Thursday, April 7, 2016

असेम्बली में बम विस्फोट - ---- 8-4-14

जानना है कि इन क्रांतिवीरो ने असेम्बली में बम क्यों फेंका

असेम्बली में बम विस्फोट --
हि.सो.रि.ए ने अपनी कार्यवाही का दूसरा स्थल केन्द्रीय असेम्बली को चुना | असेम्बली में मजदुर वर्ग के बढ़ते हुए आन्दोलन के विरुद्द ट्रेडर्स डिसप्युस बिल ( औद्योगिक झगड़े सम्बन्धी विधयेक) और ' पब्लिक सेफ्टी बिल ' ( जन सुरक्षा विधेयक ) पर बहस हो रही थी | मार्च 1929 में सरकार ने एस.ए डांगे , मुजफ्फर अहमद , स.वि.घाटे और मजदुर वर्ग के 29 दूसरे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था | इसके द्वारा अंग्रेज विरोधी जन - संघषो की दूसरी बाढ़ में , जो उस समय आती दिख रही थी , राष्ट्रीय शक्तियों के किसी भी भाग को मजदूर वर्ग के निश्चयात्मक और गैर समझौतावादी नेतृत्व में जाने देने की सम्भावना को ब्रिटिश सरकार खत्म कर देना चाहती थी | सारा देश इस पर क्षुब्ध था | सरकार के इन कदमो के खिलाफ हि.सो.रि.ए ने असेम्बली में बम विस्फोट कर आम जनता के इस विरोध को एक तीव्र रूप से व्यक्त करना चाहा | एसोसिएशन के सदस्य अपनी तय की हुई तारीख से पहले , सरकारी सदस्यों के बैठने के प्रबंध की जानकारी प्राप्त करने के लिए दर्शको की.हैसियत से एक - एक करके असेम्बली भवन में गये थे |
8 अप्रैल 1929 को वायसराय इन दोनों बिलों को जारी करने की घोषणा असेम्बली में करने वाला था . हालाकि बहुमत ने इन दोनों विधेयको के खिलाफ राय दी थी | हि.सो.रि.ए ने उस दिन का काम भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के जिम्मे किया था | दोनों बड़ी आसानी से दर्शको की गैलरी में जाकर बैठ गये | जैसे ही सर जार्ज शुस्टर ने वह घोषणा की . भगत सिंह अपनी कुर्सी से उठे और योजना के अनुसार होम मैम्बर ( गृह सदस्य ) की बेंच के पीछे की ओर एक बम फेंका . जिससे कि असेम्बली के अध्यक्ष श्री बिठ्ठल भाई पटेल और पंडित मोतीलाल नेहरु को जो पास ही बैठे थे . चोट न लग सके | भगत सिंह के बम विस्फोट की कर्णभेदी धाय से सदस्य और दर्शक गण सम्भल ही पाए होगे कि बटुकेश्वर दत्त ने दूसरा बम फेंका |
असेम्बली भवन धुएं से भर गया | '' इन्कलाब जिंदाबाद ! '' ब्रिटिश साम्राज्यवाद -- मुर्दाबाद '' और दुनिया के मजदूरो --- एक हो ! '' के नारे लगाते हुए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने हि.सो.रि.ए के पर्चे बाटना शुरू किया | बच निकलना आसान था , लेकिन हि.सो. रि.ए की योजना थी कि उनको स्वंय गिरफ्तार हो जाना चाहिए जिससे वे सारे देश के लिए अपना कार्यक्रम घोषित करने और उसे सक्रिय बनाने के लिए अपने मंच की तरह अदालत का इस्तेमाल कर सके | इसीलिए वे वही डटे रहे | सार्जेन्ट टेरी को उन्हें गिरफ्तार करने के लिए सिर्फ वहा तक चलकर जाना ही पडा | पुलिस की लारी उनको लेकर चली | रास्ते में उसे एक तांगा मिला जिसमे भगवतीचरण , उनकी स्त्री और बच्चा शचीन्द्र तीनो थे | बच्चे ने भगत सिंह की झलक देखी | वह उनको पहचान गया और हर्षोत्फुल्ल हो चिल्लाया: लम्बे चाचा जी ! माँ ने फुर्ती से बच्चे को रोक लिया , जिससे वह अपनी पहचान की और आगे अभिव्यक्ति करके उन्हें भी पुलिस के चक्कर में न फंसा दे |
उनके इरादे ------
