'' मेरा मानना है कि इस्लाम अमन , यकीन और मोहब्बत का नाम है ....''
---------------------------------------- बादशाह खान
खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्म पेशावर से लगभग 24 मील दूर स्थित उत्तमजई गाँव के समृद्द परिवार में हुआ था उनके पिता बहराम खान अपने गाँव के मुखिया थे | अपने आसपास के माहौल के विपरीत वे एक शांत प्रवृत्ति के बदले की जगह माफ़ कर देने वाले इंसान थे | उन्होंने स्थानीय मुल्लाओ के विरोध के वावजूद अपने बेटो को गाँव से बाहर हाई स्कूल में पढने भेजा | अब्दुल गफ्फार खान अपनी शिक्षा पूरी करके स्थानीय ब्रिटिश सेना में गाइड की नौकरी करने लगे थे , पर एक अंग्रेज अफसर के हाथो अपने एक साथी का अपमान देखकर उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी | उन्होंने कुछ समय तक खेतो में काम किया , अलीगढ़ जाकर पढ़ाई जारी रखी ; पर वे पठानों में व्याप्त अज्ञानता ,पिछड़ेपन और हिंसा से व्यथित हो सुधार के लिए कुछ करने के लिए परेशान रहते | कुछ समय तक उन्होंने सीमांत क्षेत्र के प्रमुख समाज सुधारक हाजी अब्दुल वाहिद साहिब की छत्रछाया में काम किये | शुरूआती दौर में खान अब्दुल गफ्फार खान ने अपने गाँव उत्तमजई और उसके आस पास के अन्य गाँव में स्कूल खोलकर उदार शिक्षा का प्रसार करना शुरू किया | जाहिर है इससे अंग्रेजो और रुढीवादियों मुल्लाओ दोनों को परेशानी हुई कयोकि सीमांत क्षेत्र में जागरूकता फैलना उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता था | अत: गफ्फार खान को कई कठिनाइयो का सामना करना पडा | देश के कुछ मुस्लिम नेताओं की सलाह पर बादशाह खान ने कई पहाड़ी कबीलाई इलाको में शिक्षा - प्रसार के प्रयास शुरू किये | इस कार्य में वे बिलकुल अकेले पड़ गये पर अपने आंतरिक मनोबल को मजबूत बना लिया | अपने गाँव लौटने पर अंग्रेजो द्वारा बंद किये स्कूल को पुन: चालु करने में लग गये | स्कूलों की पुनर्स्थापना , नए स्कूल खोलने और पठानों की सर्वोमुखी उन्नति के लिए वे एक के बाद एक पठान गाँव की यात्राये करते रहे | इन्ही दिनों इनकी पत्नी बीमार हो गयी जिनसे उनकी मौत हो गयी |
1919 की राजनीतिक हलचलों के दौरान सीमांत क्षेत्र में जब मार्शाल ला लगाया गया तो बादशाह खान को गिरफ्तार कर लिया गया | जेल से छूटने पर माता -पिता की आग्रह पर उन्होंने दूसरी शादी की | सीमांत क्षेत्र में सुधार कार्यो के लिए एक गैर राजनीतिक संस्था ''अंजुमन - ए-इस्लाह - उल -अफगीना '' के गठन का मार्गदर्शन अब्दुल गफ्फार खान ने किया और वे पख्तूनो की तालीम हेतु स्थापित आजाद स्कूल के विस्तार में लग गये | खिलाफत आन्दोलन के दौरान खान अब्दुल गफ्फार खान से सीमांत क्षेत्र की खिलाफत समिति की अध्यक्षता ग्रहण करने का लोगो ने आग्रह किया | हिजरत आन्दोलन के तहत वे अफगानिस्तान गये | यह आन्दोलन विफल हो गया और खान अब्दुल गफ्फार खान ने पुन: भारत लौटकर अपना ध्यान शिक्षा के प्रसार में लगाया | अंग्रेजो द्वारा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बंद किये गये स्कूलों की पुनर्स्थापना और नये स्कूल खोले जाने के कारण बादशाह खान से अंग्रेज बेहद चिढ गये और दिसम्बर 1921 में उन्हें गिरफ्तार करके तीन वर्ष का कठोर कारावास की सजा सूना दिया गया | 1924 तक खान अब्दुल गफ्फार खान का समय उत्तरपश्चिमी क्षेत्र की कई जेलों में गुजरा | इस दौरान उन्हें कई तरह की प्रताड़ना व अपमान सहना पडा भारी बेडियो से पांवो के छलनी होने से लेकर भूखे - प्यासे रख जाने दूषित और बुनियादी सुविधाओं से रहित माहौल में रहने एकांतवास के कठोर श्रम व अपमान सहने जैसे कई बुरे अनुभवो में उन्होंने अपने दिन गुजारे | इन सबके बीच जेल की दशा सुधारे जाने के लिए और जेल प्रशासन के भ्रष्टाचार के विरुद्ध बादशाह खान ने शालीनता से अपनी आवाज बुलंद किया | अपने बंदी जीवन में उन्होंने विभिन्न धार्मिक ग्रंथो का अध्ययन किया | उनका स्वास्थ्य गिरता गया और उनकी माँ के मौत की खबर बहुत बाद में उन्हें मिली | 1926 में अपनी पिता की मृत्यु के बाद बादशाह खान ने अपने परिवार के साथ हज यात्रा आरम्भ किया | यरूशलम में उनकी पत्नी एक दुर्घटना में गुजर गयी | मध्य पूर्व की यात्रा से लौटने के बाद खान अब्दुल गफ्फार खान ने पश्तून जिरगाह नाम से पठान युवको की एक लीग गठित की जो सामजिक - शैक्षिक व राजनीतिक सुधारों के लिए थी | 1927 में देश में साम्प्रदायिकता की जो लहर चली उस वक्त बादशाह खान ने दृढ़ता से अपना मत रखा कि '' मेरा मानना है कि इस्लाम अमन , यकीन और मोहब्बत का नाम है ....'' 1928 में उन्होंने ''पख्तून '' नामक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया | यह पश्तो भाषा का मासिक अखबार था जिसमे पख्तूनो की विभिन्न समस्याओं को उठाने के अतिरिक्त सामान्य सामजिक मुद्दों पर भी लेख होते __ क्रमश:
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