कबीर गुजते रहे सिंहस्थ में ----
हजारो सालो से अपने प्रमाणिक ऐतिहासिक दस्तावेजो के साथ शिप्रा के तट पर समय – कल के साथ साक्षी बनकर जीता आ रहा उज्जैन नगरी आजकल सिह्स्थ कुम्भ के चलते विश्व में चर्चा का केंद्र बना हुआ था |
इतिहासवेत्ता नृतत्त्वविज्ञानी कहते है कि कुम्भ दुनिया का सबसे बड़ा नदी पर्व है | स्वीडन में स्टाकहोम , आस्ट्रेलिया में ब्रिसबेन अमेरिका में हडसन , कनाडा में ओटावा – दुनिया में नदियों के बहुत से मेले लगते है , लेकिन कुम्भ जैसा कोई नही , अमीर गरीब जाति – धर्म यहाँ आकर लगता ही नही कि हम कभी भिन्न थे | यहाँ आकर सर्वधर्म समभाव एकाकार हो जाता है |
किसी को कोई न्योता ही नही गया , फिर भी लाख – दो लाख नही कई करोड़ आ सकते है |
सदियाँ बीत गयी ऐसा होते – हम भारतवासियों को कोई आशचर्य नही होता हाँ विदेश के लोग जरुर अचरज करते है | हाँ हम सबके मन में यह जिज्ञासा जरुर जगनी चाहिए कि अरबो – खरबों के खरच का यह आयोजन क्या सिर्फ स्नान के लिए है ? या फिर इसके मूल मंतव्य और सिद्दान्त कुछ और है ?
इस प्रशन के उत्तर से अनजान बने रहने का ही नतीजा है कि आज कुम्भ अपने मूल मंतव्य से भटक गया है |
प्रकृति के साथ समाज के व्यवहार के नियमन व नियोजन का यह चिंतन पर्व बनकर रह गया है |
ऋषि प्रकृति का प्रतिनिधि होता है | समाज ने ऋषियों को ही नदियों की पहरेदारी सौपी थी | यह ऋषियों का ही जिम्मा था कि वे नदी किनारे आने वाले समाज को सिखाये कि नदी के साथ व्यवहार कैसे करना है | ऋषियों ने यह किया भी तभी हमारी नदियाँ इतने लम्बे समय तक स्वच्छ , स्वस्थ्य एवं सम्पन्न बनी रही |
उज्जैन में सिंहस्थ के बीच श्रदा का एक और महापर्व ‘’ पंचकोसी ‘’ ले हाथ लकुटिया चन्दन की जय बोलो यशोदा नादाँ की व जय्म्हाकाल के उद्घोष के साथ शुरू हुआ | सिंहस्थ के दौरान पंचकोसी का विशेष धार्मिक महत्व है | मान्यता है कि सिंहस्थ की पंचकोसी करने से एक बार में ही बाढ़ साल का पुन्य लाभ मिलता है |
सिंहस्थ कुम्भ में स्नान करने आये इंदौर के सीता होम्स परा लि के निदेशक सचिन सक्सेना अपनी बातचीत के दौरान कहते है कि दरअसल कुम्भ सिर्फ स्नान पर्व कभी नही रहा | अनुभव बताता है कि जब समृद्दी आती है ओ वह सदुपयोग का अनुशासन तोड़कर उपभोग का लालच भी लाती है और वैमनस्य भी | ऐसे में दूर दृष्टि और कुछ सावधान मन ही रास्ता दिखाते है | ऐसे में जीवन जागृत होना पड़ता है , तब कही समाधान मिलता है | गलत कार्य रुकते है व अच्छे कामो का प्रवाह बह निकलता है |
कुम्भ का यही कार्य है , यही मंतव्य है | समझना होगा कि भारतवर्ष में नदियों के उअद्गम से लेकर संगम तक दिखाई देने वाले मैथ – मंदिर यो ही नही है |
इस आयोजन में सरकार ने श्रद्दालुओ के लिए बहुत ही अच्छी व्यवस्था दी है |
मेला प्रशासन द्वारा नान के लिए कई नये घाटो का निर्माण कराया गया |
1-रामघाट 2-त्रिवेणी घाट 3- गउघाट 4- भुखिमता घाट4- नरसिंह घात 5-गुरुनानक घाट 6- कबीर घाट7- वाल्मिक धाम 8-भेरुघाट 9 मलंगनाथ 10 सिद्धवाट घाट बनाये | नये घाटो के बन्ने के बाद भी ट्रेफिक व्यवस्था में जुड़े लोग शाही स्नान के दिन हलकान दिखे |
