मुझे
कुछ नया पढने के साथ ही कुछ नया करने की जिज्ञासा हमेशा रही इसी आदत के
कारण नए - नए लोगो से मिलना नए स्थानों पे जाना और कुछ नया खोज के लाना अब
आदत में शुमार है आइये आज मिलवाता हूँ |
राबिया बसरी से ----
राबिया बसरी के गीत ---- राबिया 713 ईस्वी में ईराक के बसरा शहर में जन्मी थी | हजरत मुम्मद और राबिया के बीच लगभग कोई सौ साल का ही फासला है | इसीलिए सबसे पहले हुए सूफियो में राबिया का नाम गिना जाता है , और यह भी कहा जाता है कि प्रेम के मार्ग का प्रारम्भ राबिया से होता है |
कहते है कि राबिया जब पैदा हुई तो उसके गरीब घर में न तो चिराग जलाने के लिए तेल था और न उसे लपेटने के लिए कोई कपड़ा | राबिया की माँ ने उसके पिता से कहा कि वह पडोस से थोड़ा तेल और कपड़ा मांग लाए|
लेकिन राबिया के पिता ने यह कसम उठा रखी थी कि वह अपना हाथ अल्लाह को छोड़ कभी किसी के आगे नही फैलायेगे | पत्नी का दिल रखने के लिए वह पडोस में गये और बिना किसी से कुछ मांगे वापस आ गये |
कहते है उस रात हजरत मुहम्मद उनके सपने में आये और बोले ,
' तेरी बेटी मुझे अजीज है | तू बसरा के आमीर के पास जा और उसे एक ख़त दे , जिसमे यह लिखना : तू हर रात नबी को सौ दुरुद करता है और हर जुम्मेरात को चार सौ दुरुद करता है | लेकिन पिछली जुम्मेरात को तू दुरुद करना भूल गया , सजा के तौर पर इस ख़त लेन वाले को चार सौ दीनार दे दे |
आँखों में आँसू लिए राबिया के पिता आमिर के पास पहुचे | आमिर नाच उठा कि वह नबी की नजरो में है | उसने 1000 दीनार गरीबो में बाटे व ख़ुशी - ख़ुशी चार सौ दीनार राबिया के पिता को दिए और यह भी कहा कि उन्हें जब जरूरत हो उसके पास चले आये |
राबिया के पिता की मृत्यु के बाद बसरा में अकाल पडा | राबिया अपनी माँ और बहनों से अलग एक दूसरे कारवा के पीछे चल पड़ी , जो लुटेरो के हाथ लग गया | उन लुटेरो ने राबिया को गुलामो के बाजार में बेच दिया |
राबिया का मालिक उससे कड़ी मेहनत करवाता | वह बिना किसी शिकायत सब काम करती , और रात जब वह अकेली होती तो अपने प्रीतम ' अल्लाह ' के साथ मानो खेलती | रात वह अपने गीत रचती और अल्लाह को सुनाती |
एक रात राबिया के मालिक की नीद खुली तो उसने देखा राबिया गीत गा रही थी ;
आँख आराम में है , तारे डूब रहे है
परिंदों के घोसलों में कोई आवाज नही
समुंदर के शैतान भी चुप है
खलीफो और शहशाओ के दरवाजे बंद है .
लेकिन बस एक तेरा दरवाजा खुला है
तू ही तू है जो बदलता नही
तू ही तू है जो कभी मिटता नही
मेरे अल्लाह ,
हर आशिक अपने - अपने महबूब के साथ है
मैं बस तेरे साथ हूँ |
राबिया के मालिक ने देखा की जब वह गा रही थी तो उसके चेहरे से ऐसा नूर टपक रहा था कि जैसे रात भी रोशन हो गयी हो |
वह राबिया के पैरो में गिर पड़ा और बोला की कल से तू मेरी मालकिन होगी और मैं तेरा गुलाम |
उसने राबिया से यह भी कहा कि अगर वह जाना चाहे तो वह उसे गुलामी के बंधन से आजाद करता है |
राबिया ने कहा कि वह रेगिस्तान में जाकर कुछ समय अकेली रहना चाहती है | रेगिस्तान में उसने कई दिन गुजारे और वही मुर्शिद के रूप में उसे हसन अल बसरी मिले , जिनके चरणों में वह रहने लगी |
कहते है कि जिस दिन राबिया प्रवचन में न आती हसन चुप ही रहते | जब उनसे पूछा गया तो वह बोले , जिस बर्तन में चाशनी भरकर हाथी को पिलाई जाती है , वह बर्तन चीटियों को चाशनी पिलाने के काम नही आ सकता |
एक दिन अचानक रात गीत गाते हुए राबिया चुप हो गयी | जब वह हसन से मिली तो हसन ने उसकी आँखे देखकर कहा : अरे तुझे तो मिल गया | कैसे मिला तुझे ?
