शब्दावली सकलन का प्रारम्भ व विकास --
मध्यकाल की नाम मालाओ की परम्परा के बकाद पहला शब्दावली संकलन का कार्य आदन ने 1829 में ' हिन्दवी भाषा का कोष ' शीर्षक से तैयार कजिया जिसमे 20 , 000 शब्द थे |
तद्व्व तथा देशज शब्दों को प्रधानता दी गयी | आदम साहब पहले व्यक्ति थे जिन्होंने लोक से बोलचाल के शब्द संगृहित किये |
आदम से पूर्व गिलक्राइस्ट , कर्कपैट्रिक , विलियमहंटर , शेक्सपियर , राब्क के कोष और बाद में फैलेन , येट , डकर फोब्र्स , थामसन तथा जान प्लाट्स के कार्य उल्लेखनीय है |
इनमे फैलेन थामसन तथा जान प्लाट्स के कार्य महत्वपूर्ण है | थामसन के संकलन में शब्द संख्या 30,000 है , फैलेन के कोष में1216 पृष्ठ ( रायल कटेव ) है | प्लाट्स के कोष का पूरा नाम है --- '' ए डिक्शनरी आफ उर्दू , क्लासिक हिंदी एंड इंग्लिश (1874 ) जिसकी प्रमुख विशेषताए है |
मध्यकाल की नाम मालाओ की परम्परा के बकाद पहला शब्दावली संकलन का कार्य आदन ने 1829 में ' हिन्दवी भाषा का कोष ' शीर्षक से तैयार कजिया जिसमे 20 , 000 शब्द थे |
तद्व्व तथा देशज शब्दों को प्रधानता दी गयी | आदम साहब पहले व्यक्ति थे जिन्होंने लोक से बोलचाल के शब्द संगृहित किये |
आदम से पूर्व गिलक्राइस्ट , कर्कपैट्रिक , विलियमहंटर , शेक्सपियर , राब्क के कोष और बाद में फैलेन , येट , डकर फोब्र्स , थामसन तथा जान प्लाट्स के कार्य उल्लेखनीय है |
इनमे फैलेन थामसन तथा जान प्लाट्स के कार्य महत्वपूर्ण है | थामसन के संकलन में शब्द संख्या 30,000 है , फैलेन के कोष में1216 पृष्ठ ( रायल कटेव ) है | प्लाट्स के कोष का पूरा नाम है --- '' ए डिक्शनरी आफ उर्दू , क्लासिक हिंदी एंड इंग्लिश (1874 ) जिसकी प्रमुख विशेषताए है |
(1 ) शब्दों की व्युत्पत्ति पर प्रकाश तथा
( 2 ) समान वर्तनी के अलग - अलग स्रोतों से आये शब्दों की अलग - अलग प्रविष्टिया
(3 ) अकर्मक तथा सकर्मक क्रियाओं का उल्लेख
( 4 ) साहित्येर सह्ब्दो का संकलन |
भारतीयों द्वारा बनाये गये कोशो में जिन दो कोशो का सर्वाधिक प्रचार - प्रसार हुआ , वे है -- ' श्रीधर भाषा कोष ' ( सन 1894 ) श्रीधर त्रिपाठी ,लखनऊ , पृष्ठ स . 744 तथा ' हिंदी शब्दार्थ पारिजात ' ( सन 1914 ) , द्वारका प्रसाद चतुर्वेदी , इलाहाबाद | पहले कोश में लगभग 25 , 000 शब्द संख्या है जबकि दुसरे में ब्रजभाषा -- अवधि आदि विभाषाओ के शब्दों की संख्या रहने के कारण शब्द संख्या अधिक है |
अनुमान किया जा सकता है कि 20 वी शताब्दी के प्रारम्भ तक शब्द संकलन 50 ,000 तक पहुँच गया |
आधुनिक काल में बाबू श्याम सुन्दर दास रामचन्द्र शुक्ल , राम चन्द्र वर्मा के सत्प्रयासो से नागरी प्रचारणी सभा , वाराणसी से ' हिंदी शब्दसागर ' ( 1922 -29 ) प्रकाशित हुआ जिसकी योजना 23 - 8- 1907 की सभा के परम हितैषी और उत्साही सदस्य श्रीयुत रेवरेंड ई ग्रीब्ज के उस प्रस्ताव के अनुसार बनी जिसमे प्रार्थना की गयी थी कि ' हिन्दी के एक बृहत और सर्वांगपूर्ण कोष का भार सभा अपने ऊपर ले | '
सन 1910 के आरम्भ में शब्द संग्रह का कार्य समाप्त हुआ | 10 लाख सिलप बनाई गयी जिनमे लगभग एक लाख शब्दों का आंकलन किया गया |
