महान क्रांतिकारी महावीर सिंह
.............................( लोग भगत सिंह के साथ रहे क्रांतिकारी महावीर सिंह के बारे में शायद कम ही जानते होंगे | महावीर सिंह का जीवन संघर्ष और उसमे उनके पिता का उत्कृष्ट प्रेरणादायक योगदान आज के पिताओं ,पितामहो के लिए भी शिक्षाप्रद है |क्योंकि वर्तमान दौर के पिताओं का लक्ष्य अपने बेटो ,पोतो को धन ,पद -प्रतिष्ठा और पेशो की उंचाइयो पर येन -केन प्रकारेण चढाना हो गया है |अगर महावीर सिंह और उनके पिता जैसे लोगो के त्याग -बलिदान के फलस्वरूप हमारे राष्ट्र व समाज को कुछ अधिकार मिले थे व मिले है ,तो साम्राज्वाद की वर्तमान विश्वव्यापी चढत -बढत और पितामहो व पिताओं तथा बेटे -बेटियों की निरी स्वार्थी मनोदशाए राष्ट्र व समाज के खासकर बहुसंख्यक जन साधारण के वर्तमान व भविष्य को संकटग्रस्त भी जरुर करेगी |)
महावीर सिंह का जन्म 16 सितम्बर 1904 के दिन शाहपुर टहला नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था |यह गाँव उत्तर प्रदेश के एटा जिले में है |पिता कुंवर देवी सिंह अच्छे वैद्ध थे और आस -पास के क्षेत्र में उनका अच्छा प्रभाव था |माता श्रीमती शारदा देवी सीढ़ी -सादी एक धर्मपरायण महिला थी |महावीर सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में हुई और उन्होंने हाईस्कूल परीक्षा पास की गवर्मेंट कालेज एटा से |
बगावत की भावना महावीर सिंह में बचपन से ही मौजूद थी और राष्ट्र -सम्मान के लिए मर -मिटने की शिक्षा उन्होंने अपने पिता से प्राप्त की थी |घटना जनवरी सन 1922 की है |एक दिन कासगंज तहसील (जिला एटा ) के सरकारी अधिकारियों ने अपनी राजभक्ति प्रदर्शित करने के उद्देश्य से अमन सभा का आयोजन किया | जिलाधीश , पुलिस कप्तान ,स्कूलो के इंस्पेक्टर ,आस -पड़ोस के अमीर -उमरा राय बहादुर ,खान बहादुर आदि जमा हुए | छोटे -छोटे बच्चो को भी जबरदस्ती ले जाकर सभा में बिठाया गया |उनमे महावीर सिंह भी थे |लोग बारी -बारी उठकर अंग्रेजी हुकमत की तारीफ़ में लम्बे -लम्बे भाषण दे रहे थे |तभी बच्चो के बीच से किसी ने जोर से से नारा लगाया 'महात्मा गांधी की जय '!बाकी लडको ने भी उसके स्वर मिलाकर ऊँचे कंठ से समर्थन किया 'महात्मा गांधी की जय '! देखते -देखते गांधी विरोधियो की वह सभा गांधी की जय जयकार के नारों से गूंज उठी |जांच के फलस्वरूप महावीर सिंह को विद्रोही बालको का नेता घोषित कर दिया गया |सजा भी मिली पर उससे उनकी बगावत की भावना और भी मजबूत हो गयी |
1925 में जब वे कालेज पढने के लिए कानपुर आये तो असहयोग आन्दोलन सम्पात हो चुका था लेकिन देश की जनता के दिलो की आग ठंठी नही हुई थी |चारो ओर असंतोष की आग सुलग रही थी |स्वत:स्फुरित संघर्षो के रूप में किसानो की बगावते जारी थी |मजदुर तथा मध्यम वर्ग के लोग भी अपने -अपने तरीको से लड़ रहे थे |नौजवानों की क्रांतिकारी टोलियों ने फिर से हथियार उठा लिए थे |परिस्थितियों ने महावीर सिंह को अछूता नही छोड़ा |कालेज में क्रांतिकारी दल से उनका सम्पर्क हुआ और वे उसके सदस्य बन गये |