राबिया ने कहा , आप ' कैसे ' की बात करते है , और मैंने जाना कि ' कैसे ' और ' ऐसे ' कही नही पहुचाते है | जो है , सो है | ' कैसे ' तो वहा ' पहुचाएगा, और होना ' यहाँ ' है |
हसन ने राबिया को गले लगाया और कहा कि तू जा अपने गीतों को फैला |
वह अकेली एक कुटिया में रहने लगी और हजारो शिष्य उसके पास पहुचने लगे | वह जो गति , शिष्य उसे लिख लेते | उसके जो गीत आज उपलब्ध है वह उसके शिष्यों ने ही कागज पर उतारे है |
प्रस्तुती -- कबीर ---------------- आभार ----------------- यैस ओशो
राबिया बसरी से ----
राबिया बसरी के गीत ---- राबिया 713 ईस्वी में ईराक के बसरा शहर में जन्मी थी | हजरत मुम्मद और राबिया के बीच लगभग कोई सौ साल का ही फासला है | इसीलिए सबसे पहले हुए सूफियो में राबिया का नाम गिना जाता है , और यह भी कहा जाता है कि प्रेम के मार्ग का प्रारम्भ राबिया से होता है |
कहते है कि राबिया जब पैदा हुई तो उसके गरीब घर में न तो चिराग जलाने के लिए तेल था और न उसे लपेटने के लिए कोई कपड़ा | राबिया की माँ ने उसके पिता से कहा कि वह पडोस से थोड़ा तेल और कपड़ा मांग लाए|
लेकिन राबिया के पिता ने यह कसम उठा रखी थी कि वह अपना हाथ अल्लाह को छोड़ कभी किसी के आगे नही फैलायेगे | पत्नी का दिल रखने के लिए वह पडोस में गये और बिना किसी से कुछ मांगे वापस आ गये |
कहते है उस रात हजरत मुहम्मद उनके सपने में आये और बोले ,
' तेरी बेटी मुझे अजीज है | तू बसरा के आमीर के पास जा और उसे एक ख़त दे , जिसमे यह लिखना : तू हर रात नबी को सौ दुरुद करता है और हर जुम्मेरात को चार सौ दुरुद करता है | लेकिन पिछली जुम्मेरात को तू दुरुद करना भूल गया , सजा के तौर पर इस ख़त लेन वाले को चार सौ दीनार दे दे |
आँखों में आँसू लिए राबिया के पिता आमिर के पास पहुचे | आमिर नाच उठा कि वह नबी की नजरो में है | उसने 1000 दीनार गरीबो में बाटे व ख़ुशी - ख़ुशी चार सौ दीनार राबिया के पिता को दिए और यह भी कहा कि उन्हें जब जरूरत हो उसके पास चले आये |
राबिया के पिता की मृत्यु के बाद बसरा में अकाल पडा | राबिया अपनी माँ और बहनों से अलग एक दूसरे कारवा के पीछे चल पड़ी , जो लुटेरो के हाथ लग गया | उन लुटेरो ने राबिया को गुलामो के बाजार में बेच दिया |
राबिया का मालिक उससे कड़ी मेहनत करवाता | वह बिना किसी शिकायत सब काम करती , और रात जब वह अकेली होती तो अपने प्रीतम ' अल्लाह ' के साथ मानो खेलती | रात वह अपने गीत रचती और अल्लाह को सुनाती |
एक रात राबिया के मालिक की नीद खुली तो उसने देखा राबिया गीत गा रही थी ;
आँख आराम में है , तारे डूब रहे है
परिंदों के घोसलों में कोई आवाज नही
समुंदर के शैतान भी चुप है
खलीफो और शहशाओ के दरवाजे बंद है .
लेकिन बस एक तेरा दरवाजा खुला है
तू ही तू है जो बदलता नही
तू ही तू है जो कभी मिटता नही
मेरे अल्लाह ,
हर आशिक अपने - अपने महबूब के साथ है
मैं बस तेरे साथ हूँ |
राबिया के मालिक ने देखा की जब वह गा रही थी तो उसके चेहरे से ऐसा नूर टपक रहा था कि जैसे रात भी रोशन हो गयी हो |
वह राबिया के पैरो में गिर पड़ा और बोला की कल से तू मेरी मालकिन होगी और मैं तेरा गुलाम |
उसने राबिया से यह भी कहा कि अगर वह जाना चाहे तो वह उसे गुलामी के बंधन से आजाद करता है |
राबिया ने कहा कि वह रेगिस्तान में जाकर कुछ समय अकेली रहना चाहती है | रेगिस्तान में उसने कई दिन गुजारे और वही मुर्शिद के रूप में उसे हसन अल बसरी मिले , जिनके चरणों में वह रहने लगी |
कहते है कि जिस दिन राबिया प्रवचन में न आती हसन चुप ही रहते | जब उनसे पूछा गया तो वह बोले , जिस बर्तन में चाशनी भरकर हाथी को पिलाई जाती है , वह बर्तन चीटियों को चाशनी पिलाने के काम नही आ सकता |
एक दिन अचानक रात गीत गाते हुए राबिया चुप हो गयी | जब वह हसन से मिली तो हसन ने उसकी आँखे देखकर कहा : अरे तुझे तो मिल गया | कैसे मिला तुझे ?
राबिया ने कहा , आप ' कैसे ' की बात करते है , और मैंने जाना कि ' कैसे ' और ' ऐसे ' कही नही पहुचाते है | जो है , सो है | ' कैसे ' तो वहा ' पहुचाएगा, और होना ' यहाँ ' है |
हसन ने राबिया को गले लगाया और कहा कि तू जा अपने गीतों को फैला |
वह अकेली एक कुटिया में रहने लगी और हजारो शिष्य उसके पास पहुचने लगे | वह जो गति , शिष्य उसे लिख लेते | उसके जो गीत आज उपलब्ध है वह उसके शिष्यों ने ही कागज पर उतारे है |
प्रस्तुती -- कबीर ---------------- आभार ----------------- यैस ओशो
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