सिंहस्थ के पहले दो स्नान में सिंहस्थ के केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष माखन सिंह ने स्वीकार किया है कि सिंहस्थ की के लिए जो आकलन किये गए थे , उनमे चुक हुई है | अधिकारियों ने दावा किया था की मार्च अंत तक सभी काम उरा हो जाएगा , पर बाद में भी काम होते रहे | तैयारिया अनुमान के आधार पर होती है और हमने वही किया | भीड़ कितना आये उस पर हमारा कोई नियंत्रण नही है |
मेले में घुमने के दौरान नरेन्द्र बागौरा जी से मुलाक़ात हो गयी उनसे इस बाबत जानकारी चाही तो वे कह पड़े सिंहस्थ की जो पौराणिक मान्यता थी , अब धीरे – धीरे खत्म होती जा रही है – अब इसमें दिखावा – पैसा सब कुछ शामिल हो गया है | पहले जो आस्था का भाव था वो अब कम होता जा रहा है | बहुत कम लोग आज भी इसमें आस्था लेकर आते है | पहले के महात्माओं को देखकर उनमे आस्था उंद्ती थी लेकिन अब उनमे भी जबर्दस्त दिखावा होने लगा है | सरकार ने अच्छी व्यवस्था दी है अगर इसके जिम्मेदार लोग इसे समझते तो परेशानी कम होती |
जुना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानन्द गिरी जी का पांडाल देखा तो उसमे ऋगुवेड में 10700 मन्त्र है | इसमें वैदिक ब्राह्मण ही भाग लेता है जिसे पूरे मन्त्र कठ्स्थ हो | बहुत कठिन यज्ञ है स्वर आना चाहिए | यह यज्ञ 350 वर्ष बाद हो रहा है , ऐसा वैदिक विद्वानी ने बताया |
सरकार ने पंचकोसी यात्रा पर सौ करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च किये जन सुविधा के लिए 75 करोड़ से सडक बनवाई व ३० करोड़ में , पानी , शौचालय और शेड का इंतजाम किया इस व्यवस्था की पोल उस वक्त खुल गयी जब सिंहस्थ में दो बार प्रकृति ने अपना विकराल रूप दिखाया इस विकराल रूप को देखकर बहुत से पांडाल खाली हो गये उन्होंने अपना बोरिया बिस्तर बाँध लिया | तपती धुप में घर से बहार निकलना मुश्किल है | ऐसे में प्रचण्ड सूर्य की तपिश मे राधिकानन्द जी मात्र शरीर पर लगोट बांधकर 6 घंटे 44 डिग्री तापमान में बालू के ढेर पर साधना करते नजर आये |
इस स्निह्स्थ में पहली बार किन्नरों को भी मान्यता मिली फिल्म अभिनेत्री व भरतनाट्यम नर्तक किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को विधि विधान किन्नर अखाड़े का सर्वोच्च पद महामंडलेश्वर के रूप में स्थापित किया गया | यह समाज अर्धनारीश्वर को अपना पूज्य मानते है इन्होने चर्चा दौरान बताया कि हम लोग पर्यावरण संरक्षण , गोरक्षा , कन्या भ्रूण हत्या व बाल विवाह पे कार्य कर रहे है |
पिछले एक दशक से भारतीय संगीत की सूफी धरा में मालवा क्षेत्र में एक मात्र महिला कबीर सुर साधिका श्रीमती अंजना सक्सेना मालवा कबीर गायन शैली से इतर जाकर
