14 नवम्बर 2015
के दैनिक जागरण में ' दुनिया में सम्पत्ति के बटवारो को लेकर कुछ आंकड़े
प्रकाशित किये गये है | इन आकंड़ो में विश्व की 70% से अधिक आबादी ( लगभग
3.4 अरब की आबादी ) को कुछ हजार से लेकर औसतन 10 हजार डालर यानी 6.55. लाख
रूपये से कम की सम्पत्ति का मालिक बताया गया है | इसके उपर से 21% आबादी को
10 हजार डालर से लेकर 1 लाख डालर तक की सम्पत्ति का मालिक बताया गया है |
वैश्विक आबादी के बाकी बचे हुए उच्च एवं धनाढ्य आबादी के पास 10 हजार डालर
यानी 65.5. करोड़ से अधिक की अकूत सम्पत्ति का मालिक दर्शाया गया है | कुल
आबादी के 5% से भी कम संख्या वाले इन धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों के पास
सामूहिक रूप से 113 ट्रिलियन डालर यानी महाशख डालर की सम्पत्ति है | जबकि
कुल आबादी के 71% जनसाधारण के पास कुल मिलाकर महज 7.4ट्रिलियन ( महाशख )
डालर की सम्पत्ति है |
इस देश में भी
सम्पत्ति की स्थित इस वैश्विक बटवारे जैसी ही है | बल्कि उससे भी ज्यादा
गम्भीर है | इस देश की आबादी की 95% आबादी के पास 10 हजार डालर ( 6.55. लाख
रुपया ) से कम की सम्पत्ति है | जबकि बाकी 5% आबादी में से 0.3 % के पास
एक लाख डालर से अधिक की पूंजी व सम्पत्ति है | इन सर्वोच्च धनाढ्य हिस्सों
के अलावा शेष रह गये 4.7 धनाढ्यो के पास 10 हजार डालर से लेकर एक लाख डालर
या उससे कुछ अधिक की पूजी व सम्पत्ति का मालिकाना है |
उपरोक्त आंकडा ,
वैश्विक एवं भारतीय स्तर पर समाज में सम्पत्ति के बढ़ते बटवारे का मौजूदा
आंकडा भर है | वह उसके बढने या घटने की दिशा नही बतलाता | वास्तविकता यह है
कि इसकी वर्तमान दिशा देश - दुनिया के थोड़े से लोगो की धनाढ्यता बढाने तथा
बहुसख्यक जनसाधारण को धन सम्पत्ति से पूरी तरह से विपन्न कर देने की दिशा
में लक्षित है | इसके साथ ही विडम्बना यह है कि यह प्रक्रिया इस देश में और
समूचे विश्व में जनतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने और उसे मजबूत बनाने
के धुआधार प्रचारों के साथ बढती जा रही है |
सब जानते है कि
वर्तमान युग को सामंतशाही , राजशाही के युग से भिन्न कमोवेश बराबरी वाला
तथा बराबरी के अधिकार वाला जनतांत्रिक युग कहा जाता है | सामंतशाही के युग
में शासको के पास ही धन , सम्पत्ति के मालिकाने के समूचे या व्यापक अधिकार
के साथ शासन व समाज व्यवस्था के संचालन का भी अधिकार होता था |
बराबरी , एकता
तथा भाईचारगी के नारों के साथ हुई जनतांत्रिक क्रांतियो ने न केवल सामन्ती ,
राजशाही व्यवस्था को तोड़ दिया , बल्कि उनके शासन - सत्ता के अधिकारों को
छिनने के साथ उनकी जमीनों के मालिकाने हक़ को भी छीन लिया | उनकी जमीनों को
उनकी रियाया रहे भूमिहीन किसानो में बाट दिया | इस देश में भी यह काम
जमीदारी उन्मूलन के रूप में हुआ | बेशक यह काम क्रांतिकारी परिवर्तन के
जरिये नही हुआ | इसलिए यह काम आधा - अधूरा हुआ | देश के कई क्षेत्रो में आज
भी भूमि के मालिकाने का सकेन्द्र्ण इसी अधूरेपन का सबूत है |
लेकिन विश्व में
और इस देश में जनतंत्र की बहुप्रचारित स्थापना व विकास और जमीनों के मालिक
राजाओ , नबाबो तथा जमीदारो की जमीनों को उनसे छिनने तथा किसी हद तक
जनसाधारण को सौपने की जनतांत्रिक प्रक्रिया के साथ आधुनिक युग की धन
सम्पत्ति के पैसे - पूंजी के सन्दर्भ में दूसरी एवं इसकी विरोधी गैर
जनतांत्रिक प्रक्रिया भी निरंतर चलती रही है | उस प्रक्रिया के फलस्वरूप
समाज में बराबरी बढने की जगह भयंकर अब्राबरी बढती रही है | धन - सम्पत्ति ,
पैसा - पूंजी , उद्योग - व्यापार आदि के आधुनिक मालिकाने पर चढ़े - बढ़े
लोगो का मलिकना निरंतर बढ़ता गया है | उनके बढ़ते निजी लाभ व निजी मालिकाने
के फलस्वरूप समाज के 70% से अधिक आबादी वाले जनसाधारण की सम्पत्तिया ,
खेतिया एवं अन्य कारोबार टूटते रहे है वे सम्पत्तिहीन होते रहे है |
वर्तमान समय में यह प्रक्रिया तेजी से बढती जा रही है | प्रस्तुत आकंडे इसी
की गवाही दे रहे है |
समाज में वोट
देने के अधिकार के तथा कई अन्य बराबरी वाले अधिकारों के आने के साथ साथ धन -
सम्पत्ति वेतन - आमदनी , रहन - सहन में असमानता बढती रही है | इसीलिए
पिछले 60 सालो से आती रही सरकारों द्वारा अमीरी - गरीबी की बढती खाई पाटने
की बात की जाती रही है | उनके नाम पर नेतीयो कार्यक्रमों का निर्धारण भी
किया जाता रहा , लेकिन उसका कोई सकारत्मक परिणाम नही आया और न ही आना था |
क्योकि अमीरी -
गरीबी की खाई पाटने के नाम पर गरीबो को उपर उठाने की बहुप्रचारित घोषणाओं
के साथ दर हकीकत गरीबी को बढावा देने वाले अमीरों पर अंकुश लगाने की जगह
उन्हें अपने धनाढ्यता बढाने की छुट व अधिकार दीये जाते रहे है |
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