Wednesday, August 5, 2015

आंतरिक सौन्दर्य ----------------- 5-8-15

आंतरिक सौन्दर्य

सोनपुर की राजकुमारी को अपनी सुन्दरता  पर बेहद घमंड था | दूसरो का मजाक उडाना उन्हें नीचा दिखाना उसका प्रिय व्यसन था | एक दिन वह सहेलियों के साथ नदी पर स्नान के लिए गई |

वहा उसने एक सन्यासी को ध्यान - मग्न देखा | उसकी नाक कुछ बड़ी थी और चेहरे पर दाढ़ी भी थी |
उसे देख राजकुमारी ने अपनी सहेलियों से कहा --- ' देखो तो यह रीछ कैसा बगुला भगत बना बैठा है | इतनी लम्बी नाक और चेहरे पर बालो के साथ यह पूरा रीछ लगता है | '


यह सुनकर सन्यासी कुपित हो गया और बोला
' घमंडी लड़की ' तूने मेरे मुख की तुलना जानवर से की है , तेरा चेहरा भी उसी जैसा हो जाएगा | ' उसी शाम राज उद्यान में टहलते हुए राजकुमारी ने कुछ पुष्प तोड़े और उनकी सुरभि का आनन्द लेने लगी | किन्तु जैसे - जैसे वह फूलो को सुघती , उसकी नाक बड़ी होती जाती  |

देखते - देखते उसकी नाक इतनी बड़ी हो गई की सभालना कठिन हो गया |
उसके चेहरे पर घने बाल भी उग आए उसकी यह हालत देख राजमहल में कोहराम मच गया , फौरन राजवैद्द को बुलाया गया , पर उनका  उपचार भी व्यर्थ रहा - तब राजवैद्द  ने कहा -- राजन , यह कोई दैवकोप  लगता है | " तब राजकुमारी ने अपने पिता को नदी के घाट पर हुआ पूरा वृत्तांत सुनाया | राजा अपनी बेटी को लेकर भागे - भागे सन्यासी के पास पहुचे और उनके चरणों में गिरते हुए बोले -- इसकी भूल को क्षमा करे महात्मन | इसे इस व्याधि से मुक्ति दिलाए |  अगले दिन से ही राजकुमारी सन्यासी की बताई रीति के अनुसार औषधि उपचार में जुट गई | पन्द्रह दिन पुरे होते - होते उसका शरीर पूर्ववत हो गया | अब राक़ज्कुमारी समझ चुकी थी कुरूपता बाहरी नही आंतरिक होती है और सच्चा सौन्दर्य  शारीरिक रूप - रंग नही आंतरिक  सदगुण सम्पत्ति है | ----

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