सुगम संगीत की धार से राष्ट्रीय फलक पर कबीर वाणी के माध्यम से समाज को चेताने का कार्य कर रही है सिंहस्थ में अनेक माथो पर जैसे कबीर चौरा मूल गादी ‘’ डांडी आश्रम , कबीर शोध संस्थान व किन्नर अखाड़े साथ ही रामकथा के मंचो पर उनको सुनने का अवसर मिला किन्नर अखाड़े के दौरान उनसे बातचीत करने का मौका मिला उन्होंने सिंहस्थ कुम्भ पर अपना विचार कुछ इस तरह दिया पता नही कब और कैसे कुम्भ चिंतनपर्व से बदलकर सिर्फ स्नान पर्व बनकर रह गया | इस भटकाव के दौर में धर्माचार्यो के एक ऐसे वर्ग का उदय हुआ जिनके आभूषण सोने जवाहारात के है आसन सोने व चांदी के है और रसोई छपन भोगो से परिपूर्ण | भटकाव बढ़ता गया और फिर शाही स्नान के नाम पर कुम्भ अब अखाड़ो , स्म्र्पदायो , मतों के धर्माचार्यो के वैभव प्रदर्शन का माध्यम बन गया | आगे अंजना सक्सेना कहती है दुःख होता है कि जो संत समाज कभी कुम्भ के दौरान समाज को निर्देशित कर एक नैतिक अनुशासित और गौरवमयी विश्व के निर्माण का दायित्वपूर्ण कार्य करता था उसी संत समाज के उत्तराधिकारियों ने कुम्भ को महज दिखावटी आयोजनों में बदल दिया तभी तो कहती हूँ कबीर कल भी प्रासंगिक थे और आज भी है |
कबीर शोध संस्थान के कबीर गायक अजय टिपानिया जी सिंहस्थ पर अपने विचार देते हुए कहते है कि कुम्भ की अपनी पौराणिक मान्यताये है | इसके साथ ही इस महाउत्सव के माध्यम से समाज के हर वर्ग से मिलने जुलने के अलवा नये सम्बन्ध बनाने का माहौल भी बन जाता है वो परम्परा आज भी चली आ रही है – लेकिन कार्पोरेटरो ने इसे बाजारीकरण का स्वरूप दे दिया है | कार्पोरेटरो ने अपने – अपने बाबाओं को ब्रांड बना लिया है उनके जरिये अब वो आस्थाओं को भी बेच रहे है अब आप देख लीजिये मेले में जन चर्चा रही कि स्वामी नित्यानंद ने पता नही कितना देकर अपना तम्बू लगवाया है साथ ही पायलट बाबा का क्रमात देख ले दादू महाराज तो एक रूपये से लेकर लाखो रूपये के मिटटी के शिवलिंग बनावाकर लोगो को पुन्य दान दिया साथ में अपनी झोली भरी | सरकार की व्यवस्था के सवाल पर कहते है की भक्तो को सरकार ने व्यवस्था तो दी पर मूल व्यवस्था में भारी गडबडी रही जैसे पानी की व्यवस्था बहुत ही लचर रही ट्रेफिक व्यवस्था तो बुरी तरह पिट गयी सबसे खास बात की प्रशासन और पुलिस की तालमेल कही नही दिखी | पटानिया ने कहा कि आज समाज फिर अंध धर्मान्ध की दौड़ में शामिल हो गया है इस दौड़ से मात्र कबीर ही उबार सकते है |
हजारो सालो से अपने प्रमाणिक ऐतिहासिक दस्तावेजो के साथ शिप्रा के तट पर समय – कल के साथ साक्षी बनकर जीता आ रहा उज्जैन नगरी आजकल सिह्स्थ कुम्भ के चलते विश्व में चर्चा का केंद्र बना हुआ था |
इतिहासवेत्ता नृतत्त्वविज्ञानी कहते है कि कुम्भ दुनिया का सबसे बड़ा नदी पर्व है | स्वीडन में स्टाकहोम , आस्ट्रेलिया में ब्रिसबेन अमेरिका में हडसन , कनाडा में ओटावा – दुनिया में नदियों के बहुत से मेले लगते है , लेकिन कुम्भ जैसा कोई नही , अमीर गरीब जाति – धर्म यहाँ आकर लगता ही नही कि हम कभी भिन्न थे | यहाँ आकर सर्वधर्म समभाव एकाकार हो जाता है |
किसी को कोई न्योता ही नही गया , फिर भी लाख – दो लाख नही कई करोड़ आ सकते है |
सदियाँ बीत गयी ऐसा होते – हम भारतवासियों को कोई आशचर्य नही होता हाँ विदेश के लोग जरुर अचरज करते है | हाँ हम सबके मन में यह जिज्ञासा जरुर जगनी चाहिए कि अरबो – खरबों के खरच का यह आयोजन क्या सिर्फ स्नान के लिए है ? या फिर इसके मूल मंतव्य और सिद्दान्त कुछ और है ?