उसी दौरान महावीर के पिता जी ने उनकी शादी तय करने के सम्बन्ध में उनके पास पत्र भेजा |पत्र पाकर वे चिंतित हुए |क्रांतिकारी साथियो से सलाह मशविरा किया |फिर उसी अनुसार पिता जी को राष्ट्र की आजादी के लिए क्रांतिकारी संघर्ष पर चलने की सूचना देते हुए शादी -व्याह के पारिवारिक संबंधो से मुक्ति देने का आग्रह किया |चन्द दिनों बाद पिता का उत्तर आया |उन्होंने लिखा कि '' मुझे यह जानकर बड़ी ख़ुशी हुई कि तुमने अपना जीवन देश के काम में लगाने का निश्चय किया है |मैं तो समझता था कि हमारे वंश में पूर्वजो का खून अब नही रहा और उन्होंने दिल से गुलामी कबूल कर ली है |तुम्हारा पत्र पाकर आज मैं अपने को बड़ा भाग्यशाली समझ रहा हूँ |शादी की बात जहा चल रही थी ,उन्हें जबाब लिख दिया है |निश्चिन्त रहो ,मैं ऐसा कोई काम नही करूंगा जो तुम्हारे मार्ग में बाधक हो |
देश कि सेवा का जो मार्ग तुमने चुना है वह बड़ी तपस्या का और बड़ा कठिन मार्ग है लेकिन जब तुम उस पर चल ही पड़े हो तो पीछे न मुड़ना ,साथियो को धोखा मत देना और अपने बूढ़े पिता के नाम का ख्याल रखना | तुम जहा भी रहोगे मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है ..............तुम्हारा पिता .देवी सिंह
क्रांतिकारी गतिविधियों में लगातार लगे रहे महावीर सिंह लाहौर में बुरी तरह बीमार पड़े |वे संग्रहणी व पेचिश से परेशान थे |कुछ भी हजम नही हो पा रहा था |साथियो ने राय दी कि कुछ दिनों के लिए एटा चले जाओ |तुम पर तो वारेंट नही है |ठीक हो जाने पर वापस चले आना |महावीर ने साथियो से कहा कि -क्या पिता जी कि चिठ्ठी उन्हें याद नही है |उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि पीछे मुडकर मत देखना उसमे घर का माया -मोह आदि सब शामिल था और उन्होंने वे शब्द बहुत सोच -समझ कर लिखे थे |फिर साथियो से हंस कर बोले -चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा |इसी बीच लाहौर में पंजाब बैंक पर छापा मारने कि योजना बनी |पहले दिन साथी बैंक पर भी गये |लेकिन महावीर सिंह को जिस कार द्वारा साथियो को बैंक से सही -सलामत निकाल कर लाना था वही ऐसी नही थी कि उस पर भरोसा किया जा सकता |अस्तु भरोसे लायक कार न मिलने तक के लिए योजना स्थगित कर दी गयी |तभी लाहौर में साइमन कमिशन आया |'साइमन कमिशन वापस जाओ " के नारों के साथ काले झंडे के एक विराट प्रदर्शन से उसका स्वागत किया गया |फिर अंधाधुंध लाठिया बरसी ,लाला जी आहात हुए और कुछ दिनों में उनकी मृत्यु हो गयी |यह राष्ट्र के पौरुष को चुनौती थी और क्रान्तिकारियो ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया |बैंक पर छापा मारने कि योजना स्थगित कर दी गयी और लाला जी पर लाठिया बरसाने वाले पुलिस अधिकारी को मारने का निश्चय किया गया |उस योजना को कार्यान्वित करने में भगत सिंह आजाद तथा राजगुरु के साथ महावीर सिंह का भी काफी योगदान था | vol 1
साडर्स की हत्या के बाद महावीर सिंह फिर अस्वस्थ रहने लगे |लाहौर का पानी उनके स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नही पड़ रहा था |उधर लाहौर का वातावरण भी काफी गरम था |सुखदेव ने उन्हें संयुक्त प्रांत (उत्तर - प्रदेश ) वापस जाने की सलाह दी |आगरा का पता उनके पास नही था ,इसलिए वे कानपुर चले गये और चार दिन सिसोदिया जी के पास छात्रावास में रहे |फिर इलाज के लिए अपने गाँव पिता जी के पास चले गये |आज एक गाँव तो कल दूसरे गाँव आज एक सम्बन्धी के यहा तो कल किसी दूसरे सम्बन्धी या मित्र के यहा |इस प्रकार रोज