बादशाह खान समाज में महिलाओं की व्यापक भूमिका , स्वतंत्रता के संघर्ष में उनकी सक्रिय भागीदारी पर जोर देते थे | उनकी खुद की बहनों ने परदे के बहार आकर उनके आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई | 1930 में उनकी बहने सीमांत के एक क्षेत्र से दुसरे क्षेत्र में यात्राए करते हुए जन जागरण द्वारा आजादी का संदेश देती रही | पठान औरतो को सम्बोधित करते हुए 1931 में खान अब्दुल गफ्फार खान ने कहा था ''भगवान ने आदमी और औरत में कोई अंतर नही बनाया है यदि इनमे से कोई दूजे से उपर उठ सकता है तो केवल अपने अच्छे कर्मो और नैतिक गुणों के बल पर | अगर आप इतिहास पढ़ेंगी तो पाएगी की औरतो में कई विधुशी और कवित्री हुई है | औरतो को कम अंक कर हमने बहुत बड़ी गलती की हैं | उन्होंने मुस्लिम महिलाओं का आव्हान किया '' यदि तुम इस्लाम के इतिहास का अध्ययन करो तो तुम पाओगे की पुरुष और स्त्री ने एक साथ मिलकर इस्लाम की सेवा की हैं | इसलिए तुम्हे हमारे साथ मिलकर देश की सेवा में जुट जाना चाहिए "'| 1934 में बम्बई में उन्होंने खा था .. यदि भारतीय महिलाए जागरूक हो जाए ;तो धरती पर कोई भी शक्ति नह रहेगी जो भारत को गुलाम रख सके ''| सीमांत प्रांत में मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा व सामाजिक सुधार के उद्देश्यों के लिए खान अब्दुल गफ्फार खान के अनुरोध पर गांधी जी ने 1939 में वहाँ मीरा बहन व बीबी अम्तुस सलाम को भेजा था | बादशाह खान ने अपने क्षेत्र में नागरिक अवज्ञा आन्दोलन में शामिल हो इसी अपील को फैला रहे थे और वे गिरफ्तार कर लिए गये उन्हें तीन साल की सजा हुई | पेशावर समेत सीमांत क्षेत्र में अन्य इलाको में सरकार ने पठानों पर विशेषकर खुदाई खिदमतगारो पर भयंकर कहर ढाया | इसी दौर में भारतीय इतिहास की एक यादगार घटना घटी थी | पेशावर में निहत्थी भीड़ पर गोलिया चलाने से चन्द्रसिंह गढवाली के नेतृत्व में गढवाल राइफल्स की एक पलटन ने इनकार कर दिया | अपने अफसरों से उन्होंने साफ़ कहा की चाहे उन्हें ही गोलियों से क्यो न भुन दिया जाए ;पर वे निह्ठो भाइयो पर गोलिया नही चलाएंगे | इन साहसी सिपाहियों को बाद में कड़ी सजा दी गयी | जेल से रिहा होने के बाद बादशाह खान खुदाई ख्द्मात्गारो को पुन: संगठित करने में जुट गये | एक सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए बादशाह खान अपने सबदेश फैलाते हुए निरंतर एक गाँव से दुसरे गाँव की यात्रा करते रहे | अंग्रेजो ने उन पर कई तरह की बंदिशे लगाई , उनके बारे में गलत अफवाह फैलाई गयी ; पर कोई बाधा उन्हें न ओके सकी | अंतत:उन्हें पुन: गिरफ्तार करके बिहार की जेल में एकांतवास में भेज दिया गया | सीमांत क्षेत्र से बाहर भी बादशाह खान ने अपने व्यक्तित्व की विशेष छाप छोड़ी | अगस्त 1934 में उन्होंने पटना में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए साम्प्रदायिकता एकता पर बल दिया | बंगाल के युवको को उन्होंने अपना खुद का एक खुदाई -खिदमतगार आन्दोलन चलाने को प्रोत्साहित किया | 1938 में गांधी जी ने सीमांत क्षेत्र में दो बार दौरा किये और वे खुदाई ख्द्मात्गारो से काफी प्रभावित हुए | उन्होंने सीमांत क्षेत्र में रचनात्मक कार्यक्रम पर बल देने की सलाह दी | बादशाह खान को उनकी सलाह थी की पठानों को अंहिसात्मक ढंग से लड़ना तो आता है , पर अब खान अब्दुल गफ्फार खान को उन्हें अहिंसात्मक तरीके से जीना भी सिखाना है | क्रमश:
aabhaar guru ji
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