इस प्रशन के उत्तर से अनजान बने रहने का ही नतीजा है कि आज कुम्भ अपने मूल मंतव्य से भटक गया है |
प्रकृति के साथ समाज के व्यवहार के नियमन व नियोजन का यह चिंतन पर्व बनकर रह गया है |
ऋषि प्रकृति का प्रतिनिधि होता है | समाज ने ऋषियों को ही नदियों की पहरेदारी सौपी थी | यह ऋषियों का ही जिम्मा था कि वे नदी किनारे आने वाले समाज को सिखाये कि नदी के साथ व्यवहार कैसे करना है | ऋषियों ने यह किया भी तभी हमारी नदियाँ इतने लम्बे समय तक स्वच्छ , स्वस्थ्य एवं सम्पन्न बनी रही |
उज्जैन में सिंहस्थ के बीच श्रदा का एक और महापर्व ‘’ पंचकोसी ‘’ ले हाथ लकुटिया चन्दन की जय बोलो यशोदा नादाँ की व जय्म्हाकाल के उद्घोष के साथ शुरू हुआ | सिंहस्थ के दौरान पंचकोसी का विशेष धार्मिक महत्व है | मान्यता है कि सिंहस्थ की पंचकोसी करने से एक बार में ही बाढ़ साल का पुन्य लाभ मिलता है |
सिंहस्थ कुम्भ में स्नान करने आये इंदौर के सीता होम्स परा लि के निदेशक सचिन सक्सेना अपनी बातचीत के दौरान कहते है कि दरअसल कुम्भ सिर्फ स्नान पर्व कभी नही रहा | अनुभव बताता है कि जब समृद्दी आती है ओ वह सदुपयोग का अनुशासन तोड़कर उपभोग का लालच भी लाती है और वैमनस्य भी | ऐसे में दूर दृष्टि और कुछ सावधान मन ही रास्ता दिखाते है | ऐसे में जीवन जागृत होना पड़ता है , तब कही समाधान मिलता है | गलत कार्य रुकते है व अच्छे कामो का प्रवाह बह निकलता है |
कुम्भ का यही कार्य है , यही मंतव्य है | समझना होगा कि भारतवर्ष में नदियों के उअद्गम से लेकर संगम तक दिखाई देने वाले मैथ – मंदिर यो ही नही है |
इस आयोजन में सरकार ने श्रद्दालुओ के लिए बहुत ही अच्छी व्यवस्था दी है |
मेला प्रशासन द्वारा नान के लिए कई नये घाटो का निर्माण कराया गया |
1-रामघाट 2-त्रिवेणी घाट 3- गउघाट 4- भुखिमता घाट4- नरसिंह घात 5-गुरुनानक घाट 6- कबीर घाट7- वाल्मिक धाम 8-भेरुघाट 9 मलंगनाथ 10 सिद्धवाट घाट बनाये | नये घाटो के बन्ने के बाद भी ट्रेफिक व्यवस्था में जुड़े लोग शाही स्नान के दिन हलकान दिखे |
सिंहस्थ के पहले दो स्नान में सिंहस्थ के केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष माखन सिंह ने स्वीकार किया है कि सिंहस्थ की के लिए जो आकलन किये गए थे , उनमे चुक हुई है | अधिकारियों ने दावा किया था की मार्च अंत तक सभी काम उरा हो जाएगा , पर बाद में भी काम होते रहे | तैयारिया अनुमान के आधार पर होती है और हमने वही किया | भीड़ कितना आये उस पर हमारा कोई नियंत्रण नही है |
मेले में घुमने के दौरान नरेन्द्र बागौरा जी से मुलाक़ात हो गयी उनसे इस बाबत जानकारी चाही तो वे कह पड़े सिंहस्थ की जो पौराणिक मान्यता थी , अब धीरे – धीरे खत्म होती जा रही है – अब इसमें दिखावा – पैसा सब कुछ शामिल हो गया है | पहले जो आस्था का भाव था वो अब कम होता जा रहा है | बहुत कम लोग आज भी इसमें आस्था लेकर आते है | पहले के महात्माओं को देखकर उनमे आस्था उंद्ती थी लेकिन अब उनमे भी जबर्दस्त दिखावा होने लगा है | सरकार ने अच्छी व्यवस्था दी है अगर इसके जिम्मेदार लोग इसे समझते तो परेशानी कम होती |
जुना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानन्द गिरी जी का पांडाल देखा तो उसमे ऋगुवेड में 10700 मन्त्र है | इसमें वैदिक ब्राह्मण ही भाग लेता है जिसे पूरे मन्त्र कठ्स्थ हो | बहुत कठिन यज्ञ है स्वर आना चाहिए | यह यज्ञ 350 वर्ष बाद हो रहा है , ऐसा वैदिक विद्वानी ने बताया |