जगह बदलकर पिताजी से इलाज करवाने में लग गये कि जल्द -से -जल्द स्वस्थ होकर मोर्चे पर वापस जा सके |सन 1929 में दिल्ली असेम्बली भवन में भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त द्वारा बम फेके जाने के बाद लोगो की गिरफ्तारिया शुरू हो गयी और अधिकाश: क्रांतिकारी पकडकर लाहौर पहुचा दिए गये |महावीर सिंह भी पकडे गये |पुलिस या जेलवालो से किसी -न किसी बात पर आये दिन क्रान्तिकारियो का झगड़ा हो जाता था |उस समय वे लोग मोटे- तगड़े साथियो को चुन लेते थे और सबका गुस्सा उन पर उतारते |इस प्रकार हर मारपीट में भगत सिंह ,किशोरी लाल ,महावीर सिंह ,जयदेव कपूर ,गया प्रसाद आदि कुछ मोटे -तगड़े साथियो को बाकी के हिस्से की मार खानी पड़ती थी |जेल में क्रान्तिकारियो द्वारा अन्याय के विरुद्ध 13 जुलाई ,1929 से आमरण अनशन शुरू किया गया |दस दिनों तक तो जेल अधिकारियों ने कोई विशेष कार्यवाही नही की |उनका अनुमान था कि यह बीस -बीस बाईस -बाईस साल के छोकरे अधिक दिनों तक बगैर खाए नही रह सकेंगे |लेकिन जब दस दिन हो गये और एक -एक कर साथी बिस्तरों पर पड़ने लगे तो उन्हें चिंता हुई |सरकार ने अनशनकारियो कि देखभाल के लिए डाक्टरों का एक बोर्ड नियुक्त कर दिया था |अनशन के ग्यारहवे दिन से बोर्ड के डाक्टरों ने बलपूर्वक दूध पिलाना आरम्भ कर दिया |महावीर सिंह कुश्ती भी करते थे और गले से भी लड़ते थे ||जेल अधिकारी को पहलवानों के साथ अपनी कोठरी की तरफ आते देख वे जंगला रोकर खड़े हो जाते |एक तरफ आठ -दस पहलवान और दूसरी तरफ अनशन के कमजोर महावीर सिंह |पांच -दस मिनट की धक्का -मुक्की के बाद दरवाजा खुलता तो काबू करने की कुश्ती आरम्भ हो जाती |एक दिन जेल के दो अधिकारी को आपस में बात करते सुना कि 63 दिनों के अनशन में एक दिन भी ऐसा नही गया जिस दिन महावीर सिंह को काबू करने में आधे घंटे से कम समय लगा हो |डाक्टर के साथ भी ऐसी ही बीतती थी | महावीर सिंह ने शत्रु की अदालत को मान्यता देने से इनकार कर दिया था |लाहौर षड्यंत्र केस केअभियुक्तों के प्रचार से घबड़ाकर केस को जल्द -से जल्द समाप्त कर देने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने 1930 के आरम्भ में एक अध्यादेश जारी किया जिसका नाम था 'लाहौर षड्यंत्र केस आध्यादेश ' |इसे 1930 का तीसरा अध्यादेश भी कहा गया था |आध्यादेश के अनुसार लाहौर हाईकोर्ट के तीन जजों का एक ट्रिब्यूनल नियुक्त कर मजिस्ट्रेट की अदालत से केस उठाकर नयी अदालत को सुपुर्द कर दिया गया |नयी अदालत को यह भी अधिकार था कि उसकी निगाह में जब भी अभियुक्त दोषी प्रमाणित हो जाए ,तो बाकी गवाहों की गवाहिया लिए बगैर वही पर केस की सुनवाई समाप्त कर वह अपना निर्णय दे सकती थी |इस अदालत के विरुद्ध कही भी अपील नही हो सकती थी |अदालती सुनवाई के दौरान महावीर सिंह तथा चार अन्य साथियो ने (कुंदन लाल ,बटुकेश्वर दत्त ,गयाप्रसाद और जितेन्द्रनाथ सान्याल ) एक बयान द्वारा अपने उद्देश्य की व्याख्या करते हुए कहा की वे शत्रु की अदालत से किसी प्रकार के न्याय की आशा नही करते है |यह कहकर उन्होंने अदालत को मान्यता देने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने से इनकार कर दिया था |
