Thursday, March 19, 2015

हौसलों को उड़ान देती है माँ 20-3-15

हौसलों को उड़ान देती है माँ
ब्रह्माण्ड और प्रकृति की रचना के बाद ईश्वर ने मनुष्य की जब सृष्टि की तो उसने स्त्री को पुरुष से सर्वश्रेष्ठ बनाया | उसे सौन्दर्य दिया , सृजन का अधिकार दिया | यही नही माँ की भूमिका निभाने के साथ उसे कुदरत से बड़ा दर्जा देते हुए उसे गुरु से भी बड़ा बनाया |
यही वजह है कि दुनिया के किसी कोने में वह हो , माँ सदैव एक जैसी रही | सूरत भले अलग - अलग हो मगर सीरत एक जैसी रहती है | सदिया बीत गयी , मगर माँ और बच्चे का सम्बन्ध नही बदला | किसी भी रिश्ते में बेशक बदलाव आ जाए मगर माँ - बच्चे के सम्बन्ध में हमेशा गर्मजोशी रहती है | अपने बच्चो को हमेशा पलको की छाँव में रखने वाली माँ आज भी यही चाहती है कि उसके बच्चो पर किसी बुरे व्यक्ति का साया न पड़े | उसे अपने आँचल में छुपा कर रखती है | बच्चो को अच्छे - बुरे का ज्ञान तो वही देती है | माँ को गुरु का दर्जा यो ही नही मिला | बच्चो को अनुशासन का पहला पाठ वही तो पढाती है |
नवजात के जन्म से लेकर नर्सरी में जाने तक माँ वस्तुत: एक आदर्श पुरुष या नारी को ही तैयार कर रही होती है | अक्षर ज्ञान से लेकर रंगों का ज्ञान प्रकृति से रूबरू करने से लेकर अपने आसपास के बारे में इस तरह बताती - सिखाती चलती है कि बच्चा जब घुटनों के बल खड़ा होता है या दौड़ता है तो वह अपनी माँ की नसीहतों को अवचेतन में रखता है | नसीहत देने की आदत माओ की पुरानी आदत रही है | अब इसमें भी बदलाव आया है |
हालाकि बेटिया आज भी अपनी माँ से सलाह लिए बिना कभी कोई कदम नही उठती | मगर बेटे अब बदल रहे है | बच्चो को अपने आँचल से बांधे रखने का दौर अब खत्म हो चुका है | ज्यादातर आधुनिक माये इस बात को समझ चुकी है कि नसीहत देने से अच्छा है की बच्चो की वे मार्गदर्शक बने | वे अपने बेटे -- बेटियों को ज्ञान के पंख देकर उन्हें उड़ान भरने देना चाहती है | कामकाजी ही नही घरेलू महिलाये भी बच्चो के भविष्य की चिंता करती है |

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