छठे नम्बर पर भारत है | भारत की दौलत विकसित देशो में शामिल फ्रान्स -कनाडा - आस्ट्रेलिया -इटली से भी ज्यादा है | जबकि भारत आज भी अल्प विकसित या विकासशील देशो की श्रेणी में शामिल है | अल्पविकसित या विकासशील देश होने के चलते न केवल इस देश के प्रति व्यक्ति की आय बहुत कम है . बल्कि इस देश में तथा अन्य कुछ दौलतमन्द - विकासशील देशो में भी गरीबी कही ज्यादा है | 2016 के अंतर्राष्ट्रीय मानको के अनुसार इस देश की एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा के नीचे है | स्पष्ट है कि एक तिहाई आबादी के पास अपने श्रम या संसाधन के बूते जीने खाने का वांछित या न्यूनतम आधार अवसर नही है | देश की व्यापक आबादी के भरण पोषण के लिए चलाई गयी खाधयान्नसुरक्षा योजना इस बात का सबूत देती है किइस आबादी का बड़ा हिस्सा अपना पेट भर पाने के लिए आवश्यक कमाई करने अक्षम है |मानव विकास सूचकांक की स्थितियाँभी इसी की पुष्टि करती है | 2016 में विश्व के 188देशो के मानव सूचकांक में सबसे ऊँचे स्थान पर यूरोपीय देश नार्वे को बताया गया है | वहाँ प्रत्येक नागरिक के मानव विकास की स्थिति सबसे बेहतर बताई गयी है , जबकि भारत उसी सूचि में 133वें स्थान पर था | स्पष्ट है कि भारत का स्थान काफी नीचे था और आज भी है | इसकी कुल दौलत 6230 अरब डालर बताई गयी है | भारत की दौलत विकसित देशो में शामिल बहुआयामी निर्धनता के वैश्विक माप की ऐसी ही स्थिति है | निर्धनता के इस अंतर्राष्ट्रीय सूची से तो अमेरिका. इंग्लैण्ड .फ्रांस .जर्मनी .जापान आस्ट्रेलिया .कनाडा .नार्वे .स्वीडन जैसे धनाढ्य एवं विकसित देश बाहर ही है | क्योकि इन देशो में ऐसी निर्धनता है ही नही | इन देशो को छोड़कर विश्व के निर्धन गरीब तथ अल्पविकसित या विकासशील देशो के 102 सदस्यों में भारत भी शामिल है | मानव विकास सूचकांक की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में देश की कुल जनसख्या का 55.3% हिस्सा बहुआयामी निर्धनता से पीड़ित बताया गया है | यह स्थिति दो एक साल या चंद सालो में नही खड़ी हुई है | वह देश के आधुनिक विकास के साथ बढती रही है | खासकर पिछले 20 - 25 सालो से उसमे तीव्र गति से बढ़ोत्तरी होती रही है | कयोकी इन सालो में देश के घोषित तीव्र आर्थिक विकास के नाम पर बहुसंख्यक आबादी की गरीबी घटाने की जगह थोड़े से धनाढ्य उच्च एवं सुविधा सम्पन्न हिस्से की अमीरी बढाने का ही काम किया गया है | देश - विदेश के धनाढ्य उच्च हिस्सों के उदारवादी वैश्वीकरणवादी - निजीकरण वादी छूटो व अधिकारों को बढाते हुए उनकी पूंजियो परिसम्पत्तियो को तथा उच्चस्तरीय वेतन भत्तो सुख सुविधाओं को अंधाधुंध बढावा दिया गया है | इसी का नतीजा है कि एक तरफ यह देश विश्व के सबसे दौलतमन्द देशो की सूची में काफी उंचाई पर 6ठवें पर पहुचं गया है | धनाढ्यता की बढ़त का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 55% गरीब और 40-42% औसत आय के खाते - पीते लोगो की अर्थात इन्हें मिलाकर 90-92% की आबादी के धन सम्पत्ति के कही कम जमाजोड़ के वावजूद यह देश विश्व के दौलतमन्द देशो की श्रेणी में खड़ा हो गया | स्वभावत: वह आबादी 8-10 % लोगो के अत्यधिक तेजी के साथ अत्यधिक धनवान बनते जाने के चलते ही सम्भव हुआ है | इसका एक और सबूत अभी दो तीन माह पहले प्रकाशित एक सूचना में मौजूद है | इस सूचना के अनुसार देश के कुल संसाधनों के 70% से अधिक हिस्से पर 1 % आबादी का मालिकाना मौजूद है | बाकी ९९% आबादी के हिस्से में देश का 30% संसाधन छोटे बड़े हिस्से में बटा हुआ है | प्रश्न है कि अत्यंत छोटे हिस्से के बढ़ते मालिकाने एवं बढती धनाढ्यता के साथ देश में सम्पत्तिहीनो गरीबो की आबादी लगातार बढती जा रही है क्यों ? क्योकि पुराने युगों की तरह ही आधुनिक युग के धनाढ्य के बढ़ने का एक ही रास्ता है | वह रास्ता श्रमजीवी जनसाधारण के श्रम के शोषण के साथ उनके छोटे छोटे संसाधनों को तोड़ने और लूटने का रास्ता है | यही कारण है कि चंद लोगो की अमीरी बहुसंख्यक