जिन्दगी हमेशा कुछ नया सिखाती है बशर्ते आप सीखना चाहे
हमेशा कुछ नया करने का कलेवर रहा मुझमे शायद मेरे अन्दर जन्मजात विद्रोह की प्रवृत्ति है इसलिए मैं अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद किसी भी सरकारी संस्थान का गुलाम नही बना इस परतंत्र भारत में कम से कम स्वंय स्वतंत्र होकर कुछ नया कर गुजरने की ललक ने मुझे बहुत कुछ सिखाया - बचपन भी आभाव में जिया आज भी आभाव में जीता हूँ पर इसका कोई मलाल नही मुझे पता है जीवन के सुख को बटोरने के लिए आपको पतित होना पड़ेगा या अपनी आवाज को बंद रखना पड़ेगा वो मेरे लिए असंभव था मैंने हमेशा मुखर होकर घर हो या बहार अपनी आवाज की बुलंदी को बनाये रखा है सामने कोई भी हो अगर वो गलत है तो गलत है अगर मैं कही गलत हूँ तो तुरंत अपनी गलतियों को सुधारता हूँ | इसी क्रम में जब शाह आलम के बार - बार काल आने पर और यह कहने पर की आप समय से पहुचे मैंने अपना मोपेड उठाया और बरहज की यात्रा पे निकल गया परवाह नही था आगे क्या होगा बस लक्ष्य सामने था कि शाह ने मुझे जो वक्त मुकरर किया है उस वक्त पे वहा पहुच जाऊ बस शाह के दिए वक्त में मात्र पन्द्रह मिनट देर से पहुचा मैं पहुचते ही शाह के चेहरे पे एक रौनक देखी शाह ने तुरंत माइक पकड़ा दिया संचलन में लग जाइये सो मैं शुरू हो गया राहुल की वो पक्तिया जो अब '' प्रतिरोध की संस्कृति '' अवाम का सिनेमा '' का तराना बन चूका है | भागो मत दुनिया को बदलो - मत भागो दुनिया को बदलो , कल भी तुम्हारा था कल भी तुम्हारा है सब मिल कर बाजु कस लो - बच्चो के बीच में यह गीत प्रस्तुत करना मेरे लिए एक रोमांच था --------- क्रमश :
हमेशा कुछ नया करने का कलेवर रहा मुझमे शायद मेरे अन्दर जन्मजात विद्रोह की प्रवृत्ति है इसलिए मैं अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद किसी भी सरकारी संस्थान का गुलाम नही बना इस परतंत्र भारत में कम से कम स्वंय स्वतंत्र होकर कुछ नया कर गुजरने की ललक ने मुझे बहुत कुछ सिखाया - बचपन भी आभाव में जिया आज भी आभाव में जीता हूँ पर इसका कोई मलाल नही मुझे पता है जीवन के सुख को बटोरने के लिए आपको पतित होना पड़ेगा या अपनी आवाज को बंद रखना पड़ेगा वो मेरे लिए असंभव था मैंने हमेशा मुखर होकर घर हो या बहार अपनी आवाज की बुलंदी को बनाये रखा है सामने कोई भी हो अगर वो गलत है तो गलत है अगर मैं कही गलत हूँ तो तुरंत अपनी गलतियों को सुधारता हूँ | इसी क्रम में जब शाह आलम के बार - बार काल आने पर और यह कहने पर की आप समय से पहुचे मैंने अपना मोपेड उठाया और बरहज की यात्रा पे निकल गया परवाह नही था आगे क्या होगा बस लक्ष्य सामने था कि शाह ने मुझे जो वक्त मुकरर किया है उस वक्त पे वहा पहुच जाऊ बस शाह के दिए वक्त में मात्र पन्द्रह मिनट देर से पहुचा मैं पहुचते ही शाह के चेहरे पे एक रौनक देखी शाह ने तुरंत माइक पकड़ा दिया संचलन में लग जाइये सो मैं शुरू हो गया राहुल की वो पक्तिया जो अब '' प्रतिरोध की संस्कृति '' अवाम का सिनेमा '' का तराना बन चूका है | भागो मत दुनिया को बदलो - मत भागो दुनिया को बदलो , कल भी तुम्हारा था कल भी तुम्हारा है सब मिल कर बाजु कस लो - बच्चो के बीच में यह गीत प्रस्तुत करना मेरे लिए एक रोमांच था --------- क्रमश :
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