सरकार ने पंचकोसी यात्रा पर सौ करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च किये जन सुविधा के लिए 75 करोड़ से सडक बनवाई व ३० करोड़ में , पानी , शौचालय और शेड का इंतजाम किया इस व्यवस्था की पोल उस वक्त खुल गयी जब सिंहस्थ में दो बार प्रकृति ने अपना विकराल रूप दिखाया इस विकराल रूप को देखकर बहुत से पांडाल खाली हो गये उन्होंने अपना बोरिया बिस्तर बाँध लिया | तपती धुप में घर से बहार निकलना मुश्किल है | ऐसे में प्रचण्ड सूर्य की तपिश मे राधिकानन्द जी मात्र शरीर पर लगोट बांधकर 6 घंटे 44 डिग्री तापमान में बालू के ढेर पर साधना करते नजर आये |
इस स्निह्स्थ में पहली बार किन्नरों को भी मान्यता मिली फिल्म अभिनेत्री व भरतनाट्यम नर्तक किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को विधि विधान किन्नर अखाड़े का सर्वोच्च पद महामंडलेश्वर के रूप में स्थापित किया गया | यह समाज अर्धनारीश्वर को अपना पूज्य मानते है इन्होने चर्चा दौरान बताया कि हम लोग पर्यावरण संरक्षण , गोरक्षा , कन्या भ्रूण हत्या व बाल विवाह पे कार्य कर रहे है |
पिछले एक दशक से भारतीय संगीत की सूफी धरा में मालवा क्षेत्र में एक मात्र महिला कबीर सुर साधिका श्रीमती अंजना सक्सेना मालवा कबीर गायन शैली से इतर जाकर
सुगम संगीत की धार से राष्ट्रीय फलक पर कबीर वाणी के माध्यम से समाज को चेताने का कार्य कर रही है सिंहस्थ में अनेक माथो पर जैसे कबीर चौरा मूल गादी ‘’ डांडी आश्रम , कबीर शोध संस्थान व किन्नर अखाड़े साथ ही रामकथा के मंचो पर उनको सुनने का अवसर मिला किन्नर अखाड़े के दौरान उनसे बातचीत करने का मौका मिला उन्होंने सिंहस्थ कुम्भ पर अपना विचार कुछ इस तरह दिया पता नही कब और कैसे कुम्भ चिंतनपर्व से बदलकर सिर्फ स्नान पर्व बनकर रह गया | इस भटकाव के दौर में धर्माचार्यो के एक ऐसे वर्ग का उदय हुआ जिनके आभूषण सोने जवाहारात के है आसन सोने व चांदी के है और रसोई छपन भोगो से परिपूर्ण | भटकाव बढ़ता गया और फिर शाही स्नान के नाम पर कुम्भ अब अखाड़ो , स्म्र्पदायो , मतों के धर्माचार्यो के वैभव प्रदर्शन का माध्यम बन गया | आगे अंजना सक्सेना कहती है दुःख होता है कि जो संत समाज कभी कुम्भ के दौरान समाज को निर्देशित कर एक नैतिक अनुशासित और गौरवमयी विश्व के निर्माण का दायित्वपूर्ण कार्य करता था उसी संत समाज के उत्तराधिकारियों ने कुम्भ को महज दिखावटी आयोजनों में बदल दिया तभी तो कहती हूँ कबीर कल भी प्रासंगिक थे और आज भी है |
कबीर शोध संस्थान के कबीर गायक अजय टिपानिया जी सिंहस्थ पर अपने विचार देते हुए कहते है कि कुम्भ की अपनी पौराणिक मान्यताये है | इसके साथ ही इस महाउत्सव के माध्यम से समाज के हर वर्ग से मिलने जुलने के अलवा नये सम्बन्ध बनाने का माहौल भी बन जाता है वो परम्परा आज भी चली आ रही है – लेकिन कार्पोरेटरो ने इसे बाजारीकरण का स्वरूप दे दिया है | कार्पोरेटरो ने अपने – अपने बाबाओं को ब्रांड बना लिया है उनके जरिये अब वो आस्थाओं को भी बेच रहे है अब आप देख लीजिये मेले में जन चर्चा रही कि स्वामी नित्यानंद ने पता नही कितना देकर अपना तम्बू लगवाया है साथ ही पायलट बाबा का क्रमात देख ले दादू महाराज तो एक रूपये से लेकर लाखो रूपये के मिटटी के शिवलिंग बनावाकर लोगो को पुन्य दान दिया साथ में अपनी झोली भरी | सरकार की व्यवस्था के सवाल पर कहते है की भक्तो को सरकार ने व्यवस्था तो दी पर मूल व्यवस्था में भारी गडबडी रही जैसे पानी की व्यवस्था बहुत ही लचर रही ट्रेफिक व्यवस्था तो बुरी तरह पिट गयी सबसे खास बात की प्रशासन और पुलिस की तालमेल कही नही दिखी | पटानिया ने कहा कि आज समाज फिर अंध धर्मान्ध की दौड़ में शामिल हो गया है इस दौड़ से मात्र कबीर ही उबार सकते है |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-05-2016) को "आस्था को किसी प्रमाण की जरुरत नहीं होती" (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सिंहस्थ के बारे में बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअलविदा सिहंस्थ ..
जय महाकाल!