लोगो की गरीबी की स्थिति में धकेलते हुए ही आगे बढ़ रही है | चंद लोगो का भाग्योदय बहुतेरे लोगो को अभगा बनाते हुए हो पाता है और यही आज हो रहा है | धनाढ्यता निर्धनता की यह स्थितिया वस्तुत: धनाढ्य वर्ग एवं श्रमजीवी जनसाधारण श्रमजीवी वर्ग के बीच असाध्य वर्ग विरोध का सबूत है | यही वर्ग विरोध देश के वर्तमान दौर के आधुनिक विकास के अंतर्गत देश के सर्वाधिक धनी देशो के 62वें नम्बर पर पहुचने तथा विश्व के मानव विकास सूचकांक एवं बहुआयामी दरिद्रता सूचकांक में इस देश का काफी निचले स्तर पर बने रहने के परस्पर विरोधी रूपों में मौजूद है | स्पष्ट है कि देश की बढती अमीरी की सूचना देश के अमीर बनते लोगो को तथा उनके सेवक बने राजनीतिक. प्रचार माध्यमि एवं बौद्धिक सांस्कृतिक हिस्सों को तो आह्लादित कर सकती है और करती भी है | पर वह देश में गरीबी रेखा पर या उससे नीचे या कुछ उपर जी रहे लोगो को संकटग्रस्त एवं भयाक्रांत ही करेगी | क्योकि वह उन्हें ज्यादा साधनहीन एवं सुविधाहीन बनाती जायेगी | इस सन्दर्भ में यह सवाल उठ सकता है कि अगर थोड़े से लोगो में अमीरी बढ़ने के साथ बहुसंख्यक लोगो में गरीबी का बढ़ना लाजिमी है , तो वह काम अमेरिका , इंग्लैण्ड जैसे विकसित देशो में क्यों नही होता ? उनके देश में अमीरी बढ़ने के साथ गरीब अभावग्रस्त लोगो की आबादी में वृद्धि क्यो नही होती ? उन देशो का मानव विकास सूचकांक इतना ऊँचा क्यो बना रहता है ? वे देश बहुआयामी गरीब देशो की सूची में क्यो नही है ? इन प्रश्नों का उत्तर एक दम सीधा है और यह है कि ये देश केवल धनाढ्य एवं विकसित देश नही है बल्कि साम्राज्यी देश है | इनकी साम्राज्यी पूंजी का तथा इनके मालो मशीनों तकनीको एव अन्य सेवाओं का उच्च मूल्यों एवं उच्च ब्याजदरो पर निर्यात दुनिया के सभी देशो में होता रहा है | फलस्वरूप इन देशो के धनाढ्य वर्गो के शोषण लूट का दायरा पूरे विश्व में फैला हुआ है | विश्व के विभिन्न देशो के श्रम एवं संसाधनों के शोषण दोहन का फल इन देशो में पहुचता रहता है | वह उनके धनाढ्यो को और ज्यादा धनाढ्य बनाने के साथ - साथ वहाँ के जनजीवन एवं उपभोग के स्तर को भी बेहतर बनाये रखता है | उसके परिणाम स्वरूप साम्राज्यी देश और ज्यादा अमीर होने के साथ गरीबी की वैश्विक माप व सूची से बाहर रहते है | जबकि इन साम्राज्यी देशो के लूट के साथ बंधे भारत जैसे तमाम देशो के जनगण और ज्यादा गरीब एवं साधनहीन बना रहता है | निसंदेह इन साम्राज्यी सम्बन्धो में ही भारत जैसे देशो के धनाढ्य उद्योगपति एवं व्यापारियों का हिस्सा भी उसी शोषण - लूट से अधिकाधिक धनाढ्य बनता गया है | इस सन्दर्भ में ब्रिटिश राज के दौरान ब्रिटेन के धनाढ्य वर्गो की बढती धनाढ्यता के साथ वहाँ के मजदूरो की बेहतर होती स्थितियां तथा इस देश के बहुसंख्यक जनसाधारण की बदहाल होती स्तिथियों के साथ इस देश के उद्योग व्यापार के मालिको की बढती रही धनाढ्यता भी इसी बात का सबूत प्रस्तुत करती है | स्पष्ट है कि विकसित साम्राज्यी देशो की बढती धनाढ्यता सम्पन्नता का वर्गीय परिणाम मुख्यत: कम विकसित पिछड़े व विकासशील देशो के जनसाधारण की बढती गरीबी व साधनहीनता में ही आता है | वर्तमान दौर के बढ़ते वैश्वीकरणवादी व निजीकरण के साथ उसका परीलक्षण विदेशियों की बढती धनाढ्यता बेहतर मानव विकास एवं गरीबी के अभाव तथा भारत जैसे देशो के 1-2% लोगो की बढती धनाढ्यता साधन सम्पन्नता और बहुसंख्यक लोगो में बहुआयामी गरीबी के रूप में तेजी के साथ हो रहा है )
( लेख में दिए गये आंकड़े पूरी एवं मिश्र की पुस्तक ''भारतीय अर्थव्यवस्था से लिए गये है )


2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-09-2018) को "दिखता नहीं जमीर" (चर्चा अंक- 3099) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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    1. आदरणीय राधा जी आपको साधुवाद की आपने मेरे आलेख को उचित स्थान प्रदान किया है |

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