कबीर जीवन के लिए बड़ा सूत्र हो सकते है इसे तो पहले स्मरण कर ले | इसीलिए कबीर को मैं अनूठा कहता हूँ |
महावीर सम्राट के बेटे है ; - कृष्ण भी , राम भी , बुद्द भी ; वे सब महलो से आये है कबीर बिलकुल सडक से आये है ; महलो से कोई भी नाता नही है |
कबीर अनूठे है और प्रत्येक के लिए उनके द्वारा आशा का द्वार खुलता है | कयोकी कबीर से ज्यादा साधारण आदमी खोजना कठिन है | और अगर कबीर पंहुच सकते है , तो सभी पहुच सकते है |
कबीर निपट गंवार है , इसलिए गवार के लिए भी आशा है ; बे - पढ़े - लिखे है , इसलिए पढ़े - लिखे होने से सत्य का कोई भी सम्बन्ध नही है | जाति - पांति का कुछ ठिकाना नही कबीर की , शायद मुसलमान के घर पैदा हुए , हिन्दू के घर बड़े हुए | इसलिए जाति - पाति से परमात्मा का कुछ लेना - देना नही है |
कबीर जीवन भर गृहस्थ रहे जुलाहे ; बुनते रहे कपडे और बेचते रहे ; घर छोड़ हिमालय नही गये | इसलिए घर पर भी परमात्मा आ सकता है , हिमालय जाना आवश्यक नही | कबीर ने कुछ भी न छोड़ा और सभी कुछ पा लिया | इसलिए छोड़ना पाने की शर्त नही हो सकती |
और कबीर के जीवन में कोई भी विशिष्टता नही है | इसलिए विशिष्टता अंहकार का आभूषण होगी ; आत्मा का सौन्दर्य नही |
कबीर न धनी है , न ग्यानी , न स्मादुत है , न शिक्षित है , न सुसंकृत है , कबीर जैसा व्यक्ति अगर परमज्ञान को उपलब्ध हो गया , तो तुम्हे भी निराश होने की कोई भी जरूरत नही |
इसलिए कबीर में बड़ी आशा है |
कबीर गरीब हैं , और जान गये यह सत्य कि धन व्यर्थ है | कबीर के पास एक साधारण - सी पत्नी है और जान गये कि सब राग - रंग , सब वैभव - विलास , सब सौन्दर्य मन की ही कल्पना है ||
कबीर के पास बड़ी गहरी समझ चाहिए | बुद्द के पास तो तो अनुभव से आ जाती है बात ; कबीर को तो समझ से ही लानी पड़ेगी |
कबीर सडक पर बड़े हुए | कबीर के माँ - बाप का कोई पता नही | कोई कुलीन घर से कबीर आये नही
सडक पर ही पैदा हुए जैसे , सडक पर ही बड़े हुए जैसे |
कहा है कबीर ने कि कभी हाथ से कागज और स्याही छुई नही '' मसी कागज छुओ न हाथ '' |
ऐसा अपढ़ आदमी , जिसे दस्तखत करने भी नही आता , इसने परमज्ञान को पा लिया -- बड़ा भरोसा बढ़ता है | ----- साभार -- सुनो भई साधो -- ओशो
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