काशी शोध संस्थान लुनिया खेडी के मंच पर मालवा क्षेत्र में एक मात्र महिला जो कबीर गायकी करती है |
कबीर सुर साधिका श्रीमती अंजना सक्सेना जी से कवीर वाणी और उनकी गायकी पे चर्चा ---
प्रश्न -- आपकी शिक्षा --
अंजना जी - मास्टर डिग्री ( संगीत )
कबीर सुर साधिका श्रीमती अंजना सक्सेना जी से कवीर वाणी और उनकी गायकी पे चर्चा ---
प्रश्न -- आपकी शिक्षा --
अंजना जी - मास्टर डिग्री ( संगीत )
प्रश्न -- आप का कबीर साहिब के तरफ रुझान कब , कैसे हुआ ?
अंजना जी -- मगन हो गया मन , मगन हो गया मन
पल - पल जिन्दगी का , मजा लुट ले रे बंदे भजन बंदगी का
कबीर के प्रभाव में मैं बचपन से हूँ धर्म के वाह्य आडम्बर कभी पसंद नही आये | बचपन से ही अपने माँ से कबीर साहिब का भजन सुनती रही '' भजो रे मन केवल नाम कबीर , चार दाग से सतगुरु नियारा , ऐसा मन के धीर |
बचपन में सूना यह भजन मेरे अंतर मन को झकझोरता रहा करेब बाढ़ पहले मेरे अंतर चेतना ने मुझे स्वर दिया और मैंने कबीर सुर साधक तेजुलाल याद जी की शिष्य बनी और उनसे गायन सीखना शुरू किया उसके बाद मैंने पद्मश्री पर्ह्लाद सिंह टिपानिया जी को भी अपना आदर्श व गुरु के रूप में स्वीकार किया उनसे भी संगीत की शिक्षा लेने लगी |
प्रश्न -- आप कबीर वानी को कौन सा स्वरूप दिया है या जैसे मध्य प्रदेश में इस कबीर गायकी को मालवा शैली में गाते है ?
अंजना --- नही मैंने कबीर गायकी को मालवा शैली से इतर जाकर इसे मैं सुगम संगीत की शैली में गाती हूँ |
प्रश्न -- कबीर चिंतन पे कुछ कहना चाहेगी ?
अंजना जी --- वह आज भी जगता है , समय के सूत को वह लगातार कातता जा रहा है उसके शब्द आज के वर्तमान समाज में प्रासंगिक है |
' कबीर मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर |
पीछे - पीछे हरि फिरै, कहत कबीर कबीर ||
कबीर साहब जैसे आध्यात्मिक संत को धर्म निरपेक्ष कहना भूल और भ्रम की बात है | मुझे लगता है कि ऐसा कहने वाले लोग धर्म के स्वरूप को नही जानते है |
धर्म प्राकृतिक गुण है उससे तो कोई निरपेक्ष हो ही नही सकता | धर्म का गुण मनुष्य में स्वाभाविक रूप में रहता है | लेकिन वह अपने आचरण में उसको कितना पालन करता है , यह अलग बात है | कबीर साहब भक्ति आन्दोलन के प्रणेता व प्रमुख संत है |
अंजना जी -- मगन हो गया मन , मगन हो गया मन
पल - पल जिन्दगी का , मजा लुट ले रे बंदे भजन बंदगी का
कबीर के प्रभाव में मैं बचपन से हूँ धर्म के वाह्य आडम्बर कभी पसंद नही आये | बचपन से ही अपने माँ से कबीर साहिब का भजन सुनती रही '' भजो रे मन केवल नाम कबीर , चार दाग से सतगुरु नियारा , ऐसा मन के धीर |
बचपन में सूना यह भजन मेरे अंतर मन को झकझोरता रहा करेब बाढ़ पहले मेरे अंतर चेतना ने मुझे स्वर दिया और मैंने कबीर सुर साधक तेजुलाल याद जी की शिष्य बनी और उनसे गायन सीखना शुरू किया उसके बाद मैंने पद्मश्री पर्ह्लाद सिंह टिपानिया जी को भी अपना आदर्श व गुरु के रूप में स्वीकार किया उनसे भी संगीत की शिक्षा लेने लगी |
प्रश्न -- आप कबीर वानी को कौन सा स्वरूप दिया है या जैसे मध्य प्रदेश में इस कबीर गायकी को मालवा शैली में गाते है ?
अंजना --- नही मैंने कबीर गायकी को मालवा शैली से इतर जाकर इसे मैं सुगम संगीत की शैली में गाती हूँ |
प्रश्न -- कबीर चिंतन पे कुछ कहना चाहेगी ?
अंजना जी --- वह आज भी जगता है , समय के सूत को वह लगातार कातता जा रहा है उसके शब्द आज के वर्तमान समाज में प्रासंगिक है |
' कबीर मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर |
पीछे - पीछे हरि फिरै, कहत कबीर कबीर ||
कबीर साहब जैसे आध्यात्मिक संत को धर्म निरपेक्ष कहना भूल और भ्रम की बात है | मुझे लगता है कि ऐसा कहने वाले लोग धर्म के स्वरूप को नही जानते है |
धर्म प्राकृतिक गुण है उससे तो कोई निरपेक्ष हो ही नही सकता | धर्म का गुण मनुष्य में स्वाभाविक रूप में रहता है | लेकिन वह अपने आचरण में उसको कितना पालन करता है , यह अलग बात है | कबीर साहब भक्ति आन्दोलन के प्रणेता व प्रमुख संत है |
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