यह कोष वस्तुत: सागर था जो शब्दों , अर्थो , मुहावरों , लोकोत्तियो , उदाहरणों तथा उद्द्र्ण से भरपूर अर्थच्छटाए देने में सर्वोत्तम माना जाएगा |
इसके बाद कोष कला में दीर्घकालीन अनुभव प्राप्त आचार्य रामचन्द्र वर्मा के प्रयासों से वाराणसी से ' प्रमाणिक हिन्दी कोष ' ( पृष्ठ संख्या 3966;1962-1966 ) प्रकाशित हुआ | ' वृहद हिन्दी कोष ' के तीसरे संस्करण में एक लाख अडतालीस हजार शब्द है | इस बीच ' हिन्दी शब्दसागर ' का नवीं संशोधित और परिवर्धित संस्करण ( 1965 -75 ) में प्रकाशित हुआ जिसमे कुल पृष्ठ संख्या 5570 है , संयोजक श्री कृनापति त्रिपाठी के दिनाक 18-2-65 के वक्तव्य के अनुसार ' मूल शब्द सागर से इसकी शब्द संख्या में दुगनी वृद्दि हुई है | इस प्रकार कोशो के आधार पर शब्दावली की संख्या दो लाख है |
( 2 ) समान वर्तनी के अलग - अलग स्रोतों से आये शब्दों की अलग - अलग प्रविष्टिया
(3 ) अकर्मक तथा सकर्मक क्रियाओं का उल्लेख
( 4 ) साहित्येर सह्ब्दो का संकलन |
भारतीयों द्वारा बनाये गये कोशो में जिन दो कोशो का सर्वाधिक प्रचार - प्रसार हुआ , वे है -- ' श्रीधर भाषा कोष ' ( सन 1894 ) श्रीधर त्रिपाठी ,लखनऊ , पृष्ठ स . 744 तथा ' हिंदी शब्दार्थ पारिजात ' ( सन 1914 ) , द्वारका प्रसाद चतुर्वेदी , इलाहाबाद | पहले कोश में लगभग 25 , 000 शब्द संख्या है जबकि दुसरे में ब्रजभाषा -- अवधि आदि विभाषाओ के शब्दों की संख्या रहने के कारण शब्द संख्या अधिक है |
अनुमान किया जा सकता है कि 20 वी शताब्दी के प्रारम्भ तक शब्द संकलन 50 ,000 तक पहुँच गया |
आधुनिक काल में बाबू श्याम सुन्दर दास रामचन्द्र शुक्ल , राम चन्द्र वर्मा के सत्प्रयासो से नागरी प्रचारणी सभा , वाराणसी से ' हिंदी शब्दसागर ' ( 1922 -29 ) प्रकाशित हुआ जिसकी योजना 23 - 8- 1907 की सभा के परम हितैषी और उत्साही सदस्य श्रीयुत रेवरेंड ई ग्रीब्ज के उस प्रस्ताव के अनुसार बनी जिसमे प्रार्थना की गयी थी कि ' हिन्दी के एक बृहत और सर्वांगपूर्ण कोष का भार सभा अपने ऊपर ले | '
सन 1910 के आरम्भ में शब्द संग्रह का कार्य समाप्त हुआ | 10 लाख सिलप बनाई गयी जिनमे लगभग एक लाख शब्दों का आंकलन किया गया |
यह कोष वस्तुत: सागर था जो शब्दों , अर्थो , मुहावरों , लोकोत्तियो , उदाहरणों तथा उद्द्र्ण से भरपूर अर्थच्छटाए देने में सर्वोत्तम माना जाएगा |
इसके बाद कोष कला में दीर्घकालीन अनुभव प्राप्त आचार्य रामचन्द्र वर्मा के प्रयासों से वाराणसी से ' प्रमाणिक हिन्दी कोष ' ( पृष्ठ संख्या 3966;1962-1966 ) प्रकाशित हुआ | ' वृहद हिन्दी कोष ' के तीसरे संस्करण में एक लाख अडतालीस हजार शब्द है | इस बीच ' हिन्दी शब्दसागर ' का नवीं संशोधित और परिवर्धित संस्करण ( 1965 -75 ) में प्रकाशित हुआ जिसमे कुल पृष्ठ संख्या 5570 है , संयोजक श्री कृनापति त्रिपाठी के दिनाक 18-2-65 के वक्तव्य के अनुसार ' मूल शब्द सागर से इसकी शब्द संख्या में दुगनी वृद्दि हुई है | इस प्रकार कोशो के आधार पर शब्दावली की संख्या दो लाख है |
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