Wednesday, August 1, 2018

दानबहादुर सिंह 'सूँड़ फैजाबादी'' ''आज जन्मदिन है उनका ''

दानबहादुर सिंह 'सूँड़ फैजाबादी'' ''आज जन्मदिन है उनका ''
हरे - हरे नोटों में लगता प्यारा पेड़ खजूर का |
बनिया तो बदनाम बेचारा किसे नही दरकार है ||
हास्य का नाम लेते ही मेरे सामने प्रख्यात संचालक सूँड़ फैजाबादी का चेहरा सामने आ जाता था , मेरा सौभाग है कि मैंने उनके संचालनो में अनेक कवि सम्मेलनों में कविताओं का आनन्द लिया है , अदभुत व्यक्तित्व के धनी सूँड़ अपने ही मिजाज में जीते थे , जिसे मान लिया उसके वो हो लिए जिन्दगी के अंत तक साथ निभाया , सूँड़ जी की घनिष्टता किस्से नही थी , वो जनपद के ही नही पुरे देश के गौरव थे |
1 अगस्त सन 1928 में गाँव अलऊपुर , फैजाबाद में जन्मे थे पिता श्री रामकरन सिंह के यहाँ सूँड़ फैजाबादी बचपन से ही मेधावी रहे उन्होंने अपने हाई स्कूल की शिक्षा श्याम सुन्दर सरस्वती विद्यालय , फैजाब से पूरी करने के बाद वो आजमगढ़ चले आये और यहाँ आकर उन्होंने शिबली नेशनल कालेज आजमगढ़ से इंटर पास किया उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए सूँड़ फैजाबादी आगरा विश्व विद्यालय में दाखिला लिए वहाँ से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त किया सूँड़जी अपने संस्मरण में लिखते है जब मैं कक्षा 9 का छात्र था तो उस समय हिंदी के मेरे गुरु पंडित बलभद्र द्दिवेदी की प्रेरणा से मेरा हास्य रस की तरफ झुकाव हुआ और जब मैं 1947 में एस के पी इंटर कालेज में अध्यापक बना उसके बाद मेरी भेंट कविवर ''विश्वनाथ लाल शैदा'' जी से हुई वही मेरे काव्यगुरू बने | सूँड़ फैजाबादी एक ऐसा नाम जो अपने सारे दर्दो को अपने अन्दर समाहित करके दुनिया को हास्य परोसते थे ठीक उसी तरह उनके संचालन का बड़ा ही अनोखा अंदाज रहा उनकी प्रकाशित रचनाओं में ''मियाँ की दौड़'' - हास्यरस का खंडकाव्य , 1949 में हिंदी साहित्य का सर्व प्रथम हास्य प्रबंध 1951 में ''फुँकार'' 1953 में अंग्रेजी गीतों का अनुवाद
1956 में ''लपेट'' , हास्यरस की फुटकल रचनाये
''चपेट'' हास्यरस 1971 में प्रकाशित हुई | सूंड फैजाबादी इसके साथ ही जनपद हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे साथ ही हरिऔध कलाभवन के संस्थापक सदस्य थे इसके साथ ही 1957 से 1971 तक नगर पालिका परिषद के सदस्य भी रहे सूँड़ फैजाबादी कविसम्मेलनो के संचालक के रूप में बेताज बादशाह रहे |
सूँड़ फैजाबादी के लिए पूर्व रक्षा मंत्री आदरणीय जगजीवन राम जी ने लिखा है कि ' सूँड़ फैजाबादी विद्वानों से लेकर आम आदमी तक के कविता की भूमिका बनाने में माहिर थे' , वासुदेव सिंह ( पूर्व मंत्री ) 'सूँड़ की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने जीवन की वास्तविकता को हास्य से जोड़ा है ' , ठाकुर प्रसाद सिंह - 'सूँड़ ने अपनी प्रतिभा से जो स्थान अर्जित किया है उससे उनके बहुत से समकालीनो को इर्ष्या हो सकती है | तत्कालीन जिलाधिकारी कृपा नरायन - चुभती भाषा में व्यग्य चहचहाती जबान में हँसी का आलम इकठ्ठा करना सूँड़जी का ही कमाल है | तत्कालीन जिलाधिकारी बालकृष्ण चतुर्वेदी '' सूँड़जी का हास्य साहित्य में जो स्थान है वह सर्वविदित है | डा धर्मवीर भारती ''बेमिसाल हाजिर जबाब' डा विश्वनाथ प्रसाद सूँड़ जी ने कवि सम्मेलन की जड़ो को सामान्य जन की माटी तक पहुचा दिया | भारत भूषण ' सूँड़ के काव्य के हास्य का सस्तापन नही है | रूपनारायण त्रिपाठी सूँड़ की रचनाओं से मेरी सहमती का कारन यह है कि मुझे उनमे आत्मा की मुस्कान मिलती है | डा विवेकी राय सूंड फैजाबादी का हाथ कुंडलिया छंद पर बहुत सधा हुआ है |
चन्द्रशेखर मिश्र ' हास्य और व्यंगकार के रूप में सूँड़ जी देश के अग्रिम पंक्ति में है | हल्दीघाटी के रचनाकार श्याम नरायन पाण्डेय सूँड़ जी में एक विलक्षण पैनी प्रतिभा है ,उमाकांत मालवीय वो मंचो के जादूगर है विश्वनाथ लाल शैदा सूँड़ जी के व्यंग्य को मैं ऊँचे दर्जे का हास्य मानता हूँ | श्रीपाल क्षेम पूर्वांचल के काव्य मंच को अनेको रूपों से प्रभावित किया है डा त्रिभुवन सिंह सूँड़ का काव्य जीवन सम्प्रत्ति का काव्य है | ऐसे थे हम सबके सूंड जी इसी माटी के होकर रह गये आज उनका जन्मदिन है | उनको शत शत नमन करता हूँ |
प्यारे , मैं पशु अंग हूँ , कवि मंडल की नाक ,
लटका हूँ , गिरता नही , ऐसी अपनी धाक
ऐसी अपनी धाक , फूंक कर पद धरता हूँ ,
पहुँचू जिसके द्वार वही शोभा करता हूँ |
कहे सूँड़ फटकार , रो रहे कुत्ते सारे ,
मस्त करूँ फुँकार आप हँसते है प्यारे |
अपने रंग में झूमता झन्झट सभी समेत ,
मुझको जो प्यार लगा उसको लिया लपेट |
उसको लिया लपेट प्यार के सबसे नाता ,
धन है केवल मित्र , सदा उनके गुण गाता |
कहूँ सूँड़ फटकार , मौज मस्ती के सपने ,
प्यार मैं पशु अंग रंग में झूमूँ अपने ||
सुनील दत्ता -- स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-08-2018) को "मत घोलो विषघोल" (चर्चा अंक-3052) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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