यह आकस्मिक नही है कि अबेडकर बौद्ध हुए | यह पच्चीस सौ साल के बाद शुद्रो का फिर बौद्धत्व की तरफ जाना , या बौद्धत्व के मार्ग की तरफ मुड़ना , बौद्ध होने की आकाक्षा , बड़ी सूचक है | इससे बुद्ध के सम्बन्ध में खबर मिलती है |
हिन्दू अब तक भी बुद्ध से नाराजगी भूले नही है | वर्ण व्यवस्था को इस बुरी तरह बुद्ध ने तोड़ा | यह कुछ आकस्मिक बात नही थी कि डा अबेडकर ने ढाई हजार साल बाद फिर शुद्रो को बौद्ध होने का निमत्रण दिया | इसके पीछे कारण है | अबेडकर ने बहुत बाते सोची थी | पहले उन्होंने सोचा कि ईसाई हो जाए , क्योकि हिन्दुओ ने तो सता डाला है , तो ईसाई हो जाए | फिर सोचा कि मुसलमान हो जाए | लेकिन यह कोई बात जमी नही , क्योकि मुसलमानों में भी वही उपद्रव हैं | वर्ण के नाम से न होगा तो शिया - सुन्नी का है | अंतत: अबेडकर की दृष्टि बुद्ध पर पड़ी और तब बात जैम गयी अबेडकर को कि शुद्र को सिवाए बुद्ध के साथ और कोई उपाए नही है | क्योकि शुद्र के लिए भी अपने सिद्धांत बदलने को अगर कोई आदमी राजी हो सकता है तो वह गौतम बुद्ध है -- और कोई राजी नही हो सकता -- जिसके जीवन में सिद्धांत का मूल्य ही नही , मनुष्य का चरम मूल्य है |
यह आकस्मिक नही है कि अबेडकर बौद्ध हुए | यह पच्चीस सौ साल के बाद शुद्रो का फिर बौद्धत्व की तरफ मुड़ना , बौद्ध होने की आकाक्षा , बड़ी सूचक है | इससे बुद्ध के सम्बन्ध में खबर मिलती है | बुद्ध ने वर्ण व्यवस्था तोड़ दी और आश्रम की व्यवस्था भी तोड़ दी | जवान , युवको को सन्यास दे दिया | हिन्दू नाराज हुए | सन्यस्त तो आदमी होता है आखिर अवस्था में मरने के करीब | अगर बचा रहा तो पचहत्तर साल के बाद उसे सन्यस्त होना चाहिए | तो पहले तो पचहत्तर साल तक लोग बचते नही | अगर बच गये तो पचहत्तर साल के बाद उर्जा नही बचती जीवन में | तो हिन्दुओ का सन्यास एक तरह का मुर्दा संन्यास है , जो आखरी घड़ी में कर लेना है | मगर इसका जीवन से कोई बहुत गहरा सम्बन्ध नही है | बुद्ध ने युवको को सन्यास दे दिया , बच्चो को सन्यास दे दिया और कहा कि यह बात मूल्यवान नही है , लकीर के फकीर होकर चलने से कुछ भी न चलेगा | अगर किसी व्यक्ति को युवावस्था में भो परमात्मा को खोजने की , सत्य को खोजने की , जीवन के यथार्थ को खोजने की प्रबल आकाक्षा जगी है , तो मनु महाराज का नियम मानकर रुकने की कोई जरुरत नही इ | वह अपनी आकाक्षा को सुने , वह अपनी अपनी आकाक्षा से जाए | प्रत्येक व्यक्ति अपनी आकाक्षा से जिए | उन्होंने सब सिद्धांत एक अर्थ में गौण कर दिए , मनुष्य प्रमुख हो गया | तो वे सैद्धांतिक नही है , विधिवादी नही है | लीगल नही है उनकी पकड़ा , उनके धर्म की पकड़ मानवीय है | कानून इतना मूल्यवान नही है , जितना मनुष्य मूल्यवान है | और हम कानून बनाते इसलिए की वो मनुष्य के काम आये | इसलिए जब जरूरत हो तो कानून बदला जाए | जब मनुष्य की हित में हो ठीक है , जब अहित में हो जाए तो तोड़ा जा सकता है | कोई कानुन्शाश्वत नही है , सब कानून उपयोग के लिए है |बुद्ध नियमवादी नही है , बोधवादी है | अगर बुद्ध से पूछो , क्या अच्छा है , क्या बुरा है तो बुद्ध उत्तर नही देते है | बुद्ध यह नही कहते कि यह काम बुरा है और यह कम अच्छा है | बुद्ध कहते है , जो बोधपूर्वक किया जाए , वह अच्छा , जो बोधहीनता से किया जाये , बुरा |
इस फर्क को ख्याल में लेना | बुद्ध यह नही कहते कि हर काम हर स्थिति में भला हो सकता है या कोई काम हर स्थिति में बुरा हो सकता है | कभी कोई बात पूण्य हो सकती है और कभी कोई बात पाप हो सकती है | इसलिए पाप और पुण्य कर्मो के उपर लगे हुए लेबिल नही है | तो फिर हमारे पास शाश्वत आधार क्या होगा निर्णय का ? बुद्ध ने एक नया आधार दिया | बुद्ध ने आधार दिया -- बोध जागरूकता | इसे ख्याल में लेना | जो मनुष्य जागरूकता पूर्वक कर पाए , जो भी जागरूकता में ही किया जा सके , वही पूण्य है और जो बात केवल मूर्च्छा में ही की जा सके , वही पाप है |
बुद्ध असहज के पक्षपाती नही है सहज के उपदेष्टा है | बुद्ध कहते है कठिन के ही कारण आकर्षित मत हो | क्योकि कठिन में अहंकार ला लगाव है |इसे तुमने कभी देखा कभी ? जितनी कठिन बात , लोग करने को उसमे उतने उत्सुक होते है | क्योकि कठिन बात में अंहकार को रस आता है मजा आता है | तो बुद्ध असहजवादी नही है | बुद्ध कहते है सहज पर ध्यान दो | जो सरल है सुगम है उसको जियो | जो सुगम है , वही साधना है | जीवन तो सुगम है सरल है | सत्य सुगम और सरल ही होगा | तुम नैसर्गिक बनो और अंहकार के आकर्षणों में मत उलझो |
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