Thursday, March 17, 2016

क्रांति के स्वप्नद्रष्टा : भाग एक

क्रांति के स्वप्नद्रष्टा :


युगद्रष्टा भगत सिंह और उनके मृत्युंजय पुरखे -- भाग एक




सरदार अर्जुनसिंह व श्रीमती जय कौर



वे धर्म की बैलगाड़ी से उतर कर क्रान्ति के रथ पर बैठ गए | रथ क्रांति का था , पर उस की धुरी धर्म की थी | धर्म अपनी लम्बी यात्रा में थक कर गतिहीन हो गया था , पर उस के पास प्रभाव की पूंजी थी | यह पूंजी उसने क्रान्ति को भेट कर दी |
क्रान्ति भी न ठग थी न कृत्घन | उस ने धर्म को गति दे ,उदबोधन पताका सौप दी | दोनों एक - दूसरे का सहारा थे , प्रगति के पथ पर बढ़ चले | इस धर्म - क्रान्ति का नाम था आर्य - समाज |

1857 के स्वतंत्रता विप्लव की असफलता के बाद अंग्रेजो ने पहले तो रणनीति के अनुसार देश में ऐसा दमन - चक्र चलाया कि आंधिया उठ गयी , विरोध की पसलिया टूट गयी और जनता के मन में यह बात बैठ गयी कि अब अंग्रेजो की गुलामी चुपचाप सहने के सिवा अन्य कोई मार्ग नही है | यह घोर निराशा का युग था , पर कोई जीवित जाति अधिक दिन तक निराश हो कर बैठी नही रह सकती , अंग्रेज यह बात जानते थे | फिर 1857 के महान विद्रोह का सगठन भारतवासियों ने जिस गुप्त ढंग से किया था , उस से भी अंग्रेज बहुत घबरा गये थे | भारत को दमन - चक्र के द्वारा त्रस्त और कानून के द्वारा देश को शस्त्र विहीन करके भी निश्चिन्त नही हो सके और उन्होंने गुप्तचरों के द्वारा भारत के बौद्दिक वर्ग की जो जाच - पड़ताल की , उस से पता चला की उपर से शान्ति दिखने पर भी भीतर अशांति है | लोग कुछ - न - कुछ करने की बात सोच रहे है , कयोकी वे सोचते है की यदि इस समय कुछ न किया गया , तो फिर कभी कुछ न किया जा सकेगा |

अंग्रेजो की कूटनीति अब यह थी कि निराश बौद्दिक वर्ग में आशा पैदा हो , और उसे अपनी महत्वाकाक्षी की पूर्ति के रास्ते अंग्रेजो की छाया में खुलते दिखाई दे | श्री ओ ह्युम के द्वारा सन 1885 में कांग्रेस की स्थापना में सहयोग देना इसी कूटनीति का फल था | भारत की महानता सचमुच अजेय है | उस ने उस अन्धकार के युग में एक अदभुत ओजस्वी महापुरुष को जन्म दिया | वे थे ऋषि दयानन्द | उन्होंने निराशा की उस अंधियारी रात में आशा का दीपक ही नही जलाया , आत्म - विश्वास का उद्बोधन भी दिया | इतिहास का कितना अदभुत संयोग है की काग्रेस की स्थापना के दिनों में ही आर्यसमाज की स्थापना हुई और इस प्रकार देश में नव - जागरण कल का आरम्भ हो गया |

अब देश के बौद्दिक वर्ग के सामने दो निमंत्रण एक साथ थे : अंग्रेजो के सहारे से , समाज में अपने विशिष्ट व्यक्तित्व का निर्माण , यह कांग्रेस की राह थी और पूरे समाज को जागृत करना , उसे उभारना - उठाना यह आर्यसमाज की राह थी | कितनी विचित्र बात है कि एक ही वृक्ष पर एक ही साथ दोनों निमंत्रण का प्रभाव पडा | यह वृक्ष था हमारा वंश |

इससे एक बात तो स्पष्ट है किइस वंश का रक्त प्रबुद्द था , क्योकि प्रबुद्द रक्त , प्रबुद्द मानव ही बाहरी प्रभाव को इतनी तेजी और तत्परता से ग्रहण कर सकता है | सरदार खेमसिंह के तीन पुत्र थे : सरदार सुरजन सिंह , सरदार अर्जुन सिंह और सरदार मेहर सिंह | सबसे छोटे भाई मेहर सिंह का जीवन एक साधारण किसान का जीवन रहा और वे युग के उफानो से अछूते रहे | सबसे बड़े भाई सरदार सुरजन सिंह अंग्रेजो के साथ खड़े हो गये ; पदों पर बैठे और पैसे से खेले | उनके पुत्र सरदार बहादुर दिलबाग सिंह ने उस युग की परस्ती का सबसे बड़ा तोहफा ओ . बी ई ( आडर्र आव ब्रिटिश एम्पायर ) का खिताब पाया और सरकार का दया हाथ बनकर रहे | यह भी एक कहानी है |

लाहौर में कांग्रेस का जो अधिवेशन दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में हुआ , उस में सरदार सुरजन सिंह और सरदार अर्जुन सिंह दोनों भाई जालन्धर से प्रतिनिधि बनकर गये | दोनों ने अपने हाथो में झंडे ले रखे थे और दोनों ही देहाती वेश में थे | जालन्धर स्टेशन पर जब ट्रेन पहुची , जिस से दादाभाई लाहौर जा रहे थे और दुसरे प्रतिनिधि भी , तो जालन्धर के प्रसिद्द वकील रायजादा भगतराम ने इन दोनों का परिचय दादाभाई से कराया | सब प्रतिनिधि सूत - बूटमें होते थे | उस युग में किसान प्रतिनिधि ये भी दो थे और कांग्रेस में ऐसे प्रतिनिधि पहली बार ही सम्मिलित हो रहे थे | इस लिए दादाभाई इनसे मिलकर बहुत खुश हुए और उन दोनों को उन्होंने अपने ही डिब्बे में बैठा लिया | लाहौर में भी ये दोनों अपने रंग - ढंग के कारण सब का ध्यान आकर्षित किये रहे और दादाभाई बराबर इनकी खोज खबर लेते रहे |
 
 क्रमश : भाग एक
 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-03-2016) को "दुनिया चमक-दमक की" (चर्चाअंक - 2285) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ

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