क्या भगत सिंह और उनके साथी गोरी चमड़ी वाले अफसरों के खून के प्यासे , कुछ बर्बर युवक भर थे ? सांडर्स को गोली मारने के बाद बाटे हुए उनके पर्चे को देखने पर , कोई भी उन पर ऐसा कोई लाछन नही लगा सकता था | असेम्बली भवन में बाटे हुए उनके पर्चे भी यही बताते है | उन पर्चो से मनुष्यों के रक्तपात के प्रति उनकी दिली नफरत और न्याय के लिए उनकी ललक की भी झलक मिलती है | अंग्रेज शासन का हित इसी में था कि जनता के सामने भगतसिंह के कार्यो को दूसरे ही रंगों में पेश किया जाए , नही तो उनको अमानुषिक दण्ड देने पर सारे देश की सम्वेदना और क्रोध का ज्वार उमड़ पड़ता | इसीलिए . उस पर्चे पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था | हिन्दुस्तान टाइम्स के एक उत्साही संवाददाता ने किसी तरह विस्फोट के ठीक बाद ही उस पर्चे की एक प्रति हासिल कर ली और उसी दिन दोपहर को अखबार का एक विशेष संस्करण निकला . जिसने उसके विषय की जानकारी को जनता की सम्पत्ति बना दिया |
पर्चा इस प्रकार था:
'' बधिरों को सुनाने के लिए एक भारी आवाज की आवश्यकता पड़ती है | ऐसे ही एक अवसर पर , एक फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद - भाइयो -- द्वारा कहे गये इन अमर शब्दों के साथ , '' हम दृढतापूर्वक अपने इस कार्य को न्यायपूर्ण ठहराते है | ''
' हम यहाँ सुधारों { माटेग्यु - चेम्सफोर्ड सुधाओ } के लागू होने के पिछले दस वर्षो के अपमानजनक इतिहास की कहानी को बिना दोहराए और भारत के माथे पर इस सदन -- इस तथाकथित भारतीय पार्लियामेंट द्वारा मढ़े हुए अपमानो का भी बिना कोई जिक्र किये . देख रहे है कि इस बार फिर , जबकि साइमन कमीशन से कुछ और सुधारों की आशा करने वाले लोग उन टुकडो के बटवारे के लिए ही एक दूसरे पर भौक रहे है . सरकार हमारे उपर पब्लिक सेफ्टी ( जन सुरक्षा ) और ट्रेडर्स डिसप्युट्स [ औद्योगिक विवाद ] जैसे दमनकारी बिलों [ विधेयक ] को थोप रही है | प्रेस सेडीशन बिल ' को उसने अगली बैठक के लिए रख छोड़ा है | खुले आम काम करने वाले मजदूर नेताओं की अंधाधुंध गिरफ्तारिया साफ़ बताती है कि हवा का रुख किस तरफ है |
इन अत्यंत ही उत्तेजनापूर्ण परिस्थितियों में पूरी संजीदगी के साथ अपनी पूरी जिम्मेदारी महसूस करते हुए , हि.सो.रि.ए ने अपनी सेना को यह विशेष कार्य करने का आदेश दिया है जिससे कि इस अपमानजनक नाटक पर पर्दा गिराया जा सके | विदेशी नौकरशाह शोषक मनमानी कर ले | लेकिन जनता की आँखों के सामने उनका असली रूप प्रगट होना चाहिए |
जनता के प्रतिनिधि अपने चुनाव - क्षेत्रो में वापिस लौट जाए और जनता को आगामी क्रान्ति के लिए तैयार करे | और सरकार भी यह समझ ले कि असहाय भारतीय जनता की ओर से ' पब्लिक सेफ्टी ' और ट्रेडर्स डिसपियुटस '' बिलों तथा लाला लाजपत राय की निर्मम हत्या का विरोध करते हुए हम उस पाठ पर जोर देना चाहते है जो इतिहास अक्सर दोहराया करता है |
यह स्वीकार करते हुए दुःख होता है कि हमे भी , जो मनुष्य को जीवन को इतना पवित्र मानते है , जो एक ऐसे वैभवशाली भविष्य का सपना देखते है , जब मनुष्य परम शान्ति और पूर्ण स्वतंत्रता भोगेगा , मनुष्य का रक्त बहाने पर विवश होना पडा है | लेकिन मनुष्य द्वारा होने वाले मनुष्य के शोषण को असम्भव बनाकर , सभी के लिए स्वतंत्रता लाने वाली महान क्रान्ति की वेदी पर कुछ व्यक्तियों का बलिदान अवश्यभावी है | इन्कलाब जिंदाबाद ! '' हस्ताक्षर -- बलराज ---कमांडर इन चीफ
प्रस्तुती -- सुनील दत्ता ------- आभार '' भगत सिंह व्यक्तित्व और विचारधारा ''

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2016) को "नूतन सम्वत्सर आया है" (चर्चा अंक-2307) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    चैत्र नवरात्रों की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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