महावीर सिंह तथा उनके साथियो का यह बयान लाहौर षड्यंत्र केस के अभियुक्तों की उस समय की राजनितिक एवं सैद्दानतिक समझ पर अच्छा प्रकाश डालता है |बयान के कुछ अंश इस प्रकार थे :
".....................हमारा यह दृढ विश्वास है की साम्राज्यवाद लुटने -खसोटने के उद्देश्य से संगठित किए गये एक विस्तृत षड्यंत्र को छोडकर और कुछ नही है |साम्राज्वाद मनुष्य द्वारा मनुष्य का तथा एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को धोखा देकर शोषण करने की नीति के विकास की अंतिम अवस्था है |साम्राज्यवादी अपने लूट -खसोट के मंसूबो को आगे बढाने की गरज से केवल अपनी अदालतों द्वारा ही राजनितिक हत्याए नही करते वरन युद्ध के रूप में कत्ले -आम विनाश तथा अन्य कितने वीभत्स एवं भयानक कार्यो का संगठन करते है |ऐसे लोगो को ,जो उनकी लूट -खसोट की माँगों को पूरा करते है या उनके तबाह करने वाले घृणित मंसूबो का विरोध करते है ,गोली से उड़ा देने में वे जरा भी नही हिचकिचाते |'न्याय तथा शान्ति का रक्षक ' होने के बहाने वे शान्ति का गला घोटते है ,अशांति की सृष्टि करते है ,बेगुनाहों की जाने लेते है और सभी प्रकार के जुल्मो को प्रोत्साहन देते है |
हमारा यह विश्वास है कि मनुष्य होने के नाते हर व्यक्ति आजादी का हक़दार है ,उसे कोई दुसरा व्यक्ति दबाकर नही रख सकता |हर मनुष्य को अपनी मेहनत का फल पाने का पूरा अधिकार है और हर राष्ट्र अपने साधनों का पूरा मालिक है |यदि कोई सरकार उन्हें उनके इन प्रारम्भिक अधिकारों से वंचित रखती है तो लोगो का अधिकार है -नही ,उनका कर्तव्य है की ऐसी सरकार को उलट दे ,उसे मिटा दे |चूँकि ब्रिटिश सरकार इन वसूलो से ,जिन के लिए हम खड़े हुए है बिलकुल परे है इसलिए हमारा दृढ विश्वास है कि क्रान्ति के द्वारा मौजूदा हुकूमत को समाप्त करने के लिए सभी कोशिशे तथा सभी उपाय न्याय संगत है |हम परिवर्तन चाहते है -सामाजिक ,राजनितिक तथा आर्थिक ,सभी क्षेत्रो में आमूल परिवर्तन |हम मौजूदा समाज को जड़ से उखाडकर उसके स्थान पर एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते है कि जिसमे मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण असम्भव हो जाए और हर व्यक्ति को हर क्षेत्र में पूरी आजादी हासिल हो जाए |हम महसूस करते है की जब तक समाज का पूरा ढाचा ही नही बदला जाता और उसकी जगह पर समाजवादी समाज की स्थापना नही हो जाती तब तक दुनिया महाविनाश के खतरे से बाहर नही है .vol 2
रही बात उपायों की -शांतिमय अथवा दुसरे -जिन्हें हम क्रांतिकारी आदर्श की पूर्ति के लिए काम में लायेंगे |हम कह देना चाहते है की इसका फैसला बहुत कुछ उन लोगो पर निर्भर करता है जिसके पास ताकत है |क्रांतिकारी तो फायदा चाहने के सिद्धांत पर विश्वास करने के नाते शान्ति के उपासक है -सच्ची और टिकने वाली शान्ति के जिसका आधार न्याय तथा समानता पर है ,न की कायरता पर आधारित तथा संगीनों की नोक पर बचाकर रखी जाने वाली शान्ति के |
बयान के अन्त में कहा गया गया था ,'हम पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का अभियोग लगाया गया है |हम ब्रिटिश सरकार की बनाई हुई किसी भी अदालत से न्याय की आशा नही रखते और इसलिए हम न्याय के नाटक में भाग नही लेंगे |"
