Monday, August 15, 2016

नकली आजादी ;सत्ता शक्ति का हस्तान्तरण 15 - 8 2016


नकली आजादी ;सत्ता शक्ति का हस्तान्तरण

भारत की स्वतंत्रता कैसी?
विषय पर शिब्ली पी जी कालेज आजमगढ़ में भारत की स्वतंत्रता कैसी ? विषय पर विचार गोष्ठी हुई
अध्यक्षी सम्बोधन में सवाल उठा अगर हम इन बातो पे गौर करे तो हम स्वंय ही समझ सकते है आजादी है या नही ?
पहले तो हमे कुछ बातो को जानना जरूरी है |
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में ए. ओ ह्यूम ने कहा था , चूँकि जयकारा लगाने का काम मुझे सौपा गया है , इसलिए मैं सोचता हूँ कि , देर आये दुरुस्त आये के सिद्दांत को मानते हुए हम सभी तीन बार ही नही , तीन गुना अर्थात , नौ बार और हो सके तो नौ गुना तीन अर्थात सत्ताईस बार उस महान विभूति की जय बोले , जिसके जूतों के फीते खोलने लायक भी मैं नही हूँ ; जिसके लिए आप सभी प्यारे है और जो आप सभी को अपने बच्चो के समान समझती है अर्थात सब मिलकर बोलिए , महामहिम महारानी विक्टोरिया की जय !....
कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य --- ह्यूम के जीवनी लेख विलियम वैडरबर्न के अनुसार काग्रेस की स्थापना से पहले उसे ( ह्युम ) को तीस हजार से ज्यादा जगहों से जो जानकारी मिली थी , उसके अनुसार ब्रिटिश राज एक सम्भावित खतरे का शिकार हो सकता था | उसे डर था कि गरीब वर्ग के लोग , असहाय व निराश होकर '' कुछ '' कर सकते थे और उस '' कुछ '' का मतलब था हिंसा | कुछ पढ़े लिखे लोग उस आन्दोलन में कूदकर उसका नेतृत्व कर सकते थे और उसे राष्ट्रीय स्तर के विद्रोह में बदल सकते थे |
1916 में बालगंगाधर तिलक ने बेलगाँव में अपने होमरूल के भाषण में कहा था कि उस कथन में कोई दो राय नही है कि अंग्रेजो के शासन में , अंग्रेजो की देख - रेख में अंग्रेजो की मदद और सहानुभूति से , उनकी उच्चस्तरीय भावनाओं के साथ हमे अपना उद्देष्ट प्राप्त करना है | '' ( तिलक राइटिंग एंड स्पीच पृष्ठ 108 )
दिसम्बर 1921 में अहमदाबाद अधिवेशन में गांधी ने हसरत मोहानी के उस प्रस्ताव की सखत आलोचना की थी , जिसमे तमाम सम्भव साधनों द्वारा सभी विदेशी नियंत्रणों से मुक्त स्वराज या पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति को कांग्रेस का उद्देश्य बताया गया था | ' गांधी का मानना था कि मोहानी ने एक गलत मुद्दा उठाया है --- ( गांधी वांग्मय ( पृष्ठ 100 - 113 )
1927 में कांग्रेस में मद्रास अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरु द्वारा एक प्रस्ताव में घोषणा की गयी कि भारत की जनता का उद्देश्य पूर्ण राष्ट्रीय स्वतंत्रता है | ' गांधी इस प्रस्ताव से सहमत नही थे |
24 मार्च 1947 को वायसराय माउन्टबेटेंन के साथ पहली मुलाक़ात में नेहरु ने कहा था की वह मित्रता के धागे को नही तोड़ना चाहते | माउन्टबेटन ने लिखा है , '' मुझे लगता है की नेहरु राष्ट्रकुल में रहना चाहता है परन्तु वह ऐसा कहने का साहस नही कर सका ( transfer of power 10 - pqge -13 )
10 मई 1947 को वायसराय व उनके कार्यालय के सदस्यों के साथ बातचीत में नेहरु ने कहा था की भावनात्मक कारणों के अलावा भी अन्य कारणों से वह ब्रिटिश राष्ट्रकुल के साथ नजदीकी से नजदीकी रिश्ता कायम रखना चाहता है | बहुत से कारणों की वजह से वह खुले तौर पर औपनिवेशिक स्वराज्य की बात नही कर सकता , परन्तु उसके लिए आधार अवश्य तैयार करना चाहता है | (transfer of power -- 10 ,. p-735 )
23 मई 1947 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली ने औनिवेशिक प्रधानमन्त्री को एक तार भेजा था जो बेहद चौकाने वाला है -
उसके अनुसार
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कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि अपनी पार्टी से स्वीकारोक्ति लेने के लिए उन्हें आम जनता से यह कहना ही होगा कि औनिवेशिक स्वराज्य के नियमानुसार औनिवेशिक स्वराज्य जब भी चाहे राष्ट्रकुल से अलग हो सकता है , लेकिन उनके अपने अनुसार अगर एक बार औनिवेशिक स्वराज्य की मांग स्वीकार कर ली जाती है , तो हिन्दुस्तान राष्ट्रकुल को नही छोड़ेगा |...
इसलिए मैं जोर देकर कह रहा हूँ कि उस मामले में अत्यनत गोपनीयता की आवश्यकता है | क्योकि अगर यह बात बाहर खुल जाती है कि स्वंय कांग्रेसी नेताओं ने ही गुप्त रूप से इस विचार को प्रोत्साहित किया है तो उस मुद्दे पर पार्टी को स्वीकारोक्ति लेने की उनकी योजनाये मिटटी में मिल जायेगी (transfer of power-- 10 पेज - 974--75 )
वक्ताओं ने कहा सत्तर साल की आजादी बेमानी है आजादी तो तब होती जब मानव का मानव द्वारा शोषण बंद होता , समाज में हिंसा नही होती पर आज क्या हो रहा है जाति - धर्म का उन्माद चारो तरफ नजर आ रहा है |
वक्ताओं ने इसे नकली आजादी ;सत्ता शक्ति का हस्तान्तरण माना। शहीदे आजम भगत सिंह के सपनों का भारत बनना अभी बाकी है। आजा़दी का मूल्यांकन
जब तक मानव द्वारा मानव का लहू पीना जारी है,
जब तक बदनाम कलण्डर में शोषण का महीना जारी है,
जब तक हत्यारे राजमहल सुख के सपनों में डूबे हैं
जब तक जनता का अधनंगे-अधभूखे जीना जारी है
हम इन्क़लाब के नारे से धरती आकाश गुँजाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !! ----- कांतिमोहन 'सोज़'

2 comments:

  1. दादा,, विचारणीय और संग्रहणीय ।
    प्रणाम

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  2. और क्या करेंगे? करना ही है तो जिन्हें शोषित समझते हो उनके लिये काम करो हर कोई एक बच्चा पढाओ या स्वयं यो स्कूल में ।

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