केस समाप्त हो जाने पर सम्राट के खिआफ युद्ध और सांडर्स की हत्या में सहायता करने के अभियोग में उन्हें उनके सात अन्य साथियो के साथ आजन्म कारावास का दंड दिया गया |सजा के बाद कुछ दिनों तक पंजाब की जेलों में रखकर बाकी लोगो को (भगत सिंह राजगुरु सुखदेव और किशोरी लाल के अतिरिक्त )मद्रास प्रांत की विभिन्न जेलों में भेज दिया गया |महावीर सिंह और गयाप्रसाद को बेलोरी (कर्नाटक राज्य के अंतर्गत ) सेंट्रल जेल ले जाया गया |
वे 1930 -31 के सत्याग्रह के दिन थे और बेलारी जेल स्याग्रही बन्दियो से भरा था |जेल में इन दोनों साथियो ने कैदी नम्बर की तख्ती सीने पर लटकाने ,टोपी पहने ,परेड के दौरान सर पर बिस्तरा आदि रखकर खड़े होने से इनकार कर दिया |
जेलर अपने समय का मुक्केबाज था |वह सिपाहियों से उन्हें खड़ा करवाता ,फिर हर एक पर दस -दस ,पन्द्रह -पन्द्रह तक मुक्केबाजी का अभ्यास करता |जेलर ने वाडर से कहकर महावीर सिंह की कोठरी खुलवाई |वाडरो ने महावीर सिंह को बाहर लाकर जेलर के सामने खड़ा कर दिया और उसने मुक्केबाजी शुरू कर दी |उस दिन महावीर सिंह के हाथो में हथकड़ी नही थी |उन्होंने एक झटके से अपना दाहिना हाथ छुडा लिया और जेलर के मुँह पर इतनी जोर से घुसा मार दिया की हाथ -पैर बंधे कैदियों पर घुसेबाजी का अभ्यास करने वाले उस बुजदिल जेलर का बहादुर कैदियों पर मुक्केबाजी समाप्त हो गयी |हालाकि इसके बाद दंड महावीर सिंह को तीस बेतों की सजा झेलनी पड़ी |हर बेत की सजा के साथ टिकटिकी पर बंधे महावीर सिंह 'जिंदाबाद 'के नारे लगाते रहे |उनके पीठ की खाल उधडती रही ,पर उनके नारे तीव्रतर होते गये |तीस की गिनती पूरी होने पर वहा खड़े अस्पताल के लोगो ने उन्हें टिकटिकी से उतारा और स्ट्रेचर पर डालकर अस्पताल ले जाना चाहा |लेकिन महावीर सिंह ने स्ट्रेचर पर लेटने या किसी का सहारा लेने से इनकार कर दिया |उन्होंने जेलर की ओर देखकर जेल को क़पा देने वाली आवाज में एक बार फिर नारा लगाया और उन्नत भाल टहलते हुए अपने अहाते चले गये |जेलर भी सर झुकाए धीमी गति से चुपचाप अपने दफ्तर की ओर चल दिया -जैसे बेत महावीर सिंह को नही उसकी को लगे हो |जनवरी 1933 में उन्हें उनके कुछ साथियो के साथ मद्रास से अण्डमान (काला पानी )भेज दिया गया |उन दिनों अण्डमान जेल की हालत बड़ी खराब थी |वहा इंसान जानवर बनाकर रखा जाता था |अस्तु सम्मानजनक व्यवहार ,अच्छा खाना ,पढने -लिखने की सुविधाए ,रात में रौशनी आदि की मांगो को लेकर सभी राजनितिक बंदियों ने 12 मई,1933 से अनशन आरम्भ कर दिया |उससे पूर्व इतने अधिक बन्दियों ने एक साथ इतने दिनों तक कही भी अनशन नही किया था |अनशन के छठे दिन से ही अधिकारियों ने बलपूर्वक दूध पिलाने का कार्यक्रम आरम्भ कर दिया |vol 3
आधे घण्टे की कुश्ती के बाद दस -बारह व्यक्तियों ने मिलकर महावीर सिंह को जमीन पर पटक दिया और डाक्टर ने एक घुटना उनके सीने पर रखकर नली नाक के अन्दर चला दी |उसने यह देखने की परवाह नही की की नली पेट में न जाकर महावीर सिंह के फेफड़ो में चली गयी है |अपना फर्ज पूरा करने की धुन में पूरा एक सेर दूध उसने फेफड़ो में भर दिया और उन्हें मछली की तरह छटपटाता हुआ छोडकर अपने दल -बल के साथ दूसरे बन्दी को दूध पिलाने चला गया |यह घटना 17 मई 1933 की शाम की है |महावीर सिंह की तबियत तुरंत बिगड़ने लगी |कैदियों का शोर सुनकर डाक्टर उन्हें देखने वापस आया लेकिन उस समय तक उनकी हालत बिगड़ चूकि थी |उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहा देर रात के बारह बजे के बाद आजीवन लड़ते रहने का व्रत लेकर चलने वाला हमारा अथक क्रांतिकारी देश की माटी में विलीन हो गया |अधिकारियों ने चोरी -चोरी उनके शव को समुद्र के हवाले कर दिया |आगे चलकर उस अनशन में दो और क्रांतिकारी मोहित मित्र और मोहन किशोर शहीद हुए |महावीर सिंह के कपड़ो में उनके पिता का एक पत्र भी मिला था |वह पत्र उन्होंने महावीर सिंह के अण्डमान से लिखे उक्त पत्र के उत्तर में लिखा था | पत्र का सारांश कुछ ऐसा है "इस टापू पर सरकार ने देशभर के जगमगाते हीरे चुन -चुनकर जमा किए है |मुझे ख़ुशी है की तुम्हे उन हीरो के बीच रहने का मौक़ा मिल रहा है |उनके बीच रहकर तुम और चमको ,मेरा तथा देश का नाम अधिक रौशन करो ,यही मेरा आशीर्वाद है "|
आज जिस आजादी का उपभोग हम कर रहे है उसकी भव्य इमारत की बुनियाद डालने में महावीर सिंह उन जैसे कितने अज्ञात क्रान्तिकारियो ने अपना रक्त और माँस गला दिया था |किसी देश में महावीर सिंह जैसे बहादुर देशभक्त और उनके पिता जैसी आत्माए रोज -रोज जन्म नही लेती |उनकी यादगार हमारे गौरवपूर्ण इतिहास की पवित्र धरोहर है |क्या हम उसका उचित सम्मान कर रहे है ?
--"भगत सिंह के साथी क्रांतकारी शिव वर्मा की संस्मृतियो से |
पिता का उपरोक्त पत्र महावीर सिंह द्वारा लिखे पत्र के उत्तर के रूप में आया था |महावीर सिंह का पत्र 'भगत सिंह एवं साथियो के दस्तावेज में मौजूद है |उसको हम संक्षिप्त रूप में दे रहे है |
पूज्य पिताजी ! पोर्टब्लयेर (अंडमान ).....प्यारे भाई का क्या हाल है ...इसकी सुचना मुझे शीघ्र दीजिएगा |उसे केवल वैद्ध ही बनने का उपदेश न देना ,बल्कि साथ -ही साथ मनुष्य बनाना भी बतलाना |आजकल मनुष्य वही हो सकता है जिसे वर्तमान वातावरण का ज्ञान हो ,जो मनुष्य के कर्तव्य को जानता ही न हो परन्तु उसका पालन भी करता हो |इसलिए समाज की धरोहर को आलस्य तथा आरामतलबी तथा स्वार्थपरता में डालकर समाज के सामने कृतघ्न न साबित हो |इससे शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार की उन्नति करता रहे ,क्योकि दोनों आवश्यक है |शारीरिक पुष्टि अन्न तथा व्यायाम से तथा मानसिक अध्ययन से |उसे आजकल के वातावरण का ज्ञान करने के लिए समाचार पत्र तथा एतिहासिक ,साम्पत्तिक तथा राजनैतिक ,सामाजिक पुस्तको का अवलोकन (अध्ययन ) को कहिये |समाज से मेरा मतलब आर्य समाज अथवा अन्य संकीर्णताव्य्जक समाज नही है ,परन्तु जनसाधारण का है |क्योंकि ये धार्मिक समाज मेरे सामने संकीर्ण होने के कारण कोई भी मूल्य नही रखते है और साथ ही इस संकीर्णता तथा स्वार्थपरता तथा अन्यायपूर्ण होने के कारण सब धर्मो से दूर रहना चाहता हूँ और दुसरो को भी ऐसा ही उपदेश देता हूँ (और )उसको सबसे बढकर तथा मनुष्य तथा समाज का (के लिए )कल्याणकारी समझता हूँ वह है "मनुष्य का मनुष्य तथा प्राणी -मात्र के साथ के कर्तव्य बिना किसी जाति-भेद ,रंग भेद धर्म तथा धन भेद के "|....................आपका आज्ञाकारी पुत्र महावीर सिंह .....(सेलुलर जेल ,पोर्टब्लयेर (अंडमान ).
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22 -04-2016) को "आओ बचाएं अपनी वसुन्धरा" (चर्चा